Every country should adopt the remarkable concept of individuals and businesses forming partnerships to support social objectives. In the Indian context, such partnerships have immense potential to strengthen society. More and more companies are accepting corporate citizenship as a new strategic and managerial objective that they need to focus on. Harmony between man and the environment is the essence of healthy life and development. Therefore, preservation of ecological balance and social values has been of utmost importance to SAIL. The aim of this paper is to understand the importance of social responsibility undertaken by PSUs like SAIL as a part of CSR. The goodwill that firms can generate by acts of social responsibility can in fact be far more valuable to businesses than the amount of money they give. Corporations can collectively make India a better place for every citizen.
SAIL,Corporate Social Responsibility, Empowerment, Sustainability.
1. Bagchi Jayanta,(2005) Development of Steel Industry in India, I. K. International Pvt. Ltd, Delhi, p. 120.
CSR is viewed as a means by which businesses may give back to the society and utilise its surplus for the betterment of society. Since all existing institutes use the society’s resources, it is their moral responsibility to give back something to the society. The Banking sector is one of the largest utilisers of the society’s resources thus, its contribution becomes necessary for improving the economy. The resources must be utilised as per mentioned areas in Sec. 135 of Companies Act, 2013 Scheduled VII of Corporate Social Responsibility (CSR). The businesses should reciprocate by demonstrating their social and economic responsibility. This paper aims to examine the various CSR activities and approaches used before and during the Covid19 by public and private sector organisations, particularly banks. What are the problems that the entities confront in addition, and what are the main distinctions between the public and private sectors’ CSR initiatives? and the legal framework regarding the CSR in India the banking sectors.
Corporate Social Responsibility, Public Sector Bank, Private Sector Bank. CSR Spending, Covid19.
1. Bhatt, K., & Kewlani, H. (2019). Role of Media in Corporate Social Responsibility Practices of Indian Banking Sector.
किसी राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों का पूर्ण विकास हो। भारत देश के कुल जनसंख्या का लगभग 80 प्रतिशत भाग गांव में निवास करता है। इस हेतु अति आवश्यक है कि ग्रामीण इलाकों का पूर्ण विकास हो। वर्तमान संदर्भ में खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य इस क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण व लोगों को सस्त दाम पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है, जिससे कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहेे। छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2012 में निहित प्रावधानों का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र व शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों को सस्ते दाम पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराते हुए उनके सामाजिक उत्थान का प्रत्यन करने से है। सभी समाजशास्त्री भी इस बात पर सहमत हैं कि एक समाज के उपेक्षित वर्ग को मुख्य धारा में लाये बिना सामाजिक विकास के चरम तथ्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। शिक्षा व जागरूकता के अभाव में इस वर्ग के लोग शासन की विभिन्न विकास कार्यक्रमों की जानकारी प्राप्त नहीं हेाती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां धन की कोई कमी नहीं है परंतु कुछ लोग व समुदाय ऐसे हैं जिन्हें आज भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता है। व्यवहार रूप से यह देखने को मिलता है कि शासन की अधिकतर योजनाएं इन्हीं कारणों से असफल रही है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2012 के अर्न्तगत शासन की मनसा यही है कि इन्हें सारी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराकर अल्प आय, अल्परोजगार तथा बेकार व्यक्तियों के जीवन स्तर को सुधारा जायें। प्रस्तुत शोध में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागु होने से आये सामाजिक अर्थिक समृद्धता पर प्रकाश डाला गया है।
खाद्य सुरक्षा, स्वालम्बन, उपभोक्ता, सामाजिक, आर्थिक.
1. Khan, A.U. and Saluja, M.R. (2007). Impact of MNREGA on Rural Livelihoods, Paper presented in 10th Sustainable Development Conference on Sutainable Solutions: A Spotlight on South Asian Research, Islamabad, Pakistan, December 10-12
As par census 2011 Uttar Pradesh (UP) covers elementary education at broad scale. Total literacy rate of UP is approximately 70 % and with 351 million school-going children approximately, it has ensured that about 93 % of children are registered in school. At present there are 122,000 schools, 300,000 teachers and 100,000 Para-teachers to make sure about necessitates of the students at primary and upper primary stages. Infrastructure facilities in primary school like drinking water; toilet facility well decorated class rooms study materials TLM is approximately met in every school. Sarva Shiksha Abhiyaan has been very successful in the last few years to increase the enrollment at elementary schools and improving the quality of elementary education in rural areas. Now a day’s NIPUN program is running towards quality improvement in elementary education in the state.
DIET, SSA, Elementary Education, SIEMAT.
1. Annual Status of Education Report (ASER) 2012.
कबीर ने जिस दर्शन की प्रतिस्थापना की वह वैदिक और वेदोत्तर साहित्य की ही सरल व्याख्या है जिसे जनता के बीच उपस्थित होकर मिश्रित शब्दों में अपनी बात कही। भक्ति विषयक विवेचना में उन्होंने सद्गुरु की महिमा पर विशेष जोर देकर ब्रह्म को प्राप्त करने का एक मात्र साधन बताया। ब्रह्म को प्राप्त करने में व्याप्त बाधा और उसको दूर करने हेतु सद्गुरु के उपदेश, उनकी आज्ञा को ही मूल मन्त्र बताया। लोकाचार, भवबाधा बनकर मानव को सत्य से दूर ले जाती है। सद्गुरु की कृपा प्राप्त कर व्यक्ति सत्य का अनुसरण कर भवसागर से पार पा जाता है। कबीर ने उन्ही बातों को कहा जो अनुभव में था। उन्होंने आचारमूलक धर्म और सिद्धांत का कठोर खण्डन किया। सम्प्रदाय मुक्त चिंतन का अनुसरण करते हुए गुरु परपरा के आदर्श को कबीर ने आडम्बर से पूरी तरह मुक्त कर दिया है। यदि वह इसमें लिप्त है तो सद्गुरु कहलाने का अधिकारी नहीं है। सद्गुरु विषयक मीमांशा में ब्रह्म प्राप्ति के तीन पक्ष की सहज व्याख्या कबीर ने बड़े ही सहज भाव से की है।
कबीर, सद्गुरु, साधक, भक्ति, ईश्वर, संत।
1. चतुर्वेदी राजेश्वर प्रसाद, कबीर ग्रंथावली।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर बहुआयामी व्यक्तित्व - एक बुद्धिजीवी, एक समाज सुधारक, एक लेखक, एक अर्थशास्त्री, एक वकील, एक देश भक्त, एक दार्शनिक, दलितों के मसीहा तथा संविधान निर्माता के रूप मंे भी जाने जाते हैं। आपको भारत के प्रथम मौद्रिक अर्थशास्त्री होने का भी गौरव प्राप्त है। आपने दलितों को न्याय दिलाने तथा समाज मंे समता लाने हेतु आजीवन प्रयास किये। हिन्दू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को समता का अधिकार न दिला पाने अर्थात् हिन्दू कोड बिल को लागू न करा पाने से क्षुब्ध होकर कैबिनेट से इस्तीफा देने से भी संकोच नही किया। आपके अनुकरणीय कार्याे के फलस्वरूप आपको मरणोपरांत सन् 1990 में भारत रत्न से नवाजा गया। आधुनिक भारत की नींव रखने में आपके योगदानों के कारण आपको भारत के वास्तुकारों में गिना जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं है। इस शोध कार्य का उद्देश्य डॉ. अम्बेडकर की भारत के संदर्भ मे भूमिका का अध्ययन करना है जिसके लिये वर्णात्मक पद्धति को अपनाया गया है।
दलित, समाज, असमानता, लैंगिक समानता, मौद्रिक अर्थशास्त्री।
1. अग्रवाल सुदर्शन, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, आदमी और उसका संदेशः एक स्मारक यात्रा, भारत का प्रेंटिस हॉल, 1991।
भक्ति मनुष्य जीवन की आत्यंतिक रसात्मक अभिव्यक्ति है। यह अभिव्यक्ति व्यक्ति के मन में अनेक भावों के माध्यम से, अनेक विचारों के माध्यम से समय-समय पर किसी अज्ञात शक्ति के सगुण आलंबन स्वरूप को लेकर प्रकट होती रहती है। भक्ति का यह स्रोत हर देश में तथा उस देश के साहित्य में अनादिकाल से व्यापक बना हुआ रहता है। मनुष्य की प्रवृत्ति ऐसी है कि जब तक वह अपने से ऊपर किसी शक्तिमान सत्ता का आश्रय नहीं ले लेता तब तक अपने में एक अपूर्णता का बोध उसे होता रहता है। यह शक्तिमान सत्ता दैवीय गुणों से परिपूर्ण रहती है। यही दैवीय गुण मनुष्य के मन में भगवान और उसके स्वरूपों की कल्पना को परिपुष्ट करते हैं। भारतीय दर्शन में भक्ति आंदोलन की भूमिका और भक्ति आंदोलन का चिंतन केवल मध्यकाल को लेकर करना समीचीन नहीं है। भक्ति का उदय मध्यकाल में ही नहीं हुआ, अपितु मध्यकाल से भी पूर्व ऋग्वैदिक काल से इसके साक्ष्य हमें प्राप्त होते हैं। ऋग्वेद में विष्णु सूक्त भगवान की सगुण भक्ति का प्रधान आधार है। ऋग्वैदिक काल के पश्चात् भक्ति के विभिन्न संप्रदायों में भगवान की भक्ति के स्वरूप का विवेचन हुआ है। प्राचीन काल में भक्ति के अनेक संप्रदाय थे, जिनका प्रधान केंद्र उत्तर भारत ही था। इनमें पंचरात्र, भागवत, सात्वत आदि थे। उत्तर भारत में ही सर्वप्रथम भक्ति आंदोलन और उसके साहित्य का प्रबल प्रमाण हमें प्राप्त होता है। भक्ति के उदय को दक्षिण भारत से मानना और दक्षिण भारत के साहित्य को भक्ति का प्रधान केंद्र मानना यह समीचीन नहीं है। वर्तमान में प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि भगवान की सगुण भक्ति का प्राचीन केंद्र उत्तर भारत ही है और उत्तर भारत से ही भगवान की भक्ति संपूर्ण भारत में और संपूर्ण भारत सहित अन्य देशों में और उन देश के साहित्य में किसी न किसी रूप में देखने को मिल जाएगी। इस प्रकार भक्ति को विदेशी प्रभाव मानना या उसका नव उन्मेष मानना यह तर्कसंगत नहीं है। यह सिद्ध सत्य है कि भक्ति की धारा जटिल कर्मकांड के विरुद्ध जन सामान्य के लिए एक अमृत तुल्य उपाय था।
ऋग्वेद, दर्शन, सगुण भक्ति, भारत, भागवत, धर्म।
1. आचार्य शुक्ल रामचंद्र, हिंदी साहित्य का इतिहास।
Rendering protection, neat, clean and dry place for animal roping is an important aspect of animal care and management. According to table most urban dairy owners were having kaccha shed, however pucca was in rural. Particularly buffalo was loosely maintained by urban area dairy owners near to house. Animal was reared under natural conditions. Only some, well- managed farms covered by the tarpaulin. In rural area sheds were commonly made locally available materials, eg, sugar-cane leaf and bamboos. Some-trained dairy owners used bricks and corrugated asbestos sheets for their livestock sheds. Good quality of feeds and fodder are essential for production and productivity of dairy animals.Green fodder availability varied from owner to owner, area to area and animals to animals. Green fodder availability was maximum in rural area than urban area. Over 86% dairy owners were providing only dry fodder to their animals in urban area. However, in rural area it was 88.93%. There was minimal difference in the feeding of cow and buffalo.
Housing, Feeding, Animals, Fodder, Kachha, Pucca.
1. Anonymous. (2010). Basic Animal Husbandry Statistics, Govt. of India, Ministry of Agriculture, Department of Animal Husbandry, Dairying and Fisheries, Krishi Bhawan, New Delhi
India’s retail market is worth US$600 billion. Today, e-commerce only accounts for 5% of total sales. Compare that to the 15% share of the e-commerce has in the US market, and clearly there is still a lot of room for growth. Despite such efforts like “Digital India”, affordable smartphones and data plans, most Indians have to come online yet. India’s total internet user base is expected to grow from 665 million in 2015 to 829 million in 2023. However, e-commerce remains very underdeveloped with only 50 million online shoppers, of which only 50 million online shoppers, of whom only 20 million are monthly active buyers. This gap demonstrates the need to address the issue if India is to maintain its role as a global e-commerce lynchpin. To this end, the corporate sector must work closely with the Government of India to ensure a smooth transition and with minimal disturbance. For that, a holistic e-commerce framework must be created to engage the best management practices while addressing the unique needs of this new, broad user base. Arobust physical and digital infrastructure must be created that can cope with the great stresses of everyday life. While major portion of the e-business sector is impacted by the challenges outlined below, few are still online giants like Makemytrip.com, flipkart.com, Snapdeal.com that have overcome challenges and represent perfect growth of e-commerce trends in India. Equally important are efforts to support the transition to a digital economy. While the Government of India has taken a valuable first step through the implementation of the Unified Payments Interface (UPI) system, further efforts are needed via the expansion of formal banking and credit facilities for citizens. Currently, 70% of e-commerce customers are male with an average age is 25 years. This paper aims to examine the challenges of e-commerce in India and also highlight potential problems making India’s e-commerce ecosystem a buzzing place.
E-commerce, India, Consumer, Inventory, Unified Payments Interface, Digital Economy.
1. Retail e-commerce sales CAGR forecast in selected countries,
संस्कृत नाट्य साहित्य समग्र संस्कृत साहित्य में अद्वितीय है। दृश्य काव्य में गनित होने से इसका महत्व बढ़ जाता है। आचार्य भरतमुनि के नाट्यशास्त्र नियमों से बद्ध महाकवि राजशेखर प्रणीत ‘बालरामायण‘ नाटक इसी श्रृंखला में महनीय हैं। मुख्य रूप से इस रूपक में सुमन्त्र व माल्यवान प्रधान अमात्यों के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं, जिसमें सुमन्त्र महाराज दशरथ का तथा माल्यवान प्रतिनायक रावण का प्रधान अमात्य हैं। दोनों नीतिनिपुण,शास्त्र सम्पन्न, कुशल योद्धा, स्वामी हितैषी, पथ-प्रदर्शक, प्रतिक्षण स्वामी कुशल चिंतन आदि अनेकानेक महनीय, विशिष्ट तथा यथार्थ निरूपण हुआ हैं। शोध्य विषय से सुमन्त्र के श्रेष्ठ चारित्रिक व व्यक्तिक गुणों का प्रचार-प्रसार हो सकेगा, साथ ही साथ माल्यवान की स्वामी भक्ति, विषम परिस्थिति में स्वामी का साथ देने के गुणों से आज के मंत्री प्रेरणा ले सकेंगे। सूक्ष्म चिंतन व स्वार्थ के चलते हम देखते है लोक में सरकारें गिर जाती हैं जो लोकत्रंत के लिए घातक है। वर्तमान के मंत्री प्रजा एवं राष्ट्र हित से स्वहित को सर्वाेपरी मानते हैं, जो नितांत अनुचित हैं। शोधपत्र इस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा। आज के मंत्री सुमन्त्र की निष्ठा और स्वामी भक्ति से प्रेरणा लेकर प्रजा का हित चिंतन कर सकेंगे। प्रजाहितों हेतु अग्रसर हो सकेंगे। राष्ट्र के कल्याण के लिए परस्पर मैत्री, सद्भाव, सहयोग व समर्पण की महती आवश्यकता होती हैं। अतः वे इस दिशा में सकारात्मक दृष्टि से आगे बढ़ सकेंगे व राष्ट्र उन्नति हेतु सर्वस्व अर्पण को सज्ज हो सकेंगे। उनमें श्रेष्ठ व उच्च चारित्रिक तथा व्यक्तिक गुणों का उपस्थापन हो सकेगा।
अमात्य, राष्ट्र, चरित्र, लोकतंत्र।
1. 24/प्रतिज्ञापौलस्त्यनानप्रथमोऽङ्कः - शमध्यायामाम्यां प्रतिविहिततन्त्रस्य नृपतेः परं प्रत्यावापः फलति कृतसेकस्तरूरिव।
समाज और स्वच्छता का सम्बन्ध आदि काल से देखने को मिलती है। प्रकृति ने मानव को कुछ विशेष शक्तियां प्रदान की है, जिसके कारण वह संसार का बुद्धिमान एवं शक्तिशाली प्राणी मन जाता है। भौगोलिक भिन्नता, विभिन्न सांस्कृतिक एवं विशिष्ट पहचान रखने वाले मानव समूहों ने विश्व के विभिन्न भागो में अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान बनायीं है। इस प्रकार की सांस्कृतिक विशिष्टता को ही हम धर्म, जाति, मजहब एवं अलग-अलग सामाजिक समूहों के नामो से जानते है। ग्रामीण भारत में सामाजिक संगठन, संस्था, मान्यताओ, संस्कृति, परम्पराओ, रीति-रिवाज एवं सिद्धांतो पर स्वच्छता की आदतों के प्रति ग्रामीण जन समुदाय अपना दृष्टिकोण निर्मित करता है। इसके आधार पर स्वच्छता की आदतों का जीवन में पालन करता है। ग्रामीण आदिवासी समुदाय की आर्थिक स्थिति भी अपेक्षाकृत कमजोर है। स्वच्छता एवं अस्वच्छता को लेकर पूर्व में हुए अध्ययनों में आदिवासी समुदाय में सामाजिक सांस्कृतिक मूल्य, नियमो पर ध्यान नहीं दिया गया है। प्रस्तावित अध्ययन में अरवली जिले के शाला में अध्यनरत ग्रामीण किशोरियों के जीवन में स्वच्छता का प्रभाव अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत शोध में अरवली जिले के शाला में अध्ययनरत ग्रामीण किशोरियों में स्वच्छता की जानकारी व व्यवहार का अध्ययन के साथ पर्याप्त स्व्च्छता का जीवन पर प्रभावों का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन में ग्रामीण समुदाय की संस्कृति में स्वच्छता के नियम, कुरीतियों, व्यवहार एवं इससे जुडी भ्रांतियों की जानकारी प्राप्त हुई है। इस जानकारी का उपयोग सकारात्मक पक्षों को प्रोत्साहित करने एवं नकारात्मक पक्षों को मिटाने में किया जा सकता है। इसके साथ ही ग्रामीण छात्रा के जीवन में पर्याप्त स्वच्छता का सामाजिक एवं आर्थिक प्रभावों का अध्ययन भी किया गया है। प्रस्तुत शोध ग्रामीण किशोरियों हेतु स्वच्छता एवं स्वास्थ्य नीति हेतु सुझाव भी प्रस्तुत किया गया है।
ग्रामीण समुदाय, किशोरी, स्वच्छता, शिक्षण।
1. Akram Mohammad. (Jan. 2013) “Sanitation and Development Deficit in India: A Sociological Perspective”, National Conference on Sociology of Sanitation. Published by Sulabh International.
शिक्षा अंधकार से प्रकाश की ओर मानव यात्रा का नाम है। शिक्षा मानव जगत की धरोहर है जिससे समाज के विकास की सही दिशा निर्धारित की जाती है। शिक्षा मनुष्य में आत्म विश्वास उत्पन्न करने वाला एक प्रमुख कारक है। शिक्षा द्वारा मनुष्य के अन्तः चक्षु खुलते है उसे आंतरिक और अलौकिक प्रकाश मिलता है। जिस प्रकार सभी वस्तुओं को देखने के लिए चक्षु की आवश्यकता होती है उसी प्रकार सभी दृश्य और अदृश्य वस्तुओं और घटनाओं को समझने मे ज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रायः यह देखा जाता है कि प्रत्येक क्षेत्र में सफल होने के लिए युवाओं में आत्मविष्वास का गुण होना चाहिए चाहे खेल हो, शिक्षा हो या अन्य कोई क्षेत्र। जिन व्याक्तियों का आत्मविष्वास कम होता है उन्हे असफलता का सामना करना पड़ता हैं, उनका शैक्षिक उपलब्धि भी कम पाया जाता है। जिन छात्रों का आत्मविश्वास से भरपूर होता है वे जीवन के हर क्षेत्र में अच्छे मुकाम हासिल करते है चाहे पढ़ाई का क्षेत्र ही क्यो न हो। शैक्षिक उपलब्धि का तात्पर्य विद्यालय विषयो में अर्जित ज्ञान या विकसित कौशल का शिक्षक द्वारा परीक्षा प्राप्तांकों या अंको द्वारा निर्दिष्ट करने से है। विद्यार्थियों ने किस सीमा तक अपनी योग्यता का विकास किया है उसका आंकिक रूप से प्रस्तुतीकरण ही उनकी उपलब्धि का सूचक है चाहे वे निजी विद्यालय के छात्र हो या सरकारी विद्यालय के।
उपलब्धि, निजी विद्यालय, सरकारी विद्यालय, वैयक्तिक अध्ययन।
1. सिंह ए निरंजन कुमार, माध्यमिक विद्यायालो में हिंदी शिक्षण राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर।
नदियां इस महादेश की आत्मा है। भारत की अक्षुण्ण सांस्कृतिक विरासत को संजीवन इन्हीं से प्राप्त हुआ हैं। इन्हीं के तटों पर तीर्थ-स्नान, ध्यान, जप-तप, आश्रम आदि समादृत थें जो अद्यावधि पर्यन्त इस भारत भूमि पर दृष्टिगोचर होते हैं। विवेच्य शोध प्रकरण सुप्रसिद्ध कथासाहित्य पंचतंत्र में भी प्रकृति वर्णन के क्रम में विविध प्रसंगों में आलंकारिक नायिका, पतित-पावनी, देवसलिला, पापमोचनी तथा भगिनी व मातृस्वरूपा आदि रूपों सहित एवं पृथक नामोल्लेख वर्णन के साथ नदियां दृष्टिगत होती हैं। यह स्वरूप वर्णन अत्यंत मोहनीय एवं विशिष्ट हैं लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इनका स्वरूप परिवर्तनीय हैं। इनमें एक भी नदी आज प्रदूषण मुक्त नही रहीं है। हिमालय से प्रवाहित सदानीरा गंगा, सिन्धु, यमुना अब मानवीयकृत्यांे, औद्योगिक अपशिष्ट, वाहित मल व अन्य विविध गतिविधियों ने इनके जल को अपेय रूप में परिवर्ततित कर दिया हैं। प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण हेतु सरकारों द्वारा कोटिश प्रयासों के अन्नतर भी यमुना आज भी मृत नदी हैं। गंगा आचमन हेतु उपयुक्त नही है। संक्षेप में सार स्वरूप इस शोधपत्र का उदेश्य है कि मनुष्य नदियों के पौराणिक महत्व तथा सांस्कृतिक अवदान को हृदय में धारण करें व स्वतः सूक्ष्म प्रयासों द्वारा स्वयं प्रेरणा लेकर इनके संरक्षण, संवर्द्धन व पुर्नभरण हेतु प्रयास कर सकेंगे। भगवान महाकाल के नगर तट पर स्थित षिप्रा से प्रेरणा लेकर इसे प्रदूषित न करने का संकल्प धारण कर सकेंगे। जल ही जीवन है इसी आधार पर पृथ्वी ग्रह पर जीवन सफल हुआ हैं। वर्षदर वर्ष बढते नदी प्रदूषण का कुप्रभाव मानव के स्वास्थ्य एवं औसत आयु पर देखा जा सकता हैं जो उत्तरोतर घट रहीं है। प्रदूषित जल से सिंचाई व पेयजल उपयोग ने अगनित रोगों को जन्म दिया हैं। इस पत्र द्वारा नदी संरक्षण, संवर्द्धन की शिक्षा दी जा सकेंगी। इस हेतु मनुष्यों की सुसुप्त आत्मा में प्रकाश का संचार होगा जिससे प्रेरणा लेकर वे इस हेतु अग्रसर हो सकेंगे।
प´्चतंत्र, नदी, प्रदूषण, प्रकाष.
1. कथामुखम् - मित्रभेदः (पंचतंत्रस्य प्रथमं तन्त्रम्)।
In Indian society, youth unrest is a very severe societal issue. The majority of young people are directly and indirectly involved in various social issues. Youth unrest is defined as the manifestation of collective frustration of the youth in society and unemployment is one of the main causes of youth unrest. Being a youth who is very energetic, vibrant, and dynamic nature it is a very restive feeling to sit idly at home. Youth Participation in every sector is undoubtedly high representing nearly 1/3 population and contributing 34% of the Gross National Income in India.
Youth, Youth unrest, Unemployment, Consequences of youth unrest, Government Initiatives.
1. United Nations, Department economic and social affairs, population division. World population prospects 2019,online edition.Rev.1
All over world marketers are spending their maximum time, money and efforts to convince customers that they are producing products which are fit for their needs and wants. In present scenario where retail marketing is gaining dominance, multibrand retail giants in India such as D-mart, reliance, Wal-Mart and single brand retailers too are striving to make specific strategies for their retail outlets to please more customers. Kotler (1973), Yalch and Spangenberg (1990) have researched the importance and impact of atmospherics as a marketing tool. As per Levy, Weitz and Pandit (2008) store atmospherics comprises of elements like lighting, colour, music sense and scent which stimulates a customer to take action. Globally marketers are trying to create a favourable impact of atmospheric elements on buying intention of customers. So that by gaining their attention, develop interest towards products and services, stimulates their desire and as a result customer take action of purchase. In this paper researchers have tried to study the impact of elements of store atmospherics on satisfaction of customers. The data was collected empirically with interview and tested using appropriate statistical techniques.
Store Atmospherics, Customer Satisfaction, Buying Behaviour.
1. Burke, Rayomond, R. March- April 1996. Virtual Shopping: Break-through in Marketing Research, Harvard Business Review, p120-134.
जयनंदन की कहानियों में आम आदमी अर्थात् पात्रों की अधिकता है। उनके जीवन-संघर्ष एवं समस्याओं का चित्रण जयनंदन ने अपनी विभिन्न कहानियों में समाहित किया है। वे कहानियाँ-संग्रह हैं- ‘सन्नाटा भंग’, ‘एक अकेले गान्ही जी’, ‘दाल नहीं गलेगे अब’, ‘घर फूंक तमाशा’, ‘सूखते स्रोत’, ‘गाँव की सिसकियाँ’, ‘भितरघात’, ‘सेराज बैण्ड बाजा’ और संकलित कहानियाँ। जयनंदन ने स्वंय आम आदमी का जीवन जीया है इसलिए उनकी कहानियों में आम आदमी की समस्याओं का बारिकी से चित्रण हुआ है।
जयनंदन, गॉधी, आम आदमी.
1. जयनंदन. सन्नटा भंग. दिल्ली, दिशा प्रकाशन, प्रथम संस्करण, 1993.
This research paper deals with the topic entitled “An Analytical Study on Impact of Globalisation and Trade Liberalisation on Women Entrepreneurs of Small Scale Industries”. As we know that Women-owned business. So, this paper mainly attempts to study the impact of globalisation and trade liberalisation on women entrepreneurs of small scale industries. To take the study ahead, a self-made questionnaire was constructed for the verification of the hypothesis formed for this study. A sample of 30 women entrepreneurs is considered from the Gwalior Region in Madhya Pradesh. As a result it is found that women entrepreneurs have face competitive challenges and are highly impacted by globalisation. Also, impact of trade liberalisation on annual income of women entrepreneurs and it have been lowered down as they manufacture the product on their and sell them but due to the effect of trade liberalisation they face this particular problem.
Women Entrepreneurs, Globalisation, Trade Liberalisation.
1. C. Swarajya Lakshmi (ed.), (1999), Development of Women Entrepreneurship in India: Problems and Prospects, Discovery Publishing House, New Delhi.
The study attempts to self intelligence and creativity of secondary school teachers relation to gender and type of school. The sample for the study consisted of 200 secondary school teacher of Garhwa District of Jharkhand. The finding of the study revealed that there is significant difference in teacher intelligence and creativity of male and female secondary school teacher. There is significant difference in intelligence creativity of male and female secondary school teacher, female teacher being more intelligent and creative as compare to male teachers both in case Government and private school. The result also show that male teacher of private secondary schools are more creative than female teacher but not in case of Government and secondary schools. The private school teacher more creative than Government teacher.
Self Intelligence, Creativity, Interesting, Classroom Transaction, Secondary School, Constructivism.
1. Biswas, chandra, P. and tinku (1995). A survey on effectiveness on secondary school teacher in tripura. Indian journal of psychometry and education, 26(1), 17-24.
एक्टोजेनेसिस मनुुष्य के प्रजनन करने से संबंधी सिद्धांत है। अभी वर्तमान में मनुष्य तीन तरीके से प्रजनन करता हैः प्राकृतिक प्रजजन, इन-विट्रो-फर्टिलाईजेशन व सेरोगैसी। इन तीनों तरीके में एक स्त्री की गर्भ की आवश्यकता होती है। यह ठीक है कि प्टथ् एवं सैरोगेसी में 3 से 5 दिन तक भू्रण का विकास स्त्री के गर्भ के बाहर होता है, लेकिन इसके बाद स्त्री के गर्भ के बिना उसका विकास संभव नहीं है। एक्टोजेनेसिस इस संदर्भ में अनूठा सिद्धांत है कि इसमें मनुष्य को प्रजनन करने के लिए स्त्री के गर्भ की आवश्यकता नहीं है। एक्टोजेनेसिस किसी उपन्यास या सिनेमा की पटकथा का हिस्सा नहीं है बल्कि बायोटेक्नोलॉजी में भेड़ पर इसका सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा चुका है। मनुष्य पर इस तरह के प्रयोग के लिए 14 दिन का कानूनी बाधा है और 14 दिन तक मनुष्य के भू्रण का विकास स्त्री के गर्भ के बाहर किया जा चुका है। स्पष्ट है कि एक्टोजेनेसिस के विकास में तकनीक बाधा नहीं है बल्कि हमारी नैतिकता या कानूनी बाधा है। नीतिशास्त्र में स्त्रीवाद के समर्थक, समलैंगिग अधिकार, प्रिमैच्योर शिशु आदि के आधार पर एक्टोजेनेसिस का समर्थन किया जाता है, लेकिन कुछ नैतिक दार्शनिक चाहते है कि इसको कानूनी मान्यता न मिले क्योंकि उनकी मान्यता है यह प्राकृतिक के अधिकार क्षेत्र में हमारा हस्तक्षेप होगा। फिर अगर इस हस्तक्षेप की मान्यता दे भी जाए तो इससे असमानता भी बढ़ेगी और शिशु पर दीर्घकालिक इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसका कोई सटीक अनुमान हमारे पास नहीं है। इन्हीं नैतिक तर्कों का विश्लेषण मैं अपने शोध-पत्र मे करूँगा। मेरी अपनी आत्मनिष्ठ मान्यता है कि सीमित तौर पर इसे कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए।
एक्टोजेनेसिस, बायोेबैग, कृत्रिम गर्भ.
1. BBC News, (Website, 15 Oct-2019)
The main aim of their study is to identify the effects of environmental education on youth including building a connection to the related to environment charging perceptions of youth awareness. The study evaluate and observe the Environmental Education programs, science exhibitions, science and environmental camps etc. These all programs emphasize on three main terms, soil, water and trees. To collect the data a questionnaire was used. Result of the study should a significant positive effect related to environment. The results gained from this study can be useful in providing a framework for future environmental education programs.
Environmental Education, Awareness, UNESCO, NAAEE.
BOOKS:
1. Altman, l. (1975) The Environment and Social behavior. Brooks Cole: California.
2. Best, J. W., & Kahn, J. V. (2008). Research in Education (10th edition). New Delhi: Prentice Hall of India, P.13
3. Jonson, B. and Christensen, L. (2008). Educational Research (3rd edition). New Delhi: Sage Publication, P.518.
4. J.A.Khan, (2008), Research Methodology, A P H Publishing Corporation, New Delhi.
5. Krishnamaracharulu V, Reddy GS (2005). Environmental Education: Aims and Objectives of Environmental Education: Importance of Environmental Education. Hyderabad: Neel Kamal Publications Pvt. Ltd.
6. R.P.Bhatnagar, Poonam Rani Bhatnagar (2002), Readings in methodology of research in Education and Psychology, Rajhans Publications, Meerut.
7. Sharma R.C. (1981) Environmental Education. Mittal Publication, New Delhi.
8. Sharma and Sharma (2003) Social Environment and Physical Environment
9. Mohon.I, (2007). Environmental crisis (New Dimensions and Challenges). New Delhi – 110 002: Ammal publications Pvt.Ltd.,.
DISSERTATIONS/THESES
1. Astalin, P.K. (2011). A Study of Environmental Awareness in Relation to Awareness towards Social Duty among Higher Secondary Students. Unpublished Doctoral Thesis, Banaras Hindu University, Varanasi
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3. Dinakara SA (2000) Environmental Awareness, Environmental Attitude and Teaching Practices of Elementary School Teachers of Mysore. M. Ed. Dissertation. Department of Education, Mysore University.
4. Dubey Ruchi, (2008), A study of environmental awareness and environmental attitude among students. First international conference on environmental ethics education, Varanasi: Bnaras Hindu University.
5. Jinarajan Shabina (1999). A study of Environmental Awareness and Attitude towards Environmental Education of Student Teachers of Bangalore City. M.Phil. Dissertation, Department of Education, Bangalore University.
6. Jomesh (2010), A study on environmental ethics among college students. Education Department of Pondicherry University.
7. Shahnawaj (1990). Environmental Awareness and Environmental Attitude of Secondary and Higher Secondary School Teachers and Students. University of Rajasthan.
8. Singh, Gulzar (1991). A Comparative Study of Attitude towards Population Education and Environmental Education and Family Planning of Different Levels of Workers in Specific Occupations. Unpublished doctoral thesis, Punjab University.
9. Shobeiri, S.M., 2007. “A Comparative study of environmental awareness and attitude of teacher and students of secondary schools in India and Iran”. PhD Thesis, Department of Education. University of Mysore, India.
10. Sabhlok Rou (1995), A study of the Awareness and Attitude of Teachers and Students of High Schools Toward Environmental Education in Jabalpur District. Ph.D. Thesis, Ani Dugavati Vishwavidyalaya, Indian Educational Abstract, Issue 1, Section 24: 62.
11. S. Paramasivam (2011), A study on Environmental Ethics of higher secondary students of puduchrry. Education Department of Pondicherry University.
Education is the most powerful weapon which one can use to change the world. It has proved by many scholars around the world which is why we need to educate ourselves about the Environmental Education and its importance. Environmental Education is the need of house. As the whole world is suffering with many environmental problems such as global warming, climate change, deforestation and pollution therefore there is a need of Environmental Education. We are responsible for how we shape our environment because only by creating awareness about the harmful effects of environmental damage can help us to build a safe and secure future for our children. When we and our children will be educated about the environment, we will identify our responsibility as global citizens and make a positive change for our planet which will help us in utilizing our resources more efficiently. Different countries of the world have taken initiatives towards Environmental Education for the masses so has India. In New Education Policy-2020 of India sustainable development had been given importance but it does not explain about the need and importance of Environmental Education. This article focuses the need and importance of Environmental Education in India and different roles of education policies in it.
Environmental Education, Environmental Problems, New Education Policy-2020.
1. Scott Ashmann, Rebecca L. Franzen. (2017) In what ways are teacher candidates being prepared to teach about the environment? A case study from Wisconsin. Environmental Education Research 23:3, pages 299-323.
नागार्जुन हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचाराधारा के साहित्यकार नागार्जुन परिवार एवं समाज की विषम परिस्थितियों के ऊपज थे। यायावरी जिन्दगी की लम्बी पदयात्रा के अनुभवों से संश्लिष्ट थे, जिसके कारण जिन्दगी का यथार्थवाद, कटु अनुभव, दुःख-वेदना, गरीबी, सामाजिक असमानता के प्रति संघर्षरत् रहते हुए उन्होंने मार्क्सवादी विचारधारा को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया। कहा जा सकता है कि ‘धुमक्कड़ी का अणु’ जो बाल्यकाल में ही शरीर के अंदर प्रवेश पा गया, वह रचना धर्म की तरह ही विकसित होता गया। नागार्जुन का जीवन चिंतन की यात्रा विभिन्नता से भरी रही इसके पीछे न केवल उनका पारिवारिक व सामाजिक पृष्ठभूमि रही बल्कि वे वैसे परिवर्तित दौर में पल-बढ़ रहे थे, जब देश में ब्रिटिश सरकार के प्रति क्षोभ, गुस्सा व्याप्त था। इनका युवावस्था कई पड़ावों से होकर आगे बढ़ रहा था एक ओर बनारस की घाटों का अनुभव वहीं आर्य समाज का प्रभाव एवं बौद्ध दर्शन के प्रति झुकाव उन्हें अन्दर से नई आंदोलनों के लिए खड़ा कर रहा था। इनके व्यक्तित्व में एक ओर जहाँ कबीर, प्रेमचंद राहुल सांस्कृत्यायन, निराला के स्पष्टवादी विचार एवं बौद्ध दर्शन का प्रभाव दिखता है, वहीं दूसरी ओर सुभाषचन्द्र बोस, स्वामी सहजानन्द, जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे, राममनोहर लोहिया के विचारों से भी ओत-प्रोत थे। नागार्जुन लगभग अड़सठ वर्ष तक रचना कर्म से जुड़े रहे। कविता, उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा-वृतांत, निबंध, बाल साहित्य सभी विधाओं में इन्होंने कलम चलाई।
घुमक्कड़ी, फक्कड़पन, दकियानुसी, मार्क्सवादी.
1. सिंह, त्रिभुवन. हिन्दी उपन्यास और यथार्थवाद. चतुर्थ संस्करण-1965, पृ॰ 17.
पानी सिर्फ इंसानों के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह पूरे पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में भी मदद करता है। शीतलन और ताप विद्युत उत्पादन के लिए, ताप विद्युत संयंत्रों को भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। समस्थानिक तथा परमाणु उर्जा भी जल की सहायता से उत्पन्न होती है।
जल संसाधन, जल प्रदुषण, जल संरक्षण.
1. सिंह, आर.एल. (सं.) (1971) भारतः एक क्षेत्रीय भूगोल, भारत की राष्ट्रीय भौगोलिक सोसायटी, वाराणसी, पीपी 599-604।
प्रस्तुत शोध पत्र में हजारीबाग सामुदायिक विकास प्रखंड के भूमि उपयोग प्रारूप को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन किया गया है। इस शोध पत्र का मूल उद्देश्य वर्तमान भूमि उपयोग प्रारूप का अध्ययन करना तथा भूमि उपयोग प्रारूप को प्रभावित करने वाले कारकों को जानना है। इस अध्ययन को पूरा करने के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग किया गया है, साथ ही वर्णानात्मक एवं विश्लेषणात्मक रूप में अध्ययन किया गया है। इस शोध में भूमि उपयोग कारको के अंतर्गत भौतिक कारक (उच्चावच, जलवायु, अपवाह, प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी जल की उपलब्धता) एवं मानवीय कारक (जनसंख्या दबाव, प्रवास, शहरीकरण, शहरी फैलाव, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, आवासीय सुविधा, परिवहन सुविधा) का विशेष योगदान है। इसी से वर्तमान भूमि उपयोग प्रारूप परिवर्तन हो रहा है। इसमें वर्ष 2000-2001 से 2011-2012 के दौरान काफी परिवर्तन देखा गया है जिसमें सबसे ज्यादा वन भूमि $8.18 प्रतिशत का परिवर्तन एवं सबसे कम नकारात्मक दृष्टि वर्तमान परती एवं अन्य परती भूमि -7.74 प्रतिशत परिवर्तन देखने को मिला।
उच्चावच, मिट्टी, जल की उपलब्धता, आवासीय संरचना, शहरीकरण, वन भूमि, शुद्ध बोया क्षेत्र, गैर-कृषि योग्य भूमि.
1. रामानुज, अरुण कुमार (2019)ः ’’झारखंड में कृषि के बदलते स्वरूप’’ राजेश पब्लिकेशन, दरियागंज न्यू दिल्ली, 110002।
शिक्षा जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत तक निरंतर चलने वाली एक गतिशील प्रक्रिया है। शिक्षा विकास का प्रथम एवं आधारभूत सोपान है। मनुष्य का संपूर्ण एवं सर्वांगीण विकास शिक्षा द्वारा ही संभव है। चुरचू ब्लॉक में निवास करने वाले प्रमुख जनजातियांॅ संथाल, उराँंव, मुंडा करमाली, बेदिया तथा बिरहोर है। उनके शैक्षिक विकास का सामाजिक व आर्थिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है क्योंकि इनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे बच्चों को महंगे विद्यालय, महाविद्यालय में पढ़ा सके जिसके कारण से ये शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए है। वर्तमान समय में समय की मांग तथा वैश्वीकरण का ज्ञान तकनीकी, व्यवसायिक, कौशलात्मक तथा रोजगारपरक शिक्षा प्रदान कर जनजातीय समुदाय के अंदर खुशहाली लाई जा सकती है, क्योंकि शिक्षा सफलता की एक मात्र कुंजी है जिसके द्वारा भावी जीवन के सारे बंद दरवाजे खोले जा सकते हैं।
शिक्षा, आदिवासी/जनजाति, शैक्षिक संस्थान, शैक्षिक योजनाएँ, साक्षरता प्रतिशत, संभावनाएँ.
1. वर्मा, उमेश कुमार (2009) झारखंड का जनजातीय समाज, सुबोध ग्रंथ माला, पुस्तक पथ रांॅची।