स्वतंत्रता के पश्चात् जो आर्थिक संरचना देश को विरासत में प्राप्त हुई उसकी स्थिति बहुत दयनीय थी। देश के विभाजन में देश कि स्थिति को और दयनीय बना दिया था। विभाजन के कारण कपास और जूट जो देश से प्रमुख निर्यात वस्तुए थी, उनके उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले गये। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में विदेशी व्यापार उपनिवेशवादी व्यापार का रूप लिये हुए था। अधिकांश व्यापार ब्रिटेन तथा राष्ट्रमंडलीय देशों के साथ होता था। देश के आर्थिक विकास में कृषिगत वस्तुओं का निर्यात महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विदेशी व्यापार में कृषि उत्पादित वस्तुओं का योगदान एवं भूमिका का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है। प्रस्तुत शोध पत्र के वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 तक भारत के कुल निर्यात में कृषिगत वस्तुओं के निर्यात का विश्लेषण किया गया। कृषिगत वस्तुओं के व्यापार का अध्ययन कर देश की अर्थव्यवस्था में कृषिगत वस्तुओं के महत्व को जानने का प्रयास किया गया हैं।
विदेशी व्यापार, विदेशी निवेश, अर्थव्यवस्था, कृषि.
1. मित्रा जे.वी. (2018) व्यावसायिक पर्यावरण, साहित्यभवन प्रकाशन, आगरा।
आयकर संग्रहण की मूल भावना अमीरो से कर और गरीबो को राहत रही है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो भी तरीके आज तक अपनाये गये है वो सफल नहीं हो पाए है। कर से बचने की जुगत में कालाधन बनता है और फिर यही धन कई अवैध क्रियाकलापो और जटिलताओं को जन्म देता है, जिसका हल खोजना अब तक टेढ़ी खीर बना हुआ है। यह कालाधन अनेक प्रकार की काली गतिविधियो जैसेः अवैध शराब, हथियार, तस्करी में जाता है। इसी कालेधन के कारण जमीनो के भाव भी आज आसमान छू रहे है इसलिए जरूरत है आयकर की समीक्षा करने की, कर ढांचे में इस तरह के सुधार करने की जो आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ावा देने के साथ ही कर संग्रहण भी आसान बनाए।
आयकर, आय, आर्थिक स्थिति, समाज.
1. सकलेचा, श्रीपाल (2023) आयकर विधान एवं लेखे, सतीश प्रिंटर्स एंड पब्लिशर्स, इंदौर, पृ. 1-8।
In India Marriages as an institution are consequences of promises the parties make to each other mutually. The fact to be considered is not only the promise but also the mode in which it is obtained. Promises to marry cases involves the instances as the prosecutrix alleges that her consent for physical intercourse was obtained under a misrepresentation that the defendant will marry her though he is not having such an intention from the beginning of relationship. The allegation of obtaining the Consent through deceitful means itself creates an ambiguity in proving the innocence for the male who would always be considered as accused as per Section 69 of Bhartiya Nyaya Sanhita, 2023. Section 69 of the Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) emerges as a pivotal safeguard against deceptive practices, furnishing a legal frame that offers expedient to women who might fall prey to false pledges. By criminalizing conduct involving deceitful means, this provision aims to empower women, allowing them to make informed choices in colorful angles of their lives. Section 69 of the BNS serves as a defensive guard, offering affected women an effective remedy in similar situations. This particular section itself reveals that it will create a space of gender injustice in the society as the provision could be greatly misused by the women. Therefore, this research article is an attempt by an author to do analysis of the newly added provision in our Criminal justice System and to further deal with different dimensions relating to its essential elements, comparison with previous criminal laws, about its presumption, nebulosity in defining connections, implicit for abuse, its validity and its effect in our Society.
Deceitful Means, Consent, Promise, Criminal Justice System.
1. Article 15 (1), Constitution of India
Modernization, industrialization, and the sociological rationalization process are all directly related to urbanization. Urbanization is not just a modern occurrence; rather, it is a historic and swift change of human social roots occurring all over the world, with a quickly replacing rural culture with an increasingly urban one. Urbanization happens when private, public, and corporate initiatives cut down on travel time and costs while expanding access to employment, housing, transit, and educational possibilities. Many people from rural areas go to the metropolis in search of social mobility and better fortunes.But the picture of urbanization is not so much glorious as it apparently seems. Modern cities have grown in a hapazard and unplanned manner due to fast industrialization. Cities in developing countries become over-populated and over-crowded partly as a result of the increase in population over the decades and partly as a result of migration.
Urbanisation, Rural, Industrialization.
1. Arabi, U. (2009) “Dynamics of Recent Urbanization Trends”, NagarlokAn Urban Affairs, Quarterly, Vol. XLI (1).
India has witnessed significant growth and transformation in the recent years not only in the urban but also in rural areas however changing consumer preferences and taste play a key challenges before the domestic firms private final consumption expenditure, gross domestic capital formation, infrastructure development, urbanization smart city project are provide positive economic environment for FMCG sector development. The purpose of the study is to identify the tools and technology in the country SWOT analysis due to new economic policy domestic firms are facing challenges regarding competition, regulatory barriers supply chain complexities. Study that the rural sector also witnessing significant growth in non food and food FMCG. FMCG are affected by digitization of economic growth.
Fast-Moving Consumer Goods (FMCG), Economic Growth, Marketing, SWOT Analysis.
1. Agarwal, Sunil Kumar (2014), A Study of Consumer Behaviour of FMCG Products in Madhya Pradesh, International Journal of Business and Management Research, Vol. 4. Issue 1, Jan 2014.
The present paper explains the future of e-commerce in penetrating sales of Fast-moving consumer goods (FMCG) or consumer packaged goods (CPG), which may be purchased at a reasonable price and sold quickly. Electronic commerce, also referred to as e-commerce, is the buying or selling of goods through online services or the Internet. Technologies utilised in e-commerce include electronic data interchange (EDI), management of supply chains, marketing on the internet, electronic payment processing, inventory management systems, and automatic data collection systems. These companies are projected to increase their sales contribution to the FMCG sector in the upcoming year. Over the past few months, the purchasing environment has seen a significant transformation. Through this paper, we have attempted to analyze the complex network for FMCG companies and investigate the significance of e-commerce for FMCG products. The convergence of FMCG and e-commerce has fundamentally altered the dynamics of the retail industry, ushering in a new era of convenience, accessibility, and innovation. FMCG companies, traditionally reliant on brick-and-mortar stores for distribution, have embraced e-commerce as a strategic avenue to reach consumers directly and capitalize on the burgeoning online market.
FMCG, E-Commerce, Consumer, Electronic Payment, Processing , Online Transaction Handling.
1. www.investopedia.com, Assess on 30/03/24.
किसी भी देश के विकास के लिए वहाँ हर परिवार विकसित, सभ्य एवं सुसंस्कृत होना चाहिए और परिवार की उन्नति तभी संभव है, जब उस परिवार की महिला जागृत, सुसंस्कृत एवं गुणवती हो क्योंकि स्त्री वह घुरी है जिस पर परिवार टिका होता है। महिला सशक्तिकरण के लिए भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में योजनाऐं एवं अभियान चलाए जा रहे है। आज समाज की महत्वपूर्ण इकाई, महिलाओं के उत्थान हेतु सतत् प्रयास किया जा रहे है। इन्ही प्रयासों में से एक सशक्त कदम है ‘महिला सशक्तिकरण‘। महिला सशक्तीकरण का सबसे व्यापक तत्व है उन्हे सामाजिक पद, प्रतिष्ठा और न्याय प्रदान करना। महिला सशक्तीकरण के प्रमुख लक्षण हैं सही शिक्षा, सामाजिक समानता और आर्थिक स्थिति, बेहतर स्वास्थ, आर्थिक अथवा वित्तीय सहायता और राजनीतिक सहभागिता। भारत मंे पंचायतीराज व्यवस्था से सम्बन्धित अनेक शोध कार्य किये जा रहे हैं। वर्तमान शोध अध्ययन का उद्देश्य है कि आरक्षण व्यवस्था का सकारात्मक प्रभाव महिलाओं या ग्राम प्रधान तथा ग्राम पंचायत सदस्यों पर पड़ा है कि नहीं, यह जानना है। प्रस्तुत शोध अध्ययन में वर्णनात्मक प्रकार की शोध प्रविधि का प्रयोग किया गया है जिसमें शोधार्थी ने पलामू जिला की 335 महिला प्रतिनिधियों का रैन्डम प्रतिदर्श द्वारा चयन कर के उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया है। प्राथमिक आंकड़ों के एकत्रीकरण हेतु साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया है जबकि द्वितीयक आंकड़ो का एकत्रीकरण के लिये पलामू की जिला परिषद, पंचायत परिषद एवं ग्राम पंचायत कार्यालयों आदि से अद्यतन आंकड़े एकत्रित किये गए तथा उनका सार्थक साँख्यकीय पद्वतियों द्वारा विश्लेषण किया गया है। वर्तमान शोध अध्ययन के निष्कर्षों से यह ज्ञात हुआ कि निर्वाचन के पश्चात् महिला पंचायत प्रतिनिधियों की परिवार में स्थिति, उनके परिवार की स्थिति, उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक परिस्थिती, स्वास्थय की स्थिति आदि में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
पंचायतीराज, महिला सशक्तिकरण, सुसंस्कृत, परिवार.
1. अग्रवाल शारदा (2010) आधी आबादी का यथार्थ, भारतीय नारी, राधा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली।
रचनात्मक सेवा करना स्वतन्त्रता सेनानियों के स्वभाव और आदत में घर कर गयी थी और जीवन के शेष समय में वे देश और समाज के लिए कुछ करने का हौसला रखते थे। उन्हें आश्चर्य होता था कि उन्हें क्यों नहीं यह कार्य करने दिया जाता था, जो देश के लिए निश्चित रूप से मंगलदायक सिद्ध होता। स्वतन्त्रता सेनानी देश में घटित घटनाओं के पूर्ण तथा परिचित थे, परन्तु उनकी जो अनदेखी की गयी थी इससे उनके हृदय में दुःख हुआ। वे सत्ता के भूखे नहीं थे, केवल देश के लिए कुछ सुझाव देना चाहते थे तथा कार्य करना चाहते थे, जिसके लिए अपेक्षित सुविधाएं उन्हें नहीं मिल पा रही थी।
स्वतंत्रता सेनानी, साम्प्रदायिक दंगे, शरणार्थी समस्या, स्वतंत्रता आन्दोलन, पंचवर्षीय योजना, राजनैतिक परिवर्तन.
1. महात्मा गाँधी द्वारा सम्पादित तथा हरिजन सेवा संघ, वर्षा प्रकाशन, पुणे।
शिक्षा वह प्रकार है जो जीवन के समस्त अंधकार को दूर कर बालक में पवित्र संस्कारों, सृजनात्मक क्रियाओं, भावनाओं, निश्चित दृष्टिकोणों एवं भावी विचारों को जन्म देती है। इसके अतिरिक्त मानव समुदाय के सर्वागीण विकास, राष्ट्रीय संस्कृति के संरक्षण तथा जातीय उत्थान के लिए शिक्षा नितान्त आवश्यक समझी गई है। शिक्षा के व्यापक प्रचार एवं प्रसार में शिक्षक का योगदान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इस शोध पत्र में प्रशिक्षित एवं अप्रशिक्षित शिक्षकों के समायोजन का अध्ययन किया गया है।
शिक्षा, शिक्षक, समायोजन, प्रशिक्षण.
1. कपूर, प्रमिला (1976) कामकाजी भारतीय नारी, राजपाल एंड संस, दिल्ली, पृ. 373।
किसी राष्ट्र की उन्नति वहाँ उपलब्ध समृद्ध संसाधनों पर ही निर्भर नहीं करती अपितु शिक्षित नागरिकों पर भी निर्भर करती है। मानव के सर्वांगीण विकास का मूल शिक्षा है। विकसित देशों में साक्षरता सर्वव्यापक है, परन्तु विकासशील एवं पिछड़े देशों में इसके वितरण में असमानता पाई जाती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की अधिकांश जनसंख्या गाँव में निवास करती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में साक्षरता दर काफी कम पाई जाती है। यहाँ शैक्षिक विकास हेतु अनेक योजनाएँ बनाई गई है फिर भी शैक्षिक पिछडे़पर के लिए भारतीय समाज की सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियाँ मुख्य रूप से उत्तरदायी है। शिक्षा की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए प्रभावी रणनीतियों को लागू कर सकते हैं।
शिक्षा, साक्षरता, विकासशील देश, जनसंख्या, ग्रामीण.
1. मौर्य, एस.डी., (2020) जनसंख्या भूगोल, शारदा पुस्तक भवन, पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स यूनिवर्सिटी रोड, प्रयागराज-211002, पृ. 114-119।
सभी क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। साइबर अपराध का शिकार होना किसी भी महिला के लिए सबसे दर्दनाक अनुभव हो सकता है। खासकर भारत में, जहां समाज महिलाओं को हेय दृष्टि से देखता है, और कानून साइबर अपराधों को ठीक से पहचान तक नहीं पाता है। प्रस्तुत शोध पत्र में विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों पर चर्चा करने की जो एक महिला पर हो सकते हैं और वे उस पर कैसे प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000) और संवैधानिक दायित्व जैसे मामलों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए मौजूद विभिन्न कानूनों की भी संक्षेप में जांच की जायेगी। निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए साइबर अपराध के विभिन्न प्रतिष्ठित मामलों (रितू कोहली का मामला 2001)1 की सहायता ली जायेगी। महिलाओं पर साइबर अपराध में हालिया वृद्धि और इसके विभिन्न कारणों पर भी विस्तृत समीक्षा कर भारत में महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ते साइबर अपराध का सामना करने के लिए कई उपाय सुझाने की भी योजना कर कार्य किया जावेगा। अपने निष्कर्ष पर साइबर अपराध के पीड़ितों के लिए उपलब्ध विकल्पों और साइबर अपराधियों के बढ़ते हौसलों पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाने के लिए कानूनी प्रणाली में आवश्यक बदलावों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।शोध का प्रमुख उद्देश्य वर्तमान का विश्लेषण करना है। महिलाओं की सुरक्षा हेतु भारत में साइबर सुरक्षा का परिदृश्य और इसके लिए विशिष्ट कानून लाने की आवश्यकता है। इस शोध की प्रमुख उद्देश्य साइबर अपराध के विरुद्ध अधिक विशिष्ट नीतियां और कानून लाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालना है, साथ ही सोशल मीडिया नेटवर्क और निजी साइटों पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले प्रत्येक विशेष अपराध के लिए विशिष्ट कानून में वृद्धि लाने के लिए सरकार को प्रयास करना आवश्यक है।
साइबर अपराध, महिला, सुरक्षा, कानून, हिंसा.
1. Manish Kathuria Vs Ritu Kohli, C.C. No. 14616/2014
There are mainly four ways for reaching the highest stage by unfolding our inner soul. These are the path of knowledge, the path of disinterested work, the path of devotion and the path of disciplined psychic control of the mind. Among these paths, the path of devotion is the easiest and universal. Following this path a devotee can quickly overcome all the trials and tribulations obstructing his spiritual elevation and he can drink the nectar of his mental progress. The tenets of devotion as envisaged by Lord Shree Krishna in the Shrîmad-Bhagavad-Gîtâ have been presented in this short article. The nature of devotion, its varieties, the duties of a devotee, the liberality and graciousness of God etc. have been explained with the lucidity of language. Comparison with other treatises is also shown with proper connection.
Devotion, Chosen Deity, Discrimination, Meditation, Austerity, Renunciation.
1. Swami, Dwarika Das Shastri (2000) (Ed.) Mâdhavîyâ Dhâtivrttih, Tara Book Agency; Varanasi, p. 292.
This abstract provides a concise overview of the exploration of nihilism in the novels of the renowned British author William Golding. Golding’s literary oeuvre, which includes iconic works such as “Lord of the Flies,” “The Inheritors,” and “Darkness Visible,” is known for its profound engagement with themes of human nature, morality, and the inherent darkness within the human soul. This paper delves into the presence and significance of nihilistic elements in Golding’s writings, examining how he skillfully weaves the philosophy of nihilism into his narratives. The study begins by defining and contextualising nihilism within the broader literary and philosophical landscape, highlighting its fundamental tenets that reject absolute values, purpose, and meaning in the universe. It then proceeds to analyse Golding’s characters, their actions, and the bleak, often dystopian settings in which they exist. Through close textual analysis, this paper explores how Golding’s characters grapple with the void of meaning and moral ambiguity, often leading to the disintegration of social structures and the descent into primal chaos. Furthermore, this overview investigates the author’s use of symbolism and allegory to convey nihilistic themes. It examines how Golding employs symbols such as the conch shell, the beast, and the descent into savagery to underscore the futility of human endeavours and the erosion of civilisation in the face of innate brutality. Additionally, it explores how Golding’s narratives confront the reader with a world bereft of inherent purpose, where nihilism serves as a lens through which the complexities of existence are unveiled. The paper also considers the critical reception of Golding’s works and the scholarly discourse surrounding his exploration of nihilism. It delves into the implications of nihilism in Golding’s novels, both as a cautionary commentary on the human condition and as a philosophical challenge to conventional notions of morality and order. In conclusion, this overview sheds light on the pervasive presence of nihilism in William Golding’s novels, offering a deeper understanding of his literary contributions and their enduring relevance. By examining how Golding grapples with nihilistic themes, this study invites readers to contemplate the unsettling questions about human nature and society that his works continue to provoke.
Nihilism, Novels, William Golding, Literature, Morality, Symbolism.
1. Baker, James R. (1965) William Golding: A Critical Study. Faber and Faber, London.
Gender equality is a political, philosophical and cultural concept. The idea of gender equality is to eliminate oppression in the form of any sexual differentiation of roles in human society. Gender equality is not a unitary concept rather it constitutes diverse and multiple facets of ideas. One of them which come under liberal feminism is men and women should have equal rights, equal worth, and virtue. Sex is biologically determined and gender is socially confronted at present. The law sees and treats women the way the men see and treat women. Even state ensures male control over women sexuality at every level.
Gender, Women, Empowerment.
1. The Prime Minister, Shri Narendra Modi addressed the G20 Ministerial Conference on Women Empowerment held in Gandhinagar, Gujarat .
The study of local history is not dominated by antiquarians who throw together the physical remains of the past without any attention to using their collections to effect change in the future. This form of surface history allows historians to develop a pattern of findings without deep engagement with local history in a comparative context. What is worse, this stereotype of history does not help us to understand the dynamics of a place. These historians can take such a narrow view that they miss the insights that history provides about our future. By missing the opportunity to examine and interpret findings from historical evidence, historians are missing out on what local history does best. Local history reflects the reality that our lives are shaped by particular places and that our physical location in the world is a major determinant of how our lives are lived. Local history is the study of the everyday struggles and triumphs of ordinary people. Studying local subjects allows for in-depth research linking the past to the present, which is done more simply and with more meaning than studying national, faceless populations. It allows for a more in-depth study of the history of our communities and the relationships with the people within them.
Study, Populations, Local history.
1. Carr, E.H. (1961) What is History, Penguin, London.
FlixNook is a pioneering full-stack project that seamlessly merges movie streaming with cutting-edge recommendation systems. Utilizing a stack comprising HTML, Tailwind CSS, React.js, Next.js, Prisma, MongoDB, and NextAuth, FlixNook promises an immersive cinematic journey coupled with personalized movie suggestions. What sets FlixNook apart is its ability to understand unique preferences and suggest movies tailored specifically to your interests. By analyzing your interactions and preferences on the platform, FlixNook uses advanced algorithms to watch a selection of movies you’re sure to love. With its sleek design and user-friendly interface, FlixNook ensures a smooth navigation and enjoyable browsing experience. Whether you’re searching for your favorite movie classics or seeing the latest releases, FlixNook makes it impossible to find the perfect movie for every occasion.
Streaming System, Movies, React, Next, Prisma, NextAuth.
1. Academind. (2020, July 10). Next.js Crash Course [Video]. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=tt3PUvhOVzo. Accessed on March 29, 2024.
The variety and variability of animals, plants and micro organisms that are used directly or indirectly for food and agriculture, including crops; livestock, forestry and fisheries is Agro biodiversity. Agro biodiversity can be divided into four components :- agricultural genetic diversity, agricultural species diversity, agro ecosystem diversity and agricultural landscape diversity. To meet rising demand, global food production must increase by 70%. Agro biodiversity is essential for this since genetic diversity can improve production capacity and field. This can be a game changer in the global food security crisis and is one of the most significant benefits of agricultural biodiversity. Land, soil, climate and water are vital natural resources for agro biodiversity. In the Koderma district there is great opportunity of agro Biodiversity through systematic appraisal of its natural resources. It is a well defined geographical unit and the location advantage, sub-tropical monsoon climate of this plateau is unique.
Micro Organism, Genetic Diversity, Agricultural Species, Ecosystem, Soil, Land.
1. Chaudhary, P.C. Roy (1957) Bihar District Gazateer Hazaribagh, Secretariat press, Bihar, Patna. p. 4
यह प्रायोगिक अनुसंधान पत्र संवेग शिक्षा और नैतिक मूल्यों के प्रचार पर माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के व्यवहार और धारणाओं पर जांच करता है। यहां अनुसंधान के लिए एक मिश्रित-विधि उपाय का उपयोग किया गया है, जिसमें सर्वेक्षण और साक्षात्कार शामिल हैं। अध्ययन मे माध्यमिक विद्यालय के छात्रों और शिक्षकों के प्रतिनिधित्व नमूने से डेटा एकत्रित किया। उद्देश्य था संवेग प्रशिक्षण और नैतिक मूल्यों के संघटन के प्रभाव का व्यापक विश्लेषण करना। अध्ययन मे छात्रों के बीच संवेग शिक्षा और नैतिक सिद्धांतों के पालन के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध पाया। सर्वेक्षण के जवाबों के सांख्यिकीय विश्लेषण के माध्यम से स्पष्ट हुआ कि संवेग के उच्च स्तर वाले छात्रों ने प्रोसोशियल व्यवहारों की अधिकतम प्रवृत्ति और सत्य, दया, और सम्मान जैसे नैतिक मूल्यों के प्रति गहरा समर्थन प्रकट किया। इसके अलावा, शिक्षकों के साक्षात्कार से प्राप्त गुणात्मक दृष्टिकोणों ने वहाँ जहां संवेग और नैतिक मूल्यों को जोर दिया गया, वहाँ संस्थान के कुलवातवरण पर सकारात्मक प्रभाव का स्पष्टीकरण किया। शिक्षकों ने अनुशासन के मामलों में कमी देखी और सहकर्मी संबंधों में सुधार का संकेत दिया, जो इन हस्तक्षेपों की बदलती क्षमता को प्रस्तुत करते हैं। यह अनुसंधान संवेग शिक्षा और नैतिक मूल्यों के प्रचार की प्रभावशीलता का प्रमाण प्रदान करता है। इस अध्ययन से प्राप्त अनुभव शिक्षा नीतियों और प्रथाओं को बदलने के लिए नई दिशाओं में मदद कर सकता है, जिससे छात्रों के होलिस्टिक विकास को बढ़ावा मिल सके। आगे बढ़ते हुए, संवेग और नैतिक मूल्यों के संघटन पर जोर देने की जारी रखना छात्रों को सामाजिक जिम्मेदार व्यक्तियों के रूप में विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
संवेग, नैतिक मूल्य, माध्यमिक विद्यालय, विद्यालय जलवायु, प्रोसोशियल व्यवहार, प्रायोगिक अनुसंधान.
1. डेसेटी जे., एवं जैक्सन, पी. एल. (2006). संवेदनशीलता पर एक सामाजिक-मानोविज्ञान परिप्रेक्ष्य, मौजूदा दिशानिर्देश मनोविज्ञान, 15(2), 54-58।
2. आइजेनबर्ग, एन. एवं मिलर, पी. ए. (1987). संवेदनशीलता का सहानुभूति और संबंधित व्यवहारों के साथ संबंध. मनोवैज्ञानिक सूचक, 101(1), 91-119।
3. नारवेज, डी. (2010). नैतिक जटिलताः सत्यवाद की फ़ेटल आकर्षण और परिपक्व नैतिक कार्य, मनोवैज्ञानिक विज्ञान पर परिप्रेक्ष्य, 5(2), 163-181।
4. पाल्मर, डी. (2007). सहभागीता की दिशा में छात्र धारणाओंः क्या इससे सहानुभूति का संबंध है? अंतरराष्ट्रीय विशेष शिक्षा की जर्नल, 22(3), 74-81।
5. सारनी, सी. (1999). भावनात्मक क्षमता का विकास, गिलफोर्ड प्रेस, न्यूयॉर्क।
6. ट्रेवीनो, एल.के., एवं यंगब्लड, एस.ए. (1990). बुरे सेबों की बुरी दालों मेंः नैतिक निर्णय लेने के व्यवहार का कारणात्मक विश्लेषण, लागू मनोविज्ञान जर्नल, 75(4), 378-385।
Migrant workers are workers who move from one area of a state or country to another to obtain seasonal, temporary, or part-time work in various fields. Pull and push factors are the main factors of migration. Overall, 8% (21% of male migrants and 2% of female migrants) moved within the state for work. Census data also underestimates the movement of temporary migrant workers, according to the 2016-17 Economic Survey. In 2007-2008, NSSO estimated the number of Indian migrant workers at 7 billion (29% of the workforce). After the outbreak of the coronavirus (Covid-19) in March 2020, temporary visitors within households accounted for 0.7% of the population from July 2020 to June 2021. Migration has had positive and negative effects on the rural economy. Although migration reduces the labor burden on land, it also increases land labor shortages in rural economies.
Migration, Rural Economy, Poverty, Unemployment.
1. Dutt Gaurav and Mahajan Ashwani; Indian Economy (72th Edition)
Over the period of time and in the name of reforms many alternatives have been introduced for custodial sentences in our Criminal justice system like– use of open prisons, parole, probation, rehabilitation centers etc., but Community sentence has not been given much importance. The punishment by way of community service is a new concept relating to reformative theory. The study showed that ‘Community service’ punishment is the most significant change in alternative punishment, and it is distinguished from other types of alternatives in that it enhances the contribution of community in the field of criminal justice, and keeps the convicted person in touch with the outside world so that they do not lose their work. The Law Commission, in its 156th report have suggested that the IPC, 1860 should include the additional type of punishment in addition to or instead of imprisonment they are community service, order for payment of compensation, public censure or disqualification from holding office. The only statutory provision available in India was section 18 (1)(c) of the J.J Act of 2015 which provides that the juvenile offenders can be awarded community service if the J.J. Board deems it fit. The objective of this article is to analyse the prevalent theories of punishment, in India in relation to newly introduced community service sentencing and to review the existing legal and institutional framework on community service. Moreover, the significance of the study is to provide background information on community service as a penal reform in India with special reference to the Reports of Law Commision of India on IPC, 1860 and the provisions of newly introduced BNS, 2023
Punishment, Reformative Theory, Alternative Punishment, Community Service, BNS.
1. Salmond on Jurisprudence, edited by P. J. Fitzgerald, (12th ed.), pg. 94
उराँव समाज में लोककथा की प्रसांगिकता आज भी गाँव-देहातों में बनी हुई है,जो संचार के साधनों से दूर है। लोक कथाएँ हमारी प्राचीन धरोहर है। इस प्राचीन धरोहर में हमारी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता और इतिहास समेकित है। लोककथाओं में लोक जीवन की झाँकी में लोगों के सुख-दुख की अभिव्यक्ति हुई है। साथ ही यह मनोरंजन के साथ श्रम का परिहार भी करते हैं, मनुष्य की कल्पनाशीलता के कारण लोककथा में मानव जीवन की उन घटनाओं का वर्णन है जो उनके जीवन में घटित हुआ होगा,जो कथा रूप में मौखिक परंपरा के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। लोककथा संस्कृति की वाहक होती हैं। कुछ लोककथाएँ अपने अंचल विशेष में कही सुनी जाती है, कुछ अपने परिवेश से निकलकर थोड़े परिर्वतन के साथ विश्वव्यापी हो जाती है। इन लोककथाओं में लोकगीतों का संयोजन, उसे और अधिक रोचक और सरस बना देती है। ये लोककथाएँ मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृति के अंगों के साथ जुड़ी हुई हैं। प्राचीन समय से ही समाज में नारी सदैव से शोषित-उत्पीड़ित रही है और उसकी यही पीड़ा लोककथाओं में व्यक्त हुई है। नारी अपना दुःख चिड़ियों, पेड़ों, नदियों से और प्रकृति के अन्य उपादानों से साझा करती है। नारी अपनी पीड़ा को लोकगीतों के माध्यम से हृदय की बात कहने की परिपाटी सबसे अधिक प्रिय और संप्रेशणीय रही है। आधुनिकता के प्रभाव से लोककथाएँ विलुप्ता के कगार पर है। आज इनके संकलन, अन्वेशण पुनर्लेखन और विश्लेषण की आवश्यकता है, प्रस्तुत शोध पत्र का यही उद्देश्य है।
लोककथाओं, संयोजन, स्त्री चेतना, झाँँकी, अंचल, धरोहर.
1. उराँँव, तेतरु (2021) उराँव लोक साहित्य, झरोखा, रांची, झारखण्ड, पृ. 187।
शिक्षकों की थकान और तनाव शिक्षा क्षेत्र में व्यापक मुद्दे हैं, जो शिक्षकों की नौकरी की संतुष्टि, प्रदर्शन और समग्र कल्याण को प्रभावित कर रहे हैं। इस अनुभवजन्य शोध पत्र का उद्देश्य गया जिले के सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षकों के बीच तनाव और तनाव के स्तर की जांच और तुलना करना है। तुलनात्मक विश्लेषण करके, यह अध्ययन बर्नआउट और तनाव की व्यापकता और निर्धारकों के साथ-साथ दोनों क्षेत्रों के बीच किसी भी अंतर की पहचान करना चाहता है। गया जिले के सरकारी और निजी स्कूल के शिक्षकों के नमूने से सर्वेक्षण और साक्षात्कार के माध्यम से डेटा एकत्र किया जाएगा। शिक्षकों के बीच बर्नआउट और तनाव के स्तर का आंकलन करने के लिए सर्वेक्षण में मास्लाच बर्नआउट इन्वेंटरी और कथित तनाव स्केल जैसे मान्य पैमानों का उपयोग किया जाएगा। अर्ध-संरचित साक्षात्कार बर्नआउट और तनाव के संबंध में शिक्षकों के अनुभवों और धारणाओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करके सर्वेक्षण डेटा को पूरक करेंगे। इस अध्ययन के निष्कर्ष शैक्षिक नीति निर्माताओं और प्रशासकों को शिक्षकों के बीच तनाव और तनाव को कम करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप और समर्थन तंत्र विकसित करने के लिए मूल्यवान अंर्तदृष्टि प्रदान करेंगे। सरकारी और निजी स्कूल सेटिंग में थकान और तनाव में योगदान देने वाले कारकों को समझकर, नीति निर्माता शिक्षक कल्याण को बढ़ावा देने और गया जिले में शिक्षा की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए प्रभावी रणनीतियों को लागू कर सकते हैं।
शिक्षक बर्नआउट, तनाव का स्तर, स्कूल, नीति.
1. बेकर, ए.बी., और डेमेरौटी, ई. (2017) नौकरी की मांग-संसाधन सिद्धांतः स्टॉक लेना और आगे देखना, जर्नल ऑफ़ ऑक्यूपेशनल हेल्थ साइकोलॉजी, 22(3), 273-285।
To understand how indigenous rights, environmental preservation, and social justice intersect, this study examines the Forest Dwellers’ movements and campaigns for environmental justice in India. Starting with a historical background, it traces the development of forest administration from colonial times to the present day, pinpointing the impact of colonial and post-independence policies on relations between forest dwellers and the Government. It then devotes its focus to key movements that were crucial for environmental justice: Chipko Movement and Narmada BachaoAndolan. The study looks at these movements’ social as well as environmental consequences, showing how they support sustainable development and empower marginalized communities. It contends that these movements have played an important role in shifting public perception towards a development model that balances social justice with ecological sustainability. Furthermore, it underscores the importance of indigenous knowledge in conserving biodiversity and integrating such knowledge into environmental governance. Ultimately, the study concludes by saying that without support from the Forest Dwellers’ movements for a more inclusive and sustainable environmental governance model in India one that tackles past injustices we can’t expect ecologically-just human development initiatives to take hold.
Forest Dwellers Movement, Environmental Justice, Movements, Forest, Sustainable Development.
1. Shastri, S.C. (2005) Environmental Law 259, Eastern Book Company Lucknow 2nd edn.
The present study is about the effect of gender on the defense mechanisms of adolescents. Defense mechanisms are ways people react to situations that bring up negative emotions. According to the theory given by Sigmund Freud, when an individual’s experiences a stressor, the subconscious will first monitor the situation to see if it might harm or not. If the subconscious believes the situation might lead to emotional harm, it may react with a defense mechanism to protect the individual. Defense mechanisms function at an unconscious level to prevent conflicts and accompany anxiety from entering awareness. They work either to cope with conflicts in the inner world or may skew an individual’s perception of reality. Consequently, defenses function permanently to maintain psychological stability . The study will provide a foundation for exploring the effect of these variables on adolescents.
Defense Mechanisms, Gender, Adolescents.
1. Cooper, S. H. (1998). Changing notions of defense within psychoanalytic theory. Journal of Personality, 66(6), p 947-964.
The teachers have to play a pivotal ripple for in shaping an ideal society, their wellness is valuable and important for the students as well as society. The study was designed to find out the differences in well-being among college teachers about gender, locale, and educational qualification. The sample comprised 200 college teachers 100 male and 100 female from the Durg district. The data were collected by using the well-being scale by J. Singh and Dr. Asha Gupta (2001). The data analysis showed that educational qualification was found significant factor in well-being among college teachers but gender and locale were not significant in well-being.
Well-being, College Teacher, Gender.
1. Anderson, M.L. & Leigh, I.W. (2011) Intimate partner violence against deaf female college students. Violence Against Women, 18 (3)
हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन चिंता का एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। इसने जनजातीय लोगों के जीवन, आजीविका और अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है और उनके अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार भारत में लगभग 700 विभिन्न जनजातियाँ हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनजातीय जनसंख्या 8.6 प्रतिशत थी। झारखंड में आदिवासी आबादी का प्रतिनिधित्व है। 2011 की जनगणना के अनुसार 24.80 प्रतिशत। ग्रीन हाउस गैसों के भारी उत्सर्जन और वन कवरेज में गिरावट के कारण जलवायु परिवर्तन हुआ है। ग्रीन हाउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन से पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ता है और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। इसने जनजातीय लोगों के लिए असुविधा पैदा कर दी है, उनके जीवन यापन की लागत में वृद्धि हुई है और अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है, फसल उत्पादन में गिरावट आई है, फसल रोगों की घटनाओं में वृद्धि हुई है, पशुधन, मनुष्यों, सामाजिक तनाव और संसाधनों को साझा करने पर संघर्ष हुआ है। ऐसा माना जाता है कि जलवायु परिवर्तन की वर्तमान स्थिति मानव प्रेरित है। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन का प्रमाण झारखण्ड राज्य में भी दिख रहा है। पूरे राज्य में सूखे का प्रकोप बढ़ गया है. आदिवासी मुख्य रूप से प्राकृतिक संसाधनों और वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं। अतः जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस अध्ययन में जलवायु परिस्थितियों में बदलावों का पता लगाने, आदिवासी अर्थव्यवस्था और आजीविका असुरक्षा पर इसके नकारात्मक प्रभावों का आकलन करने, प्रतिकूल परिणामों से निपटने के लिए आदिवासियों द्वारा अपनाए गए स्वदेशी तरीकों सहित मौजूदा मुकाबला तंत्र और प्रथाओं का मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है।
जलवायु, अर्थव्यवस्था, जनजातीय, आदिवासी, झारखण्ड.
1. आईपीसीसी, 2007, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल, जिनेवा, स्विट्जरलैंड की चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट।
प्रस्तुत शोध पत्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू के भारतीय संघवाद पर विचारों को वर्णित किया गया है। इस शोध पत्र में नेहरू के एकीकृत और सशक्त भारत की परिकल्पना और दूरदृष्टि की जांच की गई है। भारत एक विविधतापूर्ण देश है और नेहरू इससे परिचित थे। उनका समग्र चिंतन विविधता में एकता पर आधारित था। नेहरू गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित थे, इसस कारण उन्होंने गांधी के जन जन तक लोकतंत्र की पहुच के विचार को अपनाया और एक ऐसे संघीय व्यवस्था का समर्थन किया जो न्यायपूर्ण शक्ति विभाजन पर आधारित था। इस शोध पत्र में विशेष रूप से इस तथ्य को केंद्र में रखा गया है कि कैसे नेहरू भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए एक मजबूत केंद्रीय प्राधिकरण के महत्व पर जोर देते हैं। उनका मानना था कि जहां राज्यों को कुछ मामलों में स्वायत्तता मिलनी चाहिए, दूसरी तरह केंद्र सरकार को राष्ट्रीय एकता और प्रगति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकता होने पर दखल देना चाहिए साथ ही, नेहरू लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रबल समर्थक थे और सत्ता के विकेंद्रीकरण में विश्वास करते थे। उन्होंने देश भर में विविध समुदायों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाने और जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देने के विचार का समर्थन किया। भारतीय संघवाद पर नेहरू के विचार केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण के बीच संतुलन को दर्शाते हैं, जिसमें क्षेत्रों और समुदायों की विविधता को समायोजित करते हुए राष्ट्रीय एकता को संरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। शोध पत्र में नेहरू की समाजवादी दृष्टिकोण, राष्ट्रीय एकता के महत्व के साथ भारतीय संघीय व्यवस्था की विशेषताओं और संघीय सरकार की परिकल्पना पर भी विस्तार से चर्चा की गई है।
संघ, भारत, राष्ट्र.
1. यादव, भूपेंद्र एवं पटनायक, इला (2022) भाजपा का अभ्युदय, Penguin Random House India Private Limited, eBook, पृ. 1985।
शोध पत्र में संघवाद के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और योगदान पर आलोचनात्मक विश्लेषण किया गया है। संघीये ढांचे द्वारा लोकतंत्र की विशिष्ट क्षमताओं का आँकलन किया गया है। शोध पत्र का उद्देश्य भारत में सरकार की प्रणाली को संदर्भित करते हुए संवैधानिक ढांचा और शक्तियों के विभाजन की विशेषताओं के आलोक में भारत की संघीय व्यवस्था में आस्था और गंभीरता को प्रदर्शित करना है। इस शोध पत्र में भारत की संघीय संरचना इसके विविध सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय मतभेदों की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखकर विषय को स्पष्ट किया गया है। एक संघीय ढांचे के भीतर विभिन्न पहचानों और हितों को समायोजित करके, भारत ने प्रदर्शित किया है कि कैसे संघवाद राष्ट्रीय एकता को बनाए रखते हुए विविधता के प्रबंधन के लिए एक अच्छी व्यवस्था हो सकता है। इसमें यह भी पाएंगे कि कैसे दशकों से भारत की संघीय प्रणाली ने बदलते राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भों का जवाब देने में अनुकूलनशीलता और लचीलेपन का प्रदर्शन किया है। संविधान में संशोधन, अंतर सरकारी वार्ता और न्यायिक हस्तक्षेप ने भारतीय संघवाद के विकास में योगदान दिया है। इस पक्ष पर भी जोर दिया गया है कि संघवाद के प्रति भारत का योगदान विविधता के प्रबंधन प्रशासनिक स्तर पर आपसी तालमेलए राज्यों की मूल पहचान से छेड़छाड़ किये बिना शांतिपूर्वक शक्ति विभाजन के दृष्टिकोण में है। भारत का महान लक्ष्य संघवाद के मूल्यों से समझौता नहीं करना है। लोकतान्त्रिक मूल्यों पर चलते हुए एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत बनाने के संकल्प पर आगे बढ़ना है और यही सिद्धांत विश्व में भारत को एक जिम्मेदार लोकतंत्र की पहचान दिलाता है।
संघ, आत्मनिर्भर, लोकतंत्र, भारत.
1. चतुर्वेदी, संजय, (2021) कुम्भः मंथन का महापर्व, प्रभात प्रकाशन, आसफ अली रोड, नई दिल्ली, पृ. 1924।
This study explores the interconnectedness of the narrative artistic visual language of the unique indigenous Molela terracotta plaques crafting and the shape development method of Rajasthani popular folk motifs themed in hollow high-relief plaques, the interrelationship of the Molela plaque crafting art form with the terracotta pottery art of the Indus Valley Civilization period; and a detailed assessment of various dimensions was conducted to understand and document the flow of imitation across generations along with the continuity of this traditional art form till date. Being associated with the brief history of terracotta art, the researcher is aware of the diverse circumstantial conditions under which successive generations of craftsmen have always made new experiments the basis of innovation. The ultimate objective of this research paper is to present the analytical nature of terracotta art practiced in various ways in different states of India from ancient times to the present time; also, the origin of this traditional handicraft form and the development of terracotta pots, plaques and other types of artefacts are also to be presented.
Thala, Glazing, Dhawri Gond, Khargota, Bhopa, Tercotta.
1. Ballast, David Kent (1987), “Architectural Terra Cotta: Technical and Design Considerations”, Monticello, Vance Bibliographies, IL.
छत्तीसगढ़, भारत का एक प्राचीन राज्य है जिसमें समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में लोकगाथाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। ये लोकगाथाएं रोचक कथाएं हैं जो लोगों के जीवन, संस्कृति, और परंपराओं को दर्शाती हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं में साधारणतः गाँवों और जनजातियों के जीवन के घटनाक्रम, विभिन्न देवी-देवताओं की कथाएं, प्राचीन संस्कृति के विषय, और प्राचीन जीवनशैली को बताने का प्रयास किया जाता है। छत्तीसगढ़ी लोकगाथाएं स्थानीय भाषा में गाई जाती हैं और इनमें स्थानीय रंग-बिरंगे पात्र, संगीत, और वाद्य भी शामिल होते हैं। ये गाथाएं समाज की भावनाओं, संवेदनाओं, और सोच को प्रकट करती हैं और समाज के साथ जुड़ी होती हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं में विविधता और रंगमंचन की भरपूरता होती है। इनमें राजकुमारी-राजकुमार, परीकथाएं, भूत-प्रेत की कहानियाँ, अनेक देवी-देवताओं के जन्म कथाएं और जीवनी शामिल होती हैं। ये लोकगाथाएं लोगों के बीच आदर्शों, मूल्यों, और नैतिकता को बढ़ावा देने में मदद करती हैं और समाज की सामाजिक संरचना को समर्थ बनाती हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगाथाएं लोकप्रियता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। ये कथाएं लोगों के बीच पसंद की जाती हैं और सामाजिक सम्मेलनों, मेलों, और उत्सवों में अधिकतर सुनाई जाती हैं। इसके अलावा, लोकगाथाओं का महत्व अनेक लोककथा संग्रहों और साहित्यिक कामों में भी उजागर होता है।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति, लोकगाथाएं, जनजातियों, प्राचीन जीवनशैली.
1. सिन्हा, विजयकुमार (2000) छत्तीसगढ़ी लोकगाथा एक अध्ययन, प्राक्कथन, निर्मल प्रकाशन, दरियागंज, दिल्ली, पृ. 108।
Shri Rawatpura Sarkar Maharaj is synonym of socio-spiritual movement in Central India, he has made significant contributions in education, aiming to empower individuals and communities through knowledge and skill development. This research paper explores the educational initiatives undertaken by Shri Rawatpura Sarkar Maharaj examining their impact on access to education, quality enhancement, and holistic development. Through a comprehensive analysis of primary and secondary sources, this paper elucidates the strategies, outcomes, and challenges faced by Shri Rawatpura Sarkar Maharaj in its pursuit of educational excellence in Central India.
Educational Excellence, Educational Initiatives, Marginalized Communities.
1. Diwedi, Himanshi, (2010) Lau, Dhawal Associate, Raipur (C.G.), p15-295.
Microfinance Institutions (MFIs) is playing very crucial role in economic development of India. Microfinance is a very important source of obtaining financial services for those people and micro enterprises that do not have easy access to commercial banks and other financial institutions. Microfinance does not only fulfill the shortage of physical capital amongst the poor but also creates social awareness among corporate level to marginalized market segment of the society. It gives services such as loans, deposit facilities, payment related services, money transfers, insurance to poor and low income households and for their micro enterprise. This research article throws light on the role and current status of microfinance in Indian perspectives.
Microfinance, Microcredit, Financial Inclusion, Entrepreneurs.
1. Chaudhary P. and Kumari Rubi, (2009) “Micro Finance : Ray of Hope for Hopless” Jharkhand Journal of Social Development, Vol 2.
प्रत्येक देश की आधी आबादी महिलाओं पर आधारित होती हैं। समाज के विकास के लिये महिलाओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है, परंतु शि़क्षा से बंचित वर्गों में पूरे भारत में सबसे बडा हिस्सा महिलाओं का है। भारत एक विकासशील देश हैं जिसकी 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती हैं। भारतीय ग्रामीण महिलाओं की स्थिति आज भी सोचनीय हैं इसी बात को ध्यान में रखते हुये केंद्र एवं राज्य सरकारों ने ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊॅचा उठाने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिये विभिन्न योजनायें जिसमें प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री अन्त्योदय योजना, प्रधानमंत्री समर्थ योजना आदि सम्मिलित हैं। ग्रामीण महिलाओं का अधिकांश समय घर के कार्यों में व्यतीत होता है जिसमें भोजन पकाना, परिवार के सदस्यों की देखभाल मुख्य रूप से शामिल है। भारतीय ग्रामीण महिलाओं का ज्यादा समय ईधन की व्यवस्था करने में जाता हैं। आज भी ग्रामीण परिवारों में भोजन पारम्परिक रूप से चूल्हों पर पकाया जाता हैं तथा ईंधन इकट्टा करने की अधिकांश जिम्मेदारी महिलाओं पर होती हैं भोजन पकाने के लिये परम्परागत ईधन जैसे लकडी गोबर के उपले (कण्डे), मिटटी का तेल, कोयला आदि पर निर्भर हैं। अशुद्ध ईंधन का प्रयोग करने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता हैं जिससे उन्हें विभिन्न बीमारियों का सामना करना पडता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख मृत्यु अस्वच्छ ईंधन के प्रयोग से होती है। उज्जवला योजना से महिलाओं को धुॅआ रहित वातावरण में भोजन पकाने की सुविधा मिली है। इससे उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ हैं और ईंधन संग्रह करने में लगने वाले समय की भी बचत हुई हैं। इस समय का उपयोग महिलायें अपनी आय बढ़ाने और सामाजिक कार्यों के लिये कर सकती है। इस योजना को लागू करने से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा और महिलाओं के स्वास्थ्य की भी सुरक्षा की जा सकती है। उज्जवला योजना के लागू होने के बाद वातावरण प्रदूषण में भी कमी आने की सम्भावना हैं। इस प्रकार यह योजना महिलाओं और बच्चों को स्वस्थ्य रखने में सहायक सिद्ध होगी जबकि अत्यधिक संख्या में भोजन पकाने वाली महिलायें श्वांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित हो जाती है।ं (रमन देवी 2017) एक अध्ययन के अनुसार लकडी गोबर के उपले (कण्डे) जैसे पारम्परिक ईंधन के प्रयोग करने से एक घण्टे में 400 सिगरेट पीने जितना नुकसान भोजन पकाने वाले व्यक्ति को होता हैं। स्वास्थ्य के जानकार कहते हैं कि लकडी आदि जलने से उठने वाले धुॅऐ में हानिकारक प्रभाव डालती हैं और पर्यावरण को भी प्रदूषित करती है। महिलाओं की समस्याऐं और उनके प्रयोग से होने वाले हानिकारक प्रभावों को ध्यान में रखते हुये प्रधानमंत्री ने 01 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से प्रधानमंत्री उज्जबला योजना का शुभारंभ किया। यह योजना एक धुॅआ रहित ग्रामीण भारत की परिकल्पना करती हैं और वर्ष 2019 तक 5 करोड परिवारों, विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं को रियायती एल.पी.जी कनेक्शन उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखती हैं। उज्जवला योजना का लाभ लेने के लिये लाभार्थी को राशन कार्ड में जितने सदस्यों का नाम है सभी का आधार कार्ड होना चाहिये। उनके पास पहले से कोई कनेक्शन नही होना चाहिये। आवेदक का नाम 2011की ैम्ब्ब् सामाजिक सूची में होना चाहिये व बीपीएल राशनकार्ड धारी होना चाहिये। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना10 अगस्त 2021 को फिर से शुरूआत की गई। 2‘0 के तहत और 75 लाख नये एलपी.जी. कनेक्शन देगी। यह उज्जवला योजना के तहत ये कनेक्शन 3 साल यानि 2026 तक दिया जायेगा।
स्वास्थ्य, पर्यावरण, ईंधन, स्कूल सशक्तिकरण.
1. प्रधानमंत्री उज्जवला योजना प्रभाव आंकलन- अटल विहारी बाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान भोपाल मध्यप्रदेश
भारत में विविधता में एकता सदैव विधमान रही है। इसकी संस्कृति उदार है, क्योकि भारतीय संस्कृति में प्रत्येक जीवजन्तु, पशु-पक्षी को अपनाया गया है, और सदव्यवहार की बात कही गयी है। भारतीय समुदाय पशु-पक्षी, पेड़-पैधे, जीव-जंतु समेत शारीरिक व मानसिक दिव्यांगो को सहजता से अपनाता है, और उनका पालन-पोषण करता है। किन्तु सिर्फ लिंग भेद होने के कारण किसी इंसान को तृतीय लिंग के रूप में उनके परिवार व समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिया जाता है जिसके बाद दर-दर की ठोकरे खाने व अपमान जनक जिंदगी जीने को वे विवश हो जाते है। उन्हें ऐसा कोई अधिकार नही मिल पाता है जिसका एक मानव प्राणी हक़दार है, जिसे मानवधिकार कहा जाता है। तृतीय लिंग को भी पांच मूल-भुत आवश्यकताओं भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और चिकित्सा के साथ-साथ रोजगार, समानता और सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार बिना किसी भेद-भाव के प्राप्त होना चाहिए। वर्तमान समय में तृतीय लिंग का मुद्दा सिर्फ सामाजिक या स्वास्थय का मुद्दा नही है, बल्कि यह मानवाधिकार का और संवेदनशील मुद्दा है।
तृतीय लिंग मानवाधिकार, प्रसंविदा, अनुच्छेद, अधिनियम.
1. मोहन, आर. (2022), तृतीय लिंग समुदाय के स्वास्थ संबंधी संघर्ष का समाजशास्त्रीय विश्लेषण, शोध समागम, 3(4), 418।
वाण के विवरण से पता चलता है कि वेदों तथा वेदांगों का सम्यक् अध्ययन होता था। हुएनसांग ने पंचविद्याओं-शब्द विद्या (व्याकरण), शिल्पस्थान विद्या, चिकित्सा विद्या, हेतु विद्या (न्याय अथवा तर्क) तथा अध्यात्मक विद्या, का उल्लेख किया है। जयदेव ने हर्ष को भास, कालिदास, वाण, मयूर आदि कवियों की समकक्षता में रखते हुये उसे ‘कविताकामिनी का साक्षत् हर्ष’ निरूपित किया है। ब्राह्मणों को एवं अन्य धार्मिक संप्रदायों को बड़े पैमाने पर भूमि-अनुदान की परंपरा जो गुप्त काल में शुरू हुई थी वो हर्ष के समय में और बढ़ गई एवं इसके बाद के कालों में लगातार बढ़ती ही गई।
हर्ष वर्धन, संप्रदाय, सांस्कृतिक.
1. कूमार, संतोष दास (1980) प्राचीन भारत का आर्थिक इतिहास, बोहरा पब्लिकेशन, इलाहाबाद।
हमारे देश में सब्जियों का उत्पादन लगभग 72 लाख हे. क्षेत्रफल से 116 मीलियन टन के आस-पास होता है। एफ.ओ. के अनुसार भारतीय आहार में सब्जियां की पूर्ति करने के लिए 2025 तक यह उत्पादन 1600 मीलियन टन तक बढ़ाया जाना जरूरी है। सब्जियों के उत्पादन की वर्षिक विकास दर 2.6 प्रतिशत है जो कम है और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 4 प्रतिशत की दर से वृद्धि की आवश्यकता है। एक प्रगतिशील और स्थिर कृषि विकास के लिए गुणवŸा के बीज महत्वपूर्ण और बुनियादी निवेश है। राष्ट्रीय बीज नीति 2001 और वीज विधेयक 2004 उदारी कृत आर्थिक वातावरण में तेजी से बीज उधोग वृद्धि के लिए पर्यापत ढ़ाँचा प्रदान करता है। अभी तक के रिर्पोट से पता चलता है कि केवल 20 प्रतिशत से कम भारतीय किसान गुणवŸा पूर्ण बीज का उपयोग करने की स्थिति में है। सब्जियों की खेती को उसके उद्देश्य, उगाने के ढ़ग एवं बेचने के आधार पर विभिन्न वर्गो में विभाजित किया जा सकता है। बीज उत्पादन के लिए सब्जियों की खेती, बाग द्वारा सब्जियों की खेती, संसाधनों के लिए सब्जियों की खेती, बाजार के लिए सब्जियों की खेती।
सब्जियाँ, उत्पादन, लाभकारी, कृषि उद्यम.
1. शर्मा, राजीव (2007) प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य सब्जियां, डायमंड बुक डिपो, मेरठ।
In this research paper, on the basis of the observation, the researcher has highlighted how people in general use social media. While explaining the modus operandi of social media use, the researcher has provided ideas supported by appropriate arguments that how social media can be used in a constructive and creative way for the benefit of self and society. The researcher has also discussed some destructive and shrewd use of social media by some ill mentality people.
Social Media, People, Society.
1. Boulianne, Shelley. (2015) "Social media use and participation: A meta-analysis of current research." Information, communication & society 18.5, 524-538.
Value education refers to the learn of development of needful values in people. Values are self-demanding, self sacrificing but not based on impulsive act. Value education, according to one more view, is gradually a matter of educating the feelings and emotions. It is the preparation ‘of the heart’ and comprises in fostering the right sentiments and feelings. The review will be led the goals are to concentrate on the distinction of significant worth mindfulness among young men and young ladies understudies and to concentrate on the distinction of significant worth mindfulness among rustic and metropolitan understudy. There was important to choose the examples from the populace. A sample of 120 students of IX class at the secondary school will be choose by using stratified random sampling method from four schools in Domkal block of Murshidabad district which has two were urban areas and the other two were rural areas. The null hypothesis tested for significance in the results section has open interpreted in tends of rejection and acceptance. The current study found that the significant difference with respect to the value awareness of secondary school student in relation to their gender and locale variation. The boys and girls showed insignificant difference in value awareness in gender variation. But there was significant difference between locale variations. Urban students showed significant variation in value awareness than rural students. So there is no significant difference in value awareness between boys and girls, but significant difference in value awareness between urban areas and rural areas students.
Value, Awareness, Secondary, School, Student, Gender, Locale.
1. Baker, S. J. (1999), A study of effectiveness of traditional experience based and composite approach to value education in developing a set of values in pupils, Ph.D. Thesis, Shivaji University.
Book, Recommendation, Machine, Learning, Identify.
1. Adomavicius G. and Tuzhilin A. (2005) “Toward the next generation of recommender systems: A survey of the State-of-the-Art and Possible Extensions,” IEEE TransKnowl. Data Eng.,vol 17, no.6, pp 734-749.
इस वर्ष भारत के रक्षा क्षेत्र में रिकॉर्ड तोड़ा है। इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में राशि रुपये 3,000.00 करोड़ से ज्यादा का रक्षा निर्यात हुआ है जिसमें बड़े शस्त्रों से लेकर छोटे उपकरण शामिल है, इसके अलावा रक्षा उत्पादन का भी रिकॉर्ड टूटा है। इस वर्ष एक लाख करोड़ रुपये का रक्षा उत्पादन हुआ है, इन दोनों आंकड़ों ने रिकॉर्ड तोड़े हैं। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि इस वर्ष पूरी दुनिया से स्ब्। दृ तेजस, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, एयरक्राफ्ट कैरियर और अन्य सामग्रीयों की मांग रही है। भारतीय सेना को आधुनिक बनाने के लिए आत्मनिर्भर अभियान के तहत ज्यादातर सामग्रीयों, हथियारों, उपकरणों को भारत में ही निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। इससे भारत की सीमा सुरक्षा बढ़ी है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में करीबर राशि 16,000.00 करोड़ का रक्षा निर्यात हुआ है, यह पिछले वित्त वर्ष की तुलना में रुपये 3,000.00 करोड़ ज्यादा है, जबकि वर्ष 2016-17 की तुलना में 10 गुना ज्यादा है। भारत इस समय अमेरिका, इजराइल, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, इटली, जर्मनी समेत 85 से अधिक देशों को रक्षा उत्पादों का निर्यात कर रहा है। भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि कैसे उसकी डिजाइन, तकनीक और विकास का तरीका शानदार है। इस समय देश की 100 से ज्यादा कंपनियां रक्षा उत्पादों को दूसरे देशों में निर्यात कर रही है इनमें हथियार से लेकर विमान, मिसाइल से लेकर रॉकेट लांचर तक है।
रक्षा उत्पादन, रक्षा निर्यात, स्वदेशी, मेक इन इंडिया, नवाचार प्रौद्योगिकी, आत्मनिर्भरता.
1. Defence Monitor, Vol.-12, Issue-3,Feb.-March 2024.
नक्सलवाद एक विचारात्मक, राजनीतिक एवं आर्थिक संघर्ष है जो माओवाद एवं मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष पर आधारित है। वर्तमान समय में भी नक्सलवाद जैसी समस्या इसीलिए विद्यमान हैं क्योंकि पिछड़े एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में सरकारी स्तर में ध्यान नहीं दिया जाता है तथा नक्सलवाद जैसी समस्या का समाधान पूर्ण रूप से सैनिक बल के द्वारा नही की जा सकती। आवश्यकता इस बात की हैं कि इन क्षेत्रों में शासन प्रशासन के जमीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं के सही क्रियान्वयन और स्थानीय लोगों के साथ तालमेल स्थापित करनी होगी तभी नक्सलवादी समस्या को दूर किया जा सकता हैं।
विचारात्मक, माओवाद, मार्क्सवाद, प्रशासन, नक्सलवाद, समाधान.
1. मोहती, मनोरंजन (1980), रिवोल्यूशनरी वाईलेन्स-ए स्टडी ऑफ माओइस्ट मूवमेंट इन इंडिया, नई दिल्ली, स्टेलिंग पब्लिशर्स।
भूमि उपयोग भूमि का वह कार्य है जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता हैं। यह शोषण की प्रक्रिया है जिसमें मानव निरंतर भूमि का उपभोग करता है। प्रस्तुत शोध पत्र का मूल उद्देश्य अध्ययन क्षेत्र के भूमि उपयोग में होने वाले परिवर्तनों को जानना साथ ही इसका शोध प्रश्न 1991-2021 के दौरान अध्ययन क्षेत्र के भूमि उपयोग प्रारूप में कौन-कौन से परिवर्तन दृष्टिगत होती है, इसे समझना रहा है। इस अनुसंधान को पूरा करने के लिए द्वितीयक आँकड़ो और सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया गया है। द्वितीयक आँकड़ो में सरकारी, गैर - सरकारी कार्यालय से प्राप्त आंकड़े, साथ ही पुस्तक, जरनल, न्यूज़पेपर शामिल है। सांख्यिकीय विधियों में स्तरित प्रतिदर्श विधि को शामिल किया गया है, इसमें स्लोविन विधि के आधार पर 5 प्रतिशत मार्जिन के साथ स्तरिकृत यादृच्छिक विधि के माध्यम से 21 पंचायत के 21 गांवों में से 393 नमूना का चयन किया गया है। इसमें लैंडसेट 05 टीएम, लैंडसेट 08 ओएलआई, तथा धरातल पत्रक (मापनी 1ः50000) शामिल है साथ ही एराडास 14 और आर्क जी०आई०एस० 10.4 सॉफ्टवेयर के माध्यम से आंकड़ों का विश्लेशण और व्याख्या किया गया है। अध्ययन क्षेत्र में 1991 से 2021 के तीन दशकांे के दौरान वन भूमि, कृषि भूमि और जल निकाय क्रमशः 8.78 प्रतिशत, 3.02 प्रतिशत, 0.02 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, जबकि निर्मित भूमि, खुली भूमि, झाड़ी भूमि और बंजर भूमि में वृद्धि देखा गया, जिसमें क्रमशः 5.47 प्रतिशत, 2.44 प्रतिशत, 1.25 प्रतिशत और 2.67 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। इन परिवर्तनों का मौलिक कारण वनोन्मूलन, कृषि प्रारूप का बदलाव स्वरूप, जनसंख्या वृद्धि, आवासीय संरचना का विकास, सड़क निर्माण, आजीविका में बदलाव, ग्रामीण-शहरी प्रवास, वानिकी, सामाजिक-संास्कृतिक बनावट में परिवर्तन, संस्थागत विकास, शहरीकरण, ग्रामीण-शहरी उपांत और मानव जीवन शैली में बदलाव मुख्य है।
वन भूमि, कृषि भूमि, जल निकाय, भूमि.
1. चौनियाल, देवी दत्त (2021) “सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के सिद्धांत“ शारदा पुस्तक भवन प्रयागराज, पृ. 16,16-18, 107-118।
केदारनाथ सिंह समकालीन कविता में एक प्रतिष्ठित कवि हैं। उनका समय हमें उनके काव्य सृजन में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच के कवि हैं केदारनाथ सिंह। प्राकृतिक बिंबो ने उनके काव्य में जो स्थान पाया है और जितनी सहजता से पाया है उतना सरल और सरस चित्रण हिंदी काव्य जगत की एक दुर्लभ संपत्ति है। केदारनाथ सिंह की कविता में जीवन और जगत से जुड़े हुए अनेक पहलुओं को प्रकृति के संदेश और प्रकृति सौंदर्य के माध्यम से समझाया गया है। केदारनाथ सिंह ने अपने काव्य को किसी अन्य काव्य की चेतना से प्रभावित होने से बचाया है। यदि वह चाहते तो छायावादी कवियों की तरह प्रकृति का अलंकारिक चित्रण कर सकते थे, क्योंकि वह जीवन से जुड़े कवि हैं, इसलिए उनकी कविता में प्रकृति चित्रण के माध्यम से एक जीवंत समस्या और उस समस्या से लड़ने का साहस भी हम देख सकते हैं।
लोक, पर्यावरण, संवेदना, पूंजीवाद, संरक्षण, संस्कृतिण्
1. सिंह, केदारनाथ (1999) उत्तर कबीर एवं अन्य रचनाएँ, राजकमल प्रकाशन प्रा. लि. 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली 02, प्रथम संस्करण, पृ-34।
India is a multicultural and multilingual nation. This diversity poses many challenges. With the outbreak of deadly Novel Corona virus, the entire world has been shaken. Even today, many of us are not aware of the difference between epidemic and pandemic, lockdown and shutdown. We are coming to terms with what is quarantine, what is asymptomatic. So the need of the hour is to inform and educate the masses, especially the rural population on the seriousness of Covid-19. And what better way than by entertainment through their own people and not someone who is elitist or suited-booted? Folk media is the way to meet the challenges of Covid-19. Effective use of folk media can create awareness, provide information and bring about desired attitudinal changes and behavioral changes among populations. Far from being stagnant, Folk media are highly flexible and adapt to changing times and are supportive of Health Communication. The research paper aims to look at the changing contours of folk media in the current scenario and suggests ways for folk media to meet the challenges faced today. The role of the communicator is also looked at.
Folk media, information, Covid-19, Health Communication.
1. Melkote, Srinivas R., Steeves Leslie H. (2009) Communication for Development in the Third World. Theory and Practice for Empowerment. Sage Publications. New Delhi.
कृषि मानव का प्रमुख आधार है। कृषि विकास में सिंचाई का अपना विशेष स्थान है। प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र पलामू जिले का पांकी प्रखंड है। प्रस्तुत शोध पत्र का प्रमुख उद्देश्य कृषि विकास में सिंचाई की भूमिका को स्पष्ट करना साथ ही सिंचाई के साधनों का पता लगाना है। इस पत्र को पूरा करने के लिए प्राथमिक एवं द्वितियक आंकड़ों का सहारा लिया गया है। इस पत्र में प्रखंड के 20 पंचायत के अंतर्गत प्रमुख सिंचाई साधनों का पता लगाया गया तथा प्रमुख सिंचाई विधि के बारे में अध्ययन किया गया। यहां कुआँ, नलकूप, तालाब, डोभा तथा नदियों के बांध बनाकर सिंचाई की जाती है।
कुआँ, तालाब, नलकूप टैंक सिंचाई, ड्रिप सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, कृषि.
1. हुसैन, मजिद (2016) ’’कृषि भूगोल’’ रावत पब्लिकेशन, जयपुर।
प्रस्तुत शोध पत्र ‘‘ग्रामीण एवं शहरी माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि पर उनके पर्यावरणीय वातावरण के प्रभाव का अध्ययन’’ पर आधारित है। शोध के निम्नलिखित उद्देश्य हैं- ग्रामीण माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि पर उनके पर्यावरणीय वातावरण के प्रभाव का अध्ययन करना। शहरी माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि पर उनके पर्यावरणीय वातावरण के प्रभाव का अध्ययन करना। अनुसंधान में प्रयुक्त समस्या की स्पष्ट व्याख्या हेतु शोधकर्ता ने सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया है। न्यादर्श :शोधार्थी द्वारा मध्यप्रदेश के दतिया जिले के 2 ग्रामीण एवं 2 शहरी माध्यमिक विद्यालय के 20 शहरी एवं 20 ग्रामीण छात्र-छात्राओं का चयन किया है। प्रस्तुत शोध में उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुये शोधार्थी द्वारा छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि के लिए उनके पिछले वर्ष का परीक्षा परिणाम लिया गया तथा पर्यावरण के लिए प्रमाणीकृत उपकरण के रूप में प्रवीण कुमार झा द्वारा निर्मित पर्यावरण जागरूकता अभिक्षमता मापनी का प्रयोग किया गया। निष्कर्ष रूप में पाया गया कि ग्रामीण माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि पर उनके पर्यावरणीय वातावरण का सार्थक प्रभाव पड़ता है। शहरी माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि पर उनके पर्यावरणीय वातावरण का सार्थक प्रभाव पड़ता है।
ग्रामीण एवं शहरी माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्रा, शैक्षिक उपलब्धि, पर्यावरणीय वातावरण.
1. अग्रवाल, पी.के. (1993), ‘‘पर्यावरण एवं नदी प्रदूषण’’ आशीष पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली।
प्रस्तुत शोध पत्र ‘‘ग्वालियर के शासकीय एवं अशासकीय माध्यमिक स्तर के योग न करने वाले एवं योग करने वाले विद्यार्थियों की उपलब्धि पर योग के प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन’’ पर आधारित है। प्रस्तुत शोध में योगाभ्यास न करने वाले (नियंत्रित समूह) एवं योगाभ्यास करने वाले (प्रयोगात्मक समूह) समूहों के शासकीय एवं अशासकीय माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों की उपलब्धि परीक्षण सम्बन्धी तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। शोध के निम्नलिखित उद्देश्य हैं -शासकीय एवं अशासकीय माध्यमिक स्तर के योग न करने वाले एवं योग करने वाले छात्र-छात्राओं की उपलब्धि पर योग के प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन करना। शोधकर्ता ने सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया है तथा न्यादर्श के लिए शोधार्थी द्वारा मध्यप्रदेश के ग्वालियर मुख्यालय के 2 शासकीय एवं 2 अशासकीय माध्यमिक विद्यालय के 20 (10 छात्र $ 10 छात्रायें शासकीय) एवं 20 (10 छात्र $ 10 छात्रायें अशासकीय) विद्यार्थियों का चयन किया है। विद्यार्थियों में योगाभ्यास न करने वाले (नियंत्रित समूह) के 5-5 छात्र-छात्राओं एवं योगाभ्यास करने वाले (प्रयोगात्मक समूह) के 5-5 छात्र-छात्राओं को शासकीय एवं अशासकीय माध्यमिक विद्यालय से चयनित किया गया है। शोध उपकरण के रूप में शोधार्थी द्वारा विद्यार्थियों की उपलब्धि पर योग के प्रभाव के लिए स्व-निर्मित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया है। निष्कर्ष में पाया गया कि शासकीय एवं अशासकीय माध्यमिक स्तर के योग न करने वाले एवं योग करने वाले छात्र-छात्राओं की उपलब्धि पर तुलनात्मक रूप से योग का सार्थक प्रभाव पड़ता है।
योग, उपलब्धि, विद्यार्थी, माध्यमिक स्तर.
1. महाजन, धर्मवीर एवं महाजन, कमलेश (2003) सामाजिक अनुसंधान की पद्धतियां, विवेक प्रकाशन, दिल्ली
प्रस्तुत शोध पत्र में हजारीबाग जिले के अंर्तगत विष्णुगढ़ प्रखंड के आर्थिक क्रियाकलाप को शामिल किया गया है। इस शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य अध्ययन क्षेत्र में मानवीय क्रियाकलाप के स्वरूप को जानना है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक आँकड़ों का सहारा लिया गया है। प्राथमिक आँकड़ों के अंर्तगत अवलोकन और साक्षात्कार विधि का प्रयोग किया गया है। द्वितीयक आँकड़ों के अंर्तगत सरकारी और गैर-सरकारी विधि का प्रयोग किया गया है। इस पत्र के माध्यम से यह स्पष्ट पता चलता है कि अध्ययन क्षेत्र में प्राथमिक क्रिया, द्वितीयक क्रिया, तृतीयक क्रिया एवं चतुर्थक क्रिया देखने को मिलता है जिसमें मूलतः कृषि कार्य, कुटीर उद्योग, सोहराय पेंटिंग, निर्माण कार्य, क्लाउड किचन, मजदूरी शामिल है। अध्ययन क्षेत्र में कृषक वर्ग 48.10 प्रतिशत, कृषि श्रमिक 30.57 प्रतिशत, गृहस्थी उद्योग में 3.01 प्रतिशत एवं अन्य श्रमिक 18.32 प्रतिशत जनसंख्या शामिल है। अध्ययन क्षेत्र के इन आर्थिक क्रियाकलाप को प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन विकास, पूंजी निर्माण, तकनीकी उन्नति, जनसंख्या में वृद्धि, सामाजिक लागतें, मनोवैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक कारक और कृषि का मशीनीकरण शामिल है।
कृषि कार्य, कुटीर उद्योग, सोहराय पेंटिंग, निर्माण कार्य, मजदूरी, सेवा कार्यण्
1. मौर्य, एस. डी. (2018), ’’आर्थिक भूगोल’’ प्रवालिका पब्लिकेशन्स, यूनिवर्सिटी रोड़, इलाहाबाद, 211002.
A person’s personality is developed and shaped by their sex education, which is a crucial aspect of who they are. It enables people to make wiser choices by adopting a logical mindset as opposed to acting on instinct. One of the primary issues facing India is the lack of sex education and healthy dialogue surrounding sexual behaviours, for which we are still not doing enough. A sophisticated sexual assault education programme would directly reduce the number of sexual assault cases while also bringing about a variety of other good effects. This essay examines the ways in which India’s nearly non-existent sex education programme has been shaped by a number of variables. It also emphasises the growing necessity of educating young people about their online behaviour in the digital age. To understand the political, social, technological, and legal factors influencing the numerous study issues, the paper use PESTLE analysis. It talks about how India’s sociocultural values have influenced the country’s sex education curriculum. When putting sex education plans into practise, a lot of political actors and factors enter the picture. Even now, a sizable portion of political elites remain sceptical about the idea of supplying such knowledge through the official school system. However, we cannot ignore the fact that digital media is becoming more and more popular among this generation’s kids. Therefore, we have to concentrate on keeping it secure and cosy for each and every user. The essay also addresses the potential legal ramifications of engaging in unethical and consensual sexual behaviour, with a particular emphasis on the internet.
Sex Education, Digital Era, Formal Education System, Political Factors, Socio-cultural beliefs, Legal Repercussions.
1. Ameilagettleman. Sex education angers Indian Conservatives. New York Times, 24th May, 2007. http://www.nytimes.com/2007/05/24/world/asia/24ihtletter.1.5851113. html [Last accessed on 28.8.2016]