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Publishing Year : 2024

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Blood sugar, primarily in the form of glucose, is essential for the body’s energy production and metabolic processes. The chemical reactions involving glucose are critical for maintaining cellular function and overall homeostasis. This paper examines the chemical reactions of blood sugar in the human body, focusing on glucose metabolism, the regulatory mechanisms involved, and the implications for health, particularly in the context of diabetes and metabolic disorders.

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Chemical Reactions, Blood Sugar, Human Body, Chemical.

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  1. Alberts, B., Johnson, A., Lewis, J., Raff, M., Roberts, K., & Walter, P. (2014) Molecular Biology of the Cell. Garland Science, Addess ????.

2. American Diabetes Association. (2021) Standards of Medical Care in Diabetes—2021. Diabetes Care, 44(Supplement_1), S1-S232.
3. Berg, J. M., Tymoczko, J. L., & Stryer, L. (2015) Biochemistry. W.H. Freeman and Company, 41 Madison Avenue New York, NY 10010 USA.
4. McGarry, J. D., & Dobbins, R. L. (1999) Fatty acids, lipotoxicity and insulin secretion. Diabetologia, 42(2), 128-138.
5. Nelson, D. L., & Cox, M. M. (2017) Lehninger Principles of Biochemistry. W.H. Freeman and Company, 41 Madison Avenue New York, NY 10010 USA.

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दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY) ग्रामीण और शहरी गरीबों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस शोध पत्र में घरघोड़ा ग्राम, छत्तीसगढ में इस योजना के प्रभाव, क्रियान्वयन प्रक्रिया और इसके परिणामों का विश्लेषण किया गया है। इसमें योजना के प्रमुख घटकों, सफलताओं और चुनौतियों का गहन अध्ययन किया गया है।

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आर्थिक सशक्तिकरण, दीनदयाल अंत्योदय योजना, चुनौतियां.

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  1. दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY & NRLM) का आधिकारिक वेबसाइट, https://nulm.gov.in/, Acessed on 12/10/2024, इस वेबसाइट पर योजना के उद्देश्यों, गतिविधियों और उपलब्धियों की जानकारी मिलती है। 

2. भारत सरकार की सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वेबसाइट,https://lawmin.gov.in/, Acessed on 13/10/2024, यहाँ विभिन्न सरकारी योजनाओं और उनकी लागू नीतियों का विवरण मिलता है।
3. भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट https://rural.gov.in/ पर उपलब्ध है। यह साइट ग्रामीण विकास से संबंधित योजनाओं, पहलों, और कार्यक्रमों जैसे MGNREGA, PMAY-G, और DAY&NRLM की जानकारी प्रदान करती है। इसके अलावा, यह ग्रामीण प्रगति और आजीविका सृजन से संबंधित रिपोर्ट्स, दिशानिर्देश, और डेटा भी उपलब्ध कराती है, Acessed on 10/10/2024.
4. छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (सीजीएसआरएलएम), जिसे ”बिहान“ के नाम से भी जाना जाता है, की आधिकारिक वेबसाइट https://bihan.gov.in है। यह वेबसाइट ग्रामीण आजीविका से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान करती है, Acessed on 08/10/2024.

 


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Biotin, also known as vitamin B7 or vitamin H, is a water-soluble vitamin that plays a crucial role in various metabolic processes within the human body. This paper provides a comprehensive review of the biochemical functions, sources, metabolism, deficiency implications, and therapeutic uses of biotin. Additionally, it explores recent research findings regarding biotin supplementation and its potential health benefits.

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Biotin, Effect, Human Body, Biochemical.

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  1. Fernandes, M. S., Velangi, S. K., & Bhosle, D. (2013) Evaluation of serum biotinidase activity in hypothyroid patients, Indian Journal of Endocrinology and Metabolism, 17(Suppl 1), S262-S265. doi:10.4103/2230-8210.119582

2. Institute of Medicine (US) Standing Committee on the Scientific Evaluation of Dietary Reference Intakes and its Panel on Folate, Other B Vitamins, and Choline. (1998). Dietary Reference Intakes for Thiamin, Riboflavin, Niacin, Vitamin B6, Folate, Vitamin B12, Pantothenic Acid, Biotin, and Choline. National Academies Press (US). PMID: 25057538
3. Mock, D. M. (2017) Biotin: From nutrition to therapeutics, Journal of Nutrition, 147(8), 1487S-1492S. doi:10.3945/jn.116.243673
4. Mock, D. M. (2018) Biotin: Mechanisms, assessment, and requirements, American Journal of Clinical Nutrition, 108(6), 1402S-1406S. doi:10.1093/ajcn/nqy196
5. Patel, D. P., Swink, S. M., & Castelo-Soccio, L. (2017) A review of the use of biotin for hair loss, Skin Appendage Disorders, 3(3), 166-169. doi:10.1159/00046298
6. Said, H. M., & Mohammed, Z. M. (2006) Intestinal absorption of water-soluble vitamins: An update, Current Opinion in Gastroenterology, 22(2), 140-146. doi:10.1097/01.mog.0000205387.32389.91
7. Soleymani, T., Lo Sicco, K., & Shapiro, J. (2017) Diet and hair loss: Effects of nutrient deficiency and supplement use, Dermatology Practical & Conceptual, 7(1), 1-10. doi:10.5826/dpc.0701a01
8. Trüeb, R. M. (2016) Serum biotin levels in women complaining of hair loss, International Journal of Trichology, 8(2), 73-77. doi:10.4103/0974-7753.188040
9. Watanabe, T., Kurokawa, M., & Yoshikawa, H. (2018) Enzymatic and structural characterization of biotin synthase from Escherichia coli, Biochimica et Biophysica Acta (BBA) - Proteins and Proteomics, 1866(3), 379-386. doi:10.1016/j.bbapap.2017.11.005
10. Zempleni, J., Hassan, Y. I., Wijeratne, S. S. K., & Biotin (2008) Biotin and biotinidase deficiency, Expert Review of Endocrinology & Metabolism, 3(6), 715-724. doi:10.1586/17446651.3.6.715

September To November
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भारत के हृदय में स्थित छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर में सतपुड़ा पहाड़ियों का उच्चतम भाग है, तो इसके मध्य भाग में महानदी और उसकी सहायक नदियों का भू-भाग है। इसके दक्षिणी भाग में बस्तर का पठार है। छत्तीसगढ़ प्राचीन स्मारकों, दुर्लभ वन्य प्राणियों, नक्काशीदार मंदिरों, बौद्ध स्थलों, राजमहलों, जल प्रपातों, गुफाओं और शैल चित्रों से परिपूर्ण है। राज्य का लगभग 44 प्रतिशत भू भाग वनों से आच्छादित है। छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक, औद्योगिक केन्द्र, प्राकृतिक सौदर्यं, राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य प्राणी अभ्यारण्य के साथ-साथ गौरवशाली आदिम लोक संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण देखने को मिलता है। पर्यटन की दृष्टि से यहाँ कई दर्शनीय स्थल है। छत्तीसगढ़ में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का गठन वर्ष 2002 में किया गया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य राज्य को एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पर्यटन राज्य के रूप में विकसित करना और राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित व समृद्ध करना है।

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छत्तीसगढ़, दर्शनीय, महानदी, पर्यटन, पर्यटक.

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  1. गुप्ता, मदनलाल (1998), छत्तीसगढ़ दिग्दर्शन, भारतेंदु हिंदी साहित्य समिति, बिलासपुर, छत्तीसगढ़, द्वितीय संस्करण।

2. मिश्र, रमेंन्द्रनाथ (1998), छत्तीसगढ़ का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, सेंट्रल बुक हाउस, रायपुर, छत्तीसगढ़, प्रथम संस्करण।
3. शर्मा, टी. डी. (2004), छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल, अरपा पॉकेट बुक्स, द्वितीय संस्करण, बिलासपुर, छत्तीसगढ़।
4. शुक्ल, प्रदीप; पांडे, सीमा; शुक्ला, महेश (2008), छत्तीसगढ़ में पर्यटन, वैभव प्रकाशन, रायपुर, छत्तीसगढ़,।
5. देवांगन, रमेश (2014), छत्तीसगढ़ समग्र संदर्भ, ईशिता प्रकाशन, बिलासपुर, छत्तीसगढ़, पृ. 226-252।
6. वही, पृ. 229।
7. त्रिपाठी, संजय एवं त्रिपाठी, चंदन (2015), छत्तीसगढ़ वृहद संदर्भ, उपकार प्रकाशन, आगरा, पृ. 203।
8. गुप्ता, मदनलाल (1998), छत्तीसगढ़ दिगदर्शन, (द्वितीयभाग), भारतेंदु हिंदी साहित्य समिति, बिलासपुर, छत्तीसगढ़, पृ. 272।
9. केशरवानी, अश्विनी (01 नवंबर 2001), लेख-बिलासपुर अँचल के धार्मिक स्थल, मूल्यांकन छत्तीसगढ़ 2001, दैनिक भास्कर, पृ. 09।
10. गुप्ता, मदनलाल, पूर्वाेक्त, पृ. 283-284।
11. देवांगन, रमेश, पूर्वाेक्त, पृ. 231।
12. सिंह, राहुल (01 नवंबर, 2001), लेख-छत्तीसगढ़ का पुरातात्विक महत्व, मूल्यांकन छत्तीसगढ़ 2001, दैनिक भास्कर, पृ. 8।
13. केशरवानी, अश्विनी, पूर्वाेक्त, पृ. 09।

September To November
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प्रथम शताब्दी ई. पू. से तीसरी शताब्दी ई. तक पश्चिम भारत में शासन कर रहे सातवाहन साम्राज्य की आर्थिक गतिविधियों के बारे में अनेक साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों से जानकारी मिलती है। पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सी, गाथा सप्तसती प्लिनी का नेचुरल हिस्ट्री एवं रूद्रदामन के जुनागढ़ अभिलेख जुन्नार अभिलेख, कार्ले एवं कन्हेरी का अभिलेख एवं शासन कर रहे सातवाहनों के द्वारा निर्गत अभिलेखों से इनके आर्थिक गतिविधियों का पर्याप्त जानकारी मिलता है। सातवाहनों के द्वारा कृषि को प्रमुख आर्थिक स्रोत के रूप में स्थान दिया गया था। अनेक फसलों का उत्पादन राजस्व की प्राप्ति हेतु भी किया जाता था। सातवाहनों का साम्राज्य कृष्णा गोदावरी डेल्टा क्षेत्र में होने के कारण कृषि उत्पादन अधिक मात्रा में होती थी। इनके शासन काल में शिल्प, वाणिज्य-व्यापार समृद्ध स्थिति में थी। व्यापार आंतरिक एवं बाह्य दोनों रूपों में होता था और इन व्यापार गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु विभिन्न व्यापारिक मार्गों का जाल इनके साम्राज्य में फैला हुआ था। व्यापार अनेक श्रेणी संगठनों के माध्यम से होता था जिसके कारण इस क्षेत्र के श्रेणी वर्ग की स्थिति संपन्न थी। संपन्नता के कारण इन श्रेणी संगठन एवं धनाध्य व्यापारियों के द्वारा अनुदान दिए जाते थे जिससे उनका संरक्षण एवं संपोषण ठीक प्रकार से हुआ करता था। व्यापार हेतु विनिमय के रूप में मुंडा का प्रयोग किया जाता था जिसके कारण व्यापार-वाणिज्य को फलने-फुलने का अधिक अवसर प्राप्त हुआ। सातवाहन काल में अनेक धातुओं के सिक्के जैसे सीसा, तांबा, पोटीन के अलावा चांदी के सिक्के भी प्रचलन में थे परन्तु मुख्य रूप से सीसा को सिक्का का प्रयोग देखने को मिलता है। व्यापार में प्रगति के कारण इस क्षेत्र में कई नगरों का विकास भी संभव हुआ जैसे अमरावती, भट्टी प्रोलु, नागार्जुनकोंडा, नारसेला, जुन्नार इत्यादि।

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कृषि, आर्थिक गतिविधि, श्रेणी संगठन सिक्का, व्यापार एवं व्यापारिक मार्ग.

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  1. सिंह, उपिन्दर (2017) प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास, पियर्सन पब्लिकेशन, नोएडा, पृ. 443।

2. उपरोक्त।
3. हुल्ट्ज, इ. (सम्पादक) (1899) एपिग्राफिक इंडिका, भाग-5, ऑफिस ऑफ दि सुपरिटेंडेन्ट ऑफ गवर्नमेंट, कलकत्ता, पृ. 79।
4. उपरोक्त, पृ. 80।
5. सिंह, उपिन्दर (2017) पूर्वोक्त, पृ. 451।
6. हुल्ट्ज, इ. (सम्पादक) (1906) एपिग्राफिक इंडिका, भाग-8, ए. एस. आइ., दिल्ली, पृ. 97।
7. दत्ता, तुहिना (1984) इंडियन एंटिक्वेरी, भाग -13, स्वाती पब्लिकेशन, दिल्ली, पृ. 327।
8. उपरोक्त।
9. सिंह, उपिन्दर (2017) पूर्वोक्त, पृ. 453।
10. गोपालाचारी, के. (1941) अर्ली हिस्ट्री ऑफ आंध्रा कंट्री, यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास, मद्रास, पृ. 104।
11. हुल्ट्ज, इ. (सम्पादक) (1906) पूर्वोक्त, पृ. 89।
12. उपरोक्त।
13. सिंह, उपिन्दर (2017) पूर्वोक्त, पृ. 453।
14. गोपालाचारी, के. (1941) पूर्वोक्त, पृ. 105।
15. उपरोक्त।
16. हुल्ट्ज, इ. (सम्पादक) (1903) एपिग्राफिक इंडिका भाग-7, ऑफिस ऑफ दि सुपरिटेंडेन्ट ऑफ गवर्नमेंट, दिल्ली, पृ. 14।
17. उपरोक्त।
18. पूर्वाेक्त, पृ. 3।
19. गोपालाचारी, के. (1941) पूर्वाेक्त, पृ. 107।
20. कैसन, लियोनल (1989) द पेरिप्लस मैरिस एरिथ्रेई, प्रिंसटन, यूनिवर्सिटी प्रेस, न्यू जर्सी, पृ. 17।
21. हुल्ट्ज, इ. (सम्पादक) (1903) पूर्वाेक्त, पृ. 92।
22. कैसन, लियोनल (1989) पूर्वाेक्त, पृ. 18।
23. उपरोक्त।
24. दत्ता, तुहिना (1984) पूर्वाेक्त, पृ. 327।
25. सिंह, उपिन्दर (2017) पूर्वोक्त, पृ. 455।
26. गोपालाचारी, के. (1941) पूर्वाेक्त, पृ. 109।
27. उपरोक्त, पृ. 110।

September To November
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कसी भी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक रूप से सही होने पर ही उसे स्वस्थ कहा जा सकता है। हमारे देश के नौनीहाल, भावी नागरिक विद्या अध्ययन हेतु विद्यालय आते हैं, ताकि पढ़ लिख कर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें। यदि वे मानसिक रूप से शिक्षा प्राप्ति की इच्छा रखते भी हैं तो स्वास्थ्य के ठीक ना होने से वे अपने लक्ष्य में पीछे रह सकते हैं, ऐसे में पोषण संबंधी ज्ञान उन्हें अपने आप को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऊर्जावान शरीर अधिगम हेतु सदैव तत्पर रहता है। जीवन कौशल संबंधी बातें बच्चों को सिखाने के लिए विद्यालय परिसर एक सशक्त परिवेश है, जिसमें अपने शिक्षक के द्वारा कही बातों को बच्चे काफी महत्व देते हैं। अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी करते हैं ऐसे में सहायक विधाएं किसी भी आदत, गुण या कौशल को बच्चों के व्यक्तित्व का हिस्सा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये विधाएं नाटक, गीत, फन मेला, पोस्टर निर्माण, वॉल पेंटिंग कुछ भी हो सकती हैं। इन विधाओं से व्यक्तित्व का विकास होने के साथ-साथ लक्ष्य प्राप्ति में भी आसानी होती है। सीखना सुंदर, सहज, आनंददायक और स्थाई हो जाता है।

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व्यक्तित्व, सशक्त, अधिगम, पाठ्य सहगामी क्रियाएं.

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  1. IGNTU econtent946308437200, Accessed on 14/07/2024

2. बाल भास्कर 31 मई 2024 पृ. 31।
3. https://www.pratinidhimanthan.com, Accessed on 14/07/2024
4. हर्बल हेल्थ पत्रिका (हृदय रोग एवम् शीत ऋतु विशेषांक) वर्ष 11 अंक 12 अक्टूबर- दिसंबर 2018 (त्रैमासिक) पृ. 40।

 


September To November
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संथाल आदिवासी समुदाय भारत के झारखण्ड राज्य में सबसे प्रमुख और बडा आदिवासी समुदाय है और यह झारखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र में निवास कर रहें हैं। संथाली संस्कृति के अर्न्तगत इनकी सामाजिक व्यवस्था में जन्म से मृत्यु तक उसमें प्रचलित संस्कार, रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार, शादी-व्याह, घर-द्वार, धर्म-कर्म, रहन-सहन, पहनावा, नृत्य-संगीत से जुड़े क्रियाकलाप ही होते हैं। इस सभी क्रियाकलापों में वे विभिन्न प्रकार की कलाओं को आत्मसात करते हैं। जैसेः चित्रकला, विभिन्न प्रकार की हस्तकला, शिल्पकला, स्थापत्यकला, नृत्यकला इत्यादि। इनकी सामाजिक व्यवस्था में साहित्य का भी विशेष महत्व है। साहित्य किसी भी समाज का आइना होता है। इनके साहित्य भी काफी समृद्ध है। संथाली भाषा के साहित्य के माध्यम से उनके परंपरा स्वरूप लोकगीत, लोककथा, लोकोक्तियों तथा पहेलियों के कुछ अंश सुरक्षित है। वही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती चली जा रही है जो कि संथाल जनजाति की संस्कृति का अभिन्न अंग है।

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संथाल, उपजाति, साहित्य, समाज.

Read Reference

  1. टेटे, वंदना (2013) आदिवासी साहित्य परंपरा और प्रयोजन, प्यारा केरकट्टा फाउण्डेशन, राँची, पृ. 94।

2. सिंह, गंगा शरण एवं सिंह, शंकर दयाल (1986) बिहारः एक सांस्कृतिक वैभव, परिज्ञात प्रकाशन, पटना, पृ. 143।
3. बर्ट, एफ. बी. ब्रैडली (1910) छोटानागपुर, स्मिथ इलेडर एंड कंपनी, लंदन, पृ. 130।
4. सिंहा, बी. बी. (1982) सोसाइटी इन ट्राइबल इंडिया, बी. आर पब्लिेकेशन कॉरपोरेशन, दिल्ली, पृ. 90।
5. भूषण, विद्या (2012) इतिहास के मोड़ पर झारखंड, क्राउन पब्लिकेशन, राँची, पृ. 46।
6. मैन, ई. जी. (1989) संथालियां एण्ड दा संथालस, मित्तल पब्लिकेशन्स, न्यू दिल्ली, पृ. 163।
7. कृष्ण, संजय (2013) झारखंड के पर्व-त्योहार, मेले और पर्यटन स्थल, प्रभात प्रकाशन दिल्ली, पृ. 257।
8. विश्वास, पी. सी. (1956) संथाल ऑफ दा संथाल परगनाज, भारतीय आदिम जाति, दिल्ली, पृ. 29।
9. विद्यार्थी, एल पी. विद्यार्थी एवं राय, बी. के (1976) दा. ट्राइबल कल्चर ऑफ इंडिया, कांसेटट पब्लिशिंग कंपनी न्यू दिल्ली, पृ. 330।
10. मिश्रा, मंजू (2011) आदिवासी समाज और संस्कृति, चतुर्वेदी पब्लिकेशन्स, जयपुर, पृ-3।
11. वर्मा, उमेश कुमार (2009) झारखंड का जनजातीय समाज, सुबोध ग्रंथमाला, राँची, पृ. 245।
12. रूसेन, आर. ई. (1938) सेंसन रिर्पोट, संथाल परगना इंक्वायरी कमिटि, सुपरिटेंडेंट गवर्नमेंट प्रिंटिंग बिहार, पटना, पृ. 46।
14. दास, एम. के. (1979) ट्राइबल आर्ट एण्ड क्रफ्ट, आगम कला प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 99-103।
15. कुमार, एम. (2009) आदिवासी संस्कृति एवं राजनीति, विश्वभारती पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली। 

September To November
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This paper examines the role of Akbar (1542–1605), the third Mughal Emperor, as a “national monarch” who worked for India’s various cultural, political, and regional communities. His policies inherited tolerance, cultural assimilation, and administrative innovations that contributed to political stability and social cohesion. By looking into Akbar’s religious and administrative policies, his beneficial governance approach, and his intension for a unified empire, we explore how Akbar laid the foundation for a centralized state that is identical with a modern concept of “Akbar as a national monarch”.

 

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Akbar, Achivement, National,  Cultural, Regional.

Read Reference

  1. Chitnis, K.N. (2017) “Socio-Economic History of Medieval India”, Atlantic Publishers, New Delhi. 

2. Mahajan, V.D. (1991) “History of Medieval India: Sultanate & Mughal period”, S. Chand Publications, New Delhi.  
3. Prasad, Ishwari (2018) “A short History of Muslim Rule in India”, Surjeet Publications, Delhi. 
4. Prasad, Ishwari (2018) “Medieval India”, Surjeet Publications, Delhi.
5. Shrivastava, A.L. (1969) “The Mughal Empire”, S.L. Agrawal & Co. Agra.
6. Tripathi, R.P. (2012) “Rise & Fall of Mughal Empire”, Surjeet Publications, Delhi.