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Publishing Year : 2024

June To August
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वर्तमान समय में समस्त विश्व में कानून व्यवस्था एवं राष्ट्रीय शांति व स्थायी सुरक्षा बनाये रखने के लिये सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद है। द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत से निरन्तर हो रही आतंकवादी घटनाओं के कारण यदि जन हानि व धन हानि के आंकड़ो का विश्लेषण किया जाये तो समस्त विश्व में सबसे बड़ा नुकसान आतंकवादी घटनाओं के कारण ही हो रहा है। स्टॉंक होम स्थित पीस रिसर्च सेन्टर के आंकड़ो के अनुसार प्रत्येक वर्ष समस्त विश्व में 20 खरब रूपये से भी ज्यादा की संपति आतंकवादी हमलों के चलते नष्ट हो जाती है। विश्व के अनेको राष्ट्रो ने अपने शत्रु देश के विरूद्ध अप्रत्यक्ष हमला करने को उदेद्श्य बनाकर आतंकवादी संगठनों को राजनैतिक शरण तथा अन्य विभिन्न प्रकार की सुविधाएं तथा आर्थिक सहायता देना प्रारम्भ कर दिया है। यहॉं एक और तथ्य यह भी है कि धार्मिक आधार पर भी आतंकवादी संगठनों को सहायता दी जा रही है। भारत को अपने दो प्रमुख पड़ोसी राष्ट्रों चीन व पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद निरोधक द्वारा उपयोग में लाये जा रहे आतंकवाद निरोधक कानूनों व अन्य उपायों का विश्लेषण करते हुये आतंकवाद विरोधी कार्यवाही करना अत्यंत आवश्यक है।

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भारतीय कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद निरोधक कानून, दक्षिण एशिया एन्टी टेरेरिज्म कोर्ट (ATC).

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  1. कांफ्लिक्ट एंड दि प्रोसपेक्ट्स ऑफ एन्ड्यूरिंग पीस, हबी बुल्लाह वजहत, माइ कश्मीरः वंगार्ड बुक्स, 2009 

2. एमी, चुवा (2023) वर्ल्ड ऑन फायरः हाउ एक्सपोरटिंगफ्री मार्केट डेमीक्रेसी बीड्स एथिनिक हेट्रेडएंड ग्लोबक इन्स्टेबिलिटी, एंकर बुक्स, न्यूयार्क।
3. देसाई, जतिन (2020) इंडिया एंड यूएस ऑन टेर्ररिज्म, कॉमनवेल्थ पब्लिकेशन, नई दिल्ली।

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‘स्त्री मानव - जाति की जननी और दो पीढ़ियों को जोड़ने वाली एक कड़ी है। स्त्रियों के धैर्य, सहनशक्ति, प्रेम, अनुराग, सहानुभूति और उदारता आदि कुछ आदर्शभूत और अनुकरणीय गुणों को ध्यान में रखते हुए ही इसे देवी का प्रतिरूप माना जाता है जैसेः लक्ष्मी, दुर्गा सरस्वती।‘ 1 भारत प्राचीन काल से ही एक धर्म प्रधान देश रहा है। भारतीय जीवन में सामाजिक एवं धार्मिक मूल्यों, मान्यताओं व मानदण्डों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। आज के वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है। इस वैज्ञानिक युग में इस कड़वे सच को नकारना दुश्कर होगा कि जीवन को सुलभ बनाने हेतु नयी तकनीकी और तरीकों को विकसित किया है पर कुछ चिकित्सक लोग स्वयं की धनलोलुपता के कारण इन तकनीकों का गलत प्रयोग करते है। अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीकों का विकास आनुवांशिक असंतुलन और असमान्यताओं को जाँचने और मापने के लिए हुआ था, लेकिन इसके द्वारा गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग का परीक्षण कर लेने के बाद अगर भ्रूण कन्या होती हैं तो गर्भपात करा दिया जाता है जो हमारे लिये एक सामाजिक चुनौती का विषय हैं।

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स्त्री, मानव जाति, कन्या, भ्रूण हत्या, समाज.

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  1. मदन, जी. आर. (1984) भारतीय सामाजिक समस्याएँ, विवेक प्रकाशन दिल्ली, पृ. 37।

2. महाजन संजीव, (2007) भारत में सामाजिक विघटन, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस दिल्ली, पृ. 305।
3. दीक्षित ध्रुव कुमार, (2010) कन्या भ्रूण हत्याः एक सामाजिक अभिशाप, अमन प्रकाशन सागर, म.प्र., पृ. 166।
4. श्रीवास्तव सुधारानी, (2009) महिला उत्पीड़न और वैधानिक उपचार, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, पृ. 133।

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व्यक्तिगत सत्याग्रह अगस्त प्रस्ताव का परिणाम था। अगस्त प्रस्ताव के पश्चात् ब्रिटिश सरकार द्वारा अध्यादेश जारी कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता तथा सभा करने एवं संगठन बनाने का अधिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसके प्रति उत्तर में महात्मा गाँधी जी ने व्यक्तिगत आधार पर सीमित सत्याग्रह प्रारंभ करने का निश्चय किया। उन्होंने इसके लिये यह तय किया कि प्रत्येक क्षेत्र में कुछ चयनित लोग व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ करेंगे। सत्याग्रही द्वितीय विश्वयुद्ध एवं युध्द में भाग लेने के खिलाफ प्रचार करते हुये गाँव - गाँव में जाकर आम जनता को ब्रिटिश सरकार के भारतीय विरोधी नीतियों के बारे में बतायेंगे और यह तब तक करते रहेंगे, जब तक गिरफ्तार नहीं होते। ब्रिटिश विरोधी संदेश को गाँवों में फैलाते हुये दिल्ली की ओर कूच करने का प्रयास करेंगे इसलिए इस आंदोलन का नाम ‘‘दिल्ली चलो आंदोलन‘‘ पड़ा। यह सत्याग्रह केवल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए ही नहीं था बल्कि इसमें अभिव्यक्ति के अधिकार को भी सुदृढ़ता पूर्वक प्रस्तुत किया गया।

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अभिव्यक्ति, व्यक्तिगत, हस्तशिल्प, क्रियान्वयन.

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  1. तेंदुलकर दीनानाथ गोपाल, (1951) महात्माः लाइफ ऑफ मोहनदास करम चंद गाँधी, खण्ड-6, विठाल भाई के. झावेरी - डी. जी. तेंदुलकर बम्बई, पृ. 1।

2. उपरोक्त, पृ. 2-3। 
3. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/11, फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट हॉफ, नम्बर 1940, पृ. 1-2।
4. उपरोक्त, 2-3।
5. विकली टेलीग्राम फ्रॉम द गवर्नमेंट ऑफ सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द वीक एंडिंग 11 दिसम्बर 1940, फॉरेन डिपार्टमेंट पोलिटिकल फाइल नं. 3/21 (1) ऑफ 1940, नं. 10। 
6. तेंदुलकर दीनानाथ गोपाल, पूर्वाेक्त, पृ. 1-2।
7. टेलीग्राम टू ऑल प्रविंशियल गवर्नमेंट्स नं. 4187 डेटेड 28 अक्टूम्बर 1540, होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 3/18 ऑफ 1940 नं. 1।
8. विकली टेलीग्राम फ्रॉम गवर्नमेंट ऑफ द सेंट्रल प्रविंसेस इंन्द बरार फॉर द वीक एंडिंग 20 नवम्बर 1540, होम डिपार्टमेंट पोलिटिकल फाइल नं. 3/21 ;प्द्ध ऑफ 1940, नं. 8।
9. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/12 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट हॉफ दिसम्बर 1940 अपेंडिक्स ;प्प्द्ध डी.।
10. ठाकुर एग्नेस, (1998) मध्यप्रांत एवं बरार में दलीय राजनीति तथा स्वाधीनता आंदोलन, शारदा पब्लिशिंग हाउस दिल्ली, पृ. 148-52।
11. तेंदुलकर दीनानाथ गोपाल, पूर्वाेक्त, पृ. 4।
12. उपरोक्त, पृ. 5-6।
13. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/1फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट हॉफ जनवरी 1941, अपेडिक्स प्प् (डी) पृ. 1-2।
14. उपरोक्त, पृ. 2।
15. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/1 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट ऑफ जनवरी 1941, पृ. 1-2।
16. गवर्नमेंट ऑफ द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार, पोलिटिकल एण्ड मिलिट्री डिपार्टमेंट, लेटर्स फ्रॉम सेकेटरी टू गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया, होम डिपार्टमेंट नं. 187 कॉन्फिडेंशियल डेटेड 4 जनवरी 1941 एण्ड नं. 200/ कॉन्फिडेंशियल डेटेड 29 जनवरी 1941।
17. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/2 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट ऑफ फरवरी 1941, पृ. 1-2।
18. पूर्वाेक्त, अपेंडिक्स प्प् (डी)।
19. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/5 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द सेकंड हॉफ ऑफ मई 1941, पृ. 1-2।
20. गवर्नमेंट ऑफ द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार, पोलिटिकल एण्ड मिलिट्री डिपार्टमेंट, लेटर्स फ्रॉम सेकेटरी टू गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया, होम डिपार्टमेंट नं. 55 व्ही डेटेड 8 जनवरी 1941।
21. उपरोक्त, लेटर नं. 98/कॉन्फिडेंशियल डेटेड 15 जनवरी 1941।
22. तेंदुलकर दीनानाथ गोपाल, पूर्वाेक्त, पृ. 5-6।
23. मेमोरंडम नं. 85-54 / कॉन्फिडेंशियल डेटेड 14 जनवरी 1941 फ्रॉम सेकेट्री, पोलिटिकल मिलिटरी डिपार्टमेंट ऑफ द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार।
24. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/2 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट हॉफ ऑफ फरवरी 1941, पृ. 1।
25. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/2 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट हॉफ ऑफ मार्च 1941, पृ. 1।
26. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/5 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द सेकंड हॉफ ऑफ जनवरी 1941, पृ. 1-2।
27. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/5 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द सेकंड हॉफ ऑफ मई 1941, अपेंडिक्स प्प् (डी)।
28. होम पोलिटिकल डिपार्टमेंट फाइल नं. 18/5 फोर्टनाइटली रिपोर्ट फॉर द सेंट्रल प्रविंसेस एण्ड बरार फॉर द फर्स्ट हॉफ ऑफ जुलाई 1941, पृ. 1।

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 प्रस्तुत शोध में सिवान जिला के सरकारी एवं गैर-सरकारी प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि का तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। शोध के न्यादर्श का चुनाव उद्देश्यपूर्ण विधि द्वारा किया गया। न्यादर्श के रूप में 100 विद्यार्थियों को चुना गया जिनमें से 50 सरकारी एवं 50 गैर-सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थी थे। शोध विधि के रूप में सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया। आंकड़ों के एकत्रीकरण के लिए शोधकर्ता द्वारा स्वयं शैक्षिक उपलब्धि परीक्षण प्रश्नवाली का निर्माण किया गया। आँकड़ो के विश्लेषण के लिए टी-परीक्षण का प्रयोग किया गया है। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि की क्या स्थिति है, इसके विभिन्न उद्देश्यों तदोपरान्त परिकल्पनाओं के आधार पर यह शोधकार्य को आगे बढ़ाया गया। शोध विश्लेषण के बाद यह पता लगा कि सिवान जिला के सरकारी एवं गैर सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि में अन्तर है। सिवान जिला के गैर-सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की तुलना में बेहतर है।

 

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विद्यालय, विद्यार्थी, शिक्षा, शैक्षिक उपलब्धि.

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  1. अग्रवाल, जे. सी. (2010), शिक्षा के दार्शनिक, सामाजिक एवं आर्थिक आधार, अग्रवाल पब्लिकेशन्स, आगरा।

2. अस्थाना, विपिन एवं अस्थाना श्वेता (2008), मनोविज्ञान और शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन, अग्रवाल पब्लिकेशन्स, आगरा।
3. आर्येन्दु, अखिलेश (2007), प्राथमिक शिक्षा और सरकारी कार्य योजना, कुरूक्षेत्र, वर्ष 30 अंक 11, पृष्ठ 10-12। 
4. कौल, लोकेश (2009), शैक्षिक अनुसंधान की कार्य प्रणाली, विकास पब्लिशिंग हाऊस प्राईवेट लिमिटेड, नोएडा, पृ. 76।
5. कुप्पूस्वामी, बी. (1976), बाल व्यवहार और विकास, विकास पब्लिशिंग हाउस प्रा. लि., नई दिल्ली। 
6. खन्ना (2011), शैक्षिक उपलब्धि, आर. लाल बुक डिपो, मेरठ।

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Small Finance Banks (SFBs) are a specialized type of banks created by the Reserve Bank of India under the guidance of the Government of India. They are designed to provide banking services specifically aimed at improving savings habits among semi-urban and rural communities. SFBs offer basic banking services like accepting deposits and providing loans to underserved groups such as small businesses, small farmers, micro-industries, and entities in the unorganized sector. Small finance banks in India have been bridging the gap in the country’s financial inclusion. Despite the goal to achieve developed nation status, there are still millions of Indians without access to basic banking services. To address this, the Reserve Bank of India has selected small finance banks to carry out the mission of financial inclusion.

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SFBs, Low Income Group, Financial Inclusion, RBI.

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  1. Dhanya P. and P B Bhanudevi (2019); A Empirical Study on the Threats and Challenges to Small Finance Banks with reference to Coimbatore City; EPRA International Journal of Research and Development; Volume 4,Issue 94, p. 86-90.

2. Mohanty J J (2018); Leveraging Small Financial Banks (SFBs) in achieving Financial Inclusion in India; International Journal of Business and Management Invention (IJBMI), ISSN (Print) : 2319 – 801 X www.ijbmi.org Volume 7 Issue 2 Ver. III, p. 08-18.
3. Patel C and Fulwari A (2021), Small Finance Banks in India: A Preliminary Study of Their Progress, Towards Excellence, vol 13 Issue 2 Ver. III, p. 08-18.
4. Saraf, R, Chavan P. (2021), “Small Finance Banks: Balancing Financial Inclusion and Viability”, RBI Bulletin, January 2021, p. 49-60.
5. T. Ravi kumar (2019) “Small Finance Banks & Financial Inclusion in India” Research Review International Journal of Multidisciplinary, March- 2019, Volume 04, Issue 03, p. 1586-1588.
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19. https://www.utkarsh.bank/, Accessed on 11/05/2024.

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साहित्य के विस्तृत आकाश में प्रेम का दिव्य स्वरूप सूरदास के काव्य में अद्वितीय रूप से प्रकट होता है। ‘सूर साहित्य’ में ‘एकांगी प्रेम’ का विषय प्रेम की उस उच्च अवस्था को दर्शाता है, जहाँ प्रेमी का समर्पण बिना किसी प्रत्याशा के केवल प्रिय को समर्पित होता है। इस शोध पत्र में सूरदास के काव्य में इस निःस्वार्थ और दुर्लभ प्रेम का विश्लेषण किया गया है, जिसमें राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम मुख्य रूप से अध्ययन का केंद्र है। सूरदास अपने काव्य में गहन बिंबों और हृदयस्पर्शी कविताओं के माध्यम से एक ऐसे भावनात्मक संसार का चित्रण करते हैं, जहाँ प्रेमी बिना किसी प्रतिफल की अपेक्षा के अपने प्रिय के प्रति संपूर्ण समर्पण करता है। यह प्रेमी का समर्पण अडिग रहता है, चाहे उसे उपेक्षा या पीड़ा ही क्यों न सहनी पड़े। सूरदास का यह प्रेम एक उच्च आध्यात्मिक आदर्श का प्रतीक है, जहाँ प्रेम अपने आप में पूर्ण और निरपेक्ष हो जाता है। इस शोध पत्र में इन विषयों का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है, जो सूरदास के काव्य की दार्शनिक और आध्यात्मिक जड़ों को उजागर करता है।

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सूर साहित्य, एकांगी प्रेम, सूरदास, राधा-कृष्ण प्रेम, भक्ति साहित्य, आध्यात्मिकता.

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  1. नारद भाक्तिसूत्र-51।

2. तिवारी, पारसनाथ (1961) ‘कबीर ग्रंथावली’, बंसल प्रेस, इलाहाबाद, पृ. 473। 
3. श्रीमद्भगवद्गीता- 7.14।
4. रामचरितमानस, अयोध्याकांड-127।
5. नारद भक्तिसूत्र-41।
6. श्रीमद्भगवद्गीता - 2.71।
7. राधाकृष्णदास, 1907 ‘सूरसागर - 2.19’, खेमराज श्रीकृष्णदास, बम्बई, पृ. 37।
8. मिश्र, विद्यानाथ (1985) ‘रहीम ग्रंथावली’, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 82। 
9. द्विवेदी, रामचंद्र (1929) ‘तुलसी सतसई’, दो. 44, इलाहबाद लॉ जर्नल प्रेस, इलाहबाद, पृ. 19। 
10. चोपड़ा, सुदर्शन (1994) ‘हिंदी के लोकप्रिय कवि सूरदास’, हिंदी पॉकेट बुक्स प्रा. लिमिटिड, दिल्ली, पृ. 75।
11. राधाकृष्णदास (1907) ‘सूरसागर - 10.40’, खेमराज श्रीकृष्णदास, बम्बई, पृ. 261।
12. राधाकृष्णदास (1907) ‘सूरसागर’, खेमराज श्रीकृष्णदास, बम्बई, पृ. 258।
13. सुन्दरदास, गोपालदास (1982) ‘भ्रमरगीत सार’, सरला प्रेस, बनारस, पृ. 22।
14. सुन्दरदास, गोपालदास (1982) ‘भ्रमरगीत सार’, सरला प्रेस, बनारस, पृ. 26।
15. सुन्दरदास, गोपालदास (1982) ‘भ्रमरगीत सार’, सरला प्रेस, बनारस, पृ. 28।
16. सुन्दरदास, गोपालदास (1982) ‘भ्रमरगीत सार’, सरला प्रेस, बनारस, पृ. 12।
17. सुन्दरदास, गोपालदास (1982) ‘भ्रमरगीत सार’, सरला प्रेस, बनारस, पृ. 28।

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बेकन का प्रसिद्ध कथन है जो समुद्र पर अधिकार करते हैं वह अपनी इच्छानुकूल युद्ध करने में स्वतंत्र होता है। इसे साथ ही सामुद्रिक शक्ति के विशेषज्ञ ए.टी. महान का सामरिक सन्देश, ’’हिन्द महासागर सात समुद्रों की कुंजी है, जो भी देश हिन्द महासागर को नियंत्रित करता है वही एशिया पर वर्चस्व स्थापित करेगा तथा 12 वीं शताब्दी में युद्ध का फैसला स्थल पर न होकर सागर में होगा।’’ यह दोनों भविष्यवाणियाँ आज भी अपनी प्रासंगिकता को सजीव बनाये हुये हैं।

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हिंद महासागर, भारत, सुरक्षा.

Read Reference

  1. Kavic, L.J. (1981) India’s Quest for Security, EBD Publishing & distribution Company Dehradun (UK), p. 01.

2. Kohili, S.N. (1984) Indian Ocean, Mc Graw – Hill Education Publishing Noida (UP), p. 54.
3. सिंह, अशोक कुमार (2018) राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धान्त एवं व्यवहार, प्रकाश बुक डिपो, बरैली (उ.प्र.), पृ. 123।
4. सिंह अशोक कुमार, वही पृ. 124।
5. सिंह अशोक कुमार, वही पृ. 129।
6. सिंह के.आर. (2005) पोलिटिक्स ऑफ इण्डियन ओशियन, देहली थॉमसन प्रेस, देहली, पृ. 9-10। 
7. सिंह अशोक कुमार, वही पृ. 129।
8. I.D.S.A. Journal, Manohar Parrikar Institute for defence Studies and Analyses New Delhi, Jan-March 1978 p. 261.
9. Ibid, p. 56. 
10. Times of ndia, April 15, 1979 
11. सिंह अशोक कुमार, वही, पृ. 132।
12. श्रीवास्तव जे.एम. (2017) राष्ट्रीय सुरक्षा, ए.एस.आर. पब्लिकेशन्स, लखनऊ (उ.प्र.), पृ. 559। 
13. प्ण्क्ण्ैण्।ण् श्रवनतदंसए डंदवींत च्ंततपांत प्देजपजनजम वित कममिदबम ैजनकपमे ंदक ।दंसलेमे छमू क्मसीप श्रनसल दृ ैमचण् 1977ण्
14. श्रीवास्तव जे.एम., वही, पृ. 561।
15. I.D.S.A. Journal, Journal, Manohar Parrikar Institute for defence Studies and Analyses New Delhi January  – March 1978.

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भारत गाँवों का देश है इसलिए भारत की वास्तविक उन्नति का रास्ता गाँवों से होकर गुजरती है। भारत के गाँवों में अभी भी बुनियादी सुविधाएँ एवं आधारभूत संरचनाओं की कमी महसूस की जा सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य के उपरांत बेरोजगारी जैसी समस्या विद्यमान है। इसके कारण श्रमिक पलायन कर रहे है या गाँवों में ही बेरोजगार रहना पड़ता है। इन समस्याओं को ध्यान मे रखते हुए स्वंतत्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार द्वारा अनेक योजनाओं एवं संस्थानों की स्थापना की हैं, इनमें से सुक्ष्म वित्त संस्थाएँ जैसे-नाबार्ड, सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक इत्यादि और मनरेगा है। मनरेगा का उद्देश्य गा्रमीण अकुशल श्रमिकों को रोजगार देना, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना, टिकाऊ परिसम्पलियों का निर्माण करना, प्रतिव्यक्ति आय एवं बाजार माँग मे वृद्धि करना, पलायन को रोकना, वित्तीय अर्न्तवेशन को बढ़ाना, आजीविका सुरक्षा में वृद्धि करना इत्यादि। वर्त्तमान मंे रोजगार उपलब्धता के साथ-साथ ग्रामीण विकास पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है। सूक्ष्म वित्त एक ऐसी ऋण प्रणाली है जिसके तहत् ग्रामीण समाज के वंचित कमजोर वर्ग, अल्प सेवा प्राप्त लोग, बेरोजगार श्रमिक, छोटे कारोबारी इकाईयाँ, सीमांत व लघुकिसान सूक्ष्म-कुटीर-लघु उद्योग, सामान्य कृषक, खेतीहर मजदूर, स्वरोजगारी व्यक्ति और स्वयं सहायता समूह (ैभ्ळ) इत्यादि वर्गों को सूक्ष्म वित्त की सेवाएँ प्रदान की जाती है। संगठित सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों के द्वारा इसके लिए नाबार्ड (1982), सरकारी बैंक (1978), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (1975) एवं अन्य सूक्ष्मवित्त संस्थानों की स्थापना की गई। इसका ग्रामीण विकास एवं लोगों के स्वरोजगार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में मनरेगा एवं सूक्ष्म वित्त संस्थानों का व्यापक प्रभाव पड़ा है। इसके आने से ग्रामीणों की निर्भरता साहुकारों, महाजनों, रिश्तेदारों पर कम हुआ है। मनरेगा से लोगों को रोजगार मिला है, जिससे जीवनयापन में सुधार हुआ है। सूक्ष्म वित्त संस्थानों से ऋण प्राप्ति पर ब्याज दर असंगठित क्षेत्रों की तुलना में कम देना पड़ता है। यहाँ से लोग सामुहिक एवं व्यक्तिगत तौर पर ऋण ले सकता है। इसका भी ग्रामीण विकास एवं लोगों के जीवनयापन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सूक्ष्म वित्त संस्थानों द्वारा ऋण और मनरेगा का सामुहिक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में योगदान देना, श्रमिकों के पलायन को रोकना, बाजार माँग में वृद्धि करना, लोगों को स्वावलंम्बी बनाना, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना, इत्यादि मुख्य उद्देश्य है।

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मनरेगा योजना, महिला सशक्तिकरण, स्वयं सहायता समूह, ग्रामीण विकास.

Read Reference

  1. मनरेगा रिपोर्ट (2005) प्रकाशन ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, 2006।

2. मिश्र एवं पूरी (2019) भारतीय अर्थव्यवस्था, प्रकाशन-हिमालया हाउस, पृ. 145-149।
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4. ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली।
5. ग्रामीण विकास मंत्रालय बिहार सरकार।
6. Bihar economy survey, 2019-20.
7. Indian Economy Survey 2021-21.
8. https://www.nreganarep.nic.in, Accessed on 04/06/2024.

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किसी प्रदेश के इतिहास एवं संस्कृति को प्रभावित करने वाले आधारभूत कारणों में संबंधित भू-भौतिकी पर्यावरण को नियायक तत्व के रूप में स्वीकार किया जाता है। भारतवर्ष के अंतर्गत अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण आदिम संस्कृति की विशेषताओं को संजोये रखने में समर्थ अनेक छोटे-छोटे प्रदेश विद्यमान है। इस दृष्टि से छत्तीसगढ़ प्रदेश का उल्लेखनीय स्थान माना जा सकता है। छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से ही भू-विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, नृतत्व शास्त्र, समाज शास्त्र एवं इतिहास के अध्येताओं के लिये आकर्षण का केन्द्र रहा है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् सन् 1948 में छत्तीसगढ़ की 14 रियासतों का मध्यभारत के अंतर्गत विलीनीकरण हुआ और सन् 1956 से मध्यप्रदेश का घटक बना। लोकसभा व राज्यसभा द्वारा मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 पारित होने के बाद तथा राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही भारत की संघीय सीमाओं की इबारत फिर से लिखी गयी। मध्यप्रदेश विधानसभा में 1 मई 1998 को पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के गठन का संकल्प पारित हुआ। भारत के तत्कालीन गृह मंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने ‘‘छत्तीसगढ़ संशोधन विधेक‘‘ 25 जुलाई 2000 को लोकसभा में पेश किया। लोकसभा ने 31 जुलाई 2000 को तथा राज्यसभा ने 9 अगस्त 2000 को इस विधेयक को पारित कर दिया। तत्पश्चात् 28 अगस्त 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर.नारायण ने स्वीकृति प्रदान की। मध्यप्रदेश राज्य की 45वीं जन्मतिथि पर 1 नवम्बर 2000 को उसे विभाजित करके देश के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का प्रादुर्भाव हुआ। रायपुर इस राज्य की राजधानी बनाई गई।

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रियासत, पुनर्गठन विधेयक, भू वैज्ञानिक संरचना, कोसल, चेदिसगढ़, बंदोबस्त.

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प्रस्तुत शोध “उच्च माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों में शैक्षिक उपलब्धि एवं संवेगात्मक बुद्धि का अध्ययन” से है। प्रस्तुत शोध कार्य में उच्च माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों को प्रतिदर्श के रूप में लिया गया है। वर्तमान समय में सामान्यतः देखा जाता है की छात्रों की उच्च एवं निम्न संवेगात्मक बुद्धि उनकी शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करती है। प्रस्तुत शोध में यह जानने का प्रयास किया जायेगा की संवेगात्मक बुद्धि विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि को कितना प्रभावित करती है? किस स्तर पर प्रभावित करती है? इसलिए शोधार्थी ने उक्त विषय पर अध्ययन का चुनाव किया। प्रस्तुत शोध में सिवान जिला के 2 सरकारी एवं 2 गैर-सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालयों के 150 छात्र एवं 150 छात्राओं का चयन प्रतिदर्श हेतु किया गया है। प्रस्तुत शोध में छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि का पता लगाने के लिए स्वनिर्मित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया है। अध्ययन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर शोधार्थी ने संवेगात्मक बुद्धि का अध्ययन करने के लिए मंगल इमोशनल इंटेलिजेंस इन्वेंटरी (2015) डॉ. एस. के. मंगल एवं शुभ्रा मंगल उपकरण का उपयोग किया गया है। 

1. गुप्ता, एस.पी. (2013), आधुनिक मापन एवं मूल्यांकन, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद। 2. त्यागी, सुरेश (2019), शिक्षण अध्गिम व विकास का मनोविज्ञान, इन्टरनेशनल पब्लिकेशन, मेरठ। 3. तारा, वी.एस. (2014), शिक्षा में अनुसंधान के आवश्यक तत्व, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर। 4. सुलैमान, मुहम्मद (2014), उच्चतर शिक्षा मनोविज्ञान, मोतीलाल बनारसीदास, पटना। 5. पाण्डेय, लाख नारायण (2015), शैक्षिक अनुसंधान, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी। 6. पाठक, पी.डी. (2012), शिक्षा मनोविज्ञान, विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा। 7. सिन्हा, इनाम एवं अनवर (2016), छात्रों के शैक्षणिक उपलब्धि पर मनोविज्ञान व सामाजिक तत्वों का प्रभाव शिक्षा और विकास, आई.जे.ए.आर., वॉल्यूम 2(4) पृ. 180-182।
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विद्यालय, विद्यार्थी, शिक्षा, संवेगात्मक बुद्धि.

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This study focuses on evaluating the overall performance of Mahindra & Mahindra Ltd. by analyzing its income, expenditure, assets, and liabilities through the examination of profit and loss statements and balance sheets. The analysis aims to provide insights into the company’s financial health, assisting in decision-making and enhancing understanding of its financial position. The evaluation is conducted using ratio analysis, specifically focusing on liquidity, profitability, and activity ratios.

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Mahindra & Mahindra Limited, Current Ratio, Quick Ratio, Activity Ratios

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  1. Dhanabhakyam, M., & Kavitha, M. (2012). Asset utilization efficiency in the automobile sector: A ratio and correlation analysis. Journal of Finance and Accounting, 14(2), 103-112.

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Teacher educators play a pivotal role in shaping the future of education, yet they grapple with the challenge of achieving work-life balance amidst their multifaceted responsibilities. This study explores the intricate interplay between work-life balance, work engagement, and organizational role stress among teacher educators. Understanding these dynamics is crucial for fostering supportive work environments and enhancing educator well-being. Factors influencing work-life balance include workload, flexibility, supportive environments, personal well-being, autonomy, job satisfaction, work engagement, organizational policies, and role stress. By elucidating these factors, this research aims to inform evidence-based interventions and practices that promote holistic development and fulfillment within the educational workforce, ultimately benefiting both educators and students alike.

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Teacher educators, Work-life balance, Work engagement, Organizational role stress, educational workforce.

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  1. Adni, M. A.; Abdullah, Z.; & Mustapha, R. (2024). Expert Validation of Engagement Balance Elements in The Management of Work Life Balance Among Secondary School Teachers in Malaysia. International Journal of Islamic Theology & Civilization (E-ISSN-3009-1551), 2(1), 10-21.

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The concept of a Self-Reliant India, or Atmanirbhar Bharat, has gained significant traction in recent years as the nation strives to reduce dependency on foreign resources and foster economic independence. This article explores the multifaceted approach India is adopting to achieve self-reliance, focusing on key areas such as manufacturing, innovation, infrastructure development, and sustainable growth. It examines Government initiatives like the Make in India campaign, the promotion of local industries, and the enhancement of digital infrastructure. The article also discusses the challenges and opportunities associated with this ambitious vision, highlighting the role of public-private partnerships, skill development, and technological advancements. Ultimately, the pursuit of a self-reliant India aims not only to strengthen the nation’s economy but also to position it as a global leader in innovation and sustainability.

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India, Journey, Aatm Nirbhar Bharat, Challenge, Opportunity.

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  1. Bhagwati, Jagdish & Sen Amartya (2012) Indian economic policy, Amitendu Palit, Singapore, July 2013.

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This paper examines the impact of poverty in Chhattisgarh, analysing its effects on education, health, employment, and social stability. Utilizing Government-published data, the study highlights the current state of poverty, evaluates the effectiveness of interventions, and provides recommendations for improving poverty alleviation efforts.

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Impact, Poverty, Effective, Improve.

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महिलाओं का सशक्तीकरण आदर्श समाज प्राप्त करने की कुंजी है। सशक्तीकरण को अक्सर आर्थिक परिप्रेक्ष्य, संसाधनों पर नियंत्रण, महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के माध्यम से देखा और समझा जाता है। निर्णय लेने में भागीदारी भौतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त करके महिलाओं को सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्षम बनाया जा सकता है, जिससे घरेलू निर्णय लेने में अधिक भागीदारी हो सकती है। इतिहास एवं प्राचीन      धर्मग्रंथों के अनुसार भारतीय समाज ने कभी नारी के महत्व का कम आकलन नहीं किया। देवी को शक्ति का प्रतीक माना गया, इसी तरह शिव को अर्धनारीश्वर रूप दिया गया लेकिन इन सबके पश्चात् भी प्राचीन काल से ही लेकर कुछ वर्ष पूर्व तक महिलाओं को समानता का अधिकार पूर्णरूपेण नहीं मिला, समाज पुरुष प्रधान था, श्री राम द्वारा अपने पत्नी सीता का परित्याग, गांधारी का अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लेना, पुत्रवती भवः का आशीर्वाद, आदि कई उदहारण हैं जिनमें नारी को दोयम दर्जे का माना गया है। प्रस्तावित अध्ययन इस धारणा पर आधारित है कि राजनैतिक सहभागिता महिला सशक्तिकरण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आधार है, अन्य शब्दों में महिला सशक्तिकरण का प्रारंभ, राजनैतिक शक्तिमत्ता की डिग्री पर    आधारित होता हैं। प्रस्तावित अध्ययन में आर्थिक या अन्य किसी पक्ष की उन्नति को महिला सशक्तिकरण का आधार मानने से इंकार नही किया गया हैं अपितु इन आधारों की तुलना में राजनैतिक तत्व को अधिक प्रभावशील मानकर यह अध्ययन संचालित किया जाना प्रस्तावित हैं।

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सशक्तीकरण, भागीदारी, प्राचीन धर्मग्रंथों, राजनैतिक सहभागिता, भौतिक संसाधन.

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  1. Malhotra, M, (2004)  Empowerment of women: women in rural development. ed., Isha books, New Delhi. 

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शिक्षा एक मौलिक अधिकार है और सामाजिक गतिशीलता, आर्थिक विकास और मानव विकास का एक महत्वपूर्ण चालक है। फिर भी, कई व्यक्तियों और समुदायों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो उनकी क्षमता में बाधा डालती है और असमानता को बढ़ाती है। हाल के वर्षों में, मुफ्त शिक्षा नीतियाँ इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक आशाजनक रणनीति के रूप में उभरी है। यह अध्ययन नामांकन दरों और छात्र परिणामों पर मुफ्त शिक्षा नीतियों के प्रभाव की जाँच करता है। स्कूलों और छात्रों के अनुभवों का विश्लेषण करके, इस शोध का उद्देश्य शैक्षिक समानता और उत्कृष्टता को बढ़ावा देने में मुफ्त शिक्षा नीतियों की प्रभावशीलता पर चल रही बहस में योगदान देना है। इस अध्ययन के सारांश का नीति निर्माताओं, शिक्षकों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं जो अधिक समावेशी और प्रभावी शिक्षा प्रणाली बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। मुफ्त शिक्षा नीतियों की सफलताओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालकर, यह शोध साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने की जानकारी देने और दुनिया भर में शिक्षा प्रणालियों के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों के लिए अभिनव समाधानों को प्रेरित करने की उम्मीद करता है।

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निःशुल्क शिक्षा नीति, नामांकन दरें, छात्र परिणाम, शैक्षिक समानता.

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारे राष्ट्र को एक न्यायसंगत और जीवंत ज्ञान समाज में लगातार बदलने में अमूल्य योगदान प्रदान करती है।यह नीति इस बात से सहमत है कि बड़ी भारी संख्या में ऐसे बच्चे ऐसे स्कूलों में जा रहे हैं जहाँ ऐसी भाषा में शिक्षा दी जाती है जो उन्हें समझ में नहीं आती। इसके चलते वे सीखना शुरू करने से पहले ही पिछड़ने लगते हैं और अंततः शिक्षा की प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं।राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा ज्ञान-अर्जन या ज्ञान निर्माण और तभी संज्ञानात्मक और सामाजिक गतिविधियों में सीधे-सीधे मध्यस्तता रहती है।इसमें बाल-विकास, बाल मनोविज्ञान और भाषा विज्ञान में हुए अध्ययन यह बताते हैं कि बच्चे अपनी मातृ भाषा में सबसे बेहतर सीखते हैं। नई शिक्षा नीति-2020 में प्राथमिक स्तर पर शिक्षण में मातृभाषा को प्राथमिकता दिया गया है। इसमें बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने हेतु इस मिशन के क्रियान्वयन की योजना तैयारी की गई है।

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति, शिक्षा, मातृ भाषा, प्राथमिक शिक्षा.

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Swami Vivekananda, a visionary ambassador of Indian philosophy, tapped into the depths of his spiritual and philosophical heritage to introduce the transformative wisdom of Vedanta and yoga to the Western world, forever imprinting modern thought with the indelible mark of his profound insights.His spiritual teachings were rooted in the empowering conviction that within every individual lies a dormant divine potential, waiting to be awakened and realized, thereby transforming human existence into a manifestation of its highest, most radiant self.Spiritual basis of Vivekananda’s core teachings which are going to be delineated here are Vedanta Philosophy, Universal religion, Practical Vedanta, Education and Personal development, Self-realisation and service. Vivekananda’s philosophy was influenced by his guru Sri Ramakrishna, and he reconceived Advaita Vedanta as a nonsectarian, life-affirming philosophy that provides an ontological basis for religious cosmopolitanism and a spiritual ethics of social service. He adopted innovative cosmopolitan approaches to long-standing philosophical problems, and his views on the limits of reason, the dynamics of religious faith, and the hard problem of consciousness are still relevant today. His Vedantic cosmopolitanism presents a profound and timeless vision for global harmony, social justice, and individual empowerment. By advocating for the inherent unity of all beings and the universal essence of all religions, his philosophy transcends cultural and religious boundaries, offering a pathway to a more compassionate and equitable world. In our contemporary phase, marked by rapid globalization and multicultural interactions, revisiting and applying Vivekananda’s ideas can help foster a spirit of unity, tolerance, and mutual respect, essential for addressing the complex challenges of our time. In fact, revisiting the spiritual basis of his ideas and their relevance today involves examining his core teachings and how they can be applied to modern issues.

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Swami Vivekananda, Rediscovering, Foundation, Philosophy.

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नारी सशक्तिकरण आज के समय का सबसे प्रसिद्ध विषयों में से एक हैं। आज दुनिया के हर कोने में लोग नारी सशक्तिकरण की बाते कर रहे हैं। विकसित एवं विकासशील देशों में महिलाओं के अधिकारों के लिए हर वर्ग से आवाज उठाई जा रहीं हैं। ऐसे में हमें यह अच्छे से समझना होगा की यह महिला सशक्तिकरण क्या हैं। महिला सशक्तिकरण अथवा नारी सशक्तिकरण एक ऐसा विचार है जिसके अंतर्गत समाज में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा, अच्छा जीवन शैली, शुद्ध, पर्याप्त व पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार, उच्च शिक्षा, वोट का अधिकार, सरकारी नौकरियों में भागीदारी, स्वतंत्रता से बोलने का अधिकार, देश की सुरक्षा एवं आर्थिक व्यवस्था में योगदान, मनपसंद पहनावा, पुरुषों के बराबर दर्जा आदि स्तरों पर नारी को सशक्त एवं उत्तम बना देना। ये सशक्तिकरण के मुख्य बिंदु हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो नारी सशक्तिकरण का अर्थ है नारी को आर्थिक, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, खेल कूद, मानसिक, शारीरिक, ज्ञान, सामाजिक, तकनीकी, यान्त्रिकी, राजनीति, अंतरराष्ट्रीय आदि सभी प्रकार के क्रिया कलापो में स्वतंत्रता पूर्वक योगदान होना व देश समाज में महिला पुरुष बराबरी होना। इस अध्ययन में इस बात को जानने का प्रयास किया गया है कि महिला सशक्तिकरण के प्रति शिक्षित युवा और अशिक्षित युवा दोनों ही क्या भावना रखते हैं।

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सशक्तिकरण, शिक्षित, अशिक्षित, अभिवृत्त, महिला.

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  1. आहुजा राम, (2005) भारतीय समाज में शिक्षा का परवर्ती दृष्टिकोण मे शिक्षा का परवर्ती दृष्टिकोणें, रावत पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, पृ. 225।

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‘‘सुशीला टाकभौरे के कथा-साहित्य का विश्लेषणात्मक अध्ययन‘‘ के अंतर्गत दलितों के इतिहास को, इनकी पृष्ठभूमि एवं भारतीय वर्ण-व्यवस्था तथा समाज में व्याप्त जाति-व्यवस्था के दंश को झेलते दलितों एवं दलित स्त्रियों की समस्याओं व संघर्षों को, दलितों के उत्थान हेतु समाज सुधारकों द्वारा चलाए गए आंदोलनों को विश्लेषित किया गया है साथ ही स्वतंत्रता पश्चात शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं सामाजिक बदलाव से आई दलित चेतना एवं हिंदी साहित्य में दलित लेखकों एवं लेखिकाओं के कथा लेखन से उपजे दलित साहित्य का विवेचन किया गया है। दलित लेखिकाओं में विशेषतः डॉः सुशीला टाकभौरे जी ने अपनी लेखनी एवं आंदोलनों के माध्यम से नारी चेतना, नारी-मुक्ति-संघर्ष, नारी अस्मिता एवं अस्तित्व को बनाने हेतु ब्राह्मणवाद का, वर्ण-व्यवस्था का, सामाजिक दुर्व्यवस्था का, जात-पात का विरोध करते हुए महात्मा बुद्ध, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले और डॉ. भीमराव अंबेडकर के दर्शन को अपनाकर लेखन किया और दलित चेतना को जाग्रत एवं दलितों के जीवन को सुदृढ़ बनाने हेतु जो प्रयास किए हैं, उसका यथार्थ के धरातल पर विश्लेषण कर उजागर किया है। 

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वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, पितृसत्ता, स्त्री, दलित, आंदोलन.

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  1. कुमार, गिरीश; रोहित, एन. (2004) दलित चेतना केंद्रित हिंदी-गुजराती उपन्यास, आर्टस कॉमर्स एण्ड साइन्स कॉलेज, खंभात-388620 गुजरात, पृ. 05।

2. चौधरी, कार्तिक (2020) दलित साहित्य की दशा-दिशा (समकालीन परिप्रेक्ष्य में), अधिकरण प्रकाशन, खजूरी खास, दिल्ली-110094, पृ. 70-71।
3. शानू, मोहम्मद (2017) आलोचना की नई दृष्टि, वाङ्मय बुक्स, दोदपुर रोड अलीगढ़, पृ. 98।
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5. वही।
6. टाकभौरे, सुशीला (2022) कथारंगः संपूर्ण कहानियां, प्रलेक प्रकाशन, प्राइवेट लिमिटेड ग्लोबल सिटी, ठाणे, महाराष्ट्र, जनवरी 2022, पृ. 07।
7. टाकभौरे, सुशीला (2013) नीला आकाश, विश्व भारती प्रकाशन, सीताबर्डी, नागपुर-12, पृ. 68।
8. टाकभौरे, सुशीला (2022) तुम्हें बदलना ही होगा, सामयिक प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली, पृ. 148।
9. वही, पृ. 150।
10. टाकभौरे, सुशीला (2018) वह लड़की, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 174।
11. वही, पृ. 174।
12. वही, पृ. 69।
13. टाकभौरे, सुशीला (2022) कथारंगः संपूर्ण कहानियां, प्रलेक प्रकाशन, प्राइवेट लिमिटेड ग्लोबल सिटी, ठाणे, महाराष्ट्र, संस्करण जनवरी 2022, पृ. 19।
14. वही, पृ. 34।
15. वही, पृ. 47-48।
16. वही, पृ. 57
17. वही, पृ. 77
18. वही, पृ. 85
19. वही, पृ. 86
20. टाकभौरे, सुशीला (2022) कथारंगः संपूर्ण कहानियां, प्रलेक प्रकाशन, प्राइवेट लिमिटेड ग्लोबल सिटी, ठाणे, महाराष्ट्र, जनवरी 2022, पृ. 8-9।
21. वही, पृ. 273।

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भारत में फिनटेक सेक्टर बढ़ी हुई डिजिटल क्षमताओं के साथ नई-नई फर्मे अपनी कुशलता का परिचय देते हुए बेहतर समाधान प्रस्तुत कर उपभोक्ता सुविधा को प्राथमिकता के स्तर में प्रथम स्थान देते हुए डेटा साइंस व क्षमताओं का बेहतरीन संयोजन कर रही हैं। कंपनियां उधारदारी, बीमा, सम्पत्ति, प्रबंधन और धन प्रबंधन जैसे क्षेत्रो में उभरती प्रौद्योगिकी और वित्त पोषण के समय में राजकोषीय लचीलापन बनाए रखने के लिए अपने पर्यवेक्षण क्षमता का विकास करते हुए बाजार क्षेत्र के साथ अनेक क्षेत्रों में अपनी तकनीकी क्षमता को उजागर कर महत्वपूर्ण दिशा की ओर अग्रसर हो रही है।

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फिनटेक, डिजिटलीकरण, बैंकिंग, वित्त.

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1. भारत की फिनटेक क्षमता का एहसास ‘‘उद्यम और प्रौद्योगिकी का विकास होना चाहिए‘‘ 07/12/2020 द इकोनामिक टाइम्स, पृ. 18-19।
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आजकल स्मार्टफोन लोगों की दिनचर्या का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका हैं। विपणन व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ग्राहक को केंद्र मानकर नए स्मार्टफोन बाजार में उपलब्ध करवाए जाते हैं। इसे खरीदते समय ग्राहक कंपनी के कैमरा,बैटरी की क्षमता, रंग, हार्डवेयर एवं सेवा केंद्र पर विशेष ध्यान देते हैं। ये कुछ ऐसे कारक हैं जो कि ग्राहकों को स्मार्टफोन की खरीदी के संबंध में उपभोक्ता संतुष्टि को प्रभावित करते हैैंं। इस शोध पत्र में आंकड़ों का संग्रहण करने के लिए गूगल फॉर्म के माध्यम से प्रश्नावली तैयार की गई। इस गूगल फॉर्म को 91 उत्तरदाताओं से यादृच्छिक रूप से भरवाया गया। इस प्रश्नावली में कुल 7 प्रश्न पूछे गए। परिकल्पना का निर्माण स्मार्टफोन के सेवाओं की प्राथमिकताओं, टिकाऊपन एवं जनसांख्यिकीय प्रोफाइल के आधार पर किया गया। कारकों का विश्लेषण एवं निर्वचन के लिए आईबीएम पर आधारित एसपीएसएस 29 टूल्स में स्वतंत्र नमूना परीक्षण एवं वन वे एनोवा तकनीक का उपयोग किया गया। इस अध्ययन में यह पाया गया कि लिंग एवं स्मार्टफोन के सेवाओं की प्राथमिकताओं के मध्य तथा विभिन्न आयु समूहों के मध्य स्मार्टफोन के टिकाऊपन में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं हैं।

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स्मार्टफोन, ग्राहक, उपभोक्ता संतुष्टि, खरीदी, प्रभाव.

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  1. कोठारी, सी. आर.; गर्ग, गौरव एवं अग्रवाल, एम. के. (2022), शोध पद्धति, न्यू एज इंटरनेशनल पब्लिशर्स, आईएसबीएन- 978-93-93159-32-8।

2. शर्मा, वीरेंद्र प्रकाश (2022), रिसर्च मेथोडोलॉजी, पंचशील प्रकाशन, जयपुर, संस्करण ग्यारहवां।
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आधुनिक युग में, सुचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) ने आधुनिक समाज में व्यापक प्रभाव डाला है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) और कंप्यूटर अनुप्रयोगों ने मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं में क्रांति लायी है, जो संचार से लेकर डेटाविश्लेषण और निर्णय लेने तक फैले हुए हैं। आईसीटी और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के मौलिक अवधारणाओं, विकास, अनुप्रयोगों और प्रभाव को शामिल करते हुए एक विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रदान करता है। यह पता लगाता है कि इन तकनीकों ने उद्योगों, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, शासन और समाज को बड़े पैमाने पर कैसे बदल दिया है। अध्ययन की ओर उभरते रुझानों और भविष्य की संभावनाओं के साथ-साथ आईसीटी और कंप्यूटर के अनुप्रयोगों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों और अवसरों पर प्रकाश डालता है। संदर्भों की एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग करते हुए, इस लेख का उद्देश्य आईसीटी और कंप्यूटर अनुप्रयोगों के अंतःविषय क्षेत्र का व्यापक अवलोकन प्रदान करना है।

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सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर अनुप्रयोग, डिजिटल क्रांति, प्रभाव, चुनौतियां, अवसर.

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  1. शर्मा, आर. और वर्मा, पी. (2022) भारत में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का विकास, इंडियन जर्नल ऑफ कम्प्यूटर साइंस, 15(3), 45-62.

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The daily time spent on commuting to work imposes severe constraints on the allocation of time for other activities. Lately, scholars have shown a growing interest in understanding the influence of commuting time on overall health. Based on primary survey conducted in Visakhapatnam city, this paper explores the interdependence between commuting time spent by workers to reach workplace and their satisfaction with life and job. The results show that life satisfaction has declined gradually along with increasing time spent on commuting, unlike job satisfaction, which is initially increased with increasing commuting time, but declined after 30 minutes of duration. It is also found that the mode of transportation to workplace, and type of house ownership has significant influence on the level of job satisfaction, and life satisfaction.

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Commuting, Life Satisfaction, Transportation, City.

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  1. Clark, B.; Chatterjee, K.; Martin, A. and Davis, A. (2020). How commuting affects subjective well-being. Transportation, Vol. 47, No.6, p. 2777–2805. doi:10.1007/ s11116-019-09983-9

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Lane line detection is a crucial component of autonomous driving systems, contributing to vehicle safety and navigation. This paper surveys various techniques and methodologies for lane line detection using OpenCV, an open-source computer vision library. The survey covers fundamental concepts, popular algorithms, recent advancements, and the practical challenges encountered in real-world applications.

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OpenCV, Challenge, Lane line.

Read Reference

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The future warfighting paradigm needs an evolved leadership framework to maintain military superiority, protect national interests, and effectively navigate the complexities of global security challenges. Futuristic military leadership requires leaders who can integrate technologies, build cohesive teams, and uphold ethical standards while achieving strategic objectives. They need to navigate complexity across multi-domain operational scenarios and the military strategies essential to integrate operations across these wide-ranging domains. Growing technological advancements in areas such as AI, Robotics, EW - Cyber warfare, and space-based capabilities present both opportunities and challenges to these leadership traits. Effective leaders need to undertake these technologies in their folds to gain and maintain superiority across multi-domains while mitigating vulnerabilities and perils and exhibiting adaptability and agility in making timely adjustments to plans and tactics in response to changing circumstances and emerging threats.

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Military Leadership, Technology, Multi-Domain, Operational, Future warfare, Inter -agency.

Read Reference

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India’s investment landscape has undergone profound transformations in recent decades, driven by economic reforms, technological advancements, and regulatory developments. The liberalization policies of the 1990s dismantled barriers, paving the way for diverse investment avenues such as equities, mutual funds, and bonds. Concurrently, innovations like online trading platforms and mobile applications have democratized financial market access, empowering individual investors with increased autonomy and transparency. This study investigates the investment behaviors, preferences, and trends among individual investors in India. It explores how demographic factors, psychological traits, and external influences shape investment decisions. Employing a mixed-method approach integrating quantitative analysis with qualitative insights from surveys and interviews, the research provides a comprehensive view of how investors navigate India’s intricate financial environment. Key findings underscore the prevalence of equities and mutual funds in investment portfolios, alongside enduring preferences for traditional assets such as real estate and gold within specific investor segments. Demographic analyses reveal age-related variations in risk appetite and income-based diversification strategies. Behavioral factors like herd behavior and overconfidence significantly impact investment outcomes, highlighting the necessity for targeted interventions to bolster investor education and market awareness. The study identifies gaps in regional research and emphasizes the critical need to enhance tailored financial literacy initiatives across diverse geographic areas. It advocates leveraging technology to deliver personalized financial services and recommends robust regulatory frameworks to safeguard investor interests and uphold market integrity. Addressing these insights can enable policymakers, financial institutions, and advisors to better meet the evolving needs of individual investors, thereby fostering financial inclusion, stability, and sustainable economic growth across India.

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Individual Investors, Investment Patterns, Demographic Factors, Risk Tolerance, Market Conditions, Investment Behavior.

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  1. Ahluwalia, I. J. (2002). Economic reforms in India since 1991: Has gradualism worked? Journal of Economic Perspectives, 16(3), 67-88.

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भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में परिणाम-आधारित शिक्षा (ओबीई) शहर में चर्चा का विषय बन गई है। कई कॉलेज इसे तेजी से लागू कर रहे हैं, क्योंकि इसे अमेरिका के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों से आगे रहने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है। तो, भारत में शिक्षा क्षेत्र पर ओबीई का क्या प्रभाव है? यहां ओबीई के बारे में चार महत्वपूर्ण तथ्य हैं जिन्हें हर किसी को समझना चाहिए और यह भारत में उच्च शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण क्यों है। परिणाम-आधारित शिक्षा (ओबीई) की अवधारणा में शैक्षिक दृष्टिकोण और सीखने का दर्शन दोनों शामिल हैं। इसका लक्ष्य उन विशिष्ट ‘परिणामों‘ पर केन्द्रित करके एक व्यापक शैक्षणिक कार्यक्रम तैयार करना है जो कार्यक्रम पूरा करने पर सभी छात्रों से अपेक्षित हैं। यह दृष्टिकोण छात्रों की उपलब्धि को प्राथमिकता देने और इन परिणामों के आधार पर उनकी प्रगति को मापने के इर्द-गिर्द घूमता है। इन परिणामों में आम तौर पर ज्ञान, कौशल, योग्यता, दृष्टिकोण और समझ सहित विभिन्न प्रकार के तत्व शामिल होते हैं, जिन्हें छात्रों से विभिन्न उच्च शिक्षा अनुभवों में उनकी सफल भागीदारी के माध्यम से हासिल करने की उम्मीद की जाती है।

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शिक्षा, परिणाम, योग्यता, दृष्टिकोण.

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  1. शर्मा, एस. (2022) भारतीय उच्च शिक्षा में परिणाम आधारित शिक्षा का महत्व, शैक्षिक अनुसंधान पत्रिका, 45(3), पृ. 78-92।

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समावेशी शिक्षा का उद्देश्य सभी बच्चों को, उनकी विविधताओं के बावजूद, एक साथ शिक्षा प्रदान करना है। जब इन गतिविधियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन और सामाजिक एकीकरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य विविधता, समानता और समावेश को बढ़ावा देना है, जिससे सभी छात्रों के लिए एक अधिक सहायक और स्वीकार्य स्कूल वातावरण का निर्माण होता है। शिक्षकों की भूमिका इन समावेशी गतिविधियों को सफल बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे इन गतिविधियों को सुगम बनाने और छात्रों में अपनेपन की भावना जगाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। इससे छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग कर पाते हैं। समावेशी गतिविधियाँ विभिन्न पृष्ठभूमि, क्षमताओं और आवश्यकताओं वाले छात्रों को एक साथ लाती हैं। इससे छात्रों में परस्पर समझ, सहानुभूति और सहयोग की भावना विकसित होती है। यह न केवल उनके वर्तमान शैक्षणिक जीवन के लिए लाभदायक है, बल्कि भविष्य में भी उन्हें एक समावेशी समाज का हिस्सा बनने में मदद करेगा। इस तरह की गतिविधियाँ न केवल शैक्षणिक उपलब्धियों को बढ़ाती हैं, बल्कि छात्रों के समग्र विकास में भी योगदान देती हैं, जिससे वे भविष्य के लिए बेहतर तैयार होते हैं।

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समावेशी शिक्षा, उच्च प्राथमिक विद्यालय, सामाजिक समरसता, आत्मसम्मान, शैक्षिक उपलब्धि, विशेष प्रशिक्षण.

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  1. अग्रवाल, आर., और शर्मा, एस. (2018) भारतीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में समावेशी शिक्षाः चुनौतियां और अवसर, इंडियन जर्नल ऑफ़ एजुकेशनल स्टडीज, 6(2), पृ. 45-58।

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7. कुमार, ए. और मिश्रा, एस. (2019) उच्च प्राथमिक विद्यालयों में समावेशी खेल गतिविधियाँः एक अन्वेषणात्मक अध्ययन, फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंस, 8(4), पृ. 156-170।
8. मेहता, एच. और शाह, आर. (2020) समावेशी कक्षाओं में सहयोगात्मक अधिगमः एक प्रायोगिक अध्ययन, लर्निंग एंड इंस्ट्रक्शन, 14(2), पृ. 89-103।
9. नायर, एस. और राव, पी. (2017) उच्च प्राथमिक स्तर पर समावेशी मूल्यांकन प्रथाएँः एक समीक्षात्मक विश्लेषण, असेसमेंट इन एजुकेशन, 5(3), पृ. 134-148।
10. पांडे, एम. और वर्मा, आर. (2021) समावेशी शिक्षा में प्रौद्योगिकी का उपयोगः उच्च प्राथमिक विद्यालयों का एक अध्ययन, एजुकेशनल टेक्नोलॉजी रिसर्च एंड डेवलपमेंट, 18(1), पृ. 45-59।
11. राजन, के. और नारायण, जे. (2018) उच्च प्राथमिक विद्यालयों में समावेशी वातावरण बनानाः चुनौतियाँ और समाधान, स्कूल एनवायरनमेंट रिसर्च, 10(2), पृ. 112-126।
12. शर्मा, डी. और गुप्ता, वी. (2019) समावेशी शिक्षा में माता-पिता की भागीदारीः एक गुणात्मक अध्ययन, फैमिली एंड स्कूल पार्टनरशिप जर्नल, 7(3), पृ. 78-92।
13. सिंह, आर. और कपूर, एम. (2020) उच्च प्राथमिक विद्यालयों में समावेशी शिक्षा की चुनौतियाँः शिक्षकों के     दृष्टिकोण, टीचर एजुकेशन एंड स्पेशल एजुकेशन, 13(4), पृ. 201-215।
14. श्रीवास्तव, पी. और मिश्रा, एन. (2017) समावेशी कक्षाओं में सामाजिक-भावनात्मक अधिगमः एक हस्तक्षेप अध्ययन, इमोशनल एंड बिहेवियरल डिफिकल्टीज, 9(2), 67-81।
15. वर्मा, एस. और त्यागी, आर. (2021) उच्च प्राथमिक विद्यालयों में समावेशी शिक्षा का प्रभावः एक मिश्रित विधि अध्ययन, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ इंक्लूसिव एजुकेशन, 25(3), पृ. 289-303।

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 परिणाम-आधारित शिक्षा वर्तमान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के ढांचे के भीतर महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित कर रही है। यह नीति, जो भारत में शिक्षा प्रणाली में क्रांति लाने के लिए एक रोडमैप के रूप में कार्य करती है, शैक्षिक प्रक्रिया पर सीखने के परिणामों को प्राथमिकता देने के महत्व को रेखांकित करती है। केवल शिक्षा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, NEP 2020 विशिष्ट सीखने के परिणामों को प्राप्त करने के महत्व पर जोर देती है। परिणाम-आधारित शिक्षा (OBE) यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती है कि छात्र न केवल ज्ञान प्राप्त करें बल्कि वास्तविक दुनिया में पनपने के लिए आवश्यक कौशल और दक्षता भी विकसित करें। NEP 2020 स्वीकार करता है कि पारंपरिक शिक्षा प्रणालियों की अक्सर रटने और सैद्धांतिक सीखने पर बहुत अधिक जोर देने के लिए आलोचना की जाती है, जो छात्रों को व्यावहारिक अनुप्रयोगों या कार्यबल की मांगों के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं कर सकता है। वांछित शैक्षिक परिणामों या उद्देश्यों को प्राथमिकता देकर, परिणाम-आधारित शिक्षा का उद्देश्य इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षण विधियों, आंकलन और पाठ्यक्रमों को संरेखित करना है। परिणाम-आधारित शिक्षा का एक प्रमुख लाभ यह है कि यह शिक्षा और रोजगार के बीच की खाई को पाटने की क्षमता रखती है, क्योंकि यह कौशल और दक्षताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करती है, जिनकी नौकरी के बाजार में अत्यधिक मांग है। यह एनईपी 2020 के व्यापक उद्देश्य के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य देश की उन्नति और समृद्धि में योगदान देने में सक्षम कुशल और अनुकूलनीय कार्यबल तैयार करना है।

 

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति, परिणाम आधारित शिक्षा, शिक्षा, उन्नति, समृद्धि.

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1. भारद्वाज, ए. (2021). राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020ः परिवर्तन और चुनौतियाँ, शिक्षा विमर्श, 23(2), 7-18।

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In Modern era demand for an imaginative and variation business is essentials needs. E-commerce business boom growth in the Asia and whole globe. Its success depends on their understanding of market timing, market strategy, changing trend and various factors. Present paper deal with brief idea about current E-Business situation, issues and challenges of E- Business. E-commerce is not only buying and selling products online but it’s also consisted online process of developing, marketing, selling, delivering, servicing and paying for products and services after sale. E-commerce shows tremendous growth in the economy. Large number of internets uses present in India however penetration of e-business is low compared to developed markets but is upward at a much faster rate with a huge number of new beginners. This paper examines the key trends, challenges, and opportunities that are likely to shape the future of e-commerce. 

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E-commerce, Issues, Challenges.

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The Indian Air Force (IAF) is the air arm of the Indian military. Its supplement of work force and air ship resources positions fourth among the air forces of the world. Its essential mission is to verify Indian air space and to direct aeronautical fighting amid equipped clash. As every human being has its own physical and mental capacity and perspective to adopt all things that brain can understand or conceive. HRM, at that point, is locked in not just in verifying and building up the gifts of individual laborers, yet additionally in actualizing programs that improve correspondence and collaboration between those individual specialists so as to sustain hierarchical advancement. The present paper deals with the impact of strategic human resource management in Indian Air Force.

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Human Resource Management (HRM), Indian Air Force( IAF), Strategic Human Resource Management (SHRM).

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  1. Becker, B. E.; Huselid, M. A.(1998) High Performance Work Systems and Firm Performance: A Synthesis of Re- search and Managerial Implications: Research in Personnel and Human Re- source Management,  JAI Press Inc, USA & p 55.

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In the present study it explores how the shift from transactional to transformational leadership has influenced employee engagement through organizational culture. Idealized influence, Inspirational motivation, Intellectual stimulation and Individualized consideration are the four dimensions of transformational leadership that significantly increase employees’ level of motivation, satisfaction at their work place and performance. In service industries, an area where there is empirical evidence for positive impact of transformational leadership is during the literature review conducted by the author. Employee empowerment and creativity are fostered by it. Nonetheless, research has yet to emphasize on specific industries, the role played by organizational culture in such situations, or require longitudinal studies (143). This analysis considers those gaps and suggests potential future research directions, including extending industry coverage, examining the impact of the COVID-19 pandemic, and incorporating technology into leadership practice. In this way it offers suggestions for enhancing positive organizational culture, continuing education and training and operating feedback systems effectively. By proactively addressing organizational conflicts and tailoring leadership strategies to specific sectors, organizations can enhance employee engagement and productivity.

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Transformational Leadership, Organizational Culture, Employee Engagement, Job Satisfaction, Psychological Empowerment, Organizational Efficiency.

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  1. Agarwal, S.; & Kar, R. (2000). Employee engagement and service quality in the hospitality industry, International Journal of Hospitality Management, 22(3), 345-367.

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The last few decades of the 20th century saw a quantum development in methods and technologies which assisted management of information. Cutting edge technologies like the microchip, computers, miniaturisation, digital communication, satellites etc made it likely to handle great volumes of data at incredible speeds and also present processed information in formats which assisted decision making. Thus, there was an increased dependence on information infrastructure and management of information. Information infrastructure is the term used to describe the totality of inter-connected computers and networks and the essential information flowing through them. Thus, societies which placed great reliance on information systems became increasingly vulnerable to any disruption of such systems. 

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Information, Technology, Warfare, Operations, Dimension, Management.

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8. The Indian Air Force Information Warfare Doctrine, p.13.
 

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We now live in a world that is evolving with every blink of our eyes. The world may be changing but most beliefs are not. This paper touches the depth of the most sensitive issue of women’s development in the shadow of increasing violence against women, especially ‘marital rape’. In view of increasing crimes against women, there is a continuous discussion about laws dealing with crimes against women. The term ‘Marital rape’ means is without the consent of wife unwanted sexual intercourse by her husband and is often achieved by force, threat of force, or physical violence. It violates the right to dignity of married women and is a non-consensual act of sexual perversion by a man on his wife where she is physically, sexually and mentally abused. This paper examines whether this right can be exercised by force or whether the right to sexual intercourse is dependent only on the wife’s consent. Social practices and legal codes in India, mutually enforce the denial of women’s sexual agency and bodily integrity, which is central to women’s human rights.

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Women, Marital, Rape, Sex, Violence. 

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This study examines the temper tantrum behaviours among autistic children, focusing on potential differences between genders. Using a sample of 30children (15 boys and 15 girls), the study observes the frequency and duration of tantrums over a three-month period. Statistical analysis, including ANOVA (F-value) calculation, is employed to test the hypothesis that temper tantrum behaviour vary among autistic children based on gender and type of school. The findings suggest significant differences in tantrum behaviours based on the type of school but not on gender.

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Autism Spectrum Disorder, Temper Tantrum Behaviour.

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  1. Jones,  A.; Smith, B. & Johnson, C. (2015). Educational Settings and Behavioural Outcomes in Children with Autism Spectrum Disorder. Journal of Autism and Developmental Disorders, 45(6), p. 1828-1836.

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भारत में कामकाजी महिलाओं को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनमें वेतन असमानता शामिल है, जहाँ उन्हें अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में कम वेतन मिलता है और लैंगिक असमानता जो कार्यस्थल में उन्नति के कम अवसरों के रूप में प्रकट हो सकती है, और कई अन्य जो उनके करियर के विकास में बाधा डालती हैं। हालाँकि, उनकी सफलता कठोर होने और प्रतिशोध के साथ करियर का पीछा करने की परंपराओं से परे है। अधिक शहरी कामकाजी महिलाएँ इन समस्याओं को पहचानती हैं और पेशेवर व्यवसाय के माध्यम से आर्थिक स्वतंत्रता से परे पुरस्कारों की तलाश कर रही हैं। कई कामकाजी महिलाएँ अब सक्रिय रूप से काम के माध्यम से और काम में उद्देश्य और अर्थ की तलाश करती हैं।

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कामकाजी महिला, परिवार, आर्थिक स्वतंत्रता, श्रमिक, वैवाहिक जीवन.

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The present study was conducted on an incidental-cum-purposive sample of 200 intermediate level girl students studying in constituent colleges of Siwan district under J.P. University, Chapra. The sample comprised of 100 Muslim and 100 Hindu girl students selected from both rural and urban areas. ‘Attitude Scale’ by Chauhan et al and ‘Family Planning Attitude Inventory’ developed by Paliwal along with PDS administered to assess the effect of community affiliation and inhabitation on attitude towards social change and family planning. The results indicated that community affiliation and inhabitation have significant effect on attitude towards social change and family planning. Hindu girl students hold significantly more favourable attitude towards social change and family planning than Muslim girl students. Urban girl students from both communities hold significantly more favourable attitude towards social change and family planning than their rural counterparts.

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Attitude, Social Change, Family, Girl.

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दुनियॉ के तमाम देशों नें आज महिलाओं को बराबरी का हिस्सा देकर अपने देश की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक एवं राजनैतिक स्थिति में काफी सुधार कर चुके हैं। समाज में बराबरी का हिस्सा पाकर महिलाओं ने चॉद तक अपना परचम लहरानें में कोई कसर नही छोड़ी है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में यदि बात की जाय तो महिलाएॅ आज भी समाज की मुख्य धारा में नही आ पाई हैं, जिसके लिए घर से लेकर समाज तक इसके लिए उत्तरदायी है। जब-जब महिलाओं को उनके अधिकार प्रदान किये गये तब-तब महिलाओं ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया है। भारत को यदि देश दुनियॉ के सामनें मजबूत स्थिति में लाना है तो महिलाओं को सभी क्षेत्रों में भागीदारी देनी होगी तभी देश प्रगति की राह पर तेजी से आगे बढ़ सकेगा।

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भारतीय परिदृश्य, महिला शिक्षा, शैक्षिक चुनौतियॉ, शैक्षिक संभावनाएॅ.

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भारत में पंचायती राज संस्थानों को सशक्त बनाने में डिजिटल उपकरणों की शुरूआत एक महत्वपूर्ण कदम रही है, क्योंकि उन्होंने जमीनी स्तर पर शासन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी को शामिल करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, जिससे इन संस्थानों के कामकाज में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं । हालाँकि, इन प्रयासों की सफलता राज्य और शहरी स्थानीय निकायों के समर्थन पर भी निर्भर करती है। स्मार्ट शहरों के विकास के लिए इन स्तरों पर प्रभावी नेतृत्व आवश्यक है, जो जमीनी स्तर पर शासन को और बढ़ा सकता है। डिजिटल उपकरणों के कुशल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने और एक ऐसा वातावरण बनाने के लिए ऐसा समर्थन आवश्यक है जो उनके प्रभाव को जमीनी स्तर पर अनुभव करने में सक्षम बनाता है । झारखंड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र की ई-पंचायत पहल सफल डिजिटल उपकरण कार्यान्वयन का एक प्रमुख उदाहरण है। इस पहल ने जिला परिषद्/पंचायत समिति/ग्राम पंचायत स्तर पर डिजिटल डेटा तैयार करने की सुविधा प्रदान की है, जिसके परिणामस्वरूप इन संस्थानों के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और सेवा वितरण में दक्षता और पारदर्शिता बढ़ी है । नतीजतन, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि डिजिटल उपकरणों ने पंचायती राज संस्थानों को सशक्त बनाने और जमीनी स्तर के शासन की समग्र सफलता में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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डिजिटल उपकरण, पंचायती राज व्यवस्था, पंचायती राज का महत्व, चुनौतियां.

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प्रस्तुत शोध पत्र माध्यमिक स्तर पर सरकारी और निजी विद्यालय में अध्ययनरत् विद्यार्थियों के शैक्षिक तनाव के अध्ययन से सम्बंधित है। शोध अध्ययन हेतु न्यायदर्श के रूप में 100 विद्यार्थियों को चुना गया है जिसमें 50 बालक तथा 50 बालिकाएँ हैं। प्रदतो के संग्रह हेतु डॉ जाकिर अख्तर द्वारा बनाया गया स्टूडेंट स्ट्रेस स्केल का प्रयोग किया गया है। शोध परिणाम के आधार पर यह कहा जा सकता है कि माध्यमिक स्तर पर सरकारी और निजी विद्यालय में अध्ययनरत् विद्यार्थियों के बीच शैक्षिक तनाव में कोई अंतर नहीं होता है।

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माध्यमिक स्तर, सरकारी विद्यालय, निजी विद्यालय, शैक्षिक तनाव, विद्यार्थी.

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भारतीय चिन्तन परम्परा में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का अतुल्नीय योगदान है। एकात्मक मानववाद के दर्शन ने भारतीय जनमानस को गहरे रूप में प्रभावित किया। एकात्म मानववाद का दार्शनिक दृष्टिकोण मनुष्य को एक व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध की स्थापना के लिए प्रोत्साहित करता है। दीनदयाल जी का एकात्म मानववाद का दर्शन मन, शरीर और आत्मा के एकीकरण पर आधारित है। समाज को एकता के सूत्र में बांध कर रखने के लिए मन, शरीर और आत्मा का उचित समन्वय अनिवार्य है। उनका दर्शन व्यक्ति और समाज के सामंजस्य के लिए लौकिक और आध्यात्मिक दुनिया के एकीकरण का समर्थन करता है। व्यक्ति व समाज का आत्म-साक्षात्कार ही एकात्म मानव का परिचय है। व्यक्ति व समाज की एकात्मकता के चार सूत्रों-शिक्षा, कर्म, योगक्षेप व यज्ञ के अनुसंधानीय समीकरणों से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की संसिद्धि होती है।

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एकात्म, चित्त, व्यक्तिवाद, राष्ट्रवाद.

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सामाजिक शोध का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है और मानव-समाज व जीवन का शायद ही कोई पक्ष ऐसा हो जो कि इसके क्षेत्र के अन्तर्गत न आता हो। वास्तविकता तो यह है कि सामाजिक शोध के क्षेत्र की कोई सीमा-रेखा निश्चित व अन्तिम रूप में खींचना न तो सम्भव है और न ही व्यावहारिक। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, जिसे मनरेगा भी कहा जाता है, विश्व में अग्रणी अधिकार विधानों में से एक है। यह विश्व का सबसे वृहत् मजदूरी कार्यक्रम है। अकुशल शारीरिक श्रम तथा न्यूनतम मजदूरी पर आधारित प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का काम देने की वैधानिक गारंटी ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 7 सितम्बर, 2005 को अधिसूचित किया गया था। ग्रामीण बेरोजगारी, भूख एवं गरीबी से निजात पाने के लिये 2 फरवरी 2006 को महत्वाकांक्षी योजना ’राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा)’ का शुभारंभ आंध्रप्रदेश के अनंतपुरम जिले से किया गया। पहले चरण में वर्ष 2006-07 के दौरान देश के 27 राज्यों के 200 चुनिंदा जिलों में इस योजना का कार्यान्वयन किया गया था। 1 अप्रैल 2007 से दूसरे चरण में अन्य 130 जिलों तक इसका विस्तार किया गया था। नरेगा को तीसरे चरण में 1 अप्रैल, 2008 से सभी बचे हुये 274 ग्रामीण जिलों में लागू कर दिया गया। इस प्रकार महात्मा गांधी नरेगा के तहत शत-प्रतिशत शहरी जनसंख्या वाले जिलों को छोड़कर पूरे देश के सभी 659 ग्रामीण जिले को शामिल कर दिया गया। 2 अक्टूबर 2009 से राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) का नाम ’’महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)’’ कर दिया गया। प्रस्तुत अध्ययन में सीतापुर एवं बतौली विकासखण्ड को आधार बनाया गया है और इस प्रकार इन विकासखण्ड़ों के 10 ग्राम पंचायतों से कुल 200 उत्तरदाताओं का चयन कर सर्वेक्षण कार्य निष्पादित किया गया है। नरेगा की सफलता का एक और आयाम यह है कि यह ग्रामीण विकास का इंजन बनकर सामने आ रहा है। इसकी बदौलत गाँवों में विकास कार्य तथा स्थायी परि-सम्पत्तियों के निर्माण को नई गति मिल रही है। यह कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। इसे चलाने में पंचायती राज संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका के चलते ग्रामीण प्रशासन का विकेन्द्रीकरण हो रहा है और इस तरह लोकतंत्र तथा पारदर्शिता की जड़ें मजबूत हो रही हैं।

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मनरेगा, बेरोजगारी, जनजाति, सामाजिक परिवर्तन.

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सामाजिक अनुसंधान का संबंध सामाजिक वास्तविकता से होता है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज की वास्तविकता को क्रमबद्ध एवं वस्तुनिष्ठ रूप से समझना तथा प्राप्त ज्ञान को व्यवहारिक जीवन में पायी जाने वाली समस्याओं के समाधान के लिये प्रयोग करना होता है। सशक्तिकरण एक निरन्तर चलने वाली विकासात्मक प्रक्रिया है। महिला सशक्तिकरण महिलाओं के ऊपर पुरूषों के नियंत्रण के संदर्भ में नियमन का कार्य करता है। पुरूषों एवं महिलाओं के मध्य शक्ति के वितरण के नियमन के माध्यम से, सशक्तिकरण की प्रक्रिया महिलाओं को पितृसत्तात्मक दबावों की परवशता एवं अधीनता की प्राचीन संस्कृति से मुक्त करती है। भारतीय संविधान प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों तथा निर्देशक सिद्धांत में यथा-निहित प्रावधान के अनुसार सभी लोगों को समान अधिकार देता है। भारत में महिलाओं को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करने और कानून के तहत समान सुरक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है। भारतीय संविधान महिलाओं को न केवल समानता प्रदान करता है, अपितु महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव के उपायों को अपनाने के लिए राज्य को अधिकृत भी करता है। वर्तमान परिवेश में आदिवासी जनजाति समुदाय का विकास सरकार की प्रमुखता है। विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को लाने के लिये सरकार के द्वारा अनेक योजनाएं चलायी गयी है। जनजातीय महिलाओं के लिए चलाये जा रहे शासकीय कल्याणकारी कार्यक्रमों ने न केवल महिलाओं के पारिवारिक दृष्टिकोण अपितु सामाजिक दृष्टिकोण को भी प्रभावित किया। सरकार द्वारा संचालित संबद्ध कार्यक्रमों से जनजातीय महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई। प्रस्तुत शोध सरगुजा जिले के अम्बिकापुर एवं सीतापुर विकासखण्ड़ के 10 ग्राम पंचायतों के 200 उत्तरदाताओं पर आधारित है। सरगुजा अंचल में जनजातियों की बहुलता रही है। प्रस्तुत शोध अध्ययन सरगुजा जिले के जनजातीय क्षेत्रों में निवासरत् महिलाओं के सर्वागींण व समरसता पूर्ण विकास में सहायक होगा और वे अपनी शक्तियों व सम्भावनाओं, क्षमताओं व योग्यताओं तथा अधिकारों व जिम्मेदारियों के प्रति ओर अधिक जागरूक हो सकेगीं।

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 महिला सशक्तिकरण, जनजाति, आत्मनिर्भर, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति.

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  1. लवानियॉ, एम. एम. (2016-17) भारत में जनजातियों का समाजशास्त्र, पुर्नप्रकाशन 2016-17, रिसर्च पब्लिकेशन्स, जयपुर, पृ. 4।

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Women have been playing an important role in shaping the society with men since the time immemorial. The contribution and achievement of women can never be denied. They engaged themselves in the household works as well as in the social or community works. The present article sheds light on the condition, achievements and empowerment of women in Indian context from the Indus Valley Civilization to the modern age. Their literary contribution in the Vedic age and their financial and political empowerment in the modern age have been focussed on.

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Women, Dignity, Satîdâha, Education, Franchise, Empowerment.

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  1. Abdul, Aziz Al Aman (2019) Rikveda Samhita, 1st Volume, Haraf Prakashani, Kolkata, p. 314. 

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4. Sen, Atul Chandra (2018) The Upanishads, Haraf Prakashani, Kolkata, p. 875.
5. Abdul Aziz Al Aman (2019) Rikveda Samhita, 1st Volume, Haraf Prakashani, Kolkata, p. 231. 
6. Pahari, Gopal Krishna (1998) Mughal Yuge Bharat (1526 A. D. - 1757 A.D.), Shritara Prakashani, Kolkata, p. 207.
7. Pahari, Gopal Krishna (1998) Mughal Yuge Bharat (1526 A. D. - 1757 A.D.), Shritara Prakashani, Kolkata, p. 210.

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This paper undertakes a quantitative analysis to examine the impact of fiscal policy on India’s economic growth from 2014 to 2023. The study employs econometric techniques to investigate the relationship between Government expenditures and revenues, and their subsequent effects on key macroeconomic variables such as GDP, inflation, and employment.

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Fiscal Policy, Economic Growth, India Economy, GDP Growth. 

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सन् 2013 के अंत में संपन्न दिल्ली विधानसभा के चुनावों के समय अस्तित्व में आयी ‘आम आदमी पार्टी’ के कर्णधार बरसों से चुनाव सुधार की वात करते आ रहे हैं और 2013 के विधानसभा चुनावों में श्री अरविंद केजरीवाल ने वह कर दिखाया जिसकी कल्पना तक करना कठिन था। अरविंद केजरीवाल ने अपेक्षाकृत साफ छवि के लोगों को टिकट दिया और निर्धारित चुनावी खर्च की सीमा में रहकर चुनाव जीत कर दिखाया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपनी पार्टी (आप) को मिले चन्दे और चन्दा देने वालों के नाम सार्वजनिक कर विभिन्न राजनीतिक दलों को आइना दिखा दिया। अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने उस मिथ को तोड़ दिया कि बिना काले धन और बिना बाहुबल के न चुनाव लड़ा जा सकता है और न चुनाव जीता जा सकता है। उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार सफलता हासिल करके सिद्ध कर दिया कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो प्रदूषित चुनाव प्रक्रिया को सुधारा जा सकता है। हाल के दिनों में चुनाव प्रक्रिया में सुधार की दृष्टि से कई काम हुए हैं। सन् 2013 में माननीय सर्वाेच्च न्यायालय ने कह दिया कि सजा प्राप्त व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता। सर्वाेच्च न्यायालय के ऐसा कहते ही सभी राजनीतिक दलों में हड़कंप मच गया, क्योंकि कमोबेश सभी राजनीतिक दल अपराधियों और सजायाफ्ताओं से भरे पड़े हैं। तुरंत-फुरंत सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश को पलटने के लिए सरकार एक अध्यादेश लाने की तैयारी में जुट गई। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने इस अध्यादेश को मीडिया के सामने फाड़ कर चुनाव सुधार पर बहस को और तेज कर दिया। इसी समय माननीय सर्वाेच्च न्यायालय ने एक और महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा कि मतदाता को नकारात्मक (निगेटिव) मतदान का भी अधिकार है इसलिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में सबसे आखिर में एक और विकल्प होगा उपरोक्त में से कोई नहीं ( छवदम व िजीम ंइवअमध्छव्ज्।). और राजसेवी अन्ना हजारे सहित अनेक समाजसेवी काफी पहले से ही इस नकारात्मक मतदान अधिकार की मांग करते रहे हैं। सर्वाेच्च न्यायालय की पहल के बाद सन् 2019 के अंत में संपन्न दिल्ली विधानसभा के चुनावों में चुनाव आयोग ने मतदाताओं को यह नकारात्मक अधिकार/विकल्प भी उपलब्ध करा दिया। माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के आदेशों का असर यह हुआ कि उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ राजनेता रशीद मसूद को अपनी राज्यसभा सदस्यता खोनी पड़ी। इसके तुरंत बाद चारा घोटाले में सजा प्राप्त लालू प्रसाद यादव को भी अपनी लोकसमा सदस्यता गंवानी पड़ी। इस प्रकार चुनाव प्रक्रिया में सुधार की बयार वहने लगी है। इसकी गति मंदी जरूर है लेकिन इससे उम्मीदें बहुत हैं आम जनता को।

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चुनाव आयोग, चुनाव सुधार, आम आदमी पार्टी, नाकारात्मक मतदान, अध्यादेश.

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  1. सेठी, के. के. (2012) ‘‘संघवाद तथा भाषा नीति’’ लोक प्रकाशन (संघवाद विशेषांक), वर्ष 4, अंक 2, पृ. 173।

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In spite of our society is a patriarchal society women paly a critical role in indian economic escaltion particularly in agriculture, the socio-economic deprivation of women is characterized by their limited access to resource, services and employment. As a result a large number of women are economically dependent on their spouse. Female Labour Participation Rate reletively more in rural areas than urban in the country and Andhra Pradesh. Despite, some social norms, unpaidlabour in the family, child care, backwardness in utilizing employment opportunities and literacy, etc are making  hindrances for women in the path of empowerment, they will slowdown the pace onlywomen economic emplowermrnt, but,these obstracles cannot prevent women to reach their destination.

 

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Empowerment, Child Care, Unpaid Labour, Land Size, Labour Participation Rate. 

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स्वाधीनता संग्राम, सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, डांडी मार्च, स्वयंसेवक, अंग्रेजी हुकूमत.भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में सन् 1930 ई. का नमक सत्याग्रह एक गौरवशाली अध्याय है जिसमें डॉ. श्रीकृष्ण सिंह का अद्भूत साहस उनकी अपार कष्ट सहिष्णूता स्वर्णाक्षरों में अंकित है। बिहार में स्वाधीनता संग्राम को उनकी अग्रणीय भूमिका ने न केवल प्रखरता प्रदान की बल्कि युवा पीढ़ी को प्रगाढ़ राष्ट्रप्रेम और क्रांतिकारी जोश से भी भरकर उत्प्रेरित किया। इन्होंने नमक सत्याग्रह में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आह्वान पर सक्रिय रूप से भाग लिया था। तभी तो महात्मा गाँधी ने इन्हें ‘बिहार के प्रथम सत्याग्रही’ के अलंकरण से विभूषित किया था।

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स्वाधीनता संग्राम, सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, डांडी मार्च, स्वयंसेवक, अंग्रेजी हुकूमत.

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  1. प्रसाद, रामचन्द्र, (1986) ‘आधुनिक भारत के निर्माता श्रीकृष्ण सिंह’, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, अक्टूबर 1986, पृ. 25।

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3. पूर्वोक्त।
4. पूर्वोक्त।
5. प्रसाद, रामचन्द्र, पूर्वोक्त, पृ. 56।
6. ‘द सर्चलाईट’, दैनिक समाचार पत्र, 18 अप्रैल, 1930।
7. सिंह, नाथ, पशुपति, (1987) ‘बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह स्मृति-कलश’, श्रीकृष्ण ज्ञान मंदिर, छज्जूबाग, पटना, पृ. 181।
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9. प्रसाद, रामचन्द्र, पूर्वोक्त, पृ. 57।
10. सिंह, नाथ, पशुपति, पूर्वोक्त, पृ. 182।
11. पूर्वोक्त, पृ. 58।
12. सिंह, नाथ, पशुपति, पूर्वोक्त, पृ. 184।
13. पूर्वोक्त, पृ. 185।
14. पूर्वोक्त, पृ. 186।
15. सिंह, नारायण महेन्द्र, (2001) ‘बिहार केसरी और नमक सत्याग्रह नरता के अभियान’,  बिहार इतिहास परिषद्, बिहार, पृ. 59।
16. सिंह, प्रसाद कवीन्द्र, पूर्वोक्त, पृ. 100।
17. सिंह, कुमार समीर, पूर्वोक्त, पृ. 54।
18. प्रसाद, रामचन्द्र, पूर्वोक्त, पृ. 58।

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बिहार अपने सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परम्परा को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ कृषि उद्योग के क्षेत्र में अव्वल रहा है। जहाँ तक वस्त्र उद्योग का सवाल है, यह पूर्णतः कच्चे माल के लिए कृषि पर ही आधारित था। बिहार सहित भारतीय कृषक कपास की पर्याप्त मात्रा में खेती करते थे। उन्हीं कपासों से सूती कपडों के लिये धागे का निर्माण होता था। ऐसे वस्त्र उद्योग यहाँ की प्राचीनतम उद्योग है। सूती वस्त्रों के साथ-साथ रेशमी वस्त्रों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता होने के कारण यहाँ रेशमी वस्त्रों का भी निर्माण होने लगा। सूती वस्त्रों के लिए बिहार का मेनचेस्टर गया स्थित मानपुर का पटवा टोली और रेशम वस्त्र के लिए भागलपुर प्रमुख हैं। यहाँ के निर्मित वस्त्र देश के कोने-कोने में बिक्री होता है। यहाँ उत्पादित वस्त्रों में लुंगी, चादर के साथ रेशमी और ऊनी वस्त्रों का भी निर्माण होता है। वस्त्रों को तैयार करने के लिए कई छोटी-छोटी मिले है। कच्चा माल कानपुर एवं अहमदाबाद से आता है। ऐसे रेशमी वस्त्रों के लिए भागलपुर प्रसिद्ध है। इस वस्त्रों के उत्पादन एवं कार्य-प्रणाली को देखने के लिए हस्तकरघा एवं रेशमी वस्त्र निदेशालय बनाया गया है। कालांतर में इस उद्योग का विस्तार बिहार के भागलपुर के अलावा मुजफ्फरपुर, गया एवं दरभंगा में भी होने लगा। इतना ही नहीं इस निदेशालय के अधीन भभुआ में बनारसी साड़ी के मिले हैं। संभवतः इस क्षेत्र में इस उद्योग का प्रभाव वाराणसी के कारण पड़ा। आर्थिक उदासीनता के कारण कई मिलों की स्थिति विलुप्तिकरण की ओर है।1

 
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वस्त्र उद्योग, रेशम उद्योग, मलवरी, तसर, व्यापार, विलुप्तिकरण.

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  1. पाण्डेय, अंशुमान (1980) ‘‘बिहार के उद्योग’’ ओम बुक्स इंटरनेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट, लखनऊ, पृ. 51

2. प्रभात खबर दैनिक समाचार पत्र, 2010 संपादकीय, पृ. 8।
3. हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र मगध संस्करण, 2015। 
4. मानपुर (गया) पटवा टोली के सूती वस्त्र व्यवसायी उदयशंकर प्रसाद से साक्षात्कार के आधार पर 05.05.2024।
5. गोपाल प्रसाद पटवा इंडस्ट्रियल एरिया अध्यक्ष गया, 05.05.2024 (साक्षात्कार)।
6. वर्मा, प्रमिला (1981) ‘‘वस्त्र विज्ञान एवं परिधान’’ बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पटना, पृ. 21।
7. बिहार सरकार उद्योग मंत्रालय से साभार-2022।
8. हथकरघा एवं रेशम निदेशालय बिहार का रिपोर्ट-2022

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भारत में सामाजिक संरचना के उदय काल से ही सामाजिक आन्दोलनों का सिलसिला भी अपने ढंग से जारी रहा है। चूंकि यह समझा जाता रहा है कि भारतीय समाज को धर्म से अलग नहीं जा सकता, खासकर प्राचीन और मध्यकाल में, अतः 19वीं सदी तक सामाजिक परिवर्तन या गतिशीलता पर केन्द्रित सभी आन्दोलनों को सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन की वृहत्तर परिधि के अन्तर्गत ही माना जाता रहा है। चाहे वह छठी सदी ई.पू. का आन्दोलन हो या प्राचीन तथा मध्यकालीन भक्ति आन्दोलनों की विभिन्न धाराएँ अथवा भारतीय दार्शनिक विचारधाराओं का विकास या फिर 19वीं सदी का पुनरूत्थानवादी आन्दोलन-सभी अनिवार्यतः धार्मिक आस्था-विश्वासों तथा परम्पराओं-विचारों से गहरे तौर पर सम्बद्ध रहे हैं, परन्तु 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से सामाजिक आन्दोलनों की प्रकृति में बदलाव भी दिखाई पड़ने लगा। इसी अवधि में लौकिकीकरण, आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, शहरीकरण, औद्योगिकरण और आधुनिक राज्य व्यवस्था निर्माण, नए अवसरों की सृष्टि तथा बुद्धिवाद ने सामाजिक जीवन को उद्वेलित करना शुरू किया।

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 सामाजिक आंदोलन, राष्ट्रवाद समरसता, वर्ण व्यवस्था, अभिजन वर्ग साम्प्रदायिक, पुनरूत्थानवादी, सत्याग्रह.

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  1. श्रीनिवास, एस.एन, (2005) ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 18-20।

1. श्रीनिवास, एस.एन, (2008) ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 2005, पृ. 18-20
2. पूर्वोक्त, पृ. 51।
3. पूर्वोक्त, पृ. 52।
4. चौधरी, प्रसन्न कुमार एवं श्रीकान्त, (2001) ‘बिहार में सामाजिक परिवर्तन के कुछ आयाम’, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 29-33।
5. पूर्वोक्त, पृ. 45।
6. श्रीनिवास, एस. एन., पूर्वोक्त, पृ. 36।
7. चौधरी, प्रसन्न कुमार एवं श्रीकान्त, पूर्वोक्त, पृ. 91।
8. मिश्र, गिरीश एवं पाण्डेय, ब्रज कुमार, (2010) ‘बिहार मंे जातिवाद’, स्वराज प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 102-03।
9. श्रीनिवास, एस. एन, पूर्वोक्त, पृ. 88-89।
10. मिश्र गिरीश एवं पाण्डेय ब्रज कुमार, पूर्वोक्त, पृ. 109-10।
11. Askari, Syed Hasan and Ahmad, Qeyamuddin (1976) (Edited), ‘The Comprehensive History of  Bihar’, Vol-III, Part-III, Kashi Prasad Jayswal Research Institute, Patna, p. 20-24.
12. मिश्र, गिरीश एवं पाण्डेय, ब्रज कुमार, पूर्वोक्त, पृ. 108-09।
13. चौधरी, प्रसन्न कुमार एवं श्रीकान्त, पूर्वोक्त, पृ. 112-13।
14. मिश्र, गिरीश एवं पाण्डेय, ब्रज कुमार, पूर्वोक्त, पृ. 333-34।
15. चौधरी, प्रसन्न कुमार एवं श्रीकान्त, (2005) ‘बिहार में दलित आंदोलन’ वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 31-32।
16. पूर्वोक्त, पृ. 32।

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In the earlier, a consumer was treated as king because he has money that a marketer wants. The sellers or a manufacturers were dependent on customers for their business activity. But the position of the customer has changed due to advent of new technology and consumer is now at receiving end. The marketers have exploited their consumers by making unfair implementation in their products such as making products of non-repairable design, unavailability of spare parts, unfair warranty conditions, etc. In this paper it has been tried to identify the unfair practice strategies, which is prevalent in the Indian market. Right to repair, its advantages or disadvantages have also been analysed.

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Consumer Right, Non-biodegradable, e-waste, Right to Repair, Manufacturer, Indian Law. 

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  1. Ahuja, V.K. (2013) Law Relating to Intellectual Property Rights, Lexis Nexis, Gurgaon, 2nd edn., Page Number ????. 

2. Maxham, Alexander (2022) “What is Right to Repair? Everything You Need To Know!” Android Headlines, available at : https://www.androidheadlines.com/right-to-repair.html (last visited January 30, 2024).
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6. “The Right to Repair Act in India: Exploring Some Pros and Cons,” available at : https://www.linkedin.com/pulse/right-repair-act-india-exploring-some-pros-cons (last visited January 31, 2024).
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विद्या तप साधना और समर्पण से प्राप्त होती है। इसके बिना कोई भी विद्या प्राप्त नहीं कर सकता है। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन में इन्हीं गुणों के बदौलत लौकिक और अलौकिक विद्या प्राप्त किया था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। वे विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं से आकादमिक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ क्रीडा, संगीत, नाटक, वाद्य, कुश्ती, तैराकी, मुक्केबाजी, नौकायन, व्यायाम इत्यादि में पारंगत थे। इसके अलावा वे बचपन में ही खेल-खेल में ध्यानमग्न हो जाते। छात्र काल में ईश्वरीय संबंधी विषयों को जानने हेतु उनका मन व्याकुल हो जाता और उन्होंने अपने गुरू रामकृष्ण देव की कृपा सेे ईश्वरीय विद्या की भी अनुभूति किया। स्वामी विवेकानंद एक ऐसा महासमुद्र है, जिनमें राष्ट्रीयता, अंर्तराष्ट्रीयता, धर्म, विज्ञान, राजनीति, वेद, उपनिशद, महाकाव्य ग्रन्थ सब के सब सम्माहित है। ऐसी प्रखर प्रज्ञा, ऐसा विवेक ऐसी लोक संवेदना साधना की ऐसी उद्यमशीलता, तप, समर्पण और लगन से ही प्राप्त होती है।

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प्रखर प्रज्ञा, आत्मतत्व, अनुभूति, एकाग्रता, तिरोधान, विवेकानंद.

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  1. गम्भीरानन्द स्वामी, (1998) युगनायक विवेकानन्द, खण्ड-1, R.K.M नागपुर, पृ. 25।

2. वही, खण्ड, पृ. 53।
3. गम्भीरानन्द स्वामी, (1973) भक्तमालिका, अध्याय-1, R.K.M नागपुर, पृ. 53।
4. गम्भीरानन्द स्वामी, (1994) युगनायक विवेकानन्द, खण्ड-1, नागपुर, पृ. 26।
5. वही, अध्ययाय-1 पृ. 53।
6. विवेकानन्द साहित्य, खण्ड-6, अद्वैत आश्रम, कोलकत्ता 1990, पृ. 189।

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परिवार की भांति ही नातेदारी सामाजिक संस्था एवं सामाजिक संगठन का मौलिक एवं प्राचीन आधार है। आदिम समाजों में लोगो को संबंधो में बांधने वाला आधार नातेदारी ही था। यही कारण है कि आदिकाल से परिवार सामाजिक संगठन का आधार रहा है। नातेदारी अधिकारों तथा दायित्वों की वह व्यवस्था है जो न केवल परिवार के सदस्यों के संबंधों को परिभाषित करती है अपितु कई पारिवारिक इकाइयों के संबंधों को भी प्रकट करती है। नातेदारी व्यवस्था व्यक्तियों या परिवारों को जोड़ने वाली एक कड़ी है। नातेदारी को बंधुत्व, स्वजन, संगोत्र आदि कई नामों से जाना जाता है। नातेदारी एवं विवाह जीवन के आधारभूत तत्व है। यौनइच्छा ने विवाह को एवं विवाह ने परिवार एवं नातेदारी को जन्म दिया है, इस रूप में देखे तो नातेदारी प्रजनन पर आधारित होती है।

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परिवार, समाज, रीति-रिवाज, संबंध, नातेदारी.

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  1. Davis, Kingsley (1949) Human Society, MacMillan Company, New York, p. 392-429.

2. दुबे, एस. सी., (1960) मानव और संस्कृति, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 123.
3. Fox, Robin, (1968) Kinship and Marriage: An Anthropological Perspective, Penguin Books, London, p. 25.
4. कर्बे, इरावती, (1968) हिंदु समाजः एन इंटरप्रेटेशन, पुने, डेक्कन कॉलिज, पृष्ठ संख्या 36-40.