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Publishing Year : 2023

September To November
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ग्वालियर भारत के लगभग मध्य में स्थित है। मध्य प्रदेश के मानचित्र पर यह शीर्ष पर 22 डिग्री 5 मिनट से 26 डिग्री 52 मिनट उत्तरी अक्षांश एवं 74 डिग्री 2 मिनट से 79 डिग्री 12 मिनट पूर्वी देशांतर पर स्थित है। ग्वालियर दुर्ग विंध्य पर्वतमाला के अंतिम किनारे पर स्थित है। यह पर्यटन के प्रसिद्ध नगर आगरा से 118 किलो मीटर दूर है। आगरा से ग्वालियर रेल एवं सड़क मार्ग से आसानी से पहॅुचा जा सकता है। दूर से दुर्ग बहुत सुन्दर एवं आर्कषक दिखायी देता है। दुर्ग के ऊँचे बुर्ज एवं ऊँची प्राचीरें पर्यटकों को अपनी ओर आर्कषित करती है। यहॉ आकर पर्यटक इसकी सुन्दरता में एवं विशालता में खो जाता है।

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ग्वालियर, दुर्ग, पर्यटक, प्रागैतिहासिक.

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  1. मेमोरेंडा आन द इण्डियन स्टैट, पृ. 135, ग्वालियर जिला गजेटियर, 1968, पृ. 1।

2. शर्मा, विष्णु कान्त, (2010) बिलौआ की गढ़ी एवं जागीर, जनरल आफ द मध्य प्रदेश इतिहास परिषद, नं. 23, पृ. 252।
3. विल्स, डी मिचेल (1989) एन इन्टरोडक्शन टू द हिसटोरीकल जीयोग्राफी ऑफ गोपक्षेत्र, दसरना एण्ड जेजाकदेसा, बुलेटिन ऑफ द स्कूल ऑफ ओरिएन्टल एण्ड अफ्रीकन स्टडीज, यूनीवर्सिटी ऑफ लन्दन,  पृ. 274। 
4. द्विवेदी, हरिहर निवास (1980) गोपाचल आख्यान, ग्वालियर शोघ संस्थान, जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर, पृ.  18।
5. बाबरनामा (1979) अनुवादक बेवरीज, ए एस, पृ. 605-607।
6. दुबे, दीनानाथ (2013) भारत के दुर्ग, पृ 121 एवं शर्मा, विष्णु कान्त (2013) ग्वालियर एवं पश्चिमी बुदेलखण्ड के दुर्ग एवं गढ़ियां, प्रकाश बुक डिपो, बरेली, पृ. 11।
7. बाबरनामा, पृ. 608।
8. दुबे, दीनानाथ, भारत के दुर्ग, पृ. 121।
9. कृष्णन, मध्य प्रदेश जिला गजेटियर, पृ. 460।
10. मिश्र, आनन्द, (1996-97) संपादक -युगयुगीन ग्वालियर, पृ. 4।
11. ग्वालियर दुर्ग पर स्थित शिलालेख, एवं चक्रवर्ती कल्याण कुमार (1984) ग्वालियर फोर्ट, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, मध्य प्रदेश शासन, पृ. 89।
12. उपाध्याय, भगवतशरण, भारतीय कला का इतिहास, पृ. 158।
13. चक्रवर्ती, कल्याण कुमार (1984) ग्वालियर फोर्ट, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, मध्य प्रदेश शासन, पृ. 90।
14. दुबे, दीनानाथ, (1990) भारत के दुर्ग, पृ. 122 एवं चक्रवर्ती, कल्याण कुमार, ग्वालियर फोर्ट, पृ. 90, भारत सरकार।

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महिला सशक्तिकरण सामाजिक परिवर्तन का सूचक है और सतत् विकास लक्ष्यों की प्राथमिकता है। महिला या पुरुष, चाहे वह जितना ऊँचा दर्जा रखता हो, उसे उतना ही सशक्त माना जाता है फिर भी, महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुष उच्च दर्जे के पदों पर हैं। नेतृत्व और सशक्तिकरण का बेहतर आंकलन करने के लिए उच्च-स्तरीय पदों पर अधिक महिलाओं की आवश्यकता है। विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समुदायों ने महिलाओं के मुद्दों को संबोधित किया है और उन्हें सशक्त बनाने के लिए विभिन्न प्रयास किए हैं ताकि उनकी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को बढ़ाया जा सके और उन्हें विकासात्मक गतिविधियों में शामिल किया जा सके। उच्च शिक्षा और व्यवसाय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रभावी साधन हैं, लेकिन इस संबंध में संस्कृति की भूमिका और रचनात्मकता को नकारा नहीं जा सकता। यह शोध बताता है कि आर्थिक स्वावलंबन, रचनात्मक उद्योग के माध्यम से महिलाओं को गरीबी से कैसे सशक्त बनाया जाए। भारत में महिला आर्थिक स्वावलंबन सरकार और नागरिक समाज दोनों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि आर्थिक रूप से संबल महिलाएँ देश के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। समाज में आर्थिक रूप से संबल महिलाओं को गरीब महिलाओं की तुलना में अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है। आर्थिक स्वावलंबन होने पर महिलाओं की निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है। यद्यपि घर में निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने की महिलाओं की क्षमता को कई कारक प्रभावित करते हैं, लेकिन आर्थिक स्वावलंबन यहाँ निर्णायक भूमिका निभाती है। हमारे समाज में, महिलाओं को आमतौर पर निम्न सामाजिक स्थिति वाली माना जाता है, जिसने आर्थिक स्वावलंबन के लिए उनके अवसर और विचारशीलता को और कमजोर कर दिया है। आर्थिक स्वावलंबन महिला सशक्तिकरण का एक मील का पत्थर है क्योंकि यह उन्हें चुनौतियों का जवाब देने, अपनी पारंपरिक भूमिका का सामना करने और अपने जीवन को बदलने में सक्षम बनाती है। आर्थिक स्वावलंबन से महिलाओं को पितृसत्तात्मक परंपराओं की सामाजिक और पारिवारिक बाधाओं से स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद करती है। महिलाओं को मीडिया के प्रति अधिक संपर्क, अपने अधिकारों के बारे में जागरूकता, संसाधनों तक अधिक पहुँच, बेहतर संचार कौशल मिलता है, साथ ही आर्थिक सशक्तीकरण से परिवार के निर्णयों में उनकी बातचीत की शक्ति बढ़ती है और पैसे से संबंधित निर्णयों में उनकी अधिक भागीदारी होती है। अध्ययन में यह पाया गया कि अधिकांश गरीब महिलाओं को अपने बच्चों की शिक्षा, कॉलेज या कोचिंग चुनने, अपने व्यवसाय आदि के बारे में निर्णय लेने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा था। महिलाओं की आर्थिक उपलब्धि उनके निर्णय लेने की शक्ति से सकारात्मक रूप से संबंधित है। यह समानता लाने में सहायता करती है और परिवार, समाज और राजनीतिक व्यवस्था में उनकी स्थिति को सुधारने के साधन के रूप में काम करती है। भारत हाल के वर्षों में महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। महिलाओं का आर्थिक रूप से संबल होना समाज में उनकी स्थिति बदलने का सबसे शक्तिशाली साधन, क्योंकि आर्थिक स्वतंत्रता महिला सशक्तिकरण की आधारशिला है। आर्थिक स्वतंत्रता असमानताओं में भी कमी लाती है और परिवार के भीतर उनकी स्थिति को सुधारने के साधन के रूप में कार्य करती है और भागीदारी की अवधारणा को विकसित करती है। इस शोध का उद्देश्य आर्थिक स्वावलंबन के माध्यम से महिला नेतृत्व के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालना है।

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सामाजिक परिवर्तन, विकासात्मक, रचनात्मकता, आर्थिक स्वावलंबन, पितृसत्तात्मक.

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1. लेविस, ऑस्कर (19958) गु्रप डायनामिक्स इन नार्थ इंडिया विलेजेसः ए स्टडी ऑफ फक्शन्स, प्रोग्राम इवेल्युएशन आर्गेनाइजेशन प्लानिंग कमीशन, नई दिल्ली। 
2. सिंह, बैजनाथ (1959) द इम्पेक्ट ऑफ द कम्यूनिटी डेव्हलपमेंट प्रोग्राम ऑन रूरल लीडरशिपः पार्क एण्ड टिंकर (सं.) लीडरशिप एण्ड पॉलिटिकल इन्स्टीट्यूशन्स, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, मद्रास।
3. सिंह, अवतार (1963) लीडरशिप पैटर्न एण्ड विलेज स्ट्रक्चर, स्टर्लिंग, नई दिल्ली।
4. वैकटरंगैय्या, एम. एवं रामरेड्डी, जी. (1967) पंचायत राज इन आंध्रप्रदेश, स्टेट चौम्बर ऑफ पंचायत राज, हैदराबाद।
5. शाह, जी. (1975) पोलिटिक्स ऑफ शिड्यूल्ड कास्ट एण्ड ट्राइब्स वोरा एण्ड कं., बम्बई। 
6. मुखर्जी, आर.एन. (1975) भारतीय सामाजिक संस्थायें, सरस्वती सदन दिल्ली।
7. भार्गव, बी.एस. (1979) पंचायत राज सिस्टम एण्ड पॉलिटिकल पार्टीज, आशीष पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली। 
8. दरसानकर, ए.आर. (1979) लीडरशिप इन पंचायत राज, पंचशील प्रकाशन, रायपुर।
9. चक्रवर्ती, के. एवं भट्टाचार्य. एस.के. (1993) लीडरशिप फैक्शंस एण्ड पंचायतराज, रावत पब्लिकेशन, जयपुर।
10. कौशिक, सुशीला (1993) वुमन्स पार्टिसिपेशन इन पॉलिटिक्स, विकास पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली।
11. खत्रा, बी.एस. (1994) पंचायत राज इन इंडिया रूरल लोकल सेल्फ गवर्नमेंट, दीप एण्ड दीप पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली।
12. दास, प्रभाकर (1994) इमर्जिंग पैटर्न ऑफ लीडरशिप इन ट्रायबल इण्डिया, मानक पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली। 
13. गौड, के.के. (1997) भारत में ग्रामीण नेतृत्व का उद्दीयमान स्वरूप, मानक पब्लिकेशन, नई दिल्ली। 
14. भारद्वाज, अरूणा (2000) पंचायत राज व्यवस्था के वैचारिक आयाम, कन्सेप्ट पब्लिशिंग, नई दिल्ली।
15. शर्मा, आदर्श (2000) पंचायती राज में महिला आरक्षण औचित्य एवं संभावनाएं, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर।

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प्रस्तुत शोध पत्र ‘‘ग्रामीण एवं शहरी माध्यमिक स्तर के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि एवं बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन’’ पर आधारित है। शोध पत्र के लिए निम्नलिखित उद्देश्य रखे गये हैं : ग्रामीण माध्यमिक स्तर के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि एवं बुद्धि का अध्ययन करना। शहरी माध्यमिक स्तर के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि एवं बुद्धि का अध्ययन करना। शोधकर्ता द्वारा सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया है तथा शोधार्थी द्वारा मध्यप्रदेश के दतिया जिले के 2 ग्रामीण एवं 2 शहरी माध्यमिक विद्यालय के 20 शहरी एवं 20 ग्रामीण छात्रों का चयन किया है। शोध उपकरण - प्रस्तुत शोध में उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुये शोधार्थी द्वारा छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि के लिए उनके पिछले वर्ष का परीक्षा परिणाम लिया गया तथा बुद्धिलब्धि के लिए प्रमाणीकृत उपकरण के रूप में आर.के. ओझा एवं राय चौधरी की मौखिक बुद्धिलब्धि मापनी का प्रयोग किया है। निष्कर्ष के रूप में पाया गया है कि ग्रामीण एवं शहरी माध्यमिक स्तर के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि एवं बुद्धि में सार्थक अन्तर पाया गया है। शहरी माध्यमिक स्तर के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि एवं बुद्धि में सार्थक अन्तर है।

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ग्रामीण एवं शहरी माध्यमिक स्तर के छात्र, शैक्षिक उपलब्धि, बुद्धि.

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  1. गुप्ता एस.पी. एवं गुप्ता अलका (2005), उच्चतर शिक्षा मनोविज्ञान, शारदा पुस्तक भवन इलाहाबाद।

2. अस्थाना, मोहन स्वरूप (1998). ‘‘शिक्षा एवं विद्यार्थी’’, संगम प्रकाशन, गाजियाबाद।
3. भार्गव, महेश (2010). ‘‘आधुनिक मनोवैज्ञानिक-परीक्षण एवं मापन’’, एच.पी. भार्गव बुक हाउस 19वां संस्करण।
4. भटनागर, सुरेश (1991). ‘‘शिक्षा मनोविज्ञान’’, अटलान्टिक पब्लिशर्स, दिल्ली।
5. कैरोल (1969). ‘‘असामान्य मनोविज्ञान’’, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली 
6. चौहान, ए. एस. (2006). ‘‘एडवांस एजूकेशनल साइक्लोजी’’, विकास पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली। 

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प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य शासकीय एवं अशासकीय माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियां के व्यक्तित्व पर योग के प्रभाव का अध्ययन (ग्वालियर जिला मुख्यालय के विशेष संदर्भ में) करना है। अनुसंधान में प्रयुक्त समस्या की स्पष्ट व्याख्या हेतु शोधकर्ता ने सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया है। न्यादर्श के रूप में शोधार्थी द्वारा मध्यप्रदेश के ग्वालियर मुख्यालय के 2 शासकीय एवं 2 अशासकीय माध्यमिक विद्यालय के 20 (10 छात्र $ 10 छात्रायें शासकीय) एवं 20 (10 छात्र $ 10 छात्रायें अशासकीय) विद्यार्थियों का चयन किया है। विद्यार्थियों में योगाभ्यास न करने वाले (नियंत्रित समूह) के 5-5 छात्र-छात्राओं एवं योगाभ्यास करने वाले (प्रयोगात्मक समूह) के 5-5 छात्र-छात्राओं को चयनित किया गया है। शोध उपकरण के रूप में व्यक्तित्व पर योग के प्रभाव के लिए एस.डी. कपूर, एस.एस. श्रीवास्तव एवं जी.एन.पी. श्रीवास्तव की हाईस्कूल पर्सनेल्टी प्रश्नावली प्रयोग किया गया है। शोधार्थी द्वारा शोध में प्रयुक्त समस्या कथन की आवश्यकतानुसार द्विदिश एनोवा का प्रयोग किया गया है। निष्कर्ष में पाया कि शासकीय एवं अशासकीय विद्यार्थी जो योग को गंभीरता से लेते हैं उनके व्यक्तित्व पर ही योग का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

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व्यक्तित्व, योग, विद्यार्थी.

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  1. स्वामी विवेकानन्द, (2013) व्यक्तित्व का विकास, स्वामी ब्रह्यास्थानन्द, सी. शर्मा पब्लिकेशन्स, कोलकाता।

2. भार्गव, महेश (1979), आधुनिक मनोविज्ञान परीक्षण एवं मापन, एच.पी. भार्गव बुक हाउस, आगरा।
3. भटनागर, ए.बी. तथा मीनाक्षी (2003), मनोविज्ञान एवं शिक्षा के मापन एवं मूल्यांकन, सूर्या प्रकाशन, मेरठ।
4. चन्द्र, सुरेश (1962), पांतंजल योग दर्शनम्, सर्वसेवा प्रकाशन राजघाट, वाराणसी। 
5. वर्णवाल, सुरेशे (1965), योग और मानसिक स्वास्थ्य, न्यू भारतीय बुक कॉपरेशन।
6. चौहान, ए. एस. (2006) एडवांस एजूकेशनल साइक्लोजी, विकास पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली।
7. पाठक, पी.डी. (2021) ‘‘शिक्षा मनोविज्ञान’’, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा।

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 किसी भी देश की राष्ट्रीय रक्षा, सम्प्रभुता, एकता एवं अखंडता उसके भौगोलिक सीमाओं से निर्धारित होती है, जिसके अंतर्गत जल, थल, और नभ सीमा क्षेत्र आते हैं। रक्षा मंत्रालय के अधीन, सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास और सुरक्षा की रीढ़ के रूप में कार्य कर रहा है, इसके साथ ही वर्तमान समय में यह संगठन भारत के विशाल और विविध सीमा क्षेत्रों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस शोध पत्र के माध्यम से भारतीय सीमाओं के प्रबंधन एवं विकास में बीआरओ के कार्य, योगदान, उपलब्धियों एवं बहुमुखी भूमिका के बारे में विश्लेषणात्मक मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है।

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 सीमा संरचना, सीमा प्रबंधन, अंतर्राष्ट्रीय सीमा, अवसंरचना विकास, रणनीतिक सड़क.

Read Reference

  1. FICCI & PWC, “Smart Border Management: Indian perspective,  2016,” https://www.pwc.in/, Accessed on : October 15, 2023. 

2. Ministry of Defence, Annual Report, Government of India, New Delhi. 
3. Ministry of Road Transport and Highways, Annual Report 2012-13 https://morth.nic.in/sites/default/files/other_files/Hindi%20Part%202-7281512183.pdf 
4. Panikkar, K. M.; “Problems of Indian Defence” (London: Asia Publishing House, 1960). 
5. PIB Year End Review, Ministry of Defence, 2022 
6. सीमा सड़क संगठन के बारे में, सीमा सड़क संगठन की वेबसाईट, https://bro.gov.in/index2.asp?slid =151&sublinkid=195&lang=2 
7. गुप्ता, अरविंद, “सीमा प्रबंधनः चुनौतियां और अवसर”, विवेकानंद इंटरनेशनल फाऊंडेशन, 2021.
 

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 जैसा कि हम जानते हैं, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अन्य सभी मनुष्यों के साथ उचित सहयोग करके अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है इसलिए, उसके अधिकार उसकी स्व-शासित इच्छाओं के साथ बिल्कुल सहवर्ती नहीं हैं, लेकिन केवल तभी तक मौजूद रह सकते हैं जब तक वे समुदाय के अधिकारों से नहीं टकराते हैं, इसलिए, अधिकार इंगित करते हैं कि कर्तव्य व्यक्ति के अधिकारों को प्रभावित नहीं करते हैं। समुदाय, और केवल अपने कर्तव्यों का पालन करता है। दूसरे शब्दों में, कर्तव्य को किसी व्यक्ति के प्रति समुदाय का ‘अधिकार‘ भी माना जा सकता है। कई सभ्यताओं/ समाजों ने समुदाय के सदस्यों के अधिकारों को निर्धारित करके और कर्तव्यों के संदर्भ में किसी व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार के नियमों को तैयार करके सामाजिक व्यवस्था और सद्भाव लाने और बढ़ावा देने की मांग की है। लेकिन, वर्तमान में आधुनिक राज्य व्यवस्था के विकास ने लगभग हर जगह मनुष्य के रूप में हमारे जीवन को बदल दिया है इसलिए कर्तव्यों पर जोर देकर स्व-अधिकारों की प्राप्ति का दृष्टिकोण अनुत्पादक साबित हो सकता है। बेकार प्रकार की शिक्षा के लिए शिक्षा के प्रति मानवाधिकार-आधारित दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता होती है जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के माध्यम से दोनों मानवाधिकारों को बढ़ावा मिलता है। यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षा की सभी प्रक्रियाएं और घटक - सामग्री विधियों, पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण सहित - मानव अधिकारों और मानव की शिक्षा के लिए अनुकूल हैं। शिक्षा में अधिकार यह सुनिश्चित करना कि स्कूल, समुदाय के सभी सदस्यों के मानवाधिकारों का सम्मान किया जाए और शिक्षा के भीतर उनका पालन किया जाए।

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सामाज, कर्तव्य, मानव, अधिकार, शिक्षा.

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  1. दयाल, जे., और कौर, एस., (2015) पी.एस.ई.बी. और सी.बी.एस.ई. संबद्ध वि।ालय में कार्यरत शिक्षकों के बीच मानवाधिकार जागरूकता पर एक तुलनात्मक अध्ययन। पैरिपेक्स-इंडियन जर्नल ऑफ रिसर्च 4(4),4-6।

2. घान, पी., (2020) घाना में ग्रामीण महिलाओं और शहरी महिलाओं के बीच अंतर को जानना। महिला अध्ययन का ओपन जर्नल 2(11), 26-31।
3. https://www.jetir.org/papers/JETIR1802259.pdf
4. http://hrlibrary.umn.edu/edumat/pdf/hreh.pdf
5. http://www.eycb.coe.int/compasito/chapter_2/pdf/1.pdf
6. https://nhrc.nic.in/sites/default/files/HREducation_Schools_India_02012019-min.pdf
7. https://www.hurights.or.jp/archives/other_publications/section1/pdf/Complete%20file% 20for%20the%20publication.pdf

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Cyberstalking is the term for when someone is harassed online through various means, such as liking someone’s pictures or following their activity, commenting inappropriately, or sending unwanted emails or messages that contain abusive or obscene content, all in an attempt to avoid being noticed. Stalking is defined as any act of closely following someone without being heard or seen. These days, with the internet permeating every aspect of our lives, cyberstalking and bullying have become commonplace as standard forms of sexual harassment. However, these forms of harassment extend beyond simple sexual harassment, encompassing the dissemination of threats, false accusations, data theft, identity theft, and other forms of aggression. Comparably, cyberstalking instances are emerging in India at an exponential rate, which is why the necessary legislation to address the problem are still lacking or do not meet the necessary criteria. The current laws pertaining to this matter are still out of date as a result of a lack of understanding on the part of the public and our legislators. The regulations pertaining to this matter, the kinds of offences that really occur in this context, the areas where the restrictions fall short of current trends, and potential remedies for these issues will all be the main topics of this study.

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Cyber Stalking, Internet, Sexual harassment, Cyber Bullying, Online harassment.

 

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  1. https://www.nbcnews.com/id/wbna50787128

2. Lawerence Robinson and Melinda Smith, Paranoid Personality Disorder (PPD), helpguide.org, (November 15, 2023, 6:56pm), https://www.helpguide.org/articles/mental-disorders/paranoid-personality-disorder.html.
3. The Indian Penal Code, 1860, No. 45 of 1860, Acts of parliament, 1860(India).
4. The Information technology Act, 2000, Acts of Parliament, 2000(India).
5. The Indian Penal Code, 1860, No.45 of 1860, Acts of Parliament, 1860(India).
6. The Criminal Law (Amendment) Act, 2013, Acts of Parliament, 2013(India).

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 Minorities’ sense of fear stemmed from their vulnerable status in society, which led to the granting of rights to them. As a result, minorities began to seek rights, which the Constituent Assembly refused. Instead, Article 30 was created, which came with no limits for minorities. But it was crucial for minorities to understand that the privileges accorded to them were subject to the law, and this understanding prompted the Supreme Court to step in on behalf of minorities. The Supreme Court has established the standards and scope of Article 30, which grants minority communities the right to create and run educational institutions for the benefit of their community, via a number of instances. Article 30’s goal is to stop the majority from passing laws that deny the rights of minorities. The fragile status of minorities in society was the reason behind the Supreme Court’s action.

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 Minorities, Rights of Minorities, Educational Institutions, Autonomy.

Read Reference

  1. Zoya Hassan, Defining Minorities, The Hindu Daily Dated: 14-07-2007.

2. Shabnum Tejani, ‘Defining Secularism in the Particular: Caste and Citizenship in India 1909-1950 ’ [2013] Religion and Politics section of the American Political Science Association, 705.
3. Bakshi P. M., (2005) “The Constitution of India”, Delhi, Universal Law Publishing Company, pp. 66- 70.
4. http://ncmei.gov.in/default.aspx last visited on 20 Nov, 2023.
5. Shukla “Constituent Assembly Debate” p 890, 2003.
6. Sidrajbhai v. State of Gujarat, AIR 1963 SC540.
7. Supreme Court Journal 2002 vol.1 p38.
8. See, Menon, N., & Menon, N. (2010). Introduction. In Chatterjee P. (Author), Empire and Nation: Selected Essays (pp. 1-20). Columbia University Press. Retrieved from http://www.jstor.org/stable/10.7312/chat15220.4.
9. Nirja Gopal Jayal (1993), ‘Ethnic Diversity and the Nation-State’, Journal of Applied Philosophy, vol.10, no.2, pp. 147-53, at p.147.
10. Aloysius G., (2010) Dalit-Subaltern Self-Identifications: Iyothee Thassar & Thamizhan, Critical Quest, New Delhi.

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 This paper examines correlation and impact between the Gross terms of trade and the exchange rate. This study is completely based on time series data since 2010 to 2022. The statistical (Correlation and Descriptive Statistics) and econometrical(Unit root test, Cointegration and VECM )tools are used to analysis of data. The paper found that both variables are positively correlated and cointegrated in the long run. However the impact is not significant between variables. The Granger Causality shows that there is unidirectional relation between the variables. VECM also explain the speed of adjustment is 19 percent in the long run.

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 Gross terms of trade, Exchange rate, Correlation, Unit root test, VECM.

Read Reference

  1. Adhikari, C. S. & Sachdeva J. K. (2016). Short Term Exchange Rate Fluctuations in India: An Exploratory Study. Journal of Global Economy, 12(1).

2. Adler, G., Gopinath, G. & Osorio Buitron, C. (2020). Dominant Currencies and the Limits of Exchange Rate Flexibility, was  published by IMF blog sites.
3. Bahmani-Oskooee, M., & Alse, J. (1994). Short-run versus long-run effects of devaluation: Error-correction modeling and cointegration. Eastern Economic Journal, 20(4), 453-464. 
4. Bahmani Oskooee, M., & Hegerty, S. W. (2007). Exchange rate volatility and trade flows: a review article. Journal of Economic studies.
5. Chowdhury, A. R. (1993). Does exchange rate volatility depress trade flows? Evidence from error-correction models. The Review of Economics and Statistics, 700-706.
 

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 Sports plays an important role for women empowerment. Before the independence women were not allowed to take participate in sports but after the enactment of Indian Constitution women got fundamental rights to protect her status and uplift their condition in every sphere of life. Various women sports person had proved herself at international tournament and sports events. For example-P.T. Usha won gold medal in race. After that karnam malleshwari, Marry com, Mitali etc. has won the event on various international sports events etc. Sports may build confidence, team spirit, empowerment among women. Today sports person has to face many challenges during playing a tournament for example-doping, sexual harassment, discrimination, injustice in selection procedure of players, discipline, dispute of sports person with sports authority etc. “There is a need for enactment of code on sports to regulate all the issues from practicing of sports to remuneration of sportsperson.”1 The career of sports person is very small; if they stuck in litigation against sports authority, it can hamper their career therefore alternate dispute resolution mechanism should be adopted at national as well as international level. The Sports law should be enacted as soon as possible to sort out the disputes between players, authority or any other organization etc. people should encourage their girl child and female members to take participation in sports events for them over all development. Gender sensitization for women sports and sponsorships’ contract terms, infrastructure for practicing of sports should be upgraded to meet challenges of national and international events.

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 Sports, Authority, Sports Law, Women empourment.

Read Reference

  1. https://www.unwomen.org/en/news/in-focus/women-and-sport

2. https://blog.decathlon.in/articles/indian-sports-women
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Women%27s_sports
4. https://www.kreedon.com/women-in-sports-in-india-stories-of-struggle-and-inspiration/
5. Ayush Verma, Everything you need to know sports law in India, https://blog.ipleaders.in/everything-need-know-sports-law-india/
6. Gaurang Kanth, Emergence of Sports Law in India, retrieved from https://www.indialawjournal.org/archives/volume3/issue_2/article_by_Gaurang.html
7. Arnav Mithal, Shortcoming of Sports Law in India, https://www.legalserviceindia.com/legal/article-3287-shortcoming-of-sports-law-in-india.html
8. Shubham Porkar and Parimal Kashyap, India: Sports Law in India, retrieved from https://www.mondaq.com/india/sport/769938/sports-law-in-india
9. Ameyaprasad Atigre, Sports Law in India: Protection and Challenges, https://lawtimesjournal.in/sports-laws-in-india-protection-and-challenges/
10. Panagiotopoulos Dimitrios, Sports Law and
11. International Sports Law, https://elearninguoa.org/course/business-economics/sports-law-and-international-sportslaw?gclid=CjwKCAjwmqKJBhAWEiwAMvGt6LR1HTyl81KZ647LSDlnhqs FhqDqTfJGRT5qre-ArLB7gYbH3QcLPBoC02IQAvD_BwE
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13. Shubham Borkar Sports Law in India, /www.khuranaandkhurana.com/2019/01/04/importance-of-sports-law-in-india/
14. Ameyprasad Atigre, Sports Laws in India – Protection, and Challenges, https://lawtimesjournal.in/sports-laws-in-india-protection-and-challenges/
15. https://mysj.com.my/archives-pdf/1msj2020/1msj2020-15-17.pdf
16. https://www.journalofsports.com/pdf/2017/vol2issue2/PartA/2-2-1-682.pdf
17. https://rnlkwc.ac.in/pdf/anudhyan/volume4/Games-And-Sports-A-Gateway-Of-Womens-Empowerment-In-India-Dr-Krishnendu-Pradhan.pdf
18. https://www.sportanddev.org/sites/default/files/downloads/empoweringgirlsandwomenthrough sportandphysicalactivityfinal.pdf
19. https://www.ohchr.org/en/stories/2012/05/empowering-women-and-girls-through-sport
20. https://www.legalserviceindia.com/legal/article-1320-women-empowerment-and-constitutional provisions.html#:~:text=The%20most%20effective%20remedy%20to,spheres%20just%20like%20 males%20have.
21. https://blog.ipleaders.in/everything-need-know-sports-law-india/

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 आज भी अधिकांश गरीब लोग ग्रामीण भारत का हिस्सा हैं जो आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है, ऐसे में जरूरत है योजनाओं के सही ढंग से क्रियान्वयन की। हमारे देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां सरकारों की ओर से योजनाएं तो काफी बनती हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर सफल नहीं हो पाती हैं। इनकी असफलता के पीछे की मुख्य वजह रणनीति और इच्छाशक्ति का अभाव होना है। किसानों की समस्याएं साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही हैं, उनकी हालत खराब होती जा रही है। किसानों द्वारा किए जा रहे आत्महत्या के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव की जरूरत है। ये बदलाव जलवायु संकट को ध्यान में रखते हुए होने चाहिए। कभी सूखा, कभी बाढ़ तो कभी ओला वृष्टि ये तीन चीज ऐसी हैं जिसके कारण फसलों का सबसे ज्यादा नुकसान होता है। किसानों को सिर्फ फसल का मुआवजा देकर स्थिति संभालने के दावे करना उचित नहीं होगा क्योंकि मुआवजा किसान के नुकसान की भरपाई कभी भी नहीं कर पाता है। इसके लिए जरूरत है कि देश मंे किसानांें के लिए एक ऐसा माहौल तैयार किया जाए, जिसमें उन्हें लगे कि सरकार या राज्य द्वारा चलाई जा रही संस्थाएं उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयासरत है।

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 फसल बीमा योजना, ड्रिप सिंचाई, जैविक खेती, मृदा परीक्षण, विदेशी सहयोग.

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  1. बिहार सरकार (2003), नई औद्योगिक नीति, 2003, पृष्ठ-24।

2. लेविस आर्थर (1947), इकॉनामिक्स ऑफ प्लानिंग एण्ड ग्रोथ, आक्सफोर्ड, पृष्ठ-29।
3. दास विश्वेश्वर, (2006) बिहार की भौतिक अधिसंरचना, पृष्ठ-54।
4. यादव जीया लाल, (2012) कृषि प्रबंधन एवं कृषि बाजारीकरण, रावत पब्लिकेशन, जयपुर, पृष्ठ-24।
5. गोस्वामी विक्रम, (2012) आधुनिक कृषि का सिद्धांत, डिसकवरी पब्लिसिंग हाउस, नई दिल्ली, पृष्ठ-38।
6. गोस्वामी विक्रम, (2012) कृषि प्रसार के सिद्धांत, डिसकवरी पब्लिसिंग हाउस, नई दिल्ली, पृष्ठ-10।

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 शिक्षा और जीवन अन्योन्याश्रित है। शिक्षा जीवन है और जीवन शिक्षा है। शिक्षा को जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। जीवन की आवश्यकताओं को दो भागों में बांटा जा सकता है, एक व्यक्तिगत और दूसरी सामाजिक। व्यक्तिगत आवश्यकताओं में शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, चारित्रिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं सम्मिलित है। शिक्षा व्यक्ति की इन सभी आवश्यकताएँ को पूरा करती है। शिक्षा के द्वारा बालकों को योग्य, कर्मठ चरित्रवान, परिश्रमी और राष्ट्र एवं समाज के प्रति संवेदनशील बनाया जाये, जिससे वे देश और समाज की प्रगति और विकास में अपना सहयोग प्रदान कर सके। माध्यमिक शिक्षा स्तर, प्राथमिक तथा उच्च शिक्षा स्तरों के बीच स्थित होने के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि माध्यमिक शिक्षा के उपरांत ही बालक उच्च शिक्षा में प्रवेश करता है और इस माध्यमिक स्तर में बालकों में परिपक्वता का आगमन होना शुरू हो जाता है, चूँकि बालकों की अवस्था इस समय किशोरों की होती है और किशोरावस्था में बालकों में अदम्य साहस, चुनौतियों का सामना करने का हौसला, आत्मविश्वास, कौतुहल आदि का प्रबल संवेग होता है। अतः किशोरावस्था ही वह अवस्था है जिसमें बालकों को सही मार्गदर्शन प्रदान कर देश के आर्थिक विकास में योगदान करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। प्रस्तुत शोध-विषय माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करना था। अध्ययन के आधार पर निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के विद्यालय आने के पूर्व जो पारिवारिक परिवेश मिलता है, वह छात्र-छात्राओं शैक्षणिक विकास को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।

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 माध्यमिक शिक्षा, किशोरावस्था, अनुसूचित जनजाति.

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  1. नवीनतम झारखण्ड, सामान्य ज्ञान (2020) अरिहन्त पब्लिकेशन्स इंडिया लिमिटेड, अग्रवाल रोड, दरियागंज, नई दिल्ली।

2. कुमार, श्याम (2013) झारखण्ड एक विस्तृत अध्ययन, सफल प्रकाशन, पी. एण्ड डी. पुस्तक पथ, अपर बाजार।
3. सिन्हा, विनय (2012) भारत के राज्य झारखण्ड, अरिहन्त पब्लिकेशन इंडिया लिमिटेड, अग्रवाल रोड, दरियागंज, नई दिल्ली।
4. तिवारी, राज कुमार (2012) झारखण्ड की रूपरेखा, शिवांगन पब्लिकेशन शिव भवन कमलकांत रोड, रातु रोड।
5. जनगणना, आंकड़ा, (2011) भारत सरकार, नई दिल्ली।
6. राइट टू एजुकेशन फेरम (2013) स्टेट्स रिपोर्ट।
7. झारखण्ड, शिक्षा परियोजना रिपोर्ट (2015) झारखण्ड सरकार।
8. सक्सेना, एन.आर. स्वरूप (2013) शिक्षा के दार्शनिक एवं समाजशास्त्रीय सिद्धांत, सूर्या पब्लिकेशन, मेरठ।
9. गुप्ता, यू. सी. (2014) शिक्षा के सामाजिक आधार, आर. लाल बुक डिपो, मेरठ।
10. वालिया, जे. सी. (2014-15) शिक्षा के दार्शनिकः सामाजिक एवं आर्थिक आधार।

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 इस वर्ष बांग्लादेश अपने निर्माण की 53 वीं वर्षगाँठ मना रहा है। यह एक ऐसा देश है जिसकी नींव के निर्माण में भारत ने एक कुशल राजगीर की भूमिका अदा की है। इसके साथ भारत की भू-भागीय सीमाएँ 4096 कि.मी. के आस-पास हैं जो भारत के पड़ोसी देशों की सीमाओं में सबसे लंबी है। भारत और बांग्लादेश के संबंध सभ्यता, संस्कृति, सामाजिक एवं आर्थिक आदि कई स्तरों पर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक साझा इतिहास, एक साझी विरासत, भाषा व संस्कृति का मेल, साहित्य, संगीत और कला, स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष और मुक्ति की साझी विरासत दोनों देशों को एक सूत्र में बांधते हैं। दोनों देश एक-दूसरे की अंतरंग भावनाओं को भ्रातृत्व भाव से अनुभव करते हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण दक्षिण एशिया के सबसे बड़े देश भारत और दक्षिण एशिया के उभरते टाइगर की उपमा हासिल करने वाले बांग्लादेश के आपसी संबंध अपना अलग स्थान रखते हैं। इसमें परंपरागत पड़ोसी की भाँति कुछ विवाद भी हैं तो आपसी सहयोग व विश्वास की मज़बूत इमारत भी मौजूद है।

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 भारत बांग्लादेश संबंध, मुद्दे, सहयोग.

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  1. चौधरी, जीडब्ल्यू, (2019), भारत-बांग्लादेश संबंधः ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उभरते रुझान, एशियाई मामले, 50(3), 248-2631

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3. साहा, आर. (2020), भारत-बांग्लादेश संबंधः एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, जर्नल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स, 2 (1), 27-391
4. कुमार, आर. (2017) भारत-बांग्लादेश संबंधः एक सिंहावलोकन, सामरिक विश्लेषण, 41(5), 434-4401
5. अकबर, एमएस (2019) भारत और बांग्लादेश के बीच आर्थिक संबंधः चुनौतियाँ और अवसर, अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन, 56 (3), 238- 2511
6. घोष, पी. (2018) भारत-बांग्लादेश संबंधः सुरक्षा मुद्दों पर फोकस, जर्नल ऑफ़ कंटेम्परेरी ईस्टर्न एशिया, 17 (2), 29-451
7. दत्ता, एस. (2017) भारत-बांग्लादेश संबंधः अतीत, वर्तमान और भविष्य, भारत त्रैमासिक, 73(2), 159-1761
8. जहान, एस., और अख्तर, एमएफ (2019) भारत-बांग्लादेश से सहयोग और संघर्ष की गतिशीलता, एशियन जर्नल ऑफ पॉलिटिकल साइंस, 27 (3), 265-2821
9. पॉल, एम., और खान, एमएच (2020) जल बंटवारा और भारत- बांग्लादेश संबंधः संभावनाएँ और चुनौतियाँ, जर्नल ऑफ एशियन एंड अफ्रीकन स्टडीज, 55 (8), 1192-1208
10. बिस्वास, एस., और साहा, एस. (2018) सीमा प्रबंधन और भारत- पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस, बांग्लादेश संबंधः चुनौतियाँ और संभावनाएँ, इंडियन जर्नल ऑफ पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशन, (12)1, 83 - 97
11. चौधरी, एआर (2019) भारत-बांग्लादेश संबंधः क्षेत्रीय स्थिरता के लिए निहितार्थ, दक्षिण एशियाई सर्वेक्षण, 26 (1), 95-1101

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 प्लेटो का दर्शन पूर्व-सुकरातिक्स, सोफिस्टों और कलात्मक परंपराओं के अनुरूप है जो ग्रीक शिक्षा को रेखांकित करते हैं। एक नए ढांचे में, द्वंद्वात्मकता और विचारों के सिद्धांत द्वारा परिभाषित प्लेटो के लिए, ज्ञान आत्मा की एक गतिविधि है, जो समझदार वस्तुओं और आंतरिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होती है। प्लैटोनिज्म की उत्पत्ति प्लेटो के दर्शन में हुई है, हालाँकि इसे इसके साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता है। प्लैटोनिज्म के अनुसार, अमूर्त वस्तुएं हैं (आधुनिक दर्शन से अलग एक धारणा)। बाहरी संवेदी दुनिया और चेतना की आंतरिक दुनिया दोनों से अलग एक अन्य क्षेत्र में मौजूद है, और नाममात्रवाद के विपरीत है)। प्लेटो के दर्शन में एक आवश्यक अंतर रूपों का सिद्धांत है, जो बोधगम्य लेकिन अबोधगम्य वास्तविकता के बीच का अंतर है। (विज्ञान) और अगोचर लेकिन सुगम वास्तविकता (गणित) ज्यामिति प्लेटो की मुख्य प्रेरणा थी और यह पाइथागोरस के प्रभाव को दर्शाता है। रूप पूर्ण आदर्श हैं जिनकी वास्तविक वस्तुएँ अपूर्ण प्रतिलिपियाँ हैं।

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 प्लेटो, दर्शन, आदर्शवाद, ज्ञानमीमांशा, आध्यात्मिकण्

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  1. अरस्तू. 1991. ‘द मेटाफिजिक्स‘ 1991. https://www.amazon.com/Metaphysics-Great-Books Philosophy/dp/08

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3. अनुवाद. पुरानी किताबेंः प्लेटो, बर्नार्ड विलियम्स, एम. जे. लेवेट, और माइल्स बर्नयेट, (1992). थीएटेटस, हैकेट प्रकाशन।
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 आधुनिक छत्तीसगढ़ प्राचीन काल में दक्षिण कौसल कहलाता था। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में दक्षिण-कौसल के शासकों का नाम वर्णित है। पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय के अनुसार- प्राचीन काल में दक्षिण कौसल की सीमा का निर्धारण इस प्रकार था- उत्तर में गंगा, दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में उज्जैन तथा पूर्व में उड़ीसा। चीनी यात्री व्हेनसांग के अनुसार दक्षिण कौसल की तत्कालीन राजधानी सिरपुर थी। प्राचीन इतिहास के आधार पर यहॉं मौर्यों, सातवाहनों, गुप्तों, राजर्षितुल्य-कुल, शरभपुरीय, सोमवंशियों और नलवंशीय शासकों का शासन विद्यमान था। क्षेत्र का इतिहास उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति पर प्रभाव डालता है। क्षेत्र का पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक परिचय प्राप्त करने के लिये दक्षिण कौसल के विभिन्न राजवंशों की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। छठवीं शताब्दी ईस्वी में दक्षिण कौसल के बहुत बड़े भू-भाग पर पाण्डुवंशी राजाओं का शासन था। शरभपुरीय वंश के शासन की समाप्ति के बाद पाण्डुवंशियों ने दक्षिण कोसल में अपने साम्राज्य की स्थापना की तथा सिरपुर को अपनी राजधानी बनाया। मेकल में इस राजवंश को पाण्डुवंश तथा दक्षिण कौसल में इन्हें सोमवंशी कहा गया है। पाण्डुवंशी राजा सोमवंशी थे और वैष्णव धर्म को मानते थे। पाण्डुवंश के इतिहास को बताने वाले छः ताम्रपत्र और इतने ही शिलालेख छत्तीसगढ़ क्षेत्र और उसके आसपास से प्राप्त हुए है। सिरपुर से प्राप्त बालार्जुन के शिलालेख में इस वंश का पहला शासक उदयन बताया गया है। इसका पुत्र इन्द्रबल था जो शरभपुरी शासक सुदेव राज का सामन्त था। संभवतः इसी ने शरभपुरीयों को सत्ताच्युतकर पाण्डुवंश की स्थापना की थी।

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 दक्षिण कौसल, व्हेनसांग, शरभपुरीय, पाण्डुवंशी, बालार्जुन, कौसलाधिपति.

Read Reference

  1.  http://cg.gov.in/statistics

2. श्रीवास्तव, निर्मलकांत, (2009) छत्तीसगढ़ की रियासतों में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास, छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर, पृ. 32।
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6. वीरेन्द्र सिंह, (2008) छत्तीसगढ़ का विस्तृत अध्ययन, अरिहंत पब्लिकेशन, मेरठ, पृ. 224।
7. पूर्वाेक्त, पृ. वही।
8. वर्मा, भगवान सिंह, पृ. 24।
9. जैन, बालचंद, (1961) उत्कीर्ण लेख, शासकीय प्रकाशन, पृ. 8-9।
10. वर्मा, भगवान सिंह, पूर्वाेक्त, पृ. 24।
11. वीरेन्द्र सिंह, पूर्वाेक्त, पृ. 224।
12. शर्मा, राजकुमार, (1974) मध्यप्रदेश के पुरातत्व का संदर्भ गं्रथ, पृ.48।
13. वीरेन्द्र सिंह, पूर्वाेक्त, पृ. 225।
14. वर्मा, भगवान सिंह पूर्वाेक्त, पृ. 24।
15. पूर्वाेक्त, पृ. वही।
16. वीरेन्द्र सिंह, पूर्वाेक्त, पृ. 225।
17. पूर्वाेक्त, पृ. वही।
18. वर्मा, भगवान सिंह पूर्वाेक्त, पृ. 25।
19. वीरेन्द्र सिंह, पूर्वाेक्त, पृ. वही।
20. पूर्वाेक्त, पृ. वही।
21. वर्मा, भगवान सिंह पूर्वाेक्त, पृ. 25।
22. अलंग, संजय,पूर्वाेक्त, पृ.127।
23. वर्मा, भगवान सिंह पूर्वाेक्त, पृ. 25।

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 21वीं सदी में हमने आधुनिक चीन और भारत का उदय देखा है। एशियाई दिग्गज तेजी से आर्थिक रूप से बढ़ रहे हैं और अपनी सैन्य, वायु और नौसैनिक क्षमताओं का निर्माण कर रहे हैं। उन्हें अपनी सभ्यताओं पर बहुत गर्व है। इससे भी अधिक, वे दुनिया पर हावी होने और महान शक्ति बनने की इच्छा रखते हैं। यह बताया जा सकता है कि स्वयं के प्रति उनकी महत्वाकांक्षा को उनके एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के प्रमुख कारण के रूप में देखा जा सकता है। भारत और चीन के बीच कई उतार-चढ़ाव वाले जटिल संबंध हैं। वर्तमान समय में, जब दोनों देशों पर प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं का शासन है, तो दोनों के बीच मुद्दे पहले की तरह इतने बढ़ गए हैं। सीमा पर लगातार संघर्ष और अन्य देशों के साथ वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर उनके बढ़ते संबंधों के कारण, उन्होंने अपने द्विपक्षीय संबंधों को सुरक्षा दुविधा के चश्मे से देखना शुरू कर दिया है क्योंकि दोनों का मानना है कि वे दूसरे द्वारा घिरे हुए हैं। दोनों देश कई स्तरों पर एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं; चाहे वह सीमाओं पर हो, क्षेत्रीय स्तर पर हो, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों पर हो, या समुद्री क्षेत्र पर हो।

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 वैश्वीकरण, आर्थिक व्यस्था, समुद्री मार्ग, बेल्ट ऑफ रोडण्

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  1. भगवती, ज्योतिषमा, महानियन सपने और भू-राजनीतिक वास्तविकताएँः क्या भारत और चीन हिंद महासागर में शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकते हैं? समुद्री मामलेः जर्नल ऑफ़ द नेशनल मैरीटाइम फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया 17, संख्या। 1 (जनवरी 2, 2021): 1-91 https://doi-org/10.1080/09733159.2020.1857574

2. ब्रुस्टर, डेविड, एड. समुद्र में भारत और चीनः हिंद महासागर में नौसेना प्रभुत्व के लिए प्रतिस्पर्धा, भारतः ओयूपी इंडिया, 2018
3. ली, जियाचेंग, चीन की हिंद महासागर रणनीति का विकासरू तर्क और संभावनाएँ, चीन त्रैमासिक अंतर्राष्ट्रीय रणनीतिक अध्ययन 3, संख्या 04 (2017)रू 481-497।
4. मोहन, सी. राजा. समुद्र मंथनः इंडो-पैसिफिक में चीन-भारत प्रतिद्वंद्विता, संयुक्त राज्य अमेरिकाः ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन प्रेस, 2012।
5. श्रीकंडे, सुदर्शन, भारत की समुद्री शक्ति को दुर्जेय और भविष्य के लिए तैयार बनाना, भारतः ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, 2018 
6. सिंह, पावनीत, सामान्य अध्ययन और मुख्य परीक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंध, भारतः मैक ग्रा हिल, 2021
 

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 बहु क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) सात दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसमें 1.73 अरब लोग रहते हैं और इसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 5.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (2023) है। बिम्सटेक सदस्य देश - बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड बंगाल की खाड़ी पर निर्भर देशों में से हैं। सहयोग के चौदह प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है और उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कई बिम्सटेक केंद्र स्थापित किए गए हैं। बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है जिसे सार्क के समान भी कहा जाता है। नेतृत्व को देश के नामों के वर्णानुक्रम में घुमाया जाता है। स्थायी सचिवालय ढाका, बांग्लादेश में है (भास्कर, एस जी, 2017)।

 

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 विदेश नीति, बिम्सटेक, सार्क, संगठन.

Read Reference

  1. एस. गुर्जर, ‘क्या सार्क बर्बाद हो गया है?‘, द डिप्लोमैट, ूूूण्जीमकपचसवउंजण्बवउ, 1 अगस्त (2017) को एक्सेस किया गया।

2. भास्कर एस जी (2017) ‘बिम्सटेकः भविष्य का मानचित्रण‘‘ रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान।
3. दत्ता पी (2017) बिम्सटेक चुनौतियां और अवसर, सामरिक विश्लेषण 41 (1), 71- 81।
4. भट्टाचार्य दी (2019) बिम्सटेकः दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की संभावनाएं और चुनौतियां, एशियाई सर्वेक्षण 59(2) 235-256।
5. बिम्सटेक.ओआरजी (2022), चार्टर।

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 राष्ट्रवाद एक सामाजिक, राजनीतिक और       सांस्कृतिक आंदोलन का एक पक्ष है, जो देश की स्वाभिमानी सीमाएं और लोकप्रियताओं को उज्ज्वल करने की दिशा में काम करता है। इसका उद्देश्य राष्ट्र के उत्तराधिकार, एकता और स्वाभिमान की प्रशंसा करना है (एंथनी डी. स्मिथ)। राष्ट्रवाद देश के विकास, सुरक्षा, और लोकतंत्र के लिए महत्तवपूर्ण मानता है। इसका प्रमुख लक्ष्य देश के सभी नागरिकों को एक रूप में जोड़ना, उनके अधिकार और कर्तव्य को बढ़ावा देना और देश की स्वाभाविक समृद्धि को बढ़ाना होता है। राष्ट्रवाद देश की भाषा,  संस्कृति और इतिहास को प्रशस्त करता है। यह एक सामान्य रूप से देशभक्ति और राष्ट्रभावना को व्यक्तित्व और राष्ट्रीय उन्माद (चरम राष्ट्रवाद) से विभाजित करता है। राष्ट्रवाद के लिए डॉ. अम्बेडकर का दृष्टिकोण और भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने में उनकी भूमिका सामाजिक न्याय, समानता और एक एकजुट भारत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है जो अपने सभी नागरिकों के अधिकारों और सम्मान का सम्मान करता है, उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना। गांधी जी के विचार में राष्ट्रवाद एक समरसता और समग्र समाज के लिए एक साधन था, जिसकी हर व्यक्ति, चाहे वो कोई भी धर्म हो, जाति, या वर्ग से हो, समावेशित हो और उनके अधिकार सुरक्षित रहें। उनका यह राष्ट्रवादी दर्शन देश की आजादी के लिए संघर्ष करने के साथ ही एक समरसता, सामाजिक समानता और लोकप्रिय राष्ट्रवाद को प्रशंसित करता था (माइकल ई. ब्राउन)। डॉ. अम्बेडकर के दृष्टिकोण को ‘सबालटर्न राष्ट्रवाद‘ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसमें समाज के पिछड़े और मार्जिनलाइज़ सेक्शन के उन्नति की दिशा में ध्यान दिया गया, जबकि गांधी ने राष्ट्रवाद के बोझ को समझने के लिए सार्विक दृष्टिकोण का अध्ययन किया। गांधी का दृष्टिकोण समाज के एक खंड की मुक्ति और सशक्तिकरण से सीमित नहीं था, बल्कि यह एक भारतीय दृष्टिकोण का पालन करता था। (रामचंद्र गुहा) यह पेपर राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में अम्बेडकर और गांधी के दृष्टिकोण पर व्याख्या करता है।

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 राष्ट्रवाद, गांधी, अम्बेडकर, संविधान, राष्ट्र, समाज, राज्य

Read Reference

  1. गायकवाड़, एसएम (1998), अम्बेडकर और भारतीय राष्ट्रवाद. आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक. 33(10), पृ. 515-518.

2. अम्बेडकर, बी.आर., संविधान सभा बहस, आधिकारिक रिपोर्ट, नई दिल्ली, 1989. वॉल्यूम. सातवीं, पृ 420.
3. अम्बेडकर द्वारा लिखित, जाति का विनाश, यह अम्बेडकर का मौलिक पाठ है जो जाति व्यवस्था की आलोचना करता है और एक समावेशी भारतीय राष्ट्रवाद के लिए उनके दृष्टिकोण पर चर्चा करता है।
4. अम्बेडकर, बी. आर. डॉ. कीर में उद्धृत। धनंजय, ओपी. एन, पी.91 कीर, धनंजय, ऑप. सीआईएल पी-182
5. अम्बेडकर बी. आर., कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया, ठाकर और ळंदकी डज्ञए भ्ंतपरंदए 11.07.1936
6. मदन टी.एन., धर्म और सामाजिक न्याय - धर्म और सामाजिक न्याय के प्रति अम्बेडकर के दृष्टिकोण का अध्ययन।
7. कीर धनंजय, डॉ. अम्बेडकरः जीवन और मिशन, एक जीवनी जिसमें अम्बेडकर के धार्मिक दर्शन की चर्चा शामिल है।
8. स्मिथ डेविड राष्ट्रवादः एक दार्शनिक पूछताछ।
9. उक्त., पृ.95. कीर, धनंजय अम्बेडकर लाइफ एण्ड मिशन, पॉपुलर प्रकाशन, बम्बई, 1954, पृष्ठ-473।
10. Gandhi M.K. (1938) Hind Swaraj, Ahmedabad Navjivan Publication, M. K. Gandhi, Young India, 18 June 1925.

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 प्रथम नगरीकरण की सभ्यता के रूप में सिंधु सभ्यता सतलुज, रावी और सिंधु घाटियों के तट पर विकसित हुई। इसके उत्खनन दौरान सभ्यता की संस्कृति, व्यापार तथा सामाजिक संबंधो के कई साक्ष्य देखे गए (चक्रवर्ती,1990)। तत्पश्चात, इसके नगरीकरण होने के साक्ष्य मिलने के बाद पुरातत्वविदों द्वारा इस सभ्यता के अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधो के बारे में पता लगाया गया। अफगान, ईरान, और मेसोपोटामिया आदि के साथ हडप्पा सभ्यता का व्यापारिक संबंध पाया गया (चक्रवर्ती,1990)। मेसोपोटामिया से एक मुहर की प्राप्ति हुई, जिससे हडप्पा और मेसोपोटामिया के व्यापार-वाणिज्य संबंध उजागर होते है (क्राफोर्ड,1973)। इनके बीच यह व्यापार जलमार्ग द्वारा होता था, जिसके कारण बंदरगाहों की उपस्थिति भी हड़प्पा सभ्यता में पाई गई। इस शोध मे हड़प्पा सभ्यता के व्यापार में आभूषणों और आयात निर्यात सामान का उल्लेख किया गया है। इसमें हड़प्पा सभ्यता के मृदभांडों मे भी उल्लेख किया गया है। अतः यह व्यापार-वाणिज्य संबंध हड़प्पा को इतिहास में प्रथम नगरीकरण की सभ्यता की के रूप में रेखांकित करता है।

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 सिंधु सभ्यता, एशियाई देश-ईरान, अफगान, मेसोपोटामिया, व्यापारण्

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  1. चक्रवर्ती, डी.के. (1990) सिन्धु सभ्यता का बाह्य व्यापार, नई दिल्ली मुंशीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स 5-20।

2. क्रॉफर्ड, हैरियट एलिजाबेथ वाल्स्टन (1973) तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया का अदृश्य निर्यात, यूनाइटेड किंगडम विश्व पुरातत्व 232-241।
3. डेल्स, जॉर्ज एफ. (1962) मकरान तट पर हड़प्पा चौकियाँ, पुरातनता 36.पृ. 142ः 86-92।
4. डेल्स, जॉर्ज एफ डेल्स, जॉर्ज एफ और कार्ल पीएलआईपीओ (1992) मकरान तट पर अन्वेषण, पाकिस्तान स्वर्ग की खोज, बर्कलेः पुरातत्व अनुसंधान सुविधा का योगदान, संख्या 50।
5. मैके, एमेस्ट जॉन हेनरी (1943) न्यू हेवन चान्हु-दारो उत्खनन बोस्टन अमेरिकन ओरिएंटल सीरीज 20.1935-36
6. मूरे, पीटर रोजर स्टुअर्ट (1994) प्राचीन मेसोपोटामिया सामग्री और उद्योग, इंग्लैंडः ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस; 130-141।
7. केनोयर, जोनाथन मार्क (1983) सिंधु सभ्यता के शैल कार्य उद्योगरू एक पुरातत्व और नृवंशविज्ञान परिप्रेक्ष्य, बर्कले प्रोक्वेस्ट शोध प्रबंध प्रकाशन 49-63।
8. केनोयर, जोनाथन मार्क (1992) सिंधु परंपरा की आभूषण शैलियाँः हड़प्पा, पाकिस्तान में हाल की खुदाई से साक्ष्य, फ़्रांस पेलियोरिएंट वॉल्यूम 17, नंबर 2 79-98।
9. केनोयर, जोनाथन मार्क और रिचर्ड एच. मीडो (1999) हड़प्पा की उत्पत्ति और विकास पर नई खोजें लाहौर संग्रहालय बुलेटिन XII 1-11।
10. चार्ल्स लियोनार्ड (1934) उर उत्खनन, वॉल्यूम II: शाही कब्रिस्तान, लंदन और फिलाडेल्फियाः 330-343।
 

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 प्रथम नगरीकरण की सभ्यता के रूप में सिंधु सभ्यता सतलुज, रावी और सिंधु घाटियों के तट पर विकसित हुई। इसके उत्खनन दौरान सभ्यता की संस्कृति, व्यापार तथा सामाजिक संबंधो के कई साक्ष्य देखे गए (चक्रवर्ती,1990)। तत्पश्चात, इसके नगरीकरण होने के साक्ष्य मिलने के बाद पुरातत्वविदों द्वारा इस सभ्यता के अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधो के बारे में पता लगाया गया। अफगान, ईरान, और मेसोपोटामिया आदि के साथ हडप्पा सभ्यता का व्यापारिक संबंध पाया गया (चक्रवर्ती,1990)। मेसोपोटामिया से एक मुहर की प्राप्ति हुई, जिससे हडप्पा और मेसोपोटामिया के व्यापार-वाणिज्य संबंध उजागर होते है (क्राफोर्ड,1973)। इनके बीच यह व्यापार जलमार्ग द्वारा होता था, जिसके कारण बंदरगाहों की उपस्थिति भी हड़प्पा सभ्यता में पाई गई। इस शोध मे हड़प्पा सभ्यता के व्यापार में आभूषणों और आयात निर्यात सामान का उल्लेख किया गया है। इसमें हड़प्पा सभ्यता के मृदभांडों मे भी उल्लेख किया गया है। अतः यह व्यापार-वाणिज्य संबंध हड़प्पा को इतिहास में प्रथम नगरीकरण की सभ्यता की के रूप में रेखांकित करता है।

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 सिंधु सभ्यता, एशियाई देश-ईरान, अफगान, मेसोपोटामिया, व्यापारण्

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  1. चक्रवर्ती, डी.के. (1990) सिन्धु सभ्यता का बाह्य व्यापार, नई दिल्ली मुंशीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स 5-20।

2. क्रॉफर्ड, हैरियट एलिजाबेथ वाल्स्टन (1973) तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया का अदृश्य निर्यात, यूनाइटेड किंगडम विश्व पुरातत्व 232-241।
3. डेल्स, जॉर्ज एफ. (1962) मकरान तट पर हड़प्पा चौकियाँ, पुरातनता 36.पृ. 142ः 86-92।
4. डेल्स, जॉर्ज एफ डेल्स, जॉर्ज एफ और कार्ल पीएलआईपीओ (1992) मकरान तट पर अन्वेषण, पाकिस्तान स्वर्ग की खोज, बर्कलेः पुरातत्व अनुसंधान सुविधा का योगदान, संख्या 50।
5. मैके, एमेस्ट जॉन हेनरी (1943) न्यू हेवन चान्हु-दारो उत्खनन बोस्टन अमेरिकन ओरिएंटल सीरीज 20.1935-36
6. मूरे, पीटर रोजर स्टुअर्ट (1994) प्राचीन मेसोपोटामिया सामग्री और उद्योग, इंग्लैंडः ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस; 130-141।
7. केनोयर, जोनाथन मार्क (1983) सिंधु सभ्यता के शैल कार्य उद्योगरू एक पुरातत्व और नृवंशविज्ञान परिप्रेक्ष्य, बर्कले प्रोक्वेस्ट शोध प्रबंध प्रकाशन 49-63।
8. केनोयर, जोनाथन मार्क (1992) सिंधु परंपरा की आभूषण शैलियाँः हड़प्पा, पाकिस्तान में हाल की खुदाई से साक्ष्य, फ़्रांस पेलियोरिएंट वॉल्यूम 17, नंबर 2 79-98।
9. केनोयर, जोनाथन मार्क और रिचर्ड एच. मीडो (1999) हड़प्पा की उत्पत्ति और विकास पर नई खोजें लाहौर संग्रहालय बुलेटिन XII 1-11।
10. चार्ल्स लियोनार्ड (1934) उर उत्खनन, वॉल्यूम प्प्रू शाही कब्रिस्तान, लंदन और फिलाडेल्फियाः 330-343।
 

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 विदेश मंत्रालय के अनुसार विश्व में हमारे लगभग 31 मिलियन प्रवासी हैं, उनसे संबंधित मंत्रालय को पहले यह नाम प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय को दिया गया था, अब इसका नाम बदलकर विदेश मंत्रालय (एमईए) कर दिया गया है। छह देश (यूएई, कतर, ओमान, बहरीन, सऊदी अरब और कुवैत) हैं जिन्हें वे खाड़ी देश कहते हैं। भारत सरकार के प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय (एमओआईए) के नवीनतम अनुमान के अनुसार, लगभग 6 मिलियन भारतीय प्रवासी छह खाड़ी देशों में रह रहे हैं और काम कर रहे हैं और इस प्रकार यह भारतीय प्रवास के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य बन गया है। खाड़ी देशों का एक साझा एजेंडा है और एक समान आर्थिक एवं राजनीतिक संरचना भी है। ये देश अधिकतर शहरी क्षेत्र हैं और संसाधनों से भरपूर हैं । इनकी साक्षरता दर भी अच्छी (75 प्रतिशत से अधिक) है तथा इनके पास कुल पेट्रोलियम संसाधनों का लगभग 2/3 हिस्सा है। 1950 से पहले अधिकांश लोग कृषि पर आधारित थे तथा उस समय कोई तकनीकी उन्नति नहीं थी।

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 प्रवासी भारतीय, सॉफ्ट पावर, संस्कृति, आर्थिक विकासण्

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  1. खदरिया, बी. (2010) भारत में प्रतिमान परिवर्तन ढ खाड़ी, मध्य-पूर्व संस्थान की ओर प्रवासन नीति।

2. वेनर, एम. (1982) अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन और विकासः फारस की खाड़ी में भारतीय, जनसंख्या परिषद्।
3. सुधावेनी, एन. (2015) खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासनः मुद्दे और चुनौतियाँ, ब्।ैप्त्श्र।
4. जैन, पी. (2003) फारस की खाड़ी क्षेत्र में ‘प्रारंभिक‘ प्रवासी भारतीयों में संस्कृति और अर्थव्यवस्था, रूटलेज प्रकाशन।
5. भगवती, जे. (2010) भारतः प्रवासी भारतीयों की भूमिका, प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन।
6. कपूर, देवेश. (2010) प्रवासी, लोकतंत्र और विकासः यूएसए, प्रिंसटन विश्वविद्यालय, अर्थशास्त्र टाइम्स, 9 अप्रैल 2019।
7. अब्राहम, आर. (2012) अरब खाड़ी देशों में भारत और उसके प्रवासीः प्रभावी ‘सॉफ्ट पावर‘ और संबंधित सार्वजनिक कूटनीति का दोहन।
8. शामनाद एन. (2013) जीसीसी देशों में भारतीय प्रवासीः केरल का मामला, अरबी विभाग, यूनिवर्सिटी का कॉलेज।

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 कवि, ग़ज़लकार, लेखक, संपादक, समीक्षक एवं समालोचक डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ हिंदी एवं छत्तीसगढ़ी भाषा के कुशल शिल्पकार हैं। डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ का रचना संसार विशाल एवं बहुआयामी है, एक कुशल चित्रकार की भांति उन्होंने विभिन्न रंगों से प्रकृति के अलग- अलग रूपों को अपने शब्दों से उकेरा है। इन रचनाओं में प्रकृति के कई रंग चित्रित हैं। इनकी रचनाओं में प्रयुक्त उपादानो से मानव मन की जो भावनाएं व्यक्त होती हैं उनमे खुशियाँ, दुःख, प्रेम, सौंदर्य, मादकता और मनुष्योचित व्यवहार जैसे - राजनीति, समाज, धर्म, संस्कृति, देशप्रेम एवं शिक्षा के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य और पर्यावरण के प्रति गहन संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं। आपने न केवल पर्यावरणीय विषयों को अपनी लेखनी द्वारा जन मानस के समक्ष लाया है बल्कि उनका उचित समाधान भी प्रस्तुत किया है।

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 हिन्दकी (हिंदी गज़ल), पर्यावरण, आत्मिक बल, नवगीत, नैसर्गिक, कलरव.

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  1. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (1985) तेरे शहर में (सामयिक तेवर की गजलें), धूम्र ज्योति साहित्य समिति,कोरबा म.प्र., प्रथम संस्करण.

2. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (1988) मां बमलेश्वरी (संक्षिप्त इतिहास), आनन्द साहित्य प्रकाशन,डोंगरगढ़ म.प्र., द्वितीय संस्करण.
3. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (1989) यादों की मीनारें (सामयिक तेवर की गजलें), आनन्द साहित्य प्रकाशन, डोंगरगढ़ म.प्र., द्वितीय संस्करण.
4. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2007) सर्पदंश (गज़ल संग्रह), वैभव प्रकाशन, रायपुर छ.ग..
5. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2007) हरे पेड़ की सूखी टहनी (गीत संग्रह), वैभव प्रकाशन, रायपुर छ.ग..
6. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2010) लम्बे दिन लम्बी रातें (गीत संग्रह), वैभव प्रकाशन, रायपुर छ.ग..
7. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2010) पसंगा (गज़ल संग्रह), वैभव प्रकाशन,रायपुर छ.ग..
8. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2012) मन के विपरीत (गज़ल संग्रह), वैभव प्रकाशन, रायपुर छ.ग..
9. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2013) द्विविध (दोहा एवं मुक्तक संग्रह), वैभव प्रकाशन, रायपुर छ.ग..
10. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2014) पुन्नी के चंदा (छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह), वैभव प्रकाशन, रायपुर छ.ग..
11. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2015) साहित्य के माणिक नवरंग (एकाग्र), वैभव प्रकाशन,रायपुर छ.ग..
12. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2016) नवरंग की कुंडलियाँ, वैभव प्रकाशन, रायपुर छ.ग..
13. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2021) रिश्ते टूट गए (नवगीत संग्रह), सर्वप्रिय प्रकाशन, नई दिल्ली.
14. विश्वकर्मा माणिक, ‘नवरंग’, (2021) गाँव के हो गए (हिंदी गज़ल दृहिन्दकी संग्रह), सर्वप्रिय प्रकाशन नई दिल्ली.

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 The widespread adoption of the internet has transformed the way adolescents interact, learn, and entertain themselves. While the internet offers numerous advantages, its excessive and uncontrolled usage has raised concerns about addiction among this demographic group. The research uses the secondary data approach. This review synthesizes current research on internet usage patterns and addiction tendencies among adolescents. It highlights the multifaceted factors contributing to internet addiction, such as social media, online gaming, and compulsive smartphone usage. The impact of internet addiction on adolescents’ mental and physical health, academic performance, and social relationships is discussed. Additionally, prevention and intervention strategies are examined, including parental involvement, digital literacy programs, and therapeutic interventions. Understanding the nuances of internet usage and addiction among adolescents is crucial for educators, parents, and policymakers in addressing this growing public health issue and fostering healthier digital behaviors in the younger generation.

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 Internet Usage, Internet Addiction, Adolescents.

Read Reference

  1. Bellamy, A. & Hanewicz, C. (2001). An Exploratory Analyses Of The Social Nature Of Internet Addiction”, Journal of Sociology. http://www.sociology.org/content/vol005.003/ia.html.

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8. Potenza, M.N. (2006). Should addictive disorders include non-substance-related conditions? Addiction. Sep;101 Suppl 1:142-151. doi: 10.1111/j.1360-0443.2006.01591.x. PMID: 16930171.
9. Tella, A. (2007). The impact of motivation on student’s academic achievement and learning outcomes in mathematics among secondary school students in Nigeria. Eurasia Journal of Mathematics, Science & Technology Education, 3(2): 149–156. https://doi.org/10.12973/ejmste/75390
10. World Health Organ Tech Rep Ser. (1957). EXPERT committee on addiction-producing drugs; seventh report. 116:1-15.
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12. Young, K. S., & de Abreu, C. N. (2011). Internet Addiction: A Handbook and Guide to Evaluation and Treatment. Hoboken, NJ: John Wiley & Sons Inc.

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 Environmental ethics can bring attitudinal change among the students as well as teachers about the environment and development of Environmental awareness. Environmental ethics can also help to transforming and building a human philosophy. Environmental ethics can help to generate an attitude towards sustainable development. Base on the opinions presented here, it can be concluded that environmental ethics can develop an attitude towards sustainable development because environmental ethics enable students to develop the knowledge, skills, understanding and attitude to participate in decisions about the way we do things individually as well as collectively both at the national level and international level that will improve the quality of daily life without damaging the natural environment for the future. This study has been conducted to compare environmental ethics and attitude towards sustainable development among pupil-teachers. The present study is also an attempt to explore how environmental ethics are related to attitude towards sustainable development among pupil-teachers. The aim of this study is also to find out whether Pupil-teachers have positive or negative attitudes towards sustainability and how levels of environmental ethics affect student’s attitudes. Major findings of the present study revealed that: 1. The majority of Pupil-teachers in Murshidabad district, West Bengal have an average level of environmental ethics. 2. There is a statistically significant difference between male and female Pupil-teachers regarding their level of Environmental Ethics. 3. There is a statistically significant difference between urban and rural Pupil-teachers regarding their level of Environmental Ethics. 4. There is a statistically significant difference in Environmental Ethics of Pupil-teachers with respect to their stream of study. 5. There is a statistically significant difference in Attitude towards sustainable development of male and female Pupil-teachers. 6. There is no statistically significant difference in Attitude towards sustainable development of rural and urban Pupil-teachers. 7. There is a statistically significant difference in Attitude towards sustainable development of Pupil-teachers belonging to arts and science streams. 8. There exists a statistically relationship between Environmental ethics and attitude toward sustainable development among Pupil-teachers.

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 Environmental Ethics, Attitude, Sustainable Development, Pupil-teachers. 

Read Reference

  1. Baca, T. P. (1976). A study of the environmental attitudes of four different age groups. Dissertation Abstracts International, June, 7555-Ap.

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 Integrating Artificial Intelligence (AI) and advanced analytics in higher education catalyses a profound transformation in decision-making processes. This abstract presents a succinct overview of the evolving landscape of AI and analytics redefining the educational ecosystem. The higher education sector, like many others, has become increasingly data-driven, generating vast volumes of information from student enrollment to administrative operations. AI and analytics technologies are instrumental in harnessing this data deluge to inform strategic decisions. Institutions can gain invaluable insights into student performance, engagement, and retention by employing machine learning algorithms, predictive modelling, and data visualisation tools. This abstract explores the critical facets of this transformation, highlighting how AI-driven solutions enhance student experiences, facilitate personalised learning, and optimise resource allocation. Additionally, it sheds light on the ethical considerations and challenges associated with AI adoption in higher education, emphasising the need for responsible data usage and privacy safeguards. The role of AI and analytics in reshaping administrative functions such as enrollment management, financial planning, and institutional research is also discussed, underlining the potential for cost savings and operational efficiencies. Moreover, the abstract touches upon the growing importance of upskilling faculty and staff to harness the full potential of AI tools. AI and analytics are ushering in a new era of data-informed decision-making in higher education, offering opportunities for improved student outcomes and institutional competitiveness. However, this transformation requires careful planning, ethical considerations, and a commitment to equipping educational stakeholders with the skills to navigate this evolving landscape successfully. This abstract provides a brief glimpse into the dynamic interplay between AI, analytics, and higher education, encouraging further exploration of this pivotal topic.

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 Artificial Intelligence, Higher Education, Transformation, Personalized Learning, Resource Allocation, Ethical Considerations. 

Read Reference

  1. Campbell, J. P., DeBlois, P. B., & Oblinger, D. G. (2007). Academic analytics: A new tool for a new era. EDUCAUSE Review, 42(4), 40-57.

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7. Shulman, J., Bonk, C. J., & Dodge, B. (2007). Moving to transparency: Ensuring accountability in online professional development. EDUCAUSE Quarterly, 30(2), 1-7.
8. Siemens, G. (2013). Learning analytics: The emergence of a discipline. American Behavioral Scientist, 57(10), 1380-1400.
9. Siemens, G., & Baker, R. S. (2012). Learning analytics and educational data mining: Towards communication and collaboration. In Proceedings of the 2nd International ConferenceLearning Analyticstics and Knowledge (pp. 252-254).
10. Siemens, G., & Long, P. (2011). Penetrating the fog: Analytics in learning and education. EDUCAUSE Review, 46(5), 30-32.

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 ईसा पूर्व छठी शताब्दी संपूर्ण विश्व में अध्यात्मिक जागृति एवं वैचारिक क्रांति के लिए प्रसिद्ध है। इसी समय चीन में कन्फयूशियस और लाओत्से का, यूनान में पाईथोगोरस, सुकरात और अफलातून का, ईरान में जरथुस्ट्र, इजराल में नवियों को तथा भारत में महावीर और बुद्ध का प्रादुभाव हुआ। आज संपूर्ण विश्व साम्प्रदायिक शक्तियों एवं धर्माेन्माद से आहत है। साम्प्रदायिकता का अंत किया जा सकता है। बुद्ध साम्प्रदायिकता का विरोधी और धार्मिक सहिष्णुता के प्रबल समर्थक पूरोहित का यह संदेश भारत जैसे आर्थिक संकट-ग्रस्त देश के राजनेताओ एवं आर्थिक संकट से गुजरा रहै हैैं। ऐसी स्थिति में पुरोहित का यह संदेश बुद्ध के समय में जितना प्रासंगिक था, उससे भी कहीं अधिक आज यह प्रासंगिक है।

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 बुद्ध, उपदेश, आर्थिक संकट, अध्यात्म.

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  1. धम्मपद 17/5 

2. चतुः शतक 12/23 
3. दीघनिकाय,भाग-1, कूटदंतसुत्त,पृ 0 114-117,नालंदा संस्करण। 
4. सुत्तनिपात,2/7/91, पृ0 314,नालंदा, संस्करण।
5. बुद्धचरित 11/64
6. धम्मपद 15/5 
7. धम्मपद 1/5 
8. (क) धम्मपद (अट्ठकथा, सहित ), दुतियो भागों, पृ0 351-352, संपादक -वी फासवॉल,चिलियमस् एवं नारगेटे लंदन,1855। 
(ख) सुत्तनिपात अट्ठकथा, दुतियो भागो, पृ0117,संपादक डॉ0 अंगरात चोैधरी, नव नालंदा महाविहार, नालंदा,1975। 
9. सुत्तनिपात, चूलवियुहसुत्त,4/12/3
10. धम्मपद 1/5 
11. (क)मज्झिमनिकाय, भाग-2,पृ0 52, नालंदा संस्करण। 
(ख) अंगुत्तरनिकाय, भाग -3,पृ0 298, नालंदा संस्करण।
12. उदान, पृ0127, नालंदा संस्करण।
13. (क) सुत्तनिपात,वासेट्ठसुत्त 3/9/57 
(ख) मज्झिमलिकाय, वासेट्ठसुत्त, पृ0374-380,बंबई विश्वद्यिालय संस्करण,1967
14. मज्झिमलिकाय,भाग-2, अस्स्लायनसुत्त, पृ0332, बंबई विश्वद्यिालय संस्करण,1967
15. सुत्तनिपात, वसलसुत्त 1/7!27,सुंदरिकभारद्ाजसुत्त 3/4/8, दीघनिकाय 1/3 अम्बट्ठसुत्त 
16. चुल्लवग्गो, संघभेदकक्खंधक, पृ0 281-282, नालंदा नालंदा संस्करण 1956
17. दीघनिकाय,भाग -1, पृ0 166, संपादक, भिक्षु जगदीश काश्यप, नालंदा संस्करण,1958। 

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 मानव भाषा का इतिहास पुराना है। इस पुराने इतिहास में दुनिया की अनेक भाषाओं के उद्भव और विकास की जड़ें छिपी हुई हैं। भाषा के इतिहास के साथ जुड़ी, केवल श्रीलंका के लिए ही सीमित भाषा ‘सिंहली और हिंदी भाषा का पारिवारिक और बुनियादी स्रोतों के प्रति सुधिजनों का ध्यान अवगत करना प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य है। श्रीलंकाई प्रवासी दुनियाभर सिंहली भाषा में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। मौलिक, मातृभाषा के रूप मे सिंहली भाषा बोलने वाली समुदाय केवल श्री लंका में ही पायी जाती है। सिंहली भाषा ने भारतीय आर्य भाषा के प्रभाव एवं आश्रय से विकास होकर बाद में अपना स्वतंत्र रूप धारण कर लिया है। प्रस्तुत शोधकार्य के लिए द्वितीय आँकड़ों का प्रयोग किया गया क्योंकि ऐतिहासिक तथ्यों का अधिकाश विवरण पुस्तकों, शोधपत्रों, शिलालेखों तथा पांडुलिपियों में मिलते हैं। लिखित सामग्रियों के सूक्ष्म अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि सिंहली भाषा का विकास उत्तर प्रदेश से संबंधित किसी प्राकृत भाषा से हुआ था जिसका संबंध आर्य भाषा परंपरा से है। यह भी समर्थन हुआ कि ‘सिंह’ वंश से कुमार विजय की परंपरा विकास हुई है, अतः भाषा का नाम ‘सिंहली’ पड़ा।

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 आर्य भाषा, सिंहली भाषा, विभिन्न मत, उद्भव और विकासण्

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  1. बलगल्ले, जी. विमल, सिंहल भाषा अध्यनय हा विचारय (सिंहली भाषा अध्ययन एवं आलोचना), एस.गॉडगे प्रकाशन, कोलम्बो 10।

2. बलगल्ले, जी. विमल, सिंहल भाषावे संभवय हा परिणामय (सिंहली भाषा का उद्भव और विकास), एस.गॉडगे प्रकाशन, कोलम्बो 10।
3. पूज्य पेरेरा जी तीयडोर (1992) सिंहल भाषाव, एस्. गॉडगे पब्लिकेशन, नॉरू 217, ओलकट मावत, कोलंबो 11।
4. भनते पेमानंद, पेनेलबॉड (2004) सिंहल भाषावे परिनामे हा सिदत् संगरव (सिंहली भाषा का विकास और सिदत् संगरव), एस. गॉडगे प्रकाशन, कोलंबो 10।
5. तिवारी, उदयनरायण (2007) हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास, लोकभारती प्रकाशन, पहली मंजिल, दरबारी बिलडिंग, महात्मा गांधी मार्ग, इलहाबाद-1।
6. द्विवेदी कपिलदेव, (2019) भाषाविज्ञान एवं भाषाशास्त्र, विश्वविद्यालय प्रकाशन, पो. बॉ 1149, विशालाक्षी भवन, चौक वाराणसी 221001।
7. तिवारी भोलानाथ, (2008) मानक हिन्दी का स्वरूप, प्रभात प्रकाशन,4/19, आसफ आली रोड,नयी दिल्ली 2।
पाद लेख
1. तिवारी, उदयनराण (2007) हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास, पृ. 23।
2. भनते पेमानंद, पनलबॉड (2004) सिंहल भाषावे परिणामय हा सिदत संगराव, पृ.01।
3. भनते पेमानंद,पनलबॉड (2004) सिंहल भाषावे परिणामय हा सिदत संगराव, पृ. 03।
4. वही, पृ. 02।
5. वही, पृ.08।
6. श्रीलंका के ऐतिहासिक तथ्यों के अन्तर्ग सर्वस्वीकृत इतिहास ग्रंथ माना जाता है।
7. वही। 
8. बलगल्ल, जी. विमल (1992) सिंहल भाषावे संभवय हा परिणामय, पृ.02।
9. श्री लंका के ऐतिहासिक तथ्यों के अन्तर्ग सर्वस्वीकृत इतिहास ग्रंथ है जो 5 वीं शताब्दी में बौद्ध भिककुओं द्वारा अनुराधपुर महाविहार में लिखा गया माना जाता है।
10. भन्ते सोमानंद, तेरीपेह (1961) सिंहलये परिनामय आदि युगय, पृ.32।
11. भन्ते पेमानंद, पेनलबॉड (2004) सिंहल भाषावे परिणामय हा सिदत संगराव, पृ. 06।
12. करुणातीलक,डबलिउ. एस् (1984) ऐतिहासिक वाग्विदया प्रवेशय, प्रथम प्रकाशन, पृ, 168।
13. भन्ते पेमानंद,पेनलबॉड (2004) सिंहल भाषावे परिणामय हा सिदत् संगराव, पृ. 10।
14. अभयसिंह, ए,ए,राजपक्ष, आर,एम,डब्ल्यू (1992) भाषा विज्ञान, पृ. 27।
15. बलगल्ल, प्रो. जी.विमल(1992) सिंहल भाषावे संभवय हा परिणामय, पृ.10।

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  This paper explores the intricate relationship between school funding and student achievement. The allocation of resources in educational institutions has long been a subject of debate, with stakeholders striving to ascertain its influence on students’ academic outcomes. Through an extensive literature review, this study synthesizes previous research findings, elucidating the multifaceted dimensions of school funding and its subsequent impact on student achievement. Drawing on various theories and models, the paper establishes a framework for comprehending the intricate interplay between financial resources, teacher quality, infrastructure, and student outcomes. Furthermore, an empirical analysis of relevant data elucidates the correlations and patterns that underpin this relationship. The study delves into factors influencing school funding, from local property taxes to federal programs, and highlights how these variables can contribute to disparities in educational resources. In the quest for equitable distribution of school funding, this paper investigates various strategies and policies that have been implemented to address the disparities. It assesses the effectiveness of weighted funding formulas, targeted interventions, and state-level initiatives aimed at rectifying the imbalances in resource allocation. Based on the findings and analysis, the paper concludes by offering policy recommendations that address the complex issue of school funding. These recommendations aim to inform policymakers and stakeholders about potential reforms that can enhance the relationship between school funding and student achievement, ultimately fostering equitable educational opportunities for all students.

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 School Funding, Achievement, Educational Equity, Standardized Test Scores, Graduation Rates. 

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  1. Baker, B. D., & Corcoran, S. P. (2012). The Stealth Inequities of School Funding: How State and Local School Finance Systems Perpetuate Inequitable Student Spending. Center for American Progress.

2. Baker, B. D., & Weber, M. (2020). How Money Matters for Schools: School Funding and Student Achievement in Wisconsin. Albert Shanker Institute.
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10. U.S. Department of Education. (2018). National Assessment of Educational Progress (NAEP) Results.

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 Male and Female are both essential components of existence; without them, we cannot imagine biological life. Each of these two perspectives on gender based on biology, but there is another variety that we cannot refute, and it is known as transgender. They are referred to as third parties gender. It refers to those whose gender identity differs from the sex to which they were assigned at birth. They each have a distinct gender identity. Gender equality is firmly ingrained in India. Transgender people have a bigger historical significance in India. Nonetheless, before the age of twenty, they were robbed of their basic necessities and rights for over a century, but now the entire country has recovered,they were aware of their requirements. Since then, they have worked hard to overcome the deeply ingrained social stigmas and biases that they have faced for many years. It is recognised that education is the means through which they can become aware of their rights and responsibilities. Third-gender society, like other recognised minority groups, must now be provided with educational possibilities. The group makes an important contribution to the process of social change. In this work, scholar will investigate transgender educational facilities awareness and its effects on societal transformation in Aligarh city (U. P). This study based on descriptive method with primary data used. 

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 Education, Male, Female, Transgender. 

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  1. Khatun, H. (2018). LGBT movement in India. Social trends. Journal of the Department of Sociology of North Bengal University, 5(31), 217–224. 

2. Koul, L. (2009). Methodology of Educational Research (Fourth ed. ), New Delhi: Publishing House Pvt. Ltd. 
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13. https://pubmed. ncbi. nlm. nih. gov
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16. https://www. ncbi. nlm. nih. gov/pmc/articles/PMC4711229
17. https://doi. org/10. 1007/s12018-019-09261-3
18. https://link. springer. com/article/10. 1007/s41134-023-00238-3
9. https://www. frontiersin. org/articles/10. 3389/fpsyg. 2020. 00367/full
10. https://core. ac. uk/download/pdf/236436832. pdf

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 रायपुर भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित एक नगर है, यह राज्य की राजधानी है और रायपुर जिले का मुख्यालय है। रायपुर छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे बड़ा शहर होने के साथ-साथ राज्य का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र भी है। छत्तीसगढ़ के विभाजन के पूर्व रायपुर मध्य प्रदेश का एक अंग था। रायपुर को स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में भारत का छठवां सबसे बड़ा स्वच्छ नगर घोषित किया गया था। रायपुर को व्यापार के लिए देश का सबसे बड़ा अच्छा शहर माना जाता है। रायपुर स्टील एवं लोहे के बड़े-बड़े बाजारों में से एक है। यहां लगभग 200 से स्टील रोलिंग मिल, 195 स्पंज आयरन प्लांट कम से कम 6 स्टील प्लांट, 60 प्लाईवुड कारखाने, 35 ऑयल प्लांट और 500 कृषि उद्योग है। रायपुर में 800 से अधिक राइस मिल प्लांट है। 

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 कारखाना, जनसंख्या, कृषि, उद्योग.

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  1. ग्रोवर बी.एल. एवं यशपाल (1995) आधुनिक भारत का इतिहास, एस. चॉद एण्ड कंपनी लि., रामनगर नईदिल्ली।

2. दत्त गौरव, (2004) भारतीय अर्थव्यवस्था, अश्वनी महाजन एवं सुन्दरम।
3. देवी माधव हर, छत्तीसगढ़ अर्थव्यवस्था, छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी।
4. Kapila Uma, (2007) Indian economic: Performance Policies, Academic Foundation.
5. शोध समागम, छत्तीसगढ़ में कृषि योजना व प्रभाव (2020) जनवरी से मार्च, आशीष दुबे।

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 भारत में महिला शिक्षा का इतिहास प्राचीन वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि लगभग 3000 से अधिक वर्ष पूर्व वैदिक काल के दौरान महिलाओं को समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था और उन्हें पुरुषों के समान समाज का एक महत्वपूर्ण अंग समझा जाता था। ब्रिटिश इंडिया काल में पहला ऑल-गर्ल्स बोर्डिंग स्कूल वर्ष 1821 में दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली में स्थापित किया गया था। वर्ष 1840 तक स्कॉटिश चर्च सोसाइटी द्वारा दक्षिण भारत में निर्मित 06 स्कूल मौजूद थे जिनमें कुल 200 लड़कियों का नामांकन कराया गया था। वर्ष 1848 में पुणे में ज्योतिबा फूले एवं सावित्रीबाई फूले ने पुणे में प्रथम गर्ल्स स्कूल की स्थापना की। मद्रास मिशनरियों ने 1850 में स्कूल में लगभग 8000 से अधिक लड़कियों का नामांकन कार्य किया था। वर्ष 1848 में पुणे में ज्योतिबा फूले एवं सावित्रीबाई फूले ने पुणे में प्रथम गर्ल्स स्कूल की स्थापना की। मद्रास मिशनरियों ने 1850 में स्कूल में लगभग 8000 से अधिक लड़कियों का नामांकन कार्य था। ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यक्रम वुड्स डिस्पैच ने वर्ष 1854 में महिलाओं की शिक्षा और उनके लिए रोजगार की आवश्यकता को स्वीकार किया । वर्ष 1879 में स्थापित बेथ्यून कॉलेज वर्तमान में एशिया का सबसे पुराना महिला कॉलेज है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् प्रथम पंचवर्षीय योजना से महिला शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया। जनगणना 1951 के अनुसार भारत में महिला साक्षरता दर 9 प्रतिशत था जिसे उन्नत करने का लक्ष्य रखा गया। यही कारण है की 2011 की जनगणना अनुसार भारत में महिला शिक्षा का प्रतिशत बढ़कर 65 प्रतिशत हुआ है। आज महिलाएं शिक्षित होकर सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास में अपना योगदान दे रहीं हैं। इस शोध आलेख में महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास में शिक्षा की भूमिका को ज्ञात करने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत शोध आलेख द्वितीयक डाटा पर आधारित है। द्वितीयक डाटा का सारणीयन, विश्लेषण एवं प्रस्तुतीकरण कर तथ्यों को समझने का प्रयास किया गया है। द्वितीयक डाटा से प्राप्त अंाकड़ों से स्पष्ट होता है कि महिलाएं आज सामाजिक संस्थाओं के अध्यक्ष, सदस्य एवं सचिव के साथ अपने बच्चों के समाजीकरण के माध्यम से समाज का विकास कर रही हैं। ये अब परिवार के सभी प्रकार के कार्यों में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रहीं हैं। पुरुष वर्ग द्वारा प्रत्येक कार्यों में महिलाओं से सहमति ली जा रही है। महिलाओं को अब प्रत्येक प्रकार के सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में कार्य करते हुए देखा जा सकता है। महिलाएं अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। भारत सरकार के त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था एवं संवैधानिक प्रावधानों के जरिये महिलाएं अब सरपंच, पंच, सचिव, पार्षद, महापौर और यहाँ तक की संसद एवं विधानसभाओं के सदस्य के रूप में सामने आ रही हैं। इस प्रकार शिक्षा ने महिलाओं का सर्वांगीण विकास किया है।

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 महिला, शिक्षा, विकास, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिकण्

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  1. कर्वे, इरावती, (1953) किनशिप आर्गनाएजेशन इन इंडिया, दक्कन कॉलेज रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे।

2. मुखर्जी, राधाकुमुद, (1958) वूमेन ऑफ इंडिया, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया पब्लिकेशन।
3. कुरुक्षेत्र, मार्च 2002 पृष्ठ 23
4. राजेंद्र प्रसाद गुप्त, (1963) स्वामी विवेकानंद व्यक्ति और समाज, राधा पब्लिकेशन, नई दिल्ली पृष्ठ 13 
5. सिंह, रमा, (1988) शिक्षित हिन्दु महिलाएं एवं धर्म, नई दिल्ली, पृष्ठ 51।
6. जैन, पी सी एवं नरेन्द्र कुमार, (1997) ग्रामीण एवं नगरीय समाजशास्त्र, विशाल प्रकाशन मंदिर, पृष्ठ 128।

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 Legitimate expectation is a relatively new but a very important doctrine of Administrative law; it covers a central space amidst a no claim and a full claim situation. Application of the doctrine is a difficult task as defining and delimiting the concept of legitimacy of expectation is fraught with challenges. The doctrine is based on the concept that if  an administrative action leads to certain expectations as regarding future course of conduct in similar actions or some expectation arises due to a representation, than such expectations must be fulfilled unless there are some compelling reasons for nonfulfillment. The edifice of the doctrine is built on consistent past practice or representation. The present article examines the concept of the legitimate expectation, it also makes an attempt to charter out the judicial journey in England as well as in India of defining the concept. The work also focusses on the possibilities and limits of the doctrine.

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 Legitimate Expectation, Established Past Practice, Hearing. 

Read Reference

  1. Halsbury’s Laws of England Vol. I (1) 4th Edition pp. 151-52

2. Ram Pravesh Singh and Ors. vs. State of Bihar and Ors, (2006 (8) SCJ 721),
3. (1969) 2 WLR 337.
4. (1971) 1 All ER 1148.
5. (1978)3 All ER 211
6. (1983)2 All ER 346
7. (1972)2 All ER 589
8. (1983)2 AC 237
9. (1985) AC 374
10. (1988)4 SCC 669
11. (1992)4 SCC 477
12. (2008) 2 SCC 161
13. (1999)4 SCC 727
14. Supra note 2
15. Ibid
16. AIR 2008 SC 2045

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 छत्तीसगढ़ी लोक-साहित्य में व्यंग्य-चेतना एक चिर-परिचित विधा है। लोकगीतों, लोकगाथाओं, लोकोक्तियों में जन-सामान्य से जुड़े व्यंग्य-विनोद का चित्रण प्राप्त होता है। लोक-साहित्य लोकभूमि पर आधारित आदिम परंपरा को संरक्षित रखती है। छत्तीसगढ़ी में यह वाचिक परम्परा में उपलब्ध है और निरंतरता बनी हुई है। हास-परिहास मानव में सदैव उर्जा का संचार करती है।

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 छत्तीसगढ़, लोक-साहित्य, व्यंग्य, लोकगीत, हास-परिहास.

Read Reference

  1. पाठक, विनय कुमार और जयश्री शुक्ला, हिंदी व्यंग्य-कर्म एवं समकालीन परिदृश्य, बिलासपुर, प्रयास प्रकाशन, 2002, पृ. 340।

2. वही, पृ. 342।
3. वही, पृ. 343।
4. वही, पृ. 343।
5. वही, पृ. 345।
6. सिन्हा, विजय कुमार, छत्तीसगढ़ी लोकगाथा-एक अध्ययन, वैभव प्रकाशन, रायपुर, छत्तीसगढ़, पृ. 531।
7. शुक्ल, दयाशंकर, छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य का अध्ययन, वैभव प्रकाशन, रायपुर, छत्तीसगढ़, पृ. 250।
8. निर्मलकर, बलदाऊ प्रसाद. महाभारत और छत्तीसगढ़ी लोकगाथा पंडवानी का तुलनात्मक अध्ययन, वैभव प्रकाशन, रायपुर, छत्तीसगढ़, पृ. 501, 434।
9. यादव, सोमनाथ. छत्तीसगढ़ के यदुवंशियों में प्रचलित लोकगीतों एवं लोकगाथाओं का सांस्कृतिक एवं साहित्यिक अनुशीलन, वैभव प्रकाशन, रायपुर, छत्तीसगढ़, पृ. 70।
10. वही, पृ. 70।
11. वही, पृ. 70।
12. वही, पृ. 70।

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 भारत में सार्वजनिक व्यय का हिस्सा सकल घरेलू उत्पाद के 3.16 प्रतिशत से कम है, जो ब्रिक्स देशों की तुलना में सबसे कम है, जो निजी खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा हैं। नतीजतन, उच्च निजी खर्च के कारण, वह परिवार अपनी बुनियादी जरूरतों, ऋण में कम हो जाता है, और गरीबी की स्थिति में गिर जाता है। यहां एनएचए और डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के सांख्यिकीय आंकड़े दिए गए हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र और प्रति व्यक्ति सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र और प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय का अध्ययन करना है। निजी स्वास्थ्य लागत में वृद्धि के कारण स्वास्थ्य परिचर्या सेवाएं पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं। 

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 स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र.

Read Reference

  1. Bansal, S. (2016). Health in India: Where the Money Comes from and Where It Goes? Hindu, 28 August, https://www.thehindu.com/data/Health-in-india-Where-the-money-comes- fromand-where-it-goes/article14594704.ece

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 In the last two- three years the Government has succeeded to change the mindset and behaviour of the people and the economy is heading towards a different level of growth and integration. The series of bold initiatives of the Government made the Indian economy more shock proof and the succeeded to retain the tag of the third largest economy in the world with a robust, fast growing market for food and services. The range of stories like resurgent India, Digital India, Inclusive India, Incorruptible India, Transparent India, Transforming India, Emerging India, Caring India and Communicating India are in the process of shaping India as a ‘New India’. The New India movement 2017-2022 envisages India free from Poverty, corruption, terrorism, communalism, casteism and unclenliness and unite the entire country by adopting good governance and using the technology.

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 Resurgent India, Participatory Governance, Employment, Holistic Education, Information Dissemination. 

Read Reference

  1. Yojana, Feb-23.

2. Youth in India; 2022 Report, Ministry of statistics and programme implementation.
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13. www.jagranjosh.com/articles/the-story-of-new-india-for-ia…
14. https://www.ihatepsm.com/blog/list-national-health-programs-along-brief-description-each

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 हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक है जिसका विस्तार वर्तमान ईरान की सीमा से लेकर पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा भारत के लगभग सभी क्षेत्रों तक माना जा सकता है। हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्र एक त्रिभुजाकार आकृति के रूप में प्रतीत होता है। हड़प्पा संस्कृति के विस्तार का क्षेत्रफल लगभग 299600 वर्ग किलोमीटर बताया गया है। हड़प्पा संस्कृति कितने वर्ष पुरानी है इस पर विद्वानों में मतभेद है, जिसका प्रमुख कारण उसे समय जो लिपि प्रचलित थी उसको अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है, जिस कारण भारतीय विद्वान हड़प्पा सभ्यता को 2500 ईसा पूर्व के लगभग का मानते हैं। वही अर्नेस्ट मैके तथा अन्य विद्वानों ने हड़प्पा    संस्कृति का समय लगभग 4000 ईसा पूर्व बताया है। बगदाद और एलम की खुदाई से प्राप्त मोहरों के आधार पर हड़प्पा संस्कृति को में मेसोपोटामिया सभ्यता के समकालीन सभ्यता से जोड़ा जा सकता है। हड़प्पा सभ्यता अपनी विशिष्टता के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यह सभ्यता अपने विशिष्ट पर्यावरणीय व्यवस्था एवं नगरीकरण के लिए विशेष मानी जाती है। हड़प्पा सभ्यता के फलने-फूलने में उन क्षेत्रों में पाई जाने वाली नदियों का योगदान अमूल्य था। उपेंद्र सिंह कौर ने अपनी पुस्तक में लिखा है की नदियों के इसी योगदान तथा अनुकूल पर्यावरणीय भूमिका के कारण इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता या सरस्वती घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।

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 सभ्यता, नगरीकरण, संस्कृति, विशिष्टता, पर्यावरण, लिपि.

Read Reference

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