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Publishing Year : 2025

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सिक्कों का प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे पूर्वज जाने-अनजाने में ही इन सिक्कों के माध्यम से हमारे लिये जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत छोड़ गए जिससे वर्तमान समय में अतीत की बहुत सारी जानकारी प्राप्त होती है। सिक्कों में प्रयुक्त धातु, सिक्कों का तौल, सिक्कों पर उत्कीर्ण लिपि आदि से इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। सिक्कों से अतीत काल के राजनीतिक स्थिति का ज्ञान प्रमुखता से होता है। सबसे प्रथम किस वंश के राजा द्वारा जारी किया गया, जारी करने वाला राजा और उसके सिहासनरूढ़ होने की तिथि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। प्राचीन भारत के इतिहास के कालक्रम को प्रमाणिक बनाने में सिक्कों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सिक्कों पर अनेक देवी-देवताओं या धर्म से संबंधित प्रतीक चिन्ह बने हुए है इससे उस काल के धार्मिक अवस्था की जानकारी मिलती है। सिक्कों से उस काल की मौद्रिक व्यवस्था के बारे मे जानकारी प्राप्त होती है जिस काल में बड़ी संख्या में मुद्राएँ जारी की गयी हो। इससे उस काल की आर्थिक समृद्धि का पता चलता है साथ ही सिक्कों में प्रयुक्त धातुएँ भी आर्थिकता का परिचायक होती है। सिक्कों के प्राप्ति स्थान से किसी काल की भौगोलिक सीमा रेखा तय करने में मदद करती है। इस प्रकार सिक्कों से विविध प्रकार की बातों का ज्ञान होता है जो इतिहास के बहुमूल्य स्रोत है। सिक्को का विकास मानव जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक था। इसके माध्यम से लेन-देन की प्रक्रिया आसान हुई और व्यापार वाणिज्य का भी विकास तीव्र गति से होना प्रारम्भ हुआ। नवपाषाण काल तक लेन-देन वस्तु विनिमय के आधार पर होता था। हड़प्पा वासियों ने भी वस्तु विनिमय प्रणाली और मुहरों के प्रयोग से व्यापार खडा किया था। वैदिक काल से सिक्कों के प्रारंभिक स्वरुप का आभास होता है। ऋग्वेद में निष्क, पाद शतमान, हिरण्यपिण्ड जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है। ये कोई सिक्का नही था अपितु निश्चित तौल की वस्तुएँ थी जिसका प्रयोग लेन-देन में होता था। भारतीय उपमहादीप में सिक्कों का प्रयोग छठी सदी ई. पू. से मिलने लगता है। भारत के इन प्राचीन सिक्कों को ’आहत’ या ’कार्षापण’ कहा जाता था। इन सिक्कों पर कुछ लिखा हुआ नही है। ये चाँदी और ताम्बे के बने हुए हैं। इन पर ज्यामितिय आकार के चिन्ह बने हुए हैं। भारत मे यूनानियों के आगमन के बाद सिक्कों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। सर्वप्रथम लेख युक्त सिक्के इंडो-ग्रीक शासकों ने ही जारी किए। इन सिक्कों पर राजा का नाम, तिथि, उपाधियाँ एवं देवी देवताओं का अंकन होने लगा। बाद के काल मे भारतीय सिक्कों के निर्माण में यूनानियों का प्रभाव पड़ा और भारतीय सिक्के भी यूनानियों के अनुकरण पर जारी किये जाने लगे। इस प्रकार सिक्कों से विभिन्न कालों के बारे में विविध जानकारी प्राप्त होती है।

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वस्तु विनिमय, सिक्का, इतिहास, धातु, भाषा, कला.

Read Reference

  1. सिंह, उपिन्दर (2018) प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास, पियर्सन, दिल्ली, पृ. 51-51।

2. उपाध्याय, वासुदेव (2001) प्राचीन भारतीय मुद्राएँ, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, पृ. 36-37। 
3. चौधरी, राधाकृष्ण (1986) प्राचीन भारत का इतिहास, जानकी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 10। 
4. सिंह, उपिन्दर (2018) प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास, पियर्सन, दिल्ली, पृ. 51-54।
5. झा, द्विजेन्द्र नारायण; श्रीमाली कृष्ण मोहन (2008) प्राचीन भारत का इतिहास, हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन, निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, पृ. 10।
6. वही, पृ. 280।
7. सिंह, उपिन्दर, (2018) प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास, पियर्सन, दिल्ली, पृ. 51-54।
8. झा, द्विजेन्द्र नारायण; श्रीमाली कृष्णमोहन, (2008) प्राचीन भारत का इतिहास, हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन, निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, पृ. 17। 
9. उपाध्याय, वासुदेव, (2001) प्राचीन भारतीय मुद्राएँ, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, पृ. 27। 
10. वही, पृ. 25।
11. वही, पृ. 14।
12. वही, पृ. 15।
13. सिंह, उपिन्दर,  (2018) प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास, पियर्सन, दिल्ली, पृ.51-54।
14. राय, कौलेश्वर (2008, प्राचीन भारत का इतिहास, किताब महल, पटना, पृ. 15-16।
15. उपाध्याय, वासुदेव (2001) प्राचीन भारतीय मुद्राएँ, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, पृ. 27।
16. वही, पृ. 27। 
17. महाजन, वी. डी. (2008) प्राचीन भारत का इतिहास, एस चन्द एण्ड कम्पनी, नई दिल्ली, पृ. 25-26।
18.. गुप्ता, परमेश्वरी लाल (2014) भारत के पूर्वकालिक सिक्के, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, पृ. 254-281।
19. सिंह, उपिन्दर, (2018) प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास, पियर्सन, दिल्ली, पृ.51-54।

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The fictional world of Arun Joshi, one of India’s foremost contemporary novelists, is a compelling exploration of the human psyche, existential dilemmas, and socio-cultural contexts. This critical appraisal delves into the thematic and stylistic aspects of Joshi’s works, highlighting his unique narrative voice and the philosophical underpinnings of his fiction. Joshi’s novels, including “The Strange Case of Billy Biswas,” “The Apprentice,” “The Foreigner,” and “The Last Labyrinth,” offer profound insights into the alienation and spiritual quest of individuals grappling with the complexities of modern life. His characters often find themselves at the crossroads of tradition and modernity, seeking meaning and identity in a rapidly changing world. Through meticulous character development and rich, symbolic imagery, Joshi addresses themes of isolation, existential angst, and the search for self-realization. This critical appraisal examines how Joshi’s portrayal of internal and external conflicts resonates with broader socio-cultural issues, such as the impact of colonialism, the fragmentation of cultural identity, and the quest for authenticity in an increasingly materialistic society. By situating Joshi’s works within the larger framework of Indian and global literature, this study sheds light on his enduring relevance and the universal appeal of his storytelling. Ultimately, this abstract provides a comprehensive overview of Arun Joshi’s fictional universe, emphasizing his contributions to literature and his profound understanding of the human condition. Joshi’s exploration of psychological and existential themes makes his work a significant and enduring part of literary discourse.

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Existential theme, Psychoanalysis of characters, Sense of alienation, Cultural Identity, Impact of Colonialism, Spiritual dilemma.

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  1. Abraham, Joy (1992) “The Foreigner: A study in Techniques”, The Novels of Arun Joshi, ed. R.K. Dhawan, Prestige Books, New Delhi.

2. Awasthi, Kamal N.; & Sharma, Lalit M. (1993) “The World of ‘Outsiders’ . The Foreigner and Voices in the City”, Contemporary Indian English Fiction, ed. Kamai N. Awasthi, ABS Publications, Jalandhar.
3. Bhatnagar, O.P. (1986) “The Art and Vision of Arun Joshi”, The Fictional World of Arun Joshi, ed. R.K. Dhawan, Classical Publishing Company, New Delhi.
4. Booth, Wayne, C. (1961) A Rhetoric of Fiction, Chicago: University of Chicago Press.
5. Dhawan, R.K. Ed., (1986) The Fictional World of Arun Joshi. Classical Publishing Company, New Delhi,18.
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8. Radhakrishnan, N.. Ed. (1984) Arun Joshi: A Study of his Fiction. Gandhigram, Gandhigram Rural Institute, Tamil Nadu.
9. Srinath, C.N. (1979) “Crisis of Identity: Assertation and Withdrawal in Naipaul and Arun Joshi” . The Literary Criterion . XIV, 1, 40.
10. Stern, J.P. (1973) On Realism, Concepts of Literature. Routledge & Kegan Paul, London.
11. Tharoor, Shashi (1989) The Great Indian Novel, Penguin Books, Thompson.
12. Tripathi, J.P. (1992) “From Raju to Billy: Changing Aspects of Selfhood” Language Forum . Vol. 18, No. 1&2, 120.

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Agriculture has long been the backbone of the global economy, with over half India’s population relying on it for their livelihood and employment. Uttar Pradesh stands out in food grain production because of its fertile Gangetic plains, extensive canal irrigation, and Government and private tube wells. Social, economic, political, and technological factors influence crop production in the state. This study examines the Spatial and temporal trends of significant crops, including concentration and diversification in Ambedkar Nagar district for 2001, 2011, and 2021, to understand the changing relationship between land, humans, and the environment. Jasbir Singh’s method is used to calculate crop concentration, and the Gibbs and Martin method is used to assess crop diversification. The findings indicate increased rice, wheat, and pulses concentration while sugarcane cultivation has declined. Between 2001 and 2021, crop concentration and diversification in Ambedkar Nagar district show noticeable shifts. The district’s high crop concentration and diversification indices reflect that agriculture remains the main occupation and income source.

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Population, Agriculture, Economy, Environment.

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  1. Baghel, R.; Sharma, P. (2024) Evaluating agricultural activity dynamics over the Uttar Pradesh state of India using satellite-based datasets, Tropical Ecology, 65(3), 412-425.

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25. Viswanathan, P. K.; Kavya, K.; & Bahinipati, C. S. (2020) Global patterns of climate-resilient agriculture: A review of studies and imperatives for empirical research in India. Review of Development and Change, 25(2), 169-192.

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अनौपचारिक शिक्षा और वैकल्पिक माध्यम विषयक इस आलेख में अनौपचारिक शिक्षा के महत्व और इसके लिए वैकल्पिक मीडिया के उपयोग पर प्रकाश डाला गया है। अनौपचारिक शिक्षा वह प्रक्रिया है जो औपचारिक शिक्षा प्रणाली से बाहर होती है और व्यक्ति के अनुभवों, रुचियों और आवश्यकताओं के अनुसार लचीली होती है। इसकी प्रमुख विशेषताओं में नमनीयता, खुलापन और समावेशिता शामिल हैं। यह विशेष रूप से समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के लिए एक सशक्त माध्यम है। सन् 1968 में फिलिप कूम्बस ने अनौपचारिक शिक्षा की अवधारणा प्रस्तुत की। यह प्रणाली व्यक्ति को सीखने की स्वतंत्रता देती है और समाज की जरूरतों के अनुसार शिक्षा प्रदान करती है। इसका उद्देश्य समाज में समानता और समावेशिता को बढ़ावा देना है। इसके उदाहरणों में खुले विद्यालय, पत्राचार पाठ्यक्रम और सामुदायिक शिक्षा कार्यक्रम शामिल हैं। वैकल्पिक मीडिया समाज के उन मुद्दों और वर्गों को सामने लाना है, जो अक्सर मुख्यधारा की मीडिया द्वारा उपेक्षित रहते हैं। वैकल्पिक मीडिया सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक मूल्यों और जनता की आवाज़ को सशक्त करता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, यह श्रमिक आंदोलनों, स्वतंत्रता संग्राम और डिजिटल युग के माध्यम से विकसित हुआ है। भारत में, यह गांधी और अंबेडकर की पत्रकारिता से लेकर डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों तक विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ है। वैकल्पिक मीडिया की प्रासंगिकता डिजिटल युग में बढ़ गई है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इसे एक नई दिशा दी है, जिससे सूचना का लोकतंत्रीकरण हुआ है। यह समाज के वंचित वर्गों के मुद्दों को उजागर करता है और उन्हें सशक्त बनाने में मदद करता है। वैकल्पिक मीडिया अनौपचारिक शिक्षा के प्रसार में एक प्रभावी माध्यम है। यह समाज में सकारात्मक परिवर्तन और शिक्षा के व्यापक प्रसार के लिए एक मजबूत मंच प्रदान करता है।

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अनौपचारिक शिक्षा, वैकल्पिक मीडिया, लोकतांत्रिक मूल्य, सामाजिक न्याय, डिजिटल युग, सूचना लोकतंत्रीकरण.

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  1. विद्यार्थी, रामशंकर (शुक्रवार, 7 जुलाई 2017) वैकल्पिक मीडियाः अर्थ एवं अवधारणा, विद्यार्थी ब्लॉग,https://reeta-yashvantblog.blogspot.in, से, सोमवार 20 नवंबर 2017 को पुनर्प्राप्त.

2. निरंजन (21 अप्रैल 2010) वैकल्पिक मीडियाः अवधारणा एवं चुनौतियां, मीडिया ख़बर, https://mediahindi-blogspot.com/2010/04/blogspost.html से, 3 जनवरी 2024 को पुनर्प्राप्त
3. पाठक, मंगल (2013-14) उदीयमान भारतीय समाज में शिक्षा के आधार एवं विकास, अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा-2।
4. चतुर्वेदी, जगदीश्वर एवं सिंह (2008) वैकल्पिक मीडिया लोकतंत्र और नॉम चोमस्की, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रा.(लि.), दरियागंज, नई दिल्ली।
5. भाई, योगेन्द्रजीत (2017-18) शिक्षा में नवाचार, अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा-2।
6. वाचस्पति, अविनाश एवं प्रभात, रवीद्र (सं.) (2011) हिंदी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति नई क्रांति, हिंदी साहित्य निकेतन बिजनौर।
7. चतुर्वेदी, जगदीश्वर एवं सिंह (2008) वैकल्पिक मीडिया लोकतंत्र और नॉम चोमस्की, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रा.(लि.), दरियागंज, नई दिल्ली।
8. चावल, प्रदीप (29 अक्टूबर 2018) गैर औपचारिक शिक्षा,gkexam : https://www.gkexams.com/ask/69905-Gair-Aupcharik-Shiksha से, 10 फरवरी 2024 को पुनर्प्राप्त।
9. आनंद (28 नवंबर 2024) शिक्षा के औपचारिक तथा अनौपचारिक अभिकरणों में संबंध, नोट्स वर्ल्डःhttps://www.notesworld.in/2024/11/blog-post-276.html से, 30 नवंबर 2024 को पुनर्प्राप्त।

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Wetland is water body which develops local ecological atmosphere in their surroundings.The Sultanpur city’s wetland ecology is severely degrading due to numerous biological and anthropogenic influences, as indicated by numerous studies. Thus, conflict between development and ecology and its recurrent impact on the larger society is becoming evident here every day. The water quality related data has been produced by collecting sample from Dadupur wetland site. The sampled water has been tested and its values have been collected as data for assessment of pollution level and water quality. The collected data have been analysed using a variety of statistical analysis and representation software programs, including SPSS and Xlstat 2010. We used multivariate statistics to provide an overview of Sultanpur city wetlands’ current immunological state. Dadupur wetland is both perennial and rainwater fed, with a water regime depth of 7 feet during the non-monsoon season and 21 feet during the 2023 monsoon. People who live nearby use this marsh for agriculture, fishing, waste water disposal and as a dump yard. The most significant pollutants observed in the present study are Total Alkalinity, Chloride, Fluorides, Nitrates, Total Dissolved Solids and Electrical Conductivity. Dadupur wetland are experiencing a water area crisis due to wetland shrinkage as a result of water scarcity, non-dredging, and public ignorance of wetlands.

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Sultanpur City, Dadupur Wetland, Water Quality, Encroachment, Shrinkage.

Read Reference

  1. Bhatnagar, A.; & Devi, P. (2013) Water quality guidelines for the management of pond fish culture, International journal of environmental sciences, 3(6), 1980-2009.

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Women’s Self-Help Groups have been working across India to help women escape poverty and become financially independent. These groups provide women with access to savings and loans tailored to their needs, freeing them from relying on local money lenders.The groups are made up of poor rural women who use the loans to cover basic needs and start businesses, improving their economic status and well-being.This study examines how Information and Communication Technology (ICT) can improve the efficiency of Self-Help Groups (SHGs) in Jharkhand. The research was conducted in areas of Bokaro District in Jharkhand state, and aims to understand the potential benefits, limitations, and role of ICT in enhancing SHG activities. This research paper aims to investigate how the use of Information and Communication Technology (ICT) can improve the effectiveness of Self-Help Groups (SHGs) of Bokaro district of Jharkhandin India.

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Self-Help Groups, Economic Status, Information and Communication Technology (ICT), Women Development.

Read Reference

  1. Chakravarty, S.; Kumar, A.;; & Jha, A. N. (2013) Women’s Empowerment in India: Issues, Challenges and Future Directions, International Review of Social Sciences & Humanities, 5(1), 24-32.

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Indian drama in English is gaining ground by leaps and bounds. The dramatists like Girish Karnad, Mahesh Dattani, Vijay Tendulkar, Badal Sarkar, Mohan Rakesh and a host of other great writers have tried their best to upgrade the Indian dramas with the help of their great contributions by composing some immortal works full of beauty and truth. The works of Vijay Tendulkar and Mahesh Dattani are very much rooted to the problems of society. In each and every work, these writers have tried their best to present the society as a whole with the help of their imaginative frame of mind and some poetic devices which matter most to the lovers of drama and literature. Almost all the plays of these two writers deal with some social issues of modern time. Like G. B. Shaw, both the playwrights want to root out the evils of the society so that the world can become paradise and the man can become Superman. In the works of Mahesh Dattani, we often see some untouched issues of the society like the problems of third gender, gay themes and feminine sensibility. Similarly the works of Vijay Tendulkar dwell on the themes of women empowerment, gender identity, personal relationship, untouchability and the marginalized issues, so on and so forth.

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Women empowerment, Gender identity, Personal relationship, Historical perspectives, Gay literature.

Read Reference

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वर्तमान शिक्षा में बच्चों के बस्तेे का बोझ एक गंभीर समस्या है, जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। बस्ताविहीन शाला बच्चों को उनके रोजमर्रा के शैक्षणिक कार्यों से हटाकर रचनात्मक और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने का एक अभिनव प्रयास है। इसका उद्देश्य बच्चों के मानसिक तनाव को कम करना और उनकी रचनात्मकता को प्रोत्साहित करना है। इस दिन बच्चे खेल, कला, कहानी सुनने और पर्यावरण आधारित गतिविधियोें में भाग लेते है, ताकि उनमें सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं व्यावहारिक विषयों से संबंधित कौशलों का विकास हो सके। यह बच्चों को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ वे अपनी क्षमताओं का अन्वेषण कर सकते है। इसके अतिरिक्त यह न केवल उनके सीखने के अनुभव को रोचक बनाता है, बल्कि उन्हें जीवन कौशल भी सिखाता है। बस्ताविहीन शाला की यह अवधारणा बच्चों की समग्र शिक्षा के लिए एक सकारात्मक कदम है। इस लेख के माध्यम से बस्ताविहीन शाला की वर्तमान शिक्षा पद्धति में प्रासंगिकता को प्रमुखता से उभारने का प्रयास किया जा रहा है।

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शिक्षा, बस्ताविहीन शाला, नई क्रांति, नवाचारी शिक्षा, सृजनात्मकता.

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  1. ‘बैगलेस सुरक्षित शनिवार‘ वैगल व्हील. राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद्, बिहार. Retrieved from https://www.bepcssa.in/en/dt/Bagless%20Saturday%20Final%20copy%2010-11-22%209%20pm%20 white.pdf, Accessed on 27.10.2024.

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The New National Education Policy 2020 aims to create a unified vision and comprehensive framework for primary, secondary and higher education systems across the country. While education is a crucial aspect of the policy, its execution still depends on additional regulations from state and federal Governments. Nonetheless, if properly implemented, the NEP 2020 has the potential to enhance the workforce and improve the employability of job seekers. Several components of the NEP directly address employability issues. It is undeniable that an improved educational system enhances an individual’s prospects of securing employment. According to surveys, the majority of recent graduates report feeling inadequately prepared for their initial employment and frequently face the decision of whether to remain in or depart from their positions. First-year professionals are insufficiently equipped for the demands of the professional environment. One of the primary factors contributing to this phenomenon has been suboptimal educational preparation. The disparity between industry requirements and academic curricula has been a predominant topic of discussion among employers and job seekers. With the implementation of the new policy, educational institutions at both the secondary and tertiary levels will approach education as a means of fostering character development and facilitating comprehensive professional growth, rather than solely as a pathway to degree attainment.

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National Education Policy, Employability Skills, Vocational Education and Training, Artificial Intelligence, Future of Schools (FoW).

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Publishing Year : 2024

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Blood sugar, primarily in the form of glucose, is essential for the body’s energy production and metabolic processes. The chemical reactions involving glucose are critical for maintaining cellular function and overall homeostasis. This paper examines the chemical reactions of blood sugar in the human body, focusing on glucose metabolism, the regulatory mechanisms involved, and the implications for health, particularly in the context of diabetes and metabolic disorders.

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Chemical Reactions, Blood Sugar, Human Body, Chemical.

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  1. Alberts, B., Johnson, A., Lewis, J., Raff, M., Roberts, K., & Walter, P. (2014) Molecular Biology of the Cell. Garland Science, Addess ????.

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दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY) ग्रामीण और शहरी गरीबों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस शोध पत्र में घरघोड़ा ग्राम, छत्तीसगढ में इस योजना के प्रभाव, क्रियान्वयन प्रक्रिया और इसके परिणामों का विश्लेषण किया गया है। इसमें योजना के प्रमुख घटकों, सफलताओं और चुनौतियों का गहन अध्ययन किया गया है।

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आर्थिक सशक्तिकरण, दीनदयाल अंत्योदय योजना, चुनौतियां.

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  1. दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY & NRLM) का आधिकारिक वेबसाइट, https://nulm.gov.in/, Acessed on 12/10/2024, इस वेबसाइट पर योजना के उद्देश्यों, गतिविधियों और उपलब्धियों की जानकारी मिलती है। 

2. भारत सरकार की सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वेबसाइट,https://lawmin.gov.in/, Acessed on 13/10/2024, यहाँ विभिन्न सरकारी योजनाओं और उनकी लागू नीतियों का विवरण मिलता है।
3. भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट https://rural.gov.in/ पर उपलब्ध है। यह साइट ग्रामीण विकास से संबंधित योजनाओं, पहलों, और कार्यक्रमों जैसे MGNREGA, PMAY-G, और DAY&NRLM की जानकारी प्रदान करती है। इसके अलावा, यह ग्रामीण प्रगति और आजीविका सृजन से संबंधित रिपोर्ट्स, दिशानिर्देश, और डेटा भी उपलब्ध कराती है, Acessed on 10/10/2024.
4. छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (सीजीएसआरएलएम), जिसे ”बिहान“ के नाम से भी जाना जाता है, की आधिकारिक वेबसाइट https://bihan.gov.in है। यह वेबसाइट ग्रामीण आजीविका से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान करती है, Acessed on 08/10/2024.

 


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Biotin, also known as vitamin B7 or vitamin H, is a water-soluble vitamin that plays a crucial role in various metabolic processes within the human body. This paper provides a comprehensive review of the biochemical functions, sources, metabolism, deficiency implications, and therapeutic uses of biotin. Additionally, it explores recent research findings regarding biotin supplementation and its potential health benefits.

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Biotin, Effect, Human Body, Biochemical.

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  1. Fernandes, M. S., Velangi, S. K., & Bhosle, D. (2013) Evaluation of serum biotinidase activity in hypothyroid patients, Indian Journal of Endocrinology and Metabolism, 17(Suppl 1), S262-S265. doi:10.4103/2230-8210.119582

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