Privacy has emerged as a basic human right across the globe and in India too it has been recognized as a Fundamental Right under Article 21 of the Indian Constitution. Right to Privacy is closely related to the protection of data which in this technological and globalized world, has become very difficult to achieve. Further, violation of privacy rights by the Ruling majority through discriminatory legislation has also become possible due to lack of legal protection to this Right. In India, this Right was not initially recognized as a Fundamental Right, neither any specific law on data protection for securing the Rights of Privacy of the citizens was enacted. At the same time, there had been many allegations regarding violation of privacy rights both by the Government as well as by the Private Commercial Entities from time to time in India. Such allegations were also placed before the Courts of Law where the Courts had given landmark Judgements including guidelines and rulings. It thus becomes very important to analyse all these legal developments relating to the Right to Privacy and Data Protection to understand the extent of security granted by the Indian legal framework to the citizens over Right to Privacy.
Privacy, Data Protection, Sensitive Information, Confidentiality, Public Interest, Personal Information.
1. Jain Payal & Arora Kanika, “Invasion of Aadhaar on right to privacy: Huge concern of issues and challenges”, 45(2) Indian ILR, 33-35 (2018).
महाराष्ट्र में विभिन्न शैक्षिक केंद्र और विशेष स्थान थे जहाँ पढ़ाया जाता था। मध्ययुगीन भारत में शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना, आध्यात्मिक सुख प्राप्त करना और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना था। बहामनी काल के महाराष्ट्र में शिक्षा कुछ वर्गों तक ही सीमित थी। हिंदू धर्म में ब्राह्मण वर्ग विशेष रूप से प्रबल था। महाराष्ट्र में बहामनी काल में रक्षा और राष्ट्र रक्षा व्यक्ति और समाज की प्राथमिक आवश्यकता थी। आज की शिक्षा व्यवस्था का जो स्वरूप है वह अतीत में नहीं था। पहले शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए अब की तरह प्रशिक्षण केंद्र नहीं थे। अतः उस समय की शिक्षा व्यवस्था के सटीक स्वरूप की जानकारी उस समय के अग्रहारों, मंदिरों, मठों, ब्रह्मपुरी, मस्जिदों, मकतबों, मदरसों में होने वाले अध्ययन-अध्यापन से ही प्राप्त हो सकती है। इस शोध विधि के माध्यम से बहामनी कालखंड के दौरान शैक्षिक गतिविधियों का अध्ययन किया जायेगा।
बहामनी, कालखंड, शैक्षिक केंद्र, शैव, अग्रहार, मंदिर.
1. अग्निहोत्री ए. एच., (1977) महाराष्ट्र संस्कृति दार्शनिक संस्थान, सुविचार प्रकाशन मंडल, प्रथम संस्करण, नागपुर और पुणे, पृ. 147.
1857 ई. की क्रांति, सैनिक विद्रोह या भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह एक भारतीय विद्रोह था जिसमें भारतीय सिपाहियों ने योजना बनाई और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया। लम्बे समय से चले आ रहे दोहन और दमन की नीति ने ना सिर्फ सैनिकों बल्कि भारतीय समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रभावित किया था। जमींदार वर्ग, शासक, सैन्य वर्ग, किसान, मजदूर सभी ने इस विद्रोह में भाग लिया परन्तु इन सभी वर्गों के उद्देश्य अलग-अलग थे। राष्ट्रीयता की भावना के स्थान पर क्षेत्रीयता की भावना के कारण ही शायद यह विद्रोह उतना सफल नहीं हो पाया जितना होना चाहिए था। इस विद्रोह में कई क्षेत्रीय शासक जैसेः- नाना साहेब, रानी लक्ष्मीबाई, कँुवर सिंह, बहादुर शाह जफर, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे, खान बहादुर खान आदि ने भाग लिया था परन्तु उनके उद्देश्य भिन्न-भिन्न थे। यह क्रांति मेरठ से प्रारंभ होती हुई उत्तर भारत के कई राज्यों में फैल गई। यह विद्रोह सशस्त्र विद्रोह के रूप में शुरू हुआ जो ब्रिटिश सरकार के कब्जे के खिलाफ उत्तरी और मध्य भारत में प्रमुखता से देखने को मिलता है। यह विद्रोह चर्बी वाले कारतूस और सैन्य शिकायतों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुआ था। सैन्य कारणों के अलावे सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक तथा आर्थिक कारण भी थे जिसने इस क्रांति की रूप रेखा तैयार की थी। हालाँकि कुशल नेतृत्व एवं राजनीतिक एकता के अभाव में एवं उन्नत सैन्य उपकरण के अभाव में यह विद्रोह असफल रहा परन्तु इसके दूरगामी परिणाम हुए। जहाँ इस विद्रोह ने सत्ता को कंपनी के हाथों से बाहर निकाल कर ब्रिटिश ताज के अधीन कर दिया वहीं भारतीयों के बीच राष्ट्रीयता का संचार करना प्रारंभ कर दिया।
रेड्ड्रेगन, फरमान, व्यपगत नीति, चुँगी, अनुपस्थित प्रभुसत्ता, रेजीमेंट.
1. ग्रोवर बी. एल., मेहता अलका, यशपाल, आधुनिक भारत का इतिहास, एस चाँद एण्ड कम्पनी लि0, नई दिल्ली, 2010, पृ.- 183।
किसी भी देश के समग्र विकास के लिए यह आवश्यक है कि उस देश की महिला एवं पुरुष दोनों को समान अवसर मिले एवं समान प्रतिनिधित्व मिले। जब किसी भी देश में महिलाओं एवं पुरुषों दोनों को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है तो इसे ही लैंगिक भेदभाव कहा जाता है। दुनिया के अलग-अलग देशों में हमें कम या अधिक मात्रा में लैंगिक भेदभाव देखने को मिलता है। लैंगिक भेदभाव मानवता के खिलाफ है, लैंगिक भेदभाव एक ऐसी खाई है जिसे अगर पाटा नहीं गया तो समय के साथ-साथ यह और गहरी और चौड़ी होती चली जाएगी। लैंगिक समानता एक मजबूत एवं सुरक्षित राष्ट्र की नीव रखता है। आज दुनिया 21वीं सदी में है लेकिन फिर भी हमें लैंगिक भेदभाव दुनिया के लगभग सभी देशों में कम या अधिक मात्रा में देखने को मिलता है। लैंगिक भेदभाव चाहे वह विकसित राष्ट्र हो या विकासशील राष्ट्र हो सभी में यह कम या अधिक मात्रा में देखने को मिलता है। यदि हम भारत की बात करें तो भारत में भी हमें लैंगिक भेदभाव अधिकतर क्षेत्रों में देखने को मिलता है।
लैंगिक असमानता, मातृत्व मृत्यु अनुपात, लिंगानुपात, साक्षरता दर.
1. सिंह जे.पी., आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन, PHI Learning Pvt. Ltd. New Delhi, 2016.
Entrepreneurship development is a buzzword which is attracting each and everyone’s eyes in general and women particularly. The participation of women in entrepreneurship is significant and switch from region to country and society to society. However, a fully reality is that India too is finding the participation of women in this trend. From a piddling shop to a mega business magnet. We find women are finding a space for themselves. They don’t only think of profits in their business venture but also are contributing a lot to the society. This paper makes an attempt in understanding the concept and problems and challenges faced by women social entrepreneurs in India.
Women Entrepreneurship, Social taboos, Education and Training, Social enterprise.
1. Dhameeja S K Women Entrepreneurs (1985): Opportunities, Performance, problems, Deep and Deep publications, New Delhi
Food is the basic requirement of human being to sustain their life. Without proper and balanced amount of food human being cannot survive and may suffer from various diseases. Availability of nutritious and adequate food to all is protected by State. Availability of food is a basic human right. Right to food is one of the fundamental rights. It is the duty of State to provide food to all irrespective of age, sex, caste, social, political or economic conditions irrespective of any conditions of life. Right to food has been recognized at national as well as international level. Indian Constitution under Article-21(Right to Life) recognized right to food in implied manner. It has been observed by the Honorable Supreme Court in the case of PUCL v Union of India; that right to food is the basic human right of all human being and it is the duty of State to provide to nutritious handful amount of food to all to raise their living standard. Right to food ensures quantity and quality of food. To ensure quality and quantity National Food Security Act, 2013 was enacted in India. It ensures the availability of food grains to targeted beneficiaries. It provides food grains, cereal, oil and nuggets to ensures dietary recommendation value. Infant are protected under maternal benefits schemes whereas infants from the age group of six months to six years are benefitted by Anganwadi and from the age up to class fifth will be benefited from Mid-Day Meal Scheme etc. there are various person who don’t know about right to food and can’t access the benefit of right to food in India such as Beggar, destitute, poor illiterate people, refugees etc. if they don’t have Adhaar Card. Infants, people, children, male or female are malnourished in India. Rickets, undernutrition is prevalent in country where as on other side people are wasting the food and getting obesity due to consumption of large number of calories in their diet. India ranked high in Hunger index it is the matter of thought that why people are malnourished and living on starvation. It is the duty of State and people to implement laws for the protection of right to food for all in all conditions of life and eradicate hunger, malnutrition from the State.
Right to food, National food security act, Food.
1. Verma Mukta Dr., Right to Food as Human Right: Issues and Challenges, GAP INTERDISCIPLINARITIES, Volume-II, Issue III,373-376, October 2019, 2581-5628,101-106.
प्रत्येक स्थापत्य शैली की मूलभूत अवधारणाएँ एक अद्वितीय संस्कृति और युग को दर्शाती हैं। भगवान का निवास और भक्ति का स्थान होने के अलावा, हिंदू मंदिर डिजाइन भारत में ज्ञान, शिल्प कौशल, इंजीनियरिंग और संस्कृति का भी घर है। मंदिर के रीति-रिवाज न केवल वर्तमान में मौजूद हैं, बल्कि मूल रूप से इसके रिश्तेदारों के सामाजिक-सामाजिक अस्तित्व को भी प्रभावित करते हैं, साथ ही पारंपरिक भारतीय गुणों को भी बढ़ावा देते हैं। भारतीय मंदिर डिजाइन की उन्नति को कठोर चिंतन से प्राप्त पहले पुराने उदाहरणों के प्रति एक अडिग दायित्व की विशेषता दी गई है, जो लंबे समय से चला आ रहा है। हिंदू मंदिर का डिज़ाइन अपनी संपूर्ण विकास प्रक्रिया के दौरान हिंदू धर्म और दर्शन से अत्यधिक प्रभावित रहा है, जो आज भी जारी है। नतीजतन, यह पेपर, भारतीय मंदिर डिजाइन के साथ पुरानी रचनाओं और वर्तमान अन्वेषण सौदों के रिकॉर्ड किए गए शोध और अन्य कथा, अमूर्त और काल्पनिक परीक्षाओं के प्रकाश में, पवित्र हिंदू मंदिर के विकास के लिए पुराने समय से अपनाए गए विचारों की व्याख्या करता है।, मंदिर के डिज़ाइन और चक्रों के विकास में लगा विज्ञान, साथ ही ऐसी संरचनाओं के निर्माण के लिए अपेक्षित विशेषज्ञता। प्राचीन हिंदू मंदिर के निर्माण में कला, विज्ञान और दर्शन सभी शामिल थे, जो प्राचीन काल की तरह आधुनिक दुनिया के लिए भी प्रासंगिक बना हुआ है, और जिसका पता मानव चेतना की उत्पत्ति से लगाया जा सकता है।
मंदिर, मूर्तियां, शिल्प कौशल, वास्तुकला, विभिन्न मंदिर शैलियां.
1. ग्रोवर, बी. एल. (2002) भारतीय स्थापत्यकला, नगरकला प्रकाशन।
किसी भी देश व प्रांत के क्षेत्र के सम्पूर्ण विकास के लिये प्रशासन अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक अंग होता है। प्राचीन छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक व्यवस्था की जो परिपाटी थी वह प्रायः कल्चुरि काल में विद्यमान थीं। छत्तीसगढ़ में लम्बे समय तक कल्चुरि राजवंश की अधिसत्ता रही है। इस राजवंश ने 11वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी मध्यान्त तक शासन किया था। दक्षिण कोसल के कल्चुरि, चेदि कल्चुरियों के वंशज थे, जिनकी राजधानी पुरानी शहर त्रिपुरी थी। इन कल्चुरियों ने छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक नए काल की शुरूआत की है। लक्ष्मण राज ने त्रिपुरी से अपने पुत्र कलिंगराज को भेजा। कलिंगराज ने न केवल तुम्माण को अपने अधिकार में किया वरन अपने बाहुबल से दक्षिण कोसल का जनपद भी जीत लिया। उसने तुम्माण को अपनी राजधानी बनाया और दक्षिण कोसल में कल्चुरियों की वास्ताविक सत्ता की स्थापना की एवं नये सिरे से कल्चुरि राज्य की नींव 1000 ई. में डालकर अपनी शक्ति में वृद्धि कर ली। कुछ समय बाद कल्चुरि राज्य रतनपुर और रायपुर दो भागों में विभाजित हो गया। रतनपुर में कल्चुरि शासन 1741 ई. तक रहा। रायपुर में इनकी एक शाखा आई जिसे लहुरी अर्थात कनिष्ठ शाखा भी कहते हैं। कल्चुरि कालीन छत्तीसगढ़ का समाज श्रम विभाजन के आधार पर बंटा हुआ था। उसके अधिकार और कर्तव्य बंटे हुए थे। प्राचीन छत्तीसगढ़ में वर्ण व्यवस्था अपना स्थान प्राप्त कर चुके थे किंतु कट्टरता का अभाव था। राजपद प्राप्त करने के लिये क्षत्रिय वंश होना आवश्यक नहीं था। हिंदू समाज का स्वरूप संकुचित न होकर व्यापक था। यही कारण है कि शक, कुषाण, गुर्जर आदि विदेशी जातियों को हिंदू समाज में समाहित कर लिया गया। ब्राह्मणों का विशेष स्थान तथा सम्मान था।
कल्चुरि, रतनपुर, माहिष्मति, तुम्मान, दोगनी, पंसेरी.
1. मिराशी, वासुदेव विष्णु, कापर्स इन्क्रिप्शन इंडीकेरम उटकमंड भाग-4, 1955, पृ. 9।
छत्तीसगढ़ की आंतरिक सुरक्षा में माओवादी सबसे बड़ी समस्या है। लोकतांत्रिक देश भारत में अलोकतांत्रिक सरकार की मांग को लेकर लडने वाले माओवादी और राज्य की सुरक्षा में लगे सुरक्षाबलों के मध्य लड़ाई में जनता निर्णायक है। माओवादी बिना जनाधार के अपने सपने को पूरा नहीं कर पायेंगे, उसके लिये उन्हे बहुत से लोगो का खून बहाना होगा। बीजापुर क्षेत्र की सामरिकी, दृष्टि से नक्सलियों के लिये महत्वपूर्ण केन्द्र है। यहॉ उनका बढ़ता जनसंगठन जनता सरकार के धूमिल ख्वाब का आभास देता है। माओवादी सैन्य शखा के गतिविधियों से सुरक्षाबलों ने बखुबी से लड़ते और रोकते आ रहे है, लेकिन नई बढ़ती माओवादी भर्ती हमें चेतावनी दे रही है कि माओवादी सैन्य और जनसंगठन में बहुत आगे बढ़ चुकी है। सैन्य शाखा कभी भी हमारे सुरक्षा बलों से जीत नहीं पायेगी, लेकिन माओवादी जनसंगठन को रोकने के लिये प्रशासन व शासन को जनता का जनाधार बढ़ाना होगा, क्योंकि विचारधारा की लड़ाई में विश्वास अहम भूमिका अदा करता है। बीजापुर जिले में घटता जनाधार छत्तीसगढ़ की आंतरिक सुरक्षा के लिये महत्वपूर्ण विषय है।
बीजापुर, सुरक्षाबल, माओवादी, आंतरिक सुरक्षा, लोकतंत्र.
1. BIJAPUR POLICE. (n.d.). https://www.bijapurpolice.cg.gov.in/. Accessed 1 December 2023.
The paper identifies and analyzes the causes that affect non-performing assets (NPAs), hinder its effective observance, and recommends appropriate measures to ensure their effective monitoring and control. The banks selected for this research work are having higher NPAs and are top banks in their sector. As per the Global Financial Stability Report of International Monetary Fund (IMF, 2009), identifying and dealing with distressed assets, and recapitalizing weak but viable institutions and resolving failed institutions are stated as the two of the three important priorities which directly relate to NPAs. This research work finds the reasons for non-performing loans. Sectoral disparities in the NPA ratio to advances in public and private sector banks were the main source of motivation to analyze and compare factors affecting non-performing assets (NPAs) of public and private sector banks in India. The article paper presents the comparison between the private sector banks and public sector banks is to outcast the impact between them and the reasons behind the banks on non-performing assets and to suggest the way to reduce the non-performing assets and also causes for the increase in non-performing assets.
Non-Performing Assets, Profitability, Banks, Public Sector, Private Sector, Bank Credit.
1. Priyanka Mohanani, Monal Deshmukh 2013" A study of Non –Performing Assets on Selected Banks”, International journal of Science and Research (IJSR) Volume 2 Issue 4 India online ISSN: 2319-7064, April, pp. 278-281
In India, the banking sector plays an essential role in the economy and contributes to a key source of financial intermediation. It promotes the mobilization of savings by individuals and businesses and encourages them to make productive investments. Providing security, liquidity, and support for different economic activities is a pillar of the economy that contributes to overall socioeconomic development. In this study, five-five leading private and public sector banks were taken based on market capitalisation. The period of the study was 2019-20 to 2021-22, for which secondary data was selected. The study was conducted to know the leading public and private sector banks and their reach across the country, and also to study the net interest margin of these banks.
Indian Banking Structure, Net Interest Margin, Market Capitalization, Indian Econom
1. Antil. P and Aggarwal. A (2017). A study of Indian banking sector. International journal of multidisciplinary research and development, 4(6):366-368.
वैश्वीकरण एक जटिल घटना है जिसने मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है, जिसमें लैंगिक भूमिकाएं और संबंध शामिल हैं। महिलाएं कई तरह से प्रभावित हुई हैं और भारत इसका अपवाद नहीं है। प्रस्तुत शोधपत्र भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जांच करता है, तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता हैः आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक। अध्ययन से पता चलता है कि जहां वैश्वीकरण ने भारत में महिलाओं के लिए नए अवसर पैदा किए हैं, वहीं इसने लैंगिक असमानताओं और भेदभाव को भी कायम रखा है। लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से नीतियों को स्थानीय संदर्भ को ध्यान में रखना चाहिए और भारत में महिलाओं की जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। वैश्वीकरण ने लाभ और चुनौतियां दोनों लाते हुए दुनिया को बदल दिया है। इसने आर्थिक विकास और गरीबी में कमी लाने में योगदान दिया है, इसने आय असमानता, पर्यावरणीय गिरावट और कुछ क्षेत्रों में नौकरियों के नुकसान में भी योगदान दिया है। वैश्वीकरण ने आर्थिक असमानता, पर्यावरणीय गिरावट और सांस्कृतिक समरूपता सहित महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी पेश की हैं। व्यापार और निवेश नीतियों के उदारीकरण ने प्रतिस्पर्धा में वृद्धि की है और नौकरी के नुकसान और कुछ क्षेत्रों में मजदूरी में गिरावट आई है।
मीडिया, महिला शिक्षा, महिला एवं समाज, वैश्वीकरण, महिला।
1. एंडियप्पन, वी., और वान, वाई। (2020), प्रक्रिया प्रणाली इंजीनियरिंग में विशिष्ट दृष्टिकोण, कार्यप्रणाली, विधि, प्रक्रिया और तकनीक, स्वच्छ प्रौद्योगिकी और पर्यावरण नीति, 22 (3)
Internet gaming plays a major role in the lives of teenager because of the time gradually increasing time window that they spend on gaming. Teens rely on social media to connect with friends. A significant amount of their social interaction takes place online as the games are connected to their social media id(s) too, in case of role playing group gaming. The main motive of unwinding and recreation has undergone massive changes and this has turned itself into addiction. This paper aims at defining the technology addiction via gaming discussing the various reasons of addiction. Asides that the changeover from engagement to technology addiction is also discussed along with the positive and negative effects of online gaming amongst teenagers.
Internet Gaming, Addiction, Teenagers, New media games.
1. Basol, G., & Kaya, A. B. (2017). A Scale Development Study: Motives and Consequences of Online Game Addiction. Noro Psikiyatri Arsivi. https://doi.org/10.5152/npa.2017.17017
पर्यावरण मानव जीवन पद्धति के लिए यदि अनिवार्य अंग है तो इसका संरक्षण और बचाव भी मानव का परम कर्त्तव्य बन जाता है। पर्यावरण संरक्षण मानवीय जीवन के लिए अति आवश्यक विषय-वस्तु बन गया है। इस दिशा में वैश्विक एवं भारत दोनों ही स्तरों पर अनेक प्रयास एवं आन्दोलन अनवरत जारी है। पर्यावरण संरक्षण में स्त्री की भूमिका महत्वपूर्ण है। पर्यावरण को बचाने के लिए स्त्रियों ने योगदान दिया है। महिलायें वैदिक काल से ही पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में रही है, उसका उदाहरण तुलसी पूजा एवं वट वृक्ष पूजा है। भारतीय महिलायें सदैव इस दिशा में कार्यशील रही है। हमारी भारतीय ंसंस्कृति को देखने पर रीति-रिवाजों, परम्पराओं में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता दिखाई देती रही है। भारतीय महिलायें सदैव से ही पर्यावरण संरक्षण में पुरुषों से आगे रही हैं, इसका पता हमें विभिन्न पर्यावरण संरक्षण के आन्दोलनों का अध्ययन करने पर चलता है। महिलाओं ने पर्यावरण व वनों की रक्षा के लिये कई आन्दलनों में भाग लिया इनमें अग्रणी भमिका निभायी है और अपने प्राणों की आहूति तक दी है। कार्ल मार्क्स का कथन है कि ‘‘सृष्टि में कोई भी बड़े से बड़ा सामाजिक परिवर्तन महिलाओं के बिना नहीं हो सकता’’। अतः महिलाओं ने सदैव ही पर्यावरण संरक्षण की बात की है।
पर्यावरण संरक्षण, आन्दोलन, महिलायें, प्राकृतिक वातावरण।
1. गर्ग, बी.एल. (2003). पर्यावरण प्रकृति और मानव, शब्द साधना, अजमेर, प्रथम संस्करण।
प्रेमचंद्र जी समग्र के कथाकार हैं। गोदान में सबकी कथा है, किन्तु पहले गाय को लें। गाय से कथा आरम्भ होती है, गोदान पर समाप्त होती है। प्रेमचंद्र व्यवस्था, व्यक्ति और विचार तीनों में सुधार और समन्वय चाहते हैं। वे किसी वर्ग के लिए नहीं सम्पूर्ण मनुष्य के लिये चिंतित हैं। हर किसान को गाय चाहिए गोरस के लिये, बैल के लिये, गोबर (खाद) के लिये। आवश्यकता और उपयोगिता की चेतना ने गाय को पूज्य बना दिया। गोदान का ढाँचा ऊपर से आर्थिक- राजनीतिक है, किन्तु मानवी और सांस्कृतिक है। गाँव और शहर अलग-अलग अर्थव्यवस्था वाले हैं। गाँव भारत की पहचान हैं, यदि सही अर्थों में भारत को जानना है तो हमें भारत और भारतीय ग्रामों को जानना होगा। गोदान अपने रचना-काल के सम्पूर्ण भारतीय जनमानस की महागाथा है। मुन्शी प्रेमचंद्र के कालजयी उपन्यास गोदान को अनेक तरह से व्याख्यायित और विश्लेषित किया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र में ग्रामीण जीवन के परिप्रेक्ष्य में गोदान का विवेचन किया गया है।
सांस्कृतिक, जनमानस, परिप्रेक्ष्य, गोदान।
1. प्रेमचंद, गोदान, पृष्ठ क्र. 45, 47, 98, 262, 277, 278।
ऐतिहासिक रूप से भारत में कई पड़ोसी देशों के शरणार्थियों आए हैं। शरणार्थी राज्य के लिये एक समस्या बन जाते हैं क्योंकि इससे देश के संसाधनों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है साथ ही अवधि में जनसांख्यिकीय परिवर्तन में वृद्धि कर सकता है, इसके अतिरिक्त सुरक्षा जोखिम भी उत्पन्न हो सकता है। भारत में शरणार्थियों की समस्या विभाजन के बाद शुरू हुई और इसके बाद भोजन, आश्रय, दवा, स्वच्छता जैसी बुनियादी जरूरतों से लेकर अपनी मातृभूमि को खोने की भावनात्मक उथल-पुथल तक कई मुद्दों का सामना करना पड़ा। इससे सीमाओं के दोनों ओर शरणार्थियों में वैमनस्य की भावना भी पैदा हो गई, जो अपने नुकसान के लिए दूसरे राष्ट्र के लोगों को जिम्मेदार मानते है। हालांकि शरणार्थियों की देखभाल मानवधिकार प्रतिमान का मुख्य घटक है। इसके अलावा किसी भी स्थिति में भारत में शरणार्थी प्रवास के भू-राजनीतिक, आर्थिक, जातीय और धार्मिक संदर्भों को देखते हुए इसके जल्द समाप्ति की संभावना नहीं दिख रही है।
शरणार्थियों, शरण एवं संरक्षण, आश्रय।
1. ww.dhyeyaisa.com
Morphological characters are features of external form or appearance. They currently provide the characters used for practical identification and some of those used for hypothesizing phylogenetic relationships. These features have been used for a longer time than anatomical or molecular evidence, and they were the only source of taxonomic evidence in the beginnings of plant systematics. Morphological characters are easily observed and find practical use in keys and descriptions; the characters used in phylogeny reconstruction may not so easily observed. Characters of both sorts are found in all parts of the plants, both vegetative and reproductive. The objective of the present study was to morphological characterization of three species of Indigofera viz., Indigofera endecaphylla Jacq., Indigofera enneaphylla Linn. and Indigofera linifolia (L.f.) Retz. through some qualitative and quantitative morphological parameters. Characters of plant, leaf, inflorescence, flower, fruit and seed were taken into account. The most significant morphological parameters differentiate three species were: habit, stem nature, leaf type, length of leaf rachis, number of leaflets, pod shape & arrangement and seed per pod, seed shape & colour.
Morphological Characterization, Indigofera, Plants Systematics, Vegetative, Reproductive.
1. Edeoga, H.O. and A.U. Eboka, 2000. Morphology of the leaf epidermis and systematics in some dissotisbenth species. (Melastomataceae) Global J. Pure and Applied Sci.6: 371-374.
भारत में जल संरक्षण का बहुत पुराना इतिहास है यहां जल संरक्षण कि एक मूल्यवान पारंपरिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपरा है जो हड़प्पा सभ्यता वैदिक काल से उत्तर वैदिक के साक्ष्यों में परिलक्षित होती है।
जल, पुरातात्विक, धरोहर, जोहड़, संग्रहण, साहित्य।
1. पाण्डेय जे.एस., ऋग्वेदिक समाज, ऋग्वेद, 11.11.2002।
स्वातंत्र्योत्तर कथा-साहित्य में कथाशिल्पी राजेन्द्र यादव अपने विशिष्ट कथ्य एवं शैली सम्बन्धी निश्चल किरणों की भाँति स्थितप्रज्ञ थे। उनकी संपादकीय और कथा-लेखन समाज को एक नया आयाम प्रदान करता है। आज़ादी के बाद भारतीय समाज के इर्द-गिर्द मोह भंग, भ्रष्टता, बेरोजगारी, विश्वासहीनता, अकेलापन, स्त्री शोषण, जाति-भेद, आक्रोश, घुटन, अज्ञान आदि मंडरा रहे थे। इन्ही बीच मानव जीवन थम सा गया था। वह नयी जीवन दशाओं, नयी विचारधाराओं, नयी परंपरा जैसे संधान के लिए सक्रिय रहा है। वर्तमान भारतीय समाज पारम्परिक, रुढ़ियों, स्त्री शोषण, संस्कारों, व्याप्त भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, जाति, धर्म भेंद आदि से मुक्ति पाने की कोशिश में लगा है। स्वार्थपरता तथा जीवन गत आपा-धापी के चलते स्त्री के प्रति हीनता बोध, जुल्म सहती स्त्री, धार्मिक परंपराओं से जकड़ी हुई स्त्री, अनमेल विवाह, शिक्षा से वंचित स्त्री, दाम्पत्य जीवन में अस्थिरता, स्त्री का अनजान पुरुष मित्र का होना, घर की चार दीवारों में चित्कारती गूँज अनुगूँज में स्त्री को मानों कैद कर रखा था। स्त्री के इन्ही सामाजिक कुरीतियों, मान्यताओं एवं स्त्री शोषण, स्त्री हीनता जैसे धारणाओं को कथा-शिल्पी राजेन्द्र यादव ने नयी परिस्थियाँ, विचारधाराओं, मान्यताओं तथा नये मूल्यों को अपने कथा-साहित्य कलात्मकता से प्रस्तुत किया है। जो स्त्री को एक नई पहचान भी मिलता है।
कथा-साहित्य, सामाज, राजेन्द्र यादव।
1. ‘राजेन्द्र यादव प्रतिपक्ष की आवाज’, सं. डॉ. विश्वमौली, डॉ. राम बचन यादव, साहित्य भण्डार प्रयागराज, पृष्ठ-216।
श्वेत महाद्वीप के रूप में पहचाने जाने वाला अंटार्कटिक महाद्वीप भविष्य में बड़ी शक्तियों के मध्य रस्साकशी का क्षेत्र बनने की आशंका है। अंटार्कटिक संधि प्रणाली के वर्ष 1959 में लागू होने के पश्चात् भी कई देशों ने टेरोटेरियल क्लेम किया हुआ है। भारत वर्ष 1981 से अब तक कुल 41 अभियान दल अंटार्कटिक महाद्वीप में सफलतापूर्वक भेज चुका है। भारतीय अभियान दल पूर्णतः वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन एवं प्रशिक्षण तक सीमित रहा है। चूंकि भविष्य की सम्भावित चुनौतियों के दृष्टिगत भारत को अपने उद्देश्य में नवीन बदलाव की आवष्यक्ता है। भारत को अपने अंटार्कटिक बजट में वृ़द्ध तथा नवीन प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केन्द्र की आवश्यक्ता हैं।
भारत, अंटार्कटिक, बजट।
1. अंटार्कटिक के पहले भारतीय अभियान की वैज्ञानिक रिपोर्ट, महासागर विभाग, भारत सरकार, 2016.
“Where the Mind is Without Fear” is a beautiful poem by a noble laureate, Rabindranath Tagore, who expresses his overwhelmed heart in this extremely famous literary composition. He exhibits his far-sightedness for a loving nation by showering his absolute trust in the master of the Universe. This poetic literary piece is well received and appreciated as an inspiration for the women fraternity supporting for an improvement in their social and economic status. Women of our nation shall come out of the shackles of strict domestic four-walls and that is possible by educating them. Education will further lead to social justice to sustain their healthy and strong existence. This thought provoking poem truly conveys an action-idea to eliminate the rudimentary dead habits Like Sati system, Dowry system, and Child marriage etc. from our regular practices working upon the upliftment of our Indian Women. This Research study aims at igniting and raising the voice for the most needed freedom of women. Also women to avail an active support and participation in the nationalist movements and securing eminent positions and offices in administration and public life in free India. It channelizes the strength so as to empower the women by directing their efforts towards perfection.
Rudimentary, Igniting, Empowering women, Women’s freedom and Action.
1. https://fortnightlyreview.co.uk/2013/04/rabindranath-tagore/
लोकसाहित्य, लोकोक्ति, शिल्प।
1. श्रीवास्तव राजेश, लोक साहित्य, प्रकाशक कैलाश पुस्तक सदन, हमीदि मार्ग, भोपाल, संस्करण-2011
नाथ सम्प्रदाय के चार सिद्ध योगीश्वर में गोरखनाथ की आध्यात्मिक चिंतन पद्धति तात्कालीन बौद्धों, शैवों, शाक्तों आदि के विभिन्न समुदायों के अतिरिक्त सर्वथा एक नवीन साधना पद्धति रही है। नाथ परंपरा, निर्गुण परम्परा को प्रेरित-प्रभावित करने वाली एक आध्यात्मिक चिंतन पद्धति थी। इनका अद्वैत, शंकराचार्य के अद्वैत से विलक्षण था, भगवान बुद्ध की चिंतन पद्धति से अलग था। यद्यपि महायान शाखा के बौद्ध साधकों ने तन्त्र और योग पर निष्ठापूर्वक कार्य किया तथा भारतीय तन्त्र एवं योग से तादात्म्य स्थापित करते हुए एक दूसरे में समाविष्ट हो गये। भारतीय दर्शन में योग और तन्त्र प्रणाली के पुरस्कर्ता आदियोगी भगवान शिव माने जाते रहे हैं और नाथपंथ इन्हीं आदियोगी को अपने से जोड़कर देखते हैं। ये बौद्ध धर्म के किसी भी प्रभाव से अपने को अप्रभावित मानते हैं। इनकी अपनी विशिष्ट साधना पद्धति, आचार एवं नियम रहे हैं। सिद्ध होते हुए भी इनकी चिंतन पद्धति सर्वथा विशिष्ट थी। इन्हें सिद्धमत, सिद्ध मार्ग, योगमार्गी, अवधूत सम्प्रदाय, आदि नामों से भी जाना जाता है।
शिव, गोरख सिद्ध, नाथ सम्प्रदाय, दर्शन, धर्म, तंत्र।
1. द्विवेदी ब्रजबल्लभ, आगम और तन्त्रशास्त्र, परिमल पब्लिकेशन दिल्ली, पृष्ठ सं. 60।
शोधकर्ता द्वारा जब अपनी शोध समस्या हेतु परीक्षण का निर्माण करना चाहता है तो उसके सम्मुख प्रमुख समस्या यह होती है कि एकांश के पद परीक्षण मे रखने योग्य है अथवा नही। इसी समस्या के समाधान हेतु वह विषय विशेषज्ञों से परामर्श करता है। विषय विशेषज्ञों के दिये गये सुझाव के अनुसार कार्य करता है। एकांश विश्लेषण एक ऐसी प्रविधि है जिसके द्वारा परीक्षण पदो का चयन किया जाता है तथा असंगत एकांशों को निरस्त किया जाता है अथवा उसमे सुधार किया जाता है। परीक्षण के लिए एकांशो का चयन कर उसका विश्लेषण किया जाता हैं तथा परीक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। परीक्षण की प्रमुख विशेषताएं परीक्षण के पदो पर निर्भर करती है और उसकी सबसे प्रमुख विशेषता उसकी वैधता होती है। शोधकर्ता द्वारा परीक्षण निर्माण करते समय उसे उत्तम एव प्रभावशाली बनाने के लिए परीक्षण के प्रमुख आयामों का चयन कर उसका अलग-अलग विश्लेषण करता है।
शोध, अनुसंधानकर्ता, प्रमापीकृत, स्वनिर्मित मापनी।
1. सिंह लाल साहब, (1997) मापन, मूल्यांकन एवं सांख्यिकी, साहित्य प्रकाशन,आगरा,उ0 प्र0।
वर्तमान परिपेक्ष्य में बढ़ती हुई अपराध की संख्या निश्चित रूप से एक गंभीर समस्या के रूप में हमारे सामने है, अतः उक्त शोध अध्ययन में पुर्व के कुछ शोधो का अध्ययन कर अपराधो में कमी लाने हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए गए है। अपराध एक अवैधानिक कार्य है जो कि दंडनीय है एवं क्षम्य नही है। वर्तमान परिपेक्ष्य में चोरी, बलवा, दंगा, बलात्कार, दहेज, अपहरण, मारपीट, धोखाधड़ी जैसे विभिन्न अपराधों के साथ-साथ साइबर अपराध भी एक गंभीर समस्या के रूप में हमारे सामने है। निर्धनता, बेरोजगारी, अशिक्षा, कानून व्यवस्था में लचीलापन, आदतन अपराधी जैसे कारण अपराध हेतु उत्तरदायी है जिनके उपाय हेतु लीगल कैम्प, लोगो में जागरूकता, शिक्षा की उच्च स्तर जैसे विभिन्न उपाय किए जा रहे है। बावजूद अपराध कम होने के बजाय निरंतर बढते जा रहे है। अतः कानून एवं सरकारी प्रयास तभी सफल हो सकते है जब लोग स्वयं अपराध के परिणामों को समझकर अपराध करने से बचे।
अपराध, बेरोजगारी, दहेज प्रथा।
1. आई.आर 2001 एस.सी. 1820।
Agriculture is the main source of livelihood of the people of West Champaran district of Bihar. 2,78,519 hectares of land out of 4,84,351 hectares land is cultivatable. District is situated on north-west part of Bihar which is rich in soil fertility. After partition during 1950s, many Bangladeshi Hindu migrants were rehabilitated in different parts of the district. At present their population is about 1.5 lakhs. This community is mainly dependent upon the agriculture sector for their livelihood. Paddy, Wheat, sugarcane, and vegetables are main agricultural products they produce. To feed the rapid growth of population it is a challenge to maintain the healthy relationship between production and sustainable agricultural practices. Land and water issues, small and fragmented landholdings, recurring floods, usages of chemical fertiliser, marketing of agricultural produces etc create hurdle in sustainability of agriculture that poses threat to the three pillars of sustainability of environment, economy, and society with harmony. This paper tried to assess the dependency on agriculture as livelihood and sustainability in agricultural practices. Data have been collected from primary as well as secondary sources. Primary data have been collected from Panchayat level by Schedule method. The nature of the paper is descriptive and analytical. This paper also focuses on the possible measures to be taken for retaining the sustainability of agriculture as a source of livelihood in West Champaran.
Agriculture, Livelihood, Sustainability, Bangladeshi Migrants.
1. Acharya S. S., (2006), Sustainable Agriculture and Rural Livelihoods, Agricultural, Economics research review, Volume-19
Land resource is considered as an important resource as it provides space for all kind of human activities but the haphazard manner of urban land uses exposes as a challenge to its sustainability. Rapid population growth and the process of urbanisation have resulted in an increasing demand for land in urban areas. The mismatch between the supply and demand of land leads to the degradation of the land resources. The rate of urbanisation of Koderma district has increased from 17.4% to 19.72% in 2011 and number of towns has also increased from 2 in 2001 to 5 in 2011. There will be rapid expansion of built-up land, huge quantity of solid waste generation and concentration of slum areas in the cities which will threaten the sustainability of land resources. The concept of sustainable utilization of land resource calls us for the judicious use of it without compromising the needs of future generation. This paper aims at understanding the relationship between the increasing rate of urbanisation and degrading the sustainability of the land resources. For this research paper primary as well as secondary data have been used. Primary data have been collected from interviewing the concerned people and field observation. Secondary data have been collected from various Government reports and municipal offices. The nature of the paper is descriptive and analytical. This paper further suggests the possible steps to maintain the sustainability of land resources and urbanisation in and around the cities.
Urbanisation, Land Resource Utilisation, Degradation, Sustainabilty.
1. Vani, M., and Kamraj, M., (2016). Impact of Urbanisation on Lakes: A case study of Hyderabad Journal of Urban and Regional Studies. Volume 5 Number 1. Retrieved from http://www.academia.edu /36540228/IMPACT_OF_URBANISATION_ON_LAKES_A_Case_Study_of_Hyderabad
Financial reporting by way of EVA has the merit of structuring transactions without deluding the stakeholders about the underlying economic performance of the company or influence contractual outcomes that depend on reported accounting numbers. The present paper shall find out how the linkages between the corporate governance and EVA as an regulation, could curb the tradition of putting forward the practice of creative accounting into the positive accounting theory and make the users aware of such a scope is the need of the hour. This study broadly aims at looking out for solutions in bridging the gap in existing knowledge of value based relationship between corporate governance and the wealth measure performance paving the way to mainstream of thinking on ethics without misuse of accounting standards. The study has also contributed to identify the scandals of corporate governance recoiled due to creative accounting by exploring various national and international relevant case studies that have precipitated significant implications on the Indian corporate sector.
Corporate Governance, Economic Value Added, Ethics, Creative Accounting.
1. Aiyar V. Shankar & Abreu Robin, Breach of trust, India Today, October 19, 1998
हिंदी साहित्य में मैथिलीशरण गुप्त का नाम सर्वविदित है। गुप्त जी का उदय हिंदी साहित्य में ऐसे समय में हुआ जब हिंदी ब्रजभाषा को छोड़ खड़ीबोली अपना रही थी। हिंदी साहित्य में पद्य के समानांतर गद्य को भी महत्व मिल रहा था। वास्तविकता यह है कि हिंदी गद्य साहित्य का यह पल्लवन काल था, विकासकाल था। साहित्य किसानों से, मजदूरों से, गांवों से, आम जनता से जुड़ रहा था। साहित्यिक कमान आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसी शख्सियत के हाथो में थी। ‘‘सरस्वती‘‘ पत्रिका लेखकों एवं कवियों के लिए सर्वाधिक प्रतिष्ठित मंच थी। गुप्त जी भी अपनी रचनाओं के साथ ‘‘सरस्वती‘‘ में छपने का सम्मान पाते थे। कवि गुप्त ने नाटकों की भी रचानाएँ की हैं। इस तथ्य को व्यापक प्रसिद्धि नहीं मिली। सच तो यह है कि गुप्त जी के विराट कवि व्यक्तित्व के सामने उनका नाट्य व्यक्तित्व प्रस्फुटित तो हुआ परंतु पल्लवित नहीं हो सका। समसामयिक समस्याओं को उजागर करने के लिए उन्होंने पाँच मौलिक नाटक लिखे: अनघ, चंद्रहास, तिलोत्तमा, निष्क्रिय प्रतिरोध और विसर्जन। साथ ही महाकवि भास के अनेक संस्कृत नाटकों का भी उन्होंने हिंदी में अनुवाद किया। इससे सिद्ध होता है कि गुप्त जी में नाटक लिखने की प्रतिभा तो थी परंतु दृष्टि उतनी व्यापक नहीं थी जो उन्हें नाटककारों की श्रेणी में खड़ा कर सकती थी। इस शोध पत्र में गुप्त जी के नाट्य कौशल की संक्षेप में विवेचना की जायेगी।
मैथिलीशरण गुप्त, नाटक, गद्य।
1. डॉ नगेन्द्र, मैथिलीशरण गुप्त काव्य संदर्भ कोष।
समाचार प्रकाशित करने के पहले संपादक और प्रबंधन यह तय करता है, कि कौन से स्रोतों को रिपोर्ट का हिस्सा बनना अथवा नहीं। इसके पीछे इसमें मीडिया आउटलेट, मालिक और यहाँ तक कि विज्ञापनदाता भी शामिल होता है, क्यूंकि किसी भी समाचार पत्र का राजस्व उसमे प्रकाशित होने वाली ख़बरों पर आधारित होता है। आज इन्टरनेट और पेड मीडिया के दौर में संपादक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि कैसे ख़बरों की प्रमाणिकता को बनाये रखते हुए विज्ञापनदाता के हितों का भी ध्यान रखा जा सके। यह पत्र समाचार उत्पादन के सामाजिक स्तर पर उन मुद्दों का अध्ययन करता है जो समाचार निर्धारण के कारक हैं। समाचार, समाचार मूल्यों, गेटकीपिंग और मीडिया सामग्री पर प्रभाव जो समाचार संगठनों के लिए आंतरिक विषयवस्तु हैं, का सूक्ष्म-स्तरीय अध्ययन कर यह पत्र, विश्लेषण करने के लिए सामाजिक सामग्री संगठन दृष्टिकोण का उपयोग करता है।
समाचार उत्पादन, गेटकीपिंग, समाचार मूल्य, समाचार संगठन, विकासशील देश, मास कम्यूनिकेटर।
1. एल्थाइड, डी. ‘क्रिएटिंग रियलिटीःहाउ टीवी न्यूज़ डिसटॉर्ट इवेंट्स’, लन्दन, सेज 1976।