स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी विद्यालय की पहुंच सभी तक नहीं है, ऐसे में छात्रावास का महत्व बहुत बढ़ जाता है। छात्रावास में रहने के दौरान छात्रों में कई तरह के बदलाव आते हैं। विद्यार्थी समय पाबंद बनते हैं एक दुसरे को देखकर आत्मविश्वासी बनते है। विद्यार्थियों के रहन-सहन में बहुत बदलाव आता है। छात्रों में सामाजिक कौशल जैसे एक दूसरे के साथ मित्रता करना प्रबंधन व नेतृत्व गुणों मे बदलाव आता है। छात्रावास में आने के बाद विद्यार्थियों से पूछा जाने वाला प्रथम व मुख्य प्रश्न होता है, बडे़ होकर क्या बनना है? इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी हॉस्टल आने के पहले सोचें या नहीं पर बाद में जरूर सोचते हैं और अधिकतर की आकांक्षाओं में परिवर्तन भी देखा जाता है। प्रस्तुत शोध अध्ययन विद्यार्थियों के जीवन कौशल में परिवर्तन व आंकाक्षा स्तर में बदलाव का पता लगाने के लिये किया गया है। इस हेतु स्वनिर्मित प्रशनावली का प्रयोग किया गया है, जिसमें जीवन कौशल व आकांक्षा स्तर मापने हेतु प्रश्न थे। यह अध्ययन 2 शासकीय व 2 अशासकीय छात्रावास में किया गया। प्रस्तुत शोध में निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि छात्रावास आने के बाद विद्यार्थियों के जीवन शैली व आकांक्षा स्तर में परिवर्तन आता, जो सही और अच्छा भी है, क्योंकि शिक्षा व्यवहार में वांछित परिवर्तन ही है, जो हमें अच्छाई की ओर ले जाये। छात्राऐं जितनी शिक्षित होंगी उनकी जीवन शैली अच्छी व आकांक्षा स्तर ऊंचा होगा। वे उतनी ही सशक्त नागरिक बनेगी जिससे हमारे देश का विकास होगा।
जीवन शैली, आकांक्षा स्तर, शिक्षा, छात्रावास.
1. बंसल, सु. व कृष्णपाल, (2015). उ.प्र.मा.शिक्षा परिषद् एवं केन्द्रीय माध्यमिक परिषद् के उच्चतर माध्यमिक स्तर के छात्रां के शैक्षिक व्यावसायिक आकांक्षा स्तर का तुलनात्मक अध्ययन। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एजुकेशन एण्ड साइंस रिसर्च, 2 (3), 101-104.
शिक्षक, प्रशिक्षण, गुणवत्ता.
1. चन्द्रशेखर, के. (2000)ः एन इवेल्यूवेटिव स्टडी ऑफ प्राइमरी स्कूल टीचर्स एजुकेशन प्रोग्राम इन आन्ध्र प्रदेश, पी-एच.डी. थिसिस-एजुकेशन, श्री वेंकेटेश्वरा विश्वविद्यालय, तिरूपति.
अधिकारों का हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यदि हम अपने जीवन में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न हों तो हमें जाने-अनजाने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और यदि मानव अधिकार विद्यार्थियों के लिये कहा जाये तो ये और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि आज का विद्यार्थी ही कल के भारत का भविष्य है। व्यक्ति को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये अपने अधिकारों का ज्ञान होना आवश्यक है। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुये शोधकर्त्ता ने अपने शोधकार्य में ग्रामीण एवं शहरी महाविद्यालय के छात्रों की मानव अधिकार जागरूकता मापने का प्रयास किया है तथा प्राप्त अंको के मध्यमान से ज्ञात होता है कि ग्रामीण विद्यार्थियों के अपेक्षा शहरी विद्यार्थी अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक है। वर्तमान शिक्षा नीति के अंतर्गत आधुनिक संचार सुविधाएँ तथा तकनीकी प्रचार-प्रसार की सामग्रियाँ जैसे कम्प्यूटर, एल.सी.डी., प्रोजेक्टर आदि ग्रामीण विद्यार्थियों को उपलबध नहीं हो पाती, जबकि शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त पारिवारिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है क्योंकि शहरी क्षेत्र के माता-पिता अधिक प्रचार-प्रसार के कारण अधिक जागरूक होते हैं। कम शैक्षिक क्षमता एवं कम प्रचार-प्रसार के कारण ग्रामीण क्षेत्र के पालक अपने पाल्यों को उचित वातावरण नहीं दे पाते।
मानव अधिकार, षिक्षा, विद्यार्थी.
1. Bhatnagar, R.P. (2010). Educational research. Merut : International Publishing House, 420,306.
Intellectual Property Rights can be defined broadly as legal rights rather than innovative and original ideas. These legal rights can prevent third parties from using the original idea illegally. Different categories of Intellectual Property Rights are: Copyright, Trademark, Geographical Indications, Industrial Designs, Patents, Integrated Circuits and Trade Secrets. All Intellectual Property Rights generally prohibit third parties from commercially disclosing hidden and proprietary content without the authorization for a certain period of time. It helps Intellectual Property Rights holder to express their innovations fearlessly and spread to other people. Intellectual Property Rights help to stimulate creativity and innovation and regulate the marketing of goods and services. Protection against unfair competition is the underlying philosophy of all Intellectual Property Rights. The ability of a nation to convert knowledge into money through innovation will determine its future. In intellect based economy, knowledge has become an invaluable object that can be used for economic gain. After globalization of the agricultural market is not only an opportunity, but also a threat to new ideas and innovations. Better accessibility prospects the free flow of ideas and information within the country also increases the threat. Only protected innovation can create wealth, but not unprotected. Therefore, intellectual property protection becomes very important. Patents are the most important Intellectual Property Rights for agricultural goods and services today because they offer the best protection for plants, animals and biotechnological processes for their production. Many countries have built plant breeding facilities to protect conventional plant breeding efforts. Trademarks are used to market seed and spraying services. Agricultural sector can use trade secret protection to protect hybrid plant varieties. Some developed countries offer protection to the data submitted to obtain authorization to place agrochemicals on the market from use by third parties for a certain period of time.
Intellectual Property, Copyrights, Patents, Trademarks, Agriculture.
1. Dewan M. (2011), IPR protection in agriculture: An overview. Journal of Intellectual Property Rights, Vol 16: 131-138.
Information is the key to democracy. Information empowerment is an instrumental for a successful democracy. Further the introduction of information technology (IT) has nurtured the swift emergence of a global ‘‘Information Society” that is changing the way people live, learn, work and relate. In order to achieve the Millennium Development Goal of; having the number of people living in extreme poverty by the year 2015 which is a mile away, information and communication technology has been more emphasized. Everyone, the Governments, civil society, and private sectors have a vital stake in fostering digital opportunity and putting ICT at the service of development. Thus, the objectives of the present paper are to analyse the access to communication technology in rural Chhattisgarh, to analyse the access to information technology in rural Chhattisgarh, to find out the gender-based access to ICTs in rural Chhattisgarh and to suggest measures for future implications. The primary and the secondary data has been used for the study and the findings shows that all the 80 (100%) sample respondents are not having access to telephone facility in their locality but they are having access to mobiles. All the 80 males and 80 females have their own personal mobiles. Further, 42.5% male respondents are having access to internet through mobile while only 37.5% female respondents are having access to it. Also, the Gender based Information and communication Technology Index (GICTI) in Rural Chhattisgarh. reflects that Gender based use of information and communication technology is maximum in Mahasamund districts (0.65); and the tribal district of Uttar Bastar Kanker has a least score of 0.62. However, the district wise comparison shows that in both the districts there is a strong positive gender-based information and communication technology index. Thus, the study concludes that providing accessibility of digital services in the rural areas is necessary. Also, there is an urgent need to implement effective policies and programmes for the promotion of the millennium development goals in the rural Chhattisgarh, which further strengthens the sustainable development targets.
Information and communication technology, Rural Chhattisgarh, Millennium development goals.
1. Bandara, A. (2013). Within Sight, Yet Far: Challenges and Opportunities in Achieving MDGs in Tanzania, Global MDG Conference, Working Paper. No. 9, UNDP Publishing.
व्यावसायिक शिक्षक अपने ज्ञान के प्रकाश से शिक्षार्थियों को प्रकाशित करता है एवं उन्हें उसके लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की ओर अग्रसित करता है तथा उन्हें अभिप्रेरित कर समाज में एक योग्य नागरिक बनाने में मदद करता है। उच्च शिक्षा के अंतर्गत वे शिक्षार्थी आते हैं जो कक्षा 12 वीं पास करने के बाद स्नातक में प्रवेश लेता है। मुख्यतः महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर स्नातक या परास्नातक की डिग्री प्राप्त करता है।
शिक्षक, महिला, शिक्षा।
1. सिंह याई. के. एवं वर्मा जे. यस. (2018) उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयो के विद्यार्थियों की जीवन शैली तथा उसके आयामों का लिंग के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन, एन इंटरनेशनल जर्नल अप्रैल (2018)- 169 vol-XVIII (2)
“Resolving the Taiwan question is a matter for the Chinese, which must be resolved by the Chinese.” Xi Jinping1. Xi in his speech had christened seven sectors as ‘emerging strategic industries’ that are central to this opportunity. Those are next-generation information technology; artificial intelligence; biotechnology; new energy; new materials; high-end equipment; and green industry, which needs renewed focus in the next decade. The overall tenor of the 20th Congress clearly expressed the supremacy of party leadership and how to overcome prevailing international environment.
Covid, Corruption, Xinjiang, Taiwan, Drones, 36 Strategem, Strategy.
1. Xi Jinping’s Vision for China’s next five years: key takeaways from his Speech, Helen Davidson and Emma Graham-Harrison in Taipei, Sun 16 Oct 2022.
झारखण्ड में पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास काफी पुराना है, झारखण्ड की स्वशासन व्यवस्था का प्रमुख अवधारणा हमारे गाँव में हमारा राज है। यह प्रदेश का अध्ययन से पहले यह जानना आवश्यक होगा कि यहाँ कि भौगोलिक ऐतिहासिक परिस्थितियाँ किस प्रकार की है। झारखण्ड एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है। प्रायः झारखण्ड को जंगलों का प्रदेश भी कहा जाता है, यहाँ के लोग ग्रामीण परिवेश मंे रहते हैं। लगभग यहाँ के लोगों की दिशा एवं दशा कृषि पर ही आश्रित होते हैं। झारखण्ड में कुल 32 प्रकार की जनजातियाँ निवास करती है जिसमें सबसे अधिक जनसंख्या की दृष्टि से संथाल है। इस स्थानीय स्वशासन व्यवस्था में जीवन, सम्मान, उनके अधिकारों एवं स्वशासित होने के उनके नैसर्गिक अधिकारों को सुरक्षित रखने का एक औजार है। स्थानीय स्वशासन व्यवस्था उस समय सतह पर उभरी एवं संवैधानिक रूप से आदिवासियों के अधिकार उस समय उनके विभिन्न अंग बने जब वर्ष 1996 में भारत सरकार के द्वारा “पेसा कानून“ लाया गया। यह कानून लागू करने का तात्पर्य एक ओर जहाँ पंचायती राज व्यवस्था को प्रावधानों का विस्तार आदिवासी क्षेत्रों तक करना था। वहीं दूसरी ओर पारम्परिक आदिवासी स्वशासन व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता देना था। आदिवासी समुदाय में स्थानीय स्वशासन व्यवस्था अगल-अलग प्रकार की है। प्रायः आदिवासी समुदाय का इतिहास आत्म निर्णय एवं स्वशासन के संघर्ष की एक गाथाओं से परिपूर्ण है। यह समूह की लोग यह मानते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों जल, जंगल और जमीन इनका अधिकार स्वयं के शासन से ही स्थापित हो सकते हैं।
आदिवासी, समाज, विकेन्द्रीकरण।
प्रस्तुत शोध पत्र में संयुक्त एवं एकाकी परिवारों के पति-पत्नी के आपसी संबंधों एवं शैक्षिक स्तर का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। शोध समस्या में उत्तरप्रदेश के जनपद जौनपुर के मुफ्तीगंज ब्लाक अन्तर्गत संयुक्त एवं एकाकी परिवारों के पति-पत्नी के आपसी संबंधों एवं शैक्षिक के अध्ययन हेतु वयस्क महिला एवं पुरूष को न्यादर्श में सम्मिलित किया गया है। संयुक्त (181 परिवार) तथा एकाकी (119 परिवार) के 150-150 महिला पुरुष को न्यादर्श हेतु चुना गया है। तथ्यों का संग्रहण करने हेतु शोधार्थी द्वारा सामाजिक-आर्थिक स्तर मापनी (डॉ. अशोक कालिया एवं सुधीर साहू) का उपयोग मानकीकृत उपकरण के रूप में किया गया है। संयुक्त एवं एकाकी परिवारों के पति-पत्नी के आपसी संबंधों में अंतर पाया गया है जबकि संयुक्त एवं एकाकी परिवारों के शैक्षिक स्तर में सार्थक अंतर नहीं पाया गया है।
संयुक्त एवं एकाकी परिवार, पति-पत्नी के आपसी संबंध, एवं शैक्षिक स्तर।
1. बघेल डी.एस., (2006). ‘‘सामाजिक अनुसंधान’’, साहित्य भवन, पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटरर्स, आगरा।
प्रस्तुत शोध पत्र में कार्यकारी महिलाओं के समायोजन पर व्यवसायिक अभिवृत्ति के प्रभाव का अध्ययन (शिक्षक एवं चिकित्सकों के विशेष संदर्भ में) किया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य शिक्षक एवं चिकित्सक कार्यकारी महिलाओं के समायोजन पर व्यवसायिक अभिवृत्ति के प्रभाव का अध्ययन करना है। शोध पत्र में कार्यकारी महिलाओं के शिक्षक एवं चिकित्सक व्यवसाय पर अध्ययन किया गया है। न्यादर्श के लिए 20 शिक्षिका एवं 20 चिकित्सक कार्यकारी महिलाओं को न्यादर्श के रूप में सम्मिलित किया गया है तथा तथ्यों का संग्रहण करने हेतु व्यवसायिक अभिवृत्ति के लिए डॉ. मंजू मेहता तथा समायोजन के लिए समायोजन के लिए डॉ. प्रमोद कुमार की मापनी का प्रयोग किया गया। निष्कर्ष रूप में पाया गया कि कार्यकारी महिलाओं (शिक्षक एवं चिकित्सक) के समायोजन पर व्यवसायिक अभिवृत्ति का सार्थक प्रभाव पड़ता है।
कार्यकारी महिलाएं, समायोजन, व्यावसायिक अभिवृत्ति।
1. गुप्ता सुभाषचन्द्र, (2004). ‘‘कार्यशील महिलाएँ एवं भारतीय समाज’’, अर्जुन पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली।
व्यावसायिक संरचना किसी भी क्षेत्र के आर्थिक प्रगति अथवा विपन्नता का सही प्रतिनिधित्व करती है। जनसंख्या की जितनी अधिक भागीदारी होगी उस देश का आर्थिक विकास उतना ही अधिक समुन्नत होगा। किसी भी क्षेत्र की मानव शक्ति का वह भाग जो आर्थिक रूप से लाभकारी क्रियाओं में संलग्न है, श्रम शक्ति कहलाता है। श्रम शक्ति संघटन, लिंग, आयु, जाति एवं आवास द्वारा परिवर्तनशील होती है (चांदना, 1967)। ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों की तुलना में कार्य विभेदन कम होता है, वही दोनों क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था की प्रकृति एवं सामाजिक जीवन में अत्यधिक अन्तर होता है। अध्ययन क्षेत्र में यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, कि व्यावसायिक संरचना को उत्तम एवं सुदृड बनाने हेतु अध्ययन क्षेत्र के प्रमुख तत्व, जैसे-कृषि प्रधान, उद्योग प्रधान, अर्द्वउद्योग प्रधान एवं अन्य कार्याेत्पादन में जनसंख्या के आय संरचनाः- क्रय शक्ति सामाजिक-आर्थिक स्तर, आर्थिक संगठन आर्थिक समस्याओं के निर्धारण एवं रूपान्तरण हेतु आर्थिक योजना के निर्माण में योगदान आधार सिद्व होता है।
व्यावसायिक संरचना, व्यवसाय, कृषक, खेतिहर मजदूर, पारिवारिक उद्योग।
1. लाल हीरा, (1986) जनसंख्या भूगोल, वसुन्धरा प्रकाशन दाऊदपुर, गोरखपुर।
Classical employment theory and Keynesian employment theories have failed to remove the unemployment problembecause both are one sided theory of employment, one is supply sided and second demand sided theory of employment. According to employment classical theory, we should increase supply to increase employment and income. Keynesian Employment Theory is dependent on demand. According to J.M. Keynes, the effective demand is main factor for determination of employment and income. We should increase the demand for employment and income. J.M. Keynes assumed that supply is constant, he ignored thesupply in determination of employment and income, because there was great depression in the world, there was a problem of lack of demand. So J.M. Keynes has given more importance to demand.
Laissez faire police, Monetary policy, Inflation, Full Employment, Unemployment, Avarege Demand & Supply.
1. Keynes, J.M.; General Theory of Employment, Interest and Money.
हमारे देश में जिन प्राचीन स्मारको को देखने सराहने विश्व के विभिन्न देशो के लोग आते हैं, परन्तु उन प्राचीन धरोहरो के प्रति हमारी उदासीनता उनके अस्तित्व के लिए आज बहुत बड़ा खतरा है। अगर ऐसा ही रहा और तो इन एतिहासिक धरोहरो का अस्तित्व इतिहास के पन्नो में सिमट कर रह जाऐगा। अभी भी समय है हमारी सांस्कृतिकता, ऐतिहासिकता, कलात्मकता अभी भी अपशिष्ट है, यदि हम इनको भी संरक्षित कर सके तो आने वाली पीढ़िया हमारी कृतज्ञ रहेंगी।
धरोहर, संरक्षण, ऐतिहासिक, कलात्मक।
1. कौर, ई.एच.,What is history, पृष्ठ 14।
आज हम जिस युग में हैं उसको सूचना क्रांति युग कहा जाता है। जनसंचार अपने माध्यमों के द्वारा गतिशीलता के उच्च पायदान पर विकासशील है। आज जीवन का दूसरा नाम मीडिया हो गया है। वह हमारी संस्कृति, सभ्यता और रहन-सहन में इस प्रकार रच-बस गया है कि उस से दूर होने का मतलब सांसों का बंद हो जाना है। मीडिया जिस का काम सूचना का आदान प्रदान करना और लोगों को शिक्षित और मनोरंजित करना है, इस क्रांतकारी बदलाव के बावजूद मीडिया अपने कार्य और जिम्मेदारी को भूला नहीं है, बल्कि उसने अपने तर्ज और माध्यम को बदला है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज मीडिया ने परम्परागत पद्धति के साथ साथ कुछ नए मीडिया माध्यमों को अपनाया है जिसके कारण जनसंचार की परिभाषा बदली है। सोशल मीडिया, इंटरनेट न्यू मीडिया,सूचना क्रांति,जनसंचार, मीडिया माध्यम, वेब पोर्टल ने सूचना के आदान -प्रदान में नई प्रेषण पद्धति को जन्म दिया है जिसने समाज में लोगों की जनसंचार और सम्प्रेषण की शैली को परिवर्तित कर दिया है। यही वजह है की आज उसे मीडिया नहीं बल्कि न्यू मीडिया कहा जा रहा है।
न्यू मीडिया, सूचना क्रांति, जनसंचार, मीडिया माध्यम।
1. Kulshrestha, Sundeep. 2018. Bharat mein Print, Electronic Aur New Media. Prabhat Prakashan, New Delhi
आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने ‘आभा‘ उपन्यास में आभा के यथार्थ चरित्र के माध्यम से नारी के भटकाव, उसके कारण और पत्नित्व तथा मातृत्व की महत्ता को, जिनसे वह पतित होने से बच जाती है, को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है। शास्त्री जी को आभा के आत्मदीप्त स्त्रीत्व को अभिव्यक्त करने में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। लेखक ने कहीं-कहीं पात्र पर आदर्श-भावना आरोपित की है जो उनके उद्देश्य के साधन के रूप में प्रयुक्त हुई है। उपन्यासकार ‘मोती‘ के माध्यम से पाठकों के सामने एक अद्भुत विचार एवं दर्शन प्रस्तुत करते हैं और देशभक्ति, पाप-पुण्य और अपराध आदि की सर्वथा नवीन व्याख्या कर मोती के पात्र को आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं। शास्त्री जी के इस उपन्यास में नारी चेतना का आदर्शोन्मुख यथार्थवादी स्वरूप अभिव्यक्त होता है। यहाँ नारी पात्रों के माध्यम से मौलिक अधिकारों से वंचित समाज या व्यक्ति के आदर्श परायण विद्रोह की सहज छवि को दर्शाया गया है।
चतुरसेन शास्त्री, आभा, मोती, नारी-भटकाव, चेतना, आत्मदीप्त स्त्रीत्व।
1. तिवारी रामचंद्र, हिंदी का गद्य साहित्य - पृष्ठ- १७
जंक फूड उच्च कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थ है,जो कि ये अत्यंत आकर्षक एवं स्वादिष्ट बनाए जाते हैं जिससे इसकी अधिकाधिक माँग बढ़ायी जा सके। किन्तु ये व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं। किशोरावस्था में व्यक्ति का मानसिक विकास चर्म पर होता हैं। किशोर आकर्षक चीजों से शीघ्र प्रभावित होते है, अतः वे इन जंक फूड की ओर सरलता से आकर्षित हो कर इनको अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं। किन्तु अभिभावकों का कर्तव्य हैं की वे बाल्यावस्था से ही अपने बालको में आहार सम्बन्धी योग्य आदतों का विकास करें, जिससे वे अपने जीवन में इन जंक फूड का कम से कम इस्तेमाल करें तथा एक स्वस्थ जीवन शैली के साथ जीवन यापन करें।
जंक फूड, किशोरावस्था।
1. Benneis, W. (1994). Impact on health of Fast Food, New York: Addison Weslay.“Help guides. Org. “Nutrition for Children and Terms” Reviewed by Renee A. Alli MD on July 25, 2016.
मूर्धन्य पत्रकार राजेंद्र माथुर के लेखन की समय सीमा तय नहीं की जा सकती। वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे। वे कहते थे-‘यदि देश किन्ही दो बुनियादों पर टिका है तो वह राजनेताओं पर कम और न्यायपालिका तथा पत्रकारिता पर ज्यादा, क्योंकि जब कहीं आशा नहीं रह जाती तो निराश व्यक्ति या तो अदालत का दरवाजा खटखटाता है या फिर अखबार के दफ्तर में जाता है। उसे लगता है यहाँ से न्याय जरूर मिल जायेगा। इस अपेक्षा और उम्मीद को बनाये रखने के लिए उन्होंने हमेशा जिम्मेदार और मूल्यानुगत पत्रकारिता की।हालांकि वे मूलतः प्राध्यापक थे और यह प्राध्यापकीय वृत्ति उनके समूचे लेखन में दिखती है। उनका लेखन तथ्यों और संदर्भों पर आधारित होते थे। उनकी भाषा में एक अकादमिक सौंदर्य था जो उन्हें उनके समकालीन पत्रकारों से अलहदा बनाता है। वे साहित्य की किसी खास परंपरा से नहीं आते जबकि उस वक्त साहित्यकार-संपादकों का बोलबाला था।‘उस दौर में लगभग सभी प्रमुख संपादक हिंदी के बड़े साहित्यकार थे जिनमें धर्मवीर भारती (धर्मयुग), सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (नवभारत टाइम्स एवं दिनमान), रघुवीर सहाय (दिनमान), कमलेश्वर (सारिका), राजेंद्र अवस्थी (कादंबिनी) के नाम उल्लेखनीय हैं और राजेंद्र माथुर भी लेखक-संपादक थे।’1 अपने लेखन के कारण ही वह कालजयी संपादक कहे जाते हैं।
मूल्यानुगत, संपादक, पत्रकारिता, विचारधारा, राष्ट्र।
1. द्विवेदी, संजय, (2006), यादेंः सुरेंद्र प्रताप सिंह, रायपुर, वैभव प्रकाशन.पृ. 19।