Blood sugar, primarily in the form of glucose, is essential for the body’s energy production and metabolic processes. The chemical reactions involving glucose are critical for maintaining cellular function and overall homeostasis. This paper examines the chemical reactions of blood sugar in the human body, focusing on glucose metabolism, the regulatory mechanisms involved, and the implications for health, particularly in the context of diabetes and metabolic disorders.
Chemical Reactions, Blood Sugar, Human Body, Chemical.
1. Alberts, B., Johnson, A., Lewis, J., Raff, M., Roberts, K., & Walter, P. (2014) Molecular Biology of the Cell. Garland Science, Addess ????.
दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY) ग्रामीण और शहरी गरीबों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस शोध पत्र में घरघोड़ा ग्राम, छत्तीसगढ में इस योजना के प्रभाव, क्रियान्वयन प्रक्रिया और इसके परिणामों का विश्लेषण किया गया है। इसमें योजना के प्रमुख घटकों, सफलताओं और चुनौतियों का गहन अध्ययन किया गया है।
आर्थिक सशक्तिकरण, दीनदयाल अंत्योदय योजना, चुनौतियां.
1. दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY & NRLM) का आधिकारिक वेबसाइट, https://nulm.gov.in/, Acessed on 12/10/2024, इस वेबसाइट पर योजना के उद्देश्यों, गतिविधियों और उपलब्धियों की जानकारी मिलती है।
Biotin, also known as vitamin B7 or vitamin H, is a water-soluble vitamin that plays a crucial role in various metabolic processes within the human body. This paper provides a comprehensive review of the biochemical functions, sources, metabolism, deficiency implications, and therapeutic uses of biotin. Additionally, it explores recent research findings regarding biotin supplementation and its potential health benefits.
Biotin, Effect, Human Body, Biochemical.
1. Fernandes, M. S., Velangi, S. K., & Bhosle, D. (2013) Evaluation of serum biotinidase activity in hypothyroid patients, Indian Journal of Endocrinology and Metabolism, 17(Suppl 1), S262-S265. doi:10.4103/2230-8210.119582
भारत के हृदय में स्थित छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर में सतपुड़ा पहाड़ियों का उच्चतम भाग है, तो इसके मध्य भाग में महानदी और उसकी सहायक नदियों का भू-भाग है। इसके दक्षिणी भाग में बस्तर का पठार है। छत्तीसगढ़ प्राचीन स्मारकों, दुर्लभ वन्य प्राणियों, नक्काशीदार मंदिरों, बौद्ध स्थलों, राजमहलों, जल प्रपातों, गुफाओं और शैल चित्रों से परिपूर्ण है। राज्य का लगभग 44 प्रतिशत भू भाग वनों से आच्छादित है। छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक, औद्योगिक केन्द्र, प्राकृतिक सौदर्यं, राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य प्राणी अभ्यारण्य के साथ-साथ गौरवशाली आदिम लोक संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण देखने को मिलता है। पर्यटन की दृष्टि से यहाँ कई दर्शनीय स्थल है। छत्तीसगढ़ में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का गठन वर्ष 2002 में किया गया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य राज्य को एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पर्यटन राज्य के रूप में विकसित करना और राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित व समृद्ध करना है।
छत्तीसगढ़, दर्शनीय, महानदी, पर्यटन, पर्यटक.
1. गुप्ता, मदनलाल (1998), छत्तीसगढ़ दिग्दर्शन, भारतेंदु हिंदी साहित्य समिति, बिलासपुर, छत्तीसगढ़, द्वितीय संस्करण।
प्रथम शताब्दी ई. पू. से तीसरी शताब्दी ई. तक पश्चिम भारत में शासन कर रहे सातवाहन साम्राज्य की आर्थिक गतिविधियों के बारे में अनेक साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों से जानकारी मिलती है। पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सी, गाथा सप्तसती प्लिनी का नेचुरल हिस्ट्री एवं रूद्रदामन के जुनागढ़ अभिलेख जुन्नार अभिलेख, कार्ले एवं कन्हेरी का अभिलेख एवं शासन कर रहे सातवाहनों के द्वारा निर्गत अभिलेखों से इनके आर्थिक गतिविधियों का पर्याप्त जानकारी मिलता है। सातवाहनों के द्वारा कृषि को प्रमुख आर्थिक स्रोत के रूप में स्थान दिया गया था। अनेक फसलों का उत्पादन राजस्व की प्राप्ति हेतु भी किया जाता था। सातवाहनों का साम्राज्य कृष्णा गोदावरी डेल्टा क्षेत्र में होने के कारण कृषि उत्पादन अधिक मात्रा में होती थी। इनके शासन काल में शिल्प, वाणिज्य-व्यापार समृद्ध स्थिति में थी। व्यापार आंतरिक एवं बाह्य दोनों रूपों में होता था और इन व्यापार गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु विभिन्न व्यापारिक मार्गों का जाल इनके साम्राज्य में फैला हुआ था। व्यापार अनेक श्रेणी संगठनों के माध्यम से होता था जिसके कारण इस क्षेत्र के श्रेणी वर्ग की स्थिति संपन्न थी। संपन्नता के कारण इन श्रेणी संगठन एवं धनाध्य व्यापारियों के द्वारा अनुदान दिए जाते थे जिससे उनका संरक्षण एवं संपोषण ठीक प्रकार से हुआ करता था। व्यापार हेतु विनिमय के रूप में मुंडा का प्रयोग किया जाता था जिसके कारण व्यापार-वाणिज्य को फलने-फुलने का अधिक अवसर प्राप्त हुआ। सातवाहन काल में अनेक धातुओं के सिक्के जैसे सीसा, तांबा, पोटीन के अलावा चांदी के सिक्के भी प्रचलन में थे परन्तु मुख्य रूप से सीसा को सिक्का का प्रयोग देखने को मिलता है। व्यापार में प्रगति के कारण इस क्षेत्र में कई नगरों का विकास भी संभव हुआ जैसे अमरावती, भट्टी प्रोलु, नागार्जुनकोंडा, नारसेला, जुन्नार इत्यादि।
कृषि, आर्थिक गतिविधि, श्रेणी संगठन सिक्का, व्यापार एवं व्यापारिक मार्ग.
1. सिंह, उपिन्दर (2017) प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास, पियर्सन पब्लिकेशन, नोएडा, पृ. 443।
कसी भी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक रूप से सही होने पर ही उसे स्वस्थ कहा जा सकता है। हमारे देश के नौनीहाल, भावी नागरिक विद्या अध्ययन हेतु विद्यालय आते हैं, ताकि पढ़ लिख कर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें। यदि वे मानसिक रूप से शिक्षा प्राप्ति की इच्छा रखते भी हैं तो स्वास्थ्य के ठीक ना होने से वे अपने लक्ष्य में पीछे रह सकते हैं, ऐसे में पोषण संबंधी ज्ञान उन्हें अपने आप को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऊर्जावान शरीर अधिगम हेतु सदैव तत्पर रहता है। जीवन कौशल संबंधी बातें बच्चों को सिखाने के लिए विद्यालय परिसर एक सशक्त परिवेश है, जिसमें अपने शिक्षक के द्वारा कही बातों को बच्चे काफी महत्व देते हैं। अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी करते हैं ऐसे में सहायक विधाएं किसी भी आदत, गुण या कौशल को बच्चों के व्यक्तित्व का हिस्सा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये विधाएं नाटक, गीत, फन मेला, पोस्टर निर्माण, वॉल पेंटिंग कुछ भी हो सकती हैं। इन विधाओं से व्यक्तित्व का विकास होने के साथ-साथ लक्ष्य प्राप्ति में भी आसानी होती है। सीखना सुंदर, सहज, आनंददायक और स्थाई हो जाता है।
व्यक्तित्व, सशक्त, अधिगम, पाठ्य सहगामी क्रियाएं.
1. IGNTU econtent946308437200, Accessed on 14/07/2024
संथाल आदिवासी समुदाय भारत के झारखण्ड राज्य में सबसे प्रमुख और बडा आदिवासी समुदाय है और यह झारखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र में निवास कर रहें हैं। संथाली संस्कृति के अर्न्तगत इनकी सामाजिक व्यवस्था में जन्म से मृत्यु तक उसमें प्रचलित संस्कार, रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार, शादी-व्याह, घर-द्वार, धर्म-कर्म, रहन-सहन, पहनावा, नृत्य-संगीत से जुड़े क्रियाकलाप ही होते हैं। इस सभी क्रियाकलापों में वे विभिन्न प्रकार की कलाओं को आत्मसात करते हैं। जैसेः चित्रकला, विभिन्न प्रकार की हस्तकला, शिल्पकला, स्थापत्यकला, नृत्यकला इत्यादि। इनकी सामाजिक व्यवस्था में साहित्य का भी विशेष महत्व है। साहित्य किसी भी समाज का आइना होता है। इनके साहित्य भी काफी समृद्ध है। संथाली भाषा के साहित्य के माध्यम से उनके परंपरा स्वरूप लोकगीत, लोककथा, लोकोक्तियों तथा पहेलियों के कुछ अंश सुरक्षित है। वही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती चली जा रही है जो कि संथाल जनजाति की संस्कृति का अभिन्न अंग है।
संथाल, उपजाति, साहित्य, समाज.
1. टेटे, वंदना (2013) आदिवासी साहित्य परंपरा और प्रयोजन, प्यारा केरकट्टा फाउण्डेशन, राँची, पृ. 94।
Akbar, Achivement, National, Cultural, Regional.
1. Chitnis, K.N. (2017) “Socio-Economic History of Medieval India”, Atlantic Publishers, New Delhi.