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Publishing Year : 2023

March To May
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 ईसाई धर्मप्रचारकों ने निष्ठा पूर्वक भारत के प्रायः समस्त भू-भागों में धर्मप्रचार का कार्य किया। छोटा नागपुर जैसे अविकसित और उपेक्षित क्षेत्र के अंतर्गत यह व्यवस्थित जनजातियों को भी उन्होंने अंधकार के गर्त से उभारने के लिए नई दिशा और दृष्टि प्रदान की। ईसाई मिशनरियों के अथक प्रयासों के कारण ही इनका जीवन अन्य विकसित और समुन्नत जातियों के समकक्ष आने में समर्थ हो सका। ईसाई मिशनरियों के छोटा नागपुर आगमन का मुख्य उद्देश्य धर्म प्रचार ही  था, फिर भी इनके प्रयत्न से हमारा अत्यधिक कल्याण हुआ। आयरलैंड से छोटा नागपुर के लिए डबलिन यूनिवर्सिटी मिशन 8 मार्च 1892 ई० को सोसायटी फॉर द प्रोपगेशन ऑफ द गोस्पेल के सहयोग से हजारीबाग में शुरू हुआ। छोटा नागपुर के तत्कालीन विशप जे०सी० व्हिटली ने मिशन कार्य में सहयोग किया। डबलिन मिशन के सभी सदस्य स्नातक थे। उन्होंने हजारीबाग शहर के शिक्षित सज्जनों को सार्वजनिक व्याख्यान दिये, लेकिन उनसे सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। डबलिन यूनिवर्सिसिटी मिशन चिकित्सा एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से सफल रहा। मिशन के पास शुरू से ही एक मजबूत चिकित्सा कर्मचारी था। हजारीबाग एवं अन्य मिशन केन्द्रों पर औषधालय और अस्पताल का निर्माण सेंट कोलंबा के जनाना मिशन अस्पताल ने अपने दक्षता के लिए महान नाम हासिल किया। इसने एक नर्सिंग स्कूल चलाया। मिशनरी के सभी सदस्य शिक्षित होने के कारण हजारीबाग में शिक्षा प्राप्त करने पर बहुत ध्यान दिया। कई प्राथमिक, मध्य एवं उच्च विद्यालय की स्थापना की गई। मिशन ने शिक्षा का प्रचार हजारीबाग, सीतागढ़, डूमर, गिरिडीह, कोडरमा, बगोदर, मांडु, रामगढ़, गोला, चतरा और इचाक क्षेत्रों में किया। मिशन ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 1899 ई० में अविभाजित बिहार में पहला ईसाई कॉलेज संत कोलंबा कॉलेज हजारीबाग में शुरू किया गया। संत कोलंबा कॉलेज में उत्तर-बिहार, बंगाल और उड़ीसा के छात्र पढ़ने आते थे। इस प्रकार डबलिन यूनिवर्सिटी मिशन ने उच्च शिक्षा के में काफी योगदान दिया।

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 डबलिन मिशन, धर्मप्रचारक, सोसायटी, प्रोपगेशन, औषधालय.

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  1. चैटरटन अय्यर, (1901), द स्टोरी ऑफ फिफ्टी ईयर्स मिशन वर्क इन छोटा नागपुर, सोसायटी फॉर प्रोमोटिंग क्रिश्चियन नॉलेज, लंदान, पृ. 158।

2. खलखो आभा, (2015), ब्रिटिशकालीन झारखण्ड के कुछ ऐतिहासिक अध्याय, जेवियर पब्लिकेशन्स, राँची, पृ. 59।
3. वीरोत्तम वी., (2017), झारखण्ड : इतिहास एवं संस्कृति, बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पटना, पृ. 561।
4. बास्के बी. वी., (2015), चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया, डायोसिस ऑफ छोटा नागपुर (1890-2015), जुबली एसेसीरिज कमिटि, राँची, पृ. 38।
5. राय कामना, (2016), छोटा नागपुर की जनजातीय संस्कृति व समाज, इंस्टीच्यूट फॉर रिसर्च डेवलपमेंट, राँची, पृ. 238-239।
6. कालापुरा जोसे, (2014), क्रिश्चियन मिशन इन बिहार एण्ड झारखण्ड टिल-1947, क्रिश्चियन वर्ल्ड इंप्रिंट, दिल्ली, पृ. 186, 190, 191-193।
7. खलखो आभा, (2010), हिस्ट्री ऑफ एजुकेशन इन झारखण्ड (1845-1947), एस० के० पब्लिशिंग हाउस, राँची, पृ. 78।
8. महतो सरयु, (1971), हण्डरेड इयर्स ऑफ क्रिश्चियन मिशन्स ऑफ छोटा नागपुर सिन्स-1845 छोटा नागपुर, क्रिश्चियन पब्लिशिंग हाउस, राँची, पृ. 177-178।
9. संत कोलम्बा कॉलेज डायमंड जुबली सोविनयर मैग्जीन (1899-1959), 1959, पृ. 38।
10. एनुअल रिपोर्ट ऑफ डबलिन युनिवर्सिटी मिशन्स, 1926, पृ. 33।
11. www.christianmissionindia.org/index.Php
12. www.christinanity-in-Bihar.html

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 राजा राममोहन राय भारतीय पुर्नजागरण के यमदूत थे। उन्होंने पाश्चात्य ज्ञान के आधार पर हिन्दू धर्म तथा समाज में परिवर्तन लाने का कार्य प्रारम्भ किया और भारत में आधुनिक युग का सूत्रपात किया। राजा राममोहन राय भारतीय नव जागरण के अग्रदूत और जनक थे। इस धारा की प्रवाहित करने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। राजा राम मोहन राय आधुनिक भारत के पुर्नजागरण के पिता और एक अथक समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारत में प्रबोधन और उदार सुधारवादी, आधुनिकीकरण के युग का उद्घाटन किया। राजा राम मोहनराय केवल धर्म सुधारक ही नहीं थे बल्कि सामाजिक सुधरक भी थे। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी 1929 ई. में सती प्रथा को दूर करवाना। राजा राममोहनराय ने अनुभव किया कि हिन्दु महिलाओं की समाज में बहुत ही निम्न स्थिति थी। अतः वे महिलाओं के अधिकारों के प्रबल समर्थक के रूप में कार्य करने लगे। वे कई वर्षों तक सती प्रथा को बन्द करने के लिए कठिन परिश्रम करते रहे। 1818 ई. में प्रारम्भ में वह ‘सती’ विषय पर जनता में जागृति लाने के लिए निकल पड़े। एक ओर वे प्राचीन पवित्र ग्रन्थों से उद्धरणों द्वारा ये सिद्ध करने पर जुटे हुए थे कि हिन्दु धर्म सती प्रथा के विरूद्ध है और दूसरी ओर वे लोगों से दया, तर्क और मानवता के आधार पर आग्रह करते थे।

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 सामाजिक, राजनीतिक, दर्शन, धार्मिक, शैक्षिक, मानवतावाद.

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  1. आधुनिक भारत में धार्मिक सुधार आन्दोलन, भारतीय संस्कृति और विरासत, रा.मु.वि.शि.सं.,नई दिल्ली पृ.ंसं. 154।

2. सूद ज्योति प्रसाद, आधुनिक भारतीय सामाजिक तथा राजनीतिक विचार की मुख्य धाराऐ, जय प्रकाश नाथ एण्ड कम्पनी, मेरठ, 1970।
3. सिंह आर. पी., एजूकेशन एंड दी इण्डियन नेशनल कांग्रेस (1885-1947), सीनेरियों पब्लिकेशन, दिल्ली, 1965।
4. मेहता गिरिश, मॉर्डन इंडियन पॉलिटिकल थिंकर्स, मुरारीलाल एण्ड सन्स, नई दिल्ली, 2006।
5. रतन राम, त्यागी रूचि, एवं डागर के., भारतीय राजनीतिक चिंतन, मयूर पेपर बैक्स, नोएडा, 1996।
6. वर्मा वी.पी., आधुनिक भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक चिंतन, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल प्रकाशन, आगरा।
7. नागर पुरुषोत्तम, आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक चिंतन, राजस्थान ग्रंथ अकादमी, जयपुर।
8. जैन धरमचंद, दरोगा कैलाश, आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतक, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, जयपुर।
9. रामरतन, त्यागी रुचि, भारतीय राजनीतिक चिंतन, मयूर पेपर बैक्स, नोएडा।
10. सरस्वती सी.एम., भारतीय राजनीतिक चिंतन, मीनाक्षी प्रकाशन, मेरठ।
11. ओमप्रकाश, राजनीतिक चिंतन की रूपरेखा, मयूर पेपर बैक्स, नोएडा।
12. गाबा ओम प्रकाश, भारतीय राजनीतिक विचारक, मयूर पेपरबैक्स, नोएडा।
13. बिरयानी पुष्पा, व सक्सेना राजेश्वरी, भारतीय राजनीतिक विचारक, प्राचीन भारत में राजनीतिक एवं संस्थाएं, भारतीय राजनीतिक विचारक, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल।

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 विगत शताब्दी में मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी पर अनेक पर्यावरणीय आपदाओं का जन्म हुआ है। मानव ने निरन्तर तीव्र आर्थिक विकास तथा भौतिक जीवन व उपभोक्तावादी संस्कृति को अपनाकर पर्यावरण को हर कहीं प्रभावित किया है। भूमध्य रेखा पर मध्य अफ्रीका के कांगो बेसिन तथा अमेजन बेसिन में वनोन्मूलन से लेकर यूरोप अमेरिका में बढ़ते जीवाश्मीय ईंधन के उपयोग तक मानव ने प्रकृति की संवेदना को जगाया है। 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हरितगृह प्रभाव एवं ओजोन परत के अपक्षय में वृद्धि हुई फलस्वरूप उपमान में वृद्धि हुई। तापमान वृद्धि से भूमध्यरेखीय क्षेत्र के किलीमंजारों पर्वत से लेकर अण्टार्कटिका तक हिम पिघलने का सिलसिला चल पड़ा। जलवायु परिवर्तन के दौर का सर्वाधिक प्रभाव जल संसाधन पर पड़ा है। प्रकृति में उपलब्ध कुल जल संसाधन का लगभग 2 प्रतिशत भाग हिम के रूप में जमा है तथा केवल 1 प्रतिशत से भी कम जल मानवीय उपयोग हेतु उपलब्ध हो पाता है। यह जल भी पर्यावरणीय आपदाओं एवं मानवीय क्रियाकलापों द्वारा गुणात्मक एवं मात्रात्मक ह््रास की ओर है जबकि अम्लव द्वारा शुद्ध जल प्रदूषित हो रहा है।

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 जलवायु, तापमान, भूजल, जल संकट, आपदा, अम्ल वर्षा.

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  1. भारती राधाकांत, (1998) भारत की नदियाँ, नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया नई दिल्ली।

2. सूरजभान, (1982), मृदा और जल संरक्षण, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली।
3. सूरजभान, (1995), फसलों में जल प्रबंधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्लीं।
4. गुर्जर आर. के. एवं जाट बी.सी., (2001), जल प्रबंध विज्ञान, पोईटर पब्लिशर्स, जयपुर।
5. गुर्जर आर. के. एवं जाट बी.सी., (2001) प्राकृतिक आपदाएँ, सुरभि पब्लिकेशन, जयपुर।
6. गुर्जर आर.के. एवं जाट बी.सी., (2003), संसाधन एवं पर्यावरण, पंचशील प्रकाशन, जयपुर। 
7. गुर्जर आर. के. एवं जाट, बी.सी., (2009), संसाधन भूगोल, पंचशील प्रकाशन, जयपुर।
8. जाट बी.सी., (2009), जलग्रहण प्रबंधन, पोइंटर पब्लिशर्स, जयपुर।
9. गुर्जर आर.के. एवं जाट बी.सी., (2010), पर्यावरण भूगोल, पंचशील प्रकाशन, जयपुर।
10. जाट बी.सी., (2015), भौतिक भूगोल, मलिक एण्ड कम्पनी, जयपुर। 
11. जाट बी.सी. एवं कुमार अजय, (2017), जल प्रबंधन भूगोल, मलिक एण्ड कम्पनी, जयपुर।
12. भू-जल विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली।
13. जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार।
14. दैनिक जागरण समाचार पत्र, पंजाब केसरी समाचार पत्र।
15. http://hpenvis.nic.in/ViewGeneralLatestNews.aspx ?Id=6003&Year=2017
16. https://www.drishtiias.com
 

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 Disinvestment in the public sector has been a topic of great significance in India since the economic reforms of 1991. This abstract aims to provide an overview of the problems and prospects associated with disinvestment in the public sector in India from 1991 to 2023. The disinvestment process in the public sector gained momentum in India due to the Government’s attempts to liberalize and revitalize the economy. The primary objective was to reduce the fiscal burden on the Government, encourage private sector participation, and promote economic growth. Over the years, the disinvestment program has witnessed both successes and challenges. This abstract highlights the problems faced during the disinvestment process. One significant challenge has been the resistance from various stakeholder groups, including labour unions, who fear job losses and oppose privatization. Political factors and bureaucratic hurdles have also hampered the disinvestment process at times. Moreover, concerns about transparency and accountability in disinvestment have raised questions about the program’s effectiveness. Despite these challenges, disinvestment in the public sector in India has shown prospects for economic growth and efficiency. The private capital and expertise infusion has revitalized many industries, leading to enhanced productivity, improved technology, and increased competitiveness. Disinvestment has also helped reduce the Government’s financial burden and promoted a more market-oriented approach to resource allocation. This abstract also highlights the key sectors in which disinvestment has been undertaken, such as telecommunications, banking, aviation, and energy. It discusses the positive outcomes of strategic disinvestment and creating a more dynamic and competitive market environment. Furthermore, this abstract sheds light on the evolution of disinvestment policies and strategies adopted by the Indian Government over the years. It examines the role of various disinvestment methods, including initial public offerings (IPOs), strategic sales, and exchange-traded funds (ETFs), in achieving the desired objectives. To conclude, the disinvestment process in India’s public sector from 1991 to 2023 has faced numerous challenges, including stakeholder resistance, political factors, and transparency issues. However, it has also presented significant economic growth and efficiency prospects through the Infusion of private capital and expertise. The abstract emphasizes the need for a balanced approach that addresses job security and social welfare concerns while promoting market-oriented reforms for sustained development in the Indian economy.

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 Disinvestment, Privatization, Transparency, Accountability, Efficiency.

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  1. Anand, Prakash, and Nidhi Singh. “Disinvestment in India: A Review of Trends, Strategies, and Outcomes.” Economic and Political Weekly, vol. 52, no. 23, 2017, pp. 56-63.

2. Chakraborty, Debabrata, and Rupa Subramanian. “Disinvestment in India: An Analysis of Trends, Issues, and Challenges.” Indian Journal of Finance, vol. 13, no. 6, 2019, pp. 29-42.
3. Ghosh, Saptarshi. “Privatization and Disinvestment in India: An Analysis of Recent Trends and Policy Implications.” Margin: The Journal of Applied Economic Research, vol. 10, no. 1, 2016, pp. 69-88.
4. Kumar, Rajeev, et al. “Disinvestment in India: A Critical Analysis.” International Journal of Commerce, Business and Management, vol. 5, no. 1, 2016, pp. 21-26.
5. Marjit, Sugata, and Saibal Kar. “Disinvestment, Globalization, and Welfare.” Economic Modelling, vol. 58, 2016, pp. 405-412.
6. Mathur, Neha, and Tanya Arora. “Disinvestment and Its Impact on Indian Economy.” International Journal of Research in Finance and Marketing, vol. 8, no. 7, 2018, pp. 30-41.
7. Pradhan, Jaya Prakash, et al. “Disinvestment, Firm Performance, and Corporate Governance in India.” Journal of Comparative Economics, vol. 44, no. 4, 2016, pp. 1083-1109.
8. Pramanik, Avijit. “Disinvestment of Public Sector Enterprises in India: An Appraisal.” The Indian Journal of Commerce, vol. 70, no. 3-4, 2017, pp. 90-103.
9. Ramachandran, Mita, and Subrata Raychaudhuri. “Disinvestment in India: Politics, Governance, and Social Welfare Implications.” Oxford Development Studies, vol. 45, no. 3, 2017, pp. 364-381.
10. Sengupta, Abhijit. “Disinvestment of Public Sector Enterprises in India: An Assessment of Performance and Policy Implications.” South Asia Economic Journal, vol. 19, no. 1, 2018, pp. 82-101.
11. Seth, Rama, and Alok Pandey. “Disinvestment of Public Sector Enterprises in India: An Analysis.” Journal of Commerce and Accounting Research, vol. 6, no. 3, 2017, pp. 1-12.
12. Sircar, Soumendu, and Chiranjib Neogi. “Disinvestment of Public Sector Enterprises in India: Problems and Prospects.” Journal of Entrepreneurship, Business and Economics, vol. 6, no. 2, 2018, pp. 96-116.
13. Sodhi, Harleen, and Anandita Sethi. “Disinvestment in India: Evaluating the Outcomes.” Indian Journal of Commerce and Management Studies, vol. 7, no. 1, 2016, pp. 13-22.

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 Drug patents and their impact on prices have been at the centre of the international debate about inadequate access to life-saving HIV/AIDS drugs in developing countries for many years. Conflicts over the introduction of intellectual property systems in developing countries were resolved by following amendments to the TRIPS Agreement, which stipulated 20-year patent protection for drugs for these countries and resulted in high drug prices for patented drugs. Developing countries that already have patents try to reduce high drug prices through compulsory licensing, a protective measure that allows generic drugs to be produced or imported without the approval of the patent owner. Compulsory licensing is permitted under the TRIPS Agreement, but disagreement over the terms under which compulsory licences for “essential medicines” are available has restricted their use. There is no definition of the extent to which compulsory license holders can export generic drugs to developing countries that are unable to manufacture their own drugs. However, on August 30, 2003, the WTO announced that it had resolved this problem by removing the TRIPS Agreement’s export restrictions and permits for the export of drugs manufactured under compulsory licences as an exception to the patent law. It is advisable to make further recommendations about which generic drug manufacturers and which places should receive compulsory license. In fact, the debate over compulsory licensing is part of a much broader structural issue in development policy. Addressing the inaccessibility problem requires a combination of steps, including a functioning compulsory licensing system. However, disagreements, such as how to fairly allocate the necessary funds to developed countries, can delay reaching pragmatic solutions.

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 Compulsory Licence, Patent, Pharmaceutical, Intellectual Property Rights, Products.

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  1. Adukiya, R., S., “Overview of Pharmaceutical Industry with Specific Reference to Pharmaceutical Laws of India”, PP., 1-97.

2. Corporate Catalyst of India, 2013, “A brief report on Pharmaceutical Industry in India”, PP., 2-11.
3. Narayanaswamy, V., 1975, “Introduction to the Siddha System of Medicine”, T. Nagar, Madras (Chennai): Research Institute of Siddha Medicine.
4. Prasad, L., V., 2002, “Indian System of Medicine and Homoeopathy-Traditional Medicine in Asia”, New Delhi: WHO- Regional Office for South East Asia, PP., 283– 286.
5. Rao, R., S., K., 1987, “Encyclopedia of Indian Medicine”, Dr. P.V. Parameshvara Charitable trust, Bangalore, India, Vol, 2.
6. Rahalkar, H., 2012, “Historical Overview of Pharmaceutical Industry and Drug Regulatory Affairs”, Pharmaceut Reg Affairs, OMICS Publishing Group, PP., 1-11.
7. Shah, V., 2012, “Evolution of Pharmaceutical Industry: A Global Indian & Gujarat Perspective” JPSRB, Vol. 2, Issue, 5, PP., 219-229.
8. The Patents Act, 1970.
9. www.pharmatech.com.
10. http://levine.sscnet.ucla.edu/papers/imbookfinal09.pdf.
11. http://planningcommission.gov.in/aboutus/committee/wrkgrp12/wg_pharma2902.pdf.
12. http://www.britannica.com/EBchecked/topic/1357082/pharmaceutical-industry.

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 भारतीय समाज में आधुनिक नारी की स्थिति तथा उससे जुड़े प्रश्नों की चर्चा करने के पूर्व इतिहास के पृष्ठों पर स्त्रियों का कैसा चित्र अंकित है, यह समझना आवश्यक है। सामाजिक जीवन कभी भी देश एवं काल के प्रभाव अछूता नहीं रह सकता। प्राचीन भारतीय समाज में स्त्री का दर्जा बहुत ऊँचा था। ऐसी मान्यताओं को यथार्थ की कसौटी पर कसने की आवश्यकता है यदि यह स्वीकार कर लें कि प्राचीन युग में स्त्री की स्थिति बहुत अच्छी थी तथा उसका स्थान ऊँचा था तो उसकी उच्चता के प्रेरक तत्व कौन-कौन से थे तथा उसका हास कब और कैसे हुआ, यह समझने के लिए इतिहास पर        दृष्टिपात अनिवार्य है। आज वर्तमान संदर्भ में हम जिन आस्थाओं, मूल्यों एवं विश्वासों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं जो मेरा प्राण है, जो मेरा जीवन है, जो सत्य है, जो प्रकाशमान है, उदीयमान है, उसे सन्मार्ग पर कैसे लाया जाए यह हमारे शोध का समस्या है। गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी लेखनी से राम कथा के माध्यम से भारतीय जन जीवन को एक नई दिशा ही नहीं प्रदान की बल्कि सुसुप्तावस्था में द्रूतगति से जा रही सभ्यता एवं संस्कृति को एक नया आयाम देने के साथ-साथ प्राण फूंककर का नया जीवन प्रदान किया है।

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 वैदिक समाज, उत्तर वैदिक काल, महाकाव्य युगीन.

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  1. अथर्ववेद, 14-14

2. श० ब्रा० 5.2.1-10 
3. महाभारत, आदि पर्व, 74.40, 
4. वृहत्त संहिता 74.5,5,11,15-16, 
5. ऋग्वेद रू10/85/54.1/164/331/25/25
6. अथर्ववेदः 14/14
7. शतपथ ब्राह्मणः 5/21/ 20
8. ऐतरेय ब्राह्मणः 7/3/13
9. अल्तेकर ए.एस., Women in Hindi Civilization. p -93 
10. मंत्रायणी संहिता : 4/7/4 
11. प्रभु पी.एन.,Hindu Social organcation, 258
12. आश्वलायन गृहसूत्र : 3/8/11
13. लखनपाल चन्द्राती, स्त्रियों की स्थिति, पृष्ठ 25
14.   Desai Neera And Mrisnaraj M., Women and Society in India, p-27-28.
15. Srinivsa M.N., Csat in Modem India. p- 12.

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 इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव सृजनशील, विवेकशील तो है ही, उत्सवधर्मी भी है। यह उत्सवधर्मिता उसे सामाजिक बनाती है, जिसमें वह अन्य सदस्यों के साथ मिलकर सुख-दुख का सहभागी होता है। व्यावहारिक जगत में ऐसा कोई प्राणी नहीं है, जो अपनी समस्त इच्छाएँ पूरी कर सके। मानव-मेधा ने इस अभाव की पूर्ति कलाओं के ज़रिए करने का उपक्रम किया। जब व्यक्ति-चेतना सामूहिक चेतना में एकाकार हो जाती है, तब लोकसाहित्य या लोककला का जन्म होता है।

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 लोककला, नृत्य, चेतना, लोकसाहित्य.

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  1. दुबे श्यामाचरण, (1996) समय और संस्कृति, वाणी, नई दिल्ली, पृ.70।

2. दिनेश्वर प्रसाद, (2007) लोकसाहित्य और संस्कृति, जयभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, पृ. 123-124।
3. यादव पी.सी.लाल, (2021) छत्तीसगढ़ के लोकगीतों का सामाजिक संदर्भ, दक्षिण कौशल टुडे (ब्लॉग पोस्ट)।.
4. यादव राजन, (2017) छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य, कुलसचिव पंडित सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर, पृ. 7।
5. शुक्ल दयाशंकर, (2011) छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य का अध्ययन, वैभव प्रकाशन, रायपुर (द्वितीय संस्करण), पृ. 134।
6. एल्विन वैरियर, (1946) फ़ोक सॉग्ज़ ऑफ़ छत्तीसगढ़, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लंदन, पृ. 192।
7. वर्मा शकुंतला, (1976) छत्तीसगढ़ी लोकजीवन और लोकसाहित्य अध्ययन, रचना प्रकाशन, इलाहाबाद, पृ. 165।
8. गुप्त प्यारेलाल, (1973) प्राचीन छत्तीसगढ़, रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर, पृ. 381।
9. चंदेल गोरेलाल, (2018) झेंझरी, भाग-1, लता साहित्य सदन, गाज़ियाबाद, पृ. 388-394।
10. यादव राजन, (2017) छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य, कुलसचिव पंडित सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर, पृ. 08।

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 Dr. Bhimrao Ambedkar, also known as Babasaheb Ambedkar, was India’s prominent socio-political philosopher and social reformer. He is widely recognized as the architect of India’s constitution and is revered as a champion of social justice and equality. Ambedkar’s socio-political philosophy was deeply rooted in his experiences of discrimination and oppression as a member of the Dalit community, formerly known as untouchables, in India. He believed that the caste system, deeply ingrained in Indian society, was a significant obstacle to social progress and that the only way to achieve true equality was to dismantle it completely. Ambedkar’s philosophy was also informed by his study of Western political thought, particularly liberty, democracy, and constitutionalism. He believed democracy and constitutionalism were essential for building a just and equitable society. Still, he recognized that these principles could only be fully realized with social and economic equality. Throughout his life, Ambedkar worked tirelessly to promote the cause of social justice and equality, both through his writings and through his political activism. He firmly believed in the power of education to bring about social change, and he worked to create educational opportunities for members of marginalized communities, particularly Dalits. Ambedkar’s legacy continues to be felt in India today. He is celebrated as a champion of social justice and a beacon of hope for the millions who continue to struggle for equality and dignity.

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 Dalit Empowerment, Social Justice, Equality, Human Rights, Democracy, Reservation Policy.

Read Reference

  1. Ahir, D. C. (1994). Dr. Ambedkar and social justice. Bharatiya Vidya Bhavan.

2. Ambedkar, B. R. (1950). States and minorities: what are their rights and how to secure them in the constitution of free India. Thacker and Co.
3. Bhimrao, A. (2019). The Essential Writings of BR Ambedkar. Oxford University Press.
4. Ghai, A. (2016). Relevance of Dr. B.R. Ambedkar’s socio-political philosophy in the contemporary world. Journal of Political Science and Public Affairs, 4(1), 182.
5. Jadhav, P. B. (2013). Dr. Ambedkar’s socio-economic and political philosophy and its relevance in modern India. International Journal of Research in Social Sciences, 3(3), 50-61.
6. Khalid, R. (2017). Ambedkar’s philosophy of social justice and its contemporary relevance. International Journal of Humanities and Social Science Research, 6(1), 21-28.
7. Moon, V. G. (2013). Dr. B.R. Ambedkar and the emancipation of women. Journal of Indian Studies, 1(2), 105-117.
8. Omvedt, G. (2015). Ambedkar: Towards an Enlightened India. Penguin UK.
9. Ranade, D. K. (1971). Ambedkar’s socio-political philosophy. Economic and Political Weekly, 6(28), 1381-1385.
10. Thorat, S. (2009). Ambedkar’s socio-economic philosophy and its contemporary relevance. Indian Journal of Human Development, 3(2), 181-201.

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 अस्मिता मूलक विमर्शो में आदिवासी विमर्श को आज समझने की आवश्यकता है। इस लेख मे आदिवासी जीवन की अवधारणा और स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। उनके समाज की समस्याओं एवं चुनौतियों को समझने का प्रयास किया गया है। इस आधुनिकता के दौर में जल, जंगल, जमीन का संघर्ष उनके जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख मे जल,जंगल,जमीन और आधुनिकता के विरोधाभास को देखा जा सकता है, साथ ही उनकी संस्कृति एवं जीवन शैली को भी समझने का प्रयास करेंगे।

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 आदिवासी, अस्मिता, अवधारणा, आधुनिकता, भूमंडलीकरण.

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  1. प्रसाद कालिका, वृहत हिन्दी कोश, वाराणसी ज्ञानमंडल लिमिटेड, पृ 125।

2. Pathak, R. C., Standard Illustrated dictionary of the Hindi language.  पृ- 38.
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4. गुप्ता रमणिका, आदिवासी कौन, राधाकृष्ण, पृ- 27।
5. गुप्ता रमणिका, आदिवासी कौन, राधाकृष्ण, पृ- 27।
6. उप्रेती हरिश्चंद्र, भारतीय जनजतियाँ संरचना एवं विकास, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, पृ.सं 1।
7. सोनी एस. के., राजस्थान के आदिवासी, यूनिक ट्रेडर्स, पृ. 8।
8. सोनी एस. के., राजस्थान के आदिवासी, यूनिक ट्रेडर्स, पृ. 9।
9. गुप्ता रमणिका, आदिवासी कौन, राधाकृष्ण, पृ 27।
10. गुप्ता रमणिका, आदिवासी अस्मिता के प्रश्न; हाशिये का वृत्तांत, सं. दीपक कुमार, देवेंद्र चौबे, पृ- 353।
11. मीणा हरीराम, आदिवासी दुनिया, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत पृ. 170।
12. मीणा हरीराम, आदिवासी दुनिया, राष्ट्रीय पुस्तक न्याय भारत, पृ. 172।
13. मीणा हरीराम, आदिवासी दुनिया, नेशनल बुक ट्रस्ट 2013, पृ 168।
14. चतुर्वेदी जगदीश्वर, नया जमाना-आदिवासी अवधारणा की तलाश में, पृ.2।
15. मीणा गंगा सहाय, आदिवासी साहित्य विमर्श, पृ 25।
16. गुप्ता रमणिका,  आदिवासी अस्मिता के प्रश्न, पृ- 351।

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 संविधान किसी भी देश की शासन व्यवस्था के संचालन के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देता है। भारतीय संविधान के रचनाकारों ने संविधान में राष्ट्र के आदर्शों और संस्थाओं की कार्यसिद्धि हेतु कुछ प्रक्रियाएँ भी संस्थापित की थी। इन आदर्शों में राष्ट्रीय एकता, सामाजिक क्रांति तथा लोकतांत्रिक भावना का आदर्श शामिल था। संविधान सभा के सामने यह दायित्व था कि वह एक ऐसा संविधान तैयार करे जो सामाजिक क्रांति के अंतिम लक्ष्य और राष्ट्रीय जनजागरण के उद्देश्य को पूरा कर सके। भारतीय संविधान निर्माण के दौरान पुरुषों के साथ-साथ देशभर की विभिन्न अभियानों से जुड़ी महिलाओं ने संविधान सभा मे अपनी सहभागिता को प्रदर्शित किया जो आजादी के आंदोलन मे कदम से कदम मिलाकर शामिल भी रही। इन महिलाओं में सरोजनी नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित, अम्मू स्वामीनाथन, सुचेता कृपलाणी का नाम तो काफी प्रसिद्ध रहा है लेकिन इनके अलावा कई और महिलाएं भी हैं, जिन्होंने संविधान निर्माण से लेकर समाज निर्माण तक में अहम भूमिका निभाई । इस पेपर का उद्देश्य नवोदित भारत के निर्माण में उन महिलाओ के योगदान और राजनीतिक सहभागिता का स्पष्ट मूल्यांकन करते हुये उनके द्वारा किए गए कार्यों की प्रासंगिकता को रेखांकित करना है जो अकादमिक जगत में लगभग अनछुए रहे हैं इसमे हंसा मेहता और दुर्गाबाई देशमुख है । हंसा मेहता ने संविधान सभा की बहस में लैंगिक समानता, मानव अधिकारों, हिन्दू कोड बिल मे महिलाओ के तलाक के अधिकार तथा महिलाओ के शिक्षा संबंधी अधिकारों, वही दुर्गाबई देशमुख ने समाज के वंचित वर्गों के अधिकार, महिलाओ के संपत्ति मे हिस्सेदारी, शिक्षा संबन्धित आदि मुद्दे महत्वपूर्ण उठाए। ये उस समय के ऐसे मुद्दे थे जिसने नवोदित भारत की नीव रखी और भविष्य की राह दिखाई।

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 भारतीय संविधान, संविधान सभा बहस, लैंगिक समानता, मानव अधिकार, राजनीतिक सहभागिता.

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  1. Austin,G. (1972). Indian Constitution: Cornerstone of a Nation, New Delhi: Oxford University Press.

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3. Collected Work of Gandhi XXI: Page 105
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5. Discussion on New Part XIV-A regarding Lang
6. Discussion on the Motion by Dr. B.R. Ambedkar to pass the Draft Constitution, C.A.D., L.S.S., Vol. XI, 22 November 1949, pp. 796 
7. Discussion on the Motion by Dr. B.R. Ambedkar to pass the Draft Constitution, C.A.D., L.S.S., Vol. XI, 22 November 1949, pp. 797
8. Nagauri S L  and  Nauguri K (1922). Aadhunik Itihas ka Sarvekshn , Sublime Publication : Jaipur
9. फरवरी 1918 में भगिनी समाज, बॉम्बे में अपने भाषण में।
10. Vohra. A  (2018)  Mahilayen aur swaraj, Prakashan vibhag , New Delhi.

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 घरेलू हिंसा भारत में एक व्यापक समस्या है जो हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करती है। यह एक जटिल मुद्दा है जिसके कई अंतर्निहित कारण हैं, जिनमें लैंगिक असमानता, आर्थिक तनाव और मादक द्रव्यों का सेवन शामिल है। घरेलू हिंसा शारीरिक हिंसा से लेकर भावनात्मक शोषण तक कई रूप लेती है और पीड़ितों के लिए इसके गंभीर परिणाम होते हैं, जिसमें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान, सामाजिक अलगाव और यहां तक कि मृत्यु भी शामिल है। हाल के वर्षों में, घरेलू हिंसा के मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ी है और इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास किए गए हैं। भारत सरकार ने घरेलू हिंसा के पीड़ितों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं, और संगठन और हिमायती समूह इस मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने और पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं। इन प्रयासों के बावजूद, घरेलू हिंसा भारत में एक महत्वपूर्ण समस्या बनी हुई है। कई पीड़ित सामाजिक कलंक, बदले की कार्रवाई के डर और समर्थन प्रणाली की कमी के कारण दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने से हिचकते हैं। इसके अतिरिक्त, घरेलू हिंसा के कई अपराधियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जाता है, जिससे दुर्व्यवहार का एक चक्र अनियंत्रित हो जाता है। इस शोध पत्र का उद्देश्य घरेलू हिंसा के कारणों, प्रभावों और निवारक उपायों का पता लगाना है। समस्या के अंतर्निहित कारणों और पीड़ितों पर इसके प्रभाव को समझकर, हम घरेलू हिंसा को रोकने और इससे प्रभावित लोगों का समर्थन करने के लिए प्रभावी रणनीति विकसित कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि यह शोध पत्र घरेलू हिंसा से निपटने के लिए चल रहे प्रयासों में योगदान देगा और सभी के लिए एक सुरक्षित, अधिक न्यायसंगत समाज का निर्माण करेगा।

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 घरेलू हिंसा, लिंग आधारित हिंसा, समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण.

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  1. अन्सारी, एम. ए. (1990), नारी चेतना और अपराध, पंचशील प्रकाशन, जयपुर।

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10. सिंह एवं मल्होत्रा, समकालीन भारतीय समाज और संस्कृति, भारतीय विद्याभवन, वाराणसी।

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 Corporate social responsibility has become more popular across the board. Business organizations have also come to the realization that the Government cannot successfully uplift the underprivileged in society on its own. As a result, the current societal marketing concept of businesses has continuously changed, resulting in the development of a fresh idea: corporate social responsibility. Many of the top businesses in the world have come to understand how important it is to support socially conscious projects in order to promote their own brands. Therefore, the researcher aimed to study the Brand-building procedure of corporates through voluntary CSR in Jammu Division. For this purpose, primary data of 727 respondents from 10 selected districts of Jammu division was made using quota sampling technique. The information was gathered with the use of closed-ended questionnaires that were sent to the respondents, and personal interviews were conducted whenever it was practical to do so. SPSS version 25 was used to do analysis on the data, including cross-tab analysis, correlation analysis, and regression analysis. Lastly, conclusion based on the findings were provided followed by some valuable suggestions.

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 Brand-building, Brand Image, Voluntary Corporate Social Responsibility, Impact.

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 William Golding’s “The Inheritors” is a novel that explores the existential vision of humanity through the perspective of a group of Neanderthals encountering Homo sapiens for the first time. The novel portrays a world that is slowly losing its innocence and coming to terms with the harsh reality of life, death, and the struggle for survival. The existential themes in the novel are evident through the experiences of the Neanderthals and their relationship with the world around them. The Neanderthals in the novel are depicted as a peaceful and harmonious people, living in harmony with nature and their surroundings. They have a deep connection to the natural world and are able to communicate with it through their keen senses and instincts. However, with the arrival of the Homo sapiens, the Neanderthals’ world is shattered, and they are forced to confront the harsh realities of existence. The novel’s central theme is the struggle for survival in a world where life is precarious and unpredictable. The Neanderthals’ existence is threatened by the new arrivals, who are more intelligent, aggressive, and possess superior weapons. The novel shows how the Neanderthals’ way of life is slowly eroded by the Homo sapiens, and how they are ultimately unable to resist the forces of change. The novel also explores the existential themes of identity, consciousness, and mortality. The Neanderthals are depicted as beings who are deeply connected to the natural world, but who lack the self-awareness and consciousness of the Homo sapiens. They are not fully aware of their own mortality and are unable to comprehend the concept of death in the same way as the Homo sapiens. The arrival of the Homo sapiens forces the Neanderthals to confront their own mortality and the impermanence of their existence. Furthermore, the novel explores the theme of the individual versus the collective. The Neanderthals are shown to have a strong sense of community and to be deeply interconnected with one another. However, the arrival of the Homo sapiens introduces a new element of individualism and competition into their world. The Homo sapiens are depicted as individuals who are willing to act in their own self-interest, even if it means harming others. This new dynamic disrupts the Neanderthals’ way of life and ultimately leads to their downfall.

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 William Golding, The Inheritors, Existentialism, Philosophy, Empathy, Timelessness.

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9. Watts, Cedric. “The Inheritors: William Golding’s Novel of Man’s Inhumanity to Man.” Twentieth Century Literature 9.4 (1964): 193-204. Print.
10. Yorke, Malcolm. “The Inheritors.” In his William Golding. Writers and Their Work Series. Northcote House Publishers, 1995. 39-50. Print.

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 The most deadly “Corona virus” has destroyed civilisation around the globe. Many of the folks have lost both their lives and their jobs. Bihar has firsthand knowledge of people moving in search of work. The covid epidemic has disrupted all aspects of society, including economics and physical health. Because of their choice, Bihar’s trade and tourism industries were severely impacted by the unexpected lockdown. This catastrophic “Covid-19” pandemic has destroyed all commercial endeavours and entire industries. Financial crisis is a threat to the tourism industry as well. In January 2021, international visitor arrivals fell by 87%, according to a report on tourism around the world.In India, Bihar holds the 30th and 8th positions in terms of local and foreign tourists, respectively. With the aid of secondary sources, this study has attempted to determine the impact of the Covid pandemic on the Bihar tourism industry.

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 Covid-19, Tourism Industry, e- wallets.

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  1. Batia G.S and Chawla A.S., (2003) Economic importance of tourism in the national economy Serial Publications IInd Edition New Delhi 2003 

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6. Newspapers, Research paper Journals, & Articles.
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8. www.bstdc.bih.nic.in 
9. www.gov.bih.nic.in.

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 CBDC will provide convenience with security in all transaction. There are several models proposed by technology experts and evangelists on how the digital rupee could be transacted but a formal announcement by Reserve Bank of India will likely detail haw the digital rupee will be transacted. one chief difference will be that a digital rupee transaction will be instantaneous as opposed to the current digital payment experience. Some economist view is that this trade in rupees will be successful in only those countries where export and import is equal. But this system will how does work if there will be balance of payment remains ? Govt .of India will make regional groups such as forming a reserve money system with BRIKS, due to this connected member countries will trade in cordial currencies. It is undoubted that with the successful application of this system international transaction scenario will be in dynamic change. This system has main aim is not to devalue international money (such as Dollar or Pound) but to initiate Indian rupee as better transaction media (unit) in global market. It is demand of time that Indian as well as International market should open wider options to expand cordial market.In various type of financial resources of international trade, Indian rupees should be more liberal, generous and reliable which can easily accessible in global trade. For this it is essential for Indian rupee to establish strong foreign money market.

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 Dollar, Rupees, International Transaction, Export, Import, RBI, Currency.

Read Reference

  1. Bank fir International settlement (BIS), The Future Monetary System, Chapter 3, June 2022,https://www.bis.org/publ/arpdf/ar2022e3.htm.

2. Bhattacharya R. and Appendino M., Crypto asset and CBDC in Latin America and the Caribbean, IMF working paper 23/37,2023
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10. www.rba.gov.au/publications/bulletin2023/jan/pdfretail-central-bank-digital-currency-design-considerations-ration-ales-and-implications.pdf.
11. www.visa.co.in/dam/vcom/regional/ap/india/global-elements/documentsdigital-payments-idia.pdf.
 

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 कृत्रिम बुद्धिमता बनावटी या कृत्रिम रूप से विकसित बौद्धिक क्षमता होती है। वर्तमान समय में उपभोक्ता और व्यावसायिक स्थानों में कृत्रिम बुद्धिमता के अनेक अनुप्रयोग हैं। कृत्रिम बुद्धिमता का प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र में हो रहा है, क्योंकि यह विभिन्न उद्योगों जैसे कि मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, वाणिज्य, परिवहन और अन्य उपयोगी कठिन विषयों एवं समस्याओं को हल करने में सहायता करता है। कृत्रिम बुद्धिमता अनुप्रयोगों को पाँच श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जो सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से पुस्तकालय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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 कृत्रिम बुद्धिमता, एक्सपर्ट सिस्टम, रोबोटिक्स, क्लाउड कम्प्यूटिंग, डाटा माइनिंग, सिमेण्टिक वेब.

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 The National Service Scheme (NSS) is a program initiated by the Indian Government to promote the participation of young people in community service activities. The program aims to instill democratic values such as social responsibility, empathy, and national integration among its participants. This paper explores the relationship between democratic values and the NSS program, focusing on how the NSS can be an effective tool for promoting democratic values among the youth. The paper also discusses the role of NSS in promoting national integration and how it can help create a more cohesive society. Through an analysis of existing literature and empirical data, this paper provides insights into the potential benefits of the NSS program for promoting democratic values and national integration in India. The study concludes that the NSS program can effectively promote democratic values and national integration among young people, which is critical for building a more robust and vibrant democracy.

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 Democratic values, Citizenship, National Service Scheme (NSS), Youth Empowerment, National Integration, Gender Equality.

Read Reference

  1. Kulkarni, V. V. “Democratic Values and NSS.” International Journal of Social Science and Interdisciplinary Research, vol. 2, no. 1, 2013, pp. 16-25.

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 The aim of this study is to describe the formal thinking process of students in solving algebraic problems. This study is descriptive qualitative, with two 8th grade subjects taken using a purposive sampling technique. The main instrument in this study is the researchers own judgment, Test of Logical Operations instruments, and algebraic problem-solving tests. The data were collected from various sources using the think-aloud approach. Data were analysed, classified based on students’ cognitive development types (concrete, transitional, and formal) and transcribed into data presentation. The study found that, at the stages of understanding the problem and implementing the plan to solve the problem, the subjects successfully carried out the process of thinking assimilation and abstraction. On the other hand, at the stages of planning and re-examining answers, the subjects able to perform the assimilation process of thinking.

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 Mathematics, Logic, Algebra, analysis.

Read Reference

  1. Harinarayan H., Pratima R. C. I. and Hidayat W., 2019 The innovation of learning trajectory on multiplication operations for rural area students in Indonesia J. Math. Educ.

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 Cyanobacteria are the predominant phototrophs in freshwater ecosystems of the polar regions where they commonly form extensive benthic mats. Despite their major biological role in these ecosystems, little attention has been paid to their physiology and biochemistry. An important feature of cyanobacteria from the temperate and tropical regions is the production of a large variety of toxic secondary metabo lites. In Antarctica, and more recently in the Arctic, the cyanobacterial toxins microcystin and nodularin (Antarctic only) have been detected in freshwater microbial mats. To date other cyanobacterial toxins have not been reported from these locations. Five Arctic cyanobacterial communities were screened for saxitoxin, another common cyanobacterial toxin, and microcystins using immunological, spectro scopic and molecular methods. Saxitoxin was detected for the first time in cyanobacteria from the Arctic. In addition, an unusual microcystin variant was identified using liquid chromatography mass spectrom etry. Gene expression analyses confirmed the analytical findings, whereby parts of the sxt and mcy operon involved in saxitoxin and microcystin synthesis, were detected and sequenced in one and five of the Arctic cyanobacterial samples, respectively. The detection of these compounds in the cryosphere improves the understanding of the biogeography and distribution of toxic cyanobacteria globally. The sequences of sxt and mcy genes provided from this habitat for the first time may help to clarify the evolutionary origin of toxin production in cyanobacteria.

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 Cyanobacteria, toxin, organisms.

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  1. Alexander J., Benford D., Boobis A., Ceccatelli S., Cravedi J. P., Domenico A. Di, et al., Marine biotoxins in shellfish – summary on regulated marine biotoxins. Scientific opinion of the panel on contaminants in the food chain, The EFSA Journal 1306 (2009) 1–23. 

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 An economy’s strength largely depends on its agriculture sector. It has a substantial influence on India’s economy. India’s agriculture accounts for 60% of all direct and indirect exports and one-third of its GDP. It provides 67% of all jobs in India. Strategy and economics are it is strongly reliant on it, as is a great deal of the economy, including industry. Due to the significant financial needs of the industry, only a small number of farmers can afford to operate independently. Therefore, it is imperative to distinguish all agricultural activity and farmers that want assistance. The objective of this article is to assess the growth of agricultural credit in India, to examine the state of agriculture there at the moment, and to examine the numerous Government policies and plans currently in place. The article also discusses innovations in agricultural finance, such as new methodology, techniques, and technology, with a focus on how these innovations support improved agricultural growth and greater financial integration.

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 Agricultural Growth, Financing Institutions, Development, Financial Integration.

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  1. Choudhury, S. (2018). Agricultural development and inclusive growth in India. International Journal of Advance Research, Ideas and Innovations in Technology, 4(5), 362-373.

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 This research paper aims to explore the potential of leveraging cutting-edge technologies to enhance self-reliance in India’s defence manufacturing sector. As one of the world’s largest defence importers, India seeks to foster self-sufficiency and reduce dependence on foreign suppliers for strategic and economic reasons. The study will provide an overview of India’s current defence manufacturing landscape, including existing policies, initiatives, and challenges. It will examine the role of emerging technologies such as artificial intelligence, robotics, additive manufacturing, advanced materials, and cyber security in revolutionizing defence production processes, products, and capabilities. The paper will also discuss indigenous technology development and adoption, emphasizing Government initiatives, R&D infrastructure, and case studies of successful indigenous defence technologies. Furthermore, the study will explore strategies for fostering collaboration, innovation, and technology adoption among Government, industry, and academia stakeholders. Finally, the paper will propose recommendations for overcoming barriers to technology adoption and leveraging these technologies to strengthen India’s defence manufacturing sector, ultimately bolstering national security and strategic autonomy.

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 Cutting-edge Technology, Artificial Intelligence, Robotics, Defence Manufacturing.

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 उच्च शिक्षा देश के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह ज्ञान आधारित समाज के निर्माण का एक बहुत शाक्तिशाली साधन है। वर्तमान में हम 21 वीं सदी में खड़े होकर तकनीकी की दुनिया में एक लंबा सफर तय कर चुके है। आधुनिकीकरण के युग में बच्चे विभिन्न प्रकार की तकनीकी से गहराई से जुडे हुए हैं। आजकल अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थान अपनी शिक्षण -अधिगम पद्धति में आईसीटी को बहुत अधिक महत्व दे रहे है इसलिए उच्च स्तर की शिक्षा प्रणाली में छात्रों की नई पीढ़ी के लिए शिक्षण अधिगम सामग्री और प्रतिक्रिया देने के लिए मिश्रित शिक्षा और फ्ल्पि लिर्निंग शायद बेहतर तरीके है। जहाँ तक महामारी की स्थिति के कारण ज्यदातर सभी संस्थान पारंपरिक शिक्षा पर मिश्रित और फ्लिप सीखने को अपनाने जा रहें है। यह कक्षा की स्थिति में सहयोगात्माक और सहकारी अधिगम परिप्रेक्ष्य को बढ़ाएगा। यह पांरपरिक शिक्षा से मिश्रित और फ्लिप सीखने से प्रतिमान बदलाव पर भी प्रकाश डालेगा। नई शिक्षा नीति 2020 में टीचिंग एंड लर्निंग मैथड में ऑनलाईन और डिजिटल लर्निंग पर भी फोकस किया गया है इसलिए यह विषय आईसीटी के विभिन्न उपयोगों और भारत में आने वाली पीढ़ी के उनके विभिन्न प्रभावों पर प्रकाश डालता है। 

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 आईसीटी एनईपी 2020, ब्लैडिंग लर्निग, फ्ल्पि्ड लर्निंग, कोलैबोरेटिव लर्निंग, कोऑपरेटिव लर्निंग, वर्चुअल लर्निंग.

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  1. बेकर, सी., (जनवरी,2010)। ऑनलाइन छात्र प्रभावी सीखने, अनुभूति और प्रेरणा के लिए प्रशिक्षक तत्कालता और उपस्थिति का प्रभाव। द जर्नल ऑॅफ एजुकेटर्स ऑनलाइन, 7 (1), 1-301।

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6. नई शिक्षा नीति 2020 भारत के शिक्षा के इतिहास में मील का पत्थर साबित होने वाली है।(2020)।
7. https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/toi-page/the-new-education-policy-2020-is-set-be-a-landmark-in-indias-history-of- से लिया गया शिक्षा।
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9. https://www.outlookindia.com/website/story/opinio-national-education-policy-2020-a-bluerprint-for-self-reliant-india/358711 से लिया गया
1.ण् राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ीhttps://www.drishtiias.com/daily-news-analyasis/national-education-policy-2020 से लिया गया।

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 शिक्षकों के उचित प्रशिक्षण के लिए अधिगम एवं शिक्षण, भाषा एवं पाठ्यक्रम, संकाय एवं विषयों की समझ, ज्ञान एवं पाठ्यक्रम, स्वास्थ्य, शारीरिक आदि विषयों को सम्मिलित किया गया है। इन पाठ्यक्रमों को करके प्रशिक्षु शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त करके अपने अध्ययन में प्रभावशीलता पैदा कर सकता है। शोध में ग्वालियर नगर के 50 महिला पुरुष शिक्षकों को सम्मिलित किया गया एवं सांख्यिकी में मध्यमान, प्रामाणिक विचलन, टी-मान के विश्लेषण से निष्कर्ष रूप में शिक्षकों के प्रशिक्षण में कोई अन्तर प्राप्त नहीं हुआ जबकि उनकी शिक्षण प्रभावशीलता में अन्तर दृष्टिगोचर होता है।

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 शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम, शिक्षक प्रभावशीलता.

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  1. अग्रवाल जे.सी. (2012), उदीयमान भारतीय समाज में शिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेशन।

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  भारत अपनी स्वतंत्रता के पचहत्तर वर्ष पूरा कर चुका है। इन वर्षों में भारतीय संविधानिक व्यवस्था, राजनीतिक प्रक्रिया तथा विकसित होने वाली प्रक्रिया अपने आप में महत्वपूर्ण रही है। अनेक अन्य नव स्वतंत्र तथा नव उदित विकासशील देशों की भांति स्वतंत्र भारत की राजनीतिक व्यवस्था तथा प्रशासन, सामाजिक-आर्थिक विकास व परिवर्तन के साधन थे। भारत में विकसित पश्चिमी देशों के विपरीत लोकतंत्र का विकास तथा चलन एक विशेष सामाजिक-आर्थिक परिवेश में और साथ ही उसे बदलने के उसे संदर्भ में हो रहा है। भारत मे अपनायी गयी सांविधानिक तथा प्रशासनिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं, अपनाई गयी नीतियों तथा नियोजन आदि का विश्लेषण मात्र संस्थाओं तथा सांविधानिक व्यवस्थाओं के अध्ययन या मूल्यांकन से नही हो सकता। इसके लिए भारतीय राजनीतिक व्यवस्था तथा प्रणाली का वर्णन और मूल्यांकन सामाजिक-आर्थिक ढांचे तथा विकास और परिवर्तन के परिवेश में किया जाना चाहिए। 

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 संविधान, संसदीय लोकतंत्र, उदारीकरण, विषमतायें, विकास एवं सामजस्य, संगठित राष्ट्र.

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  1. कश्यप, सुभाष, (1997) भारत का सांविधानिक विकास और संविधान, हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।

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 आधुनिकता की होड़ में मानवीय मूल्यों की अवहेलना समाज, संस्कृति और राष्ट्रीयता के लिए अच्छे संकेत नही है। लालित्य ललित अपने लेखन के माध्यम से नारी को अतिआधुनिकता के दुष्परिणामों से चेताते है। स्त्री की स्वतंत्रता उसकी सामाजिकता की सीमा में रहते हुए आवश्यक है। यदि यही स्वतंत्रता जब स्वच्छंदता मे परिवर्तित होने लगे तो वह समाज को, परिवार को विखंडित करने वाली होती है। आज सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले लोगों के वास्तविक चिंतन को जानकर तो यह कतई नहीं लगता कि लाइक्स और कमेंट देकर वे किसी अन्य महिला में मातृत्व या बहन के प्रेम की अभिलाषा लेकर बैठे हो। यही कारण है कि लालित्य ललित अपने निबंधों, व्यंग्यों एवं काव्य के माध्यम से समाज को चिंतन की ओर प्रेरित करते हैं। लालित्य ने जहां एक ओर अपनी रचनाओं में स्त्रियों की दशा का वर्णन किया है वहीं दूसरी ओर उन्हें सावधान करने की कोशिश भी की है।

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 लालित्य ललित, स्त्री विमर्श.

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  1. पांडेय जी के शगूफे, लेखक लालित्य ललित, पृ. 183। 

2. मेरी 51 कवितायें - 10, लालित्य ललित पृ. - 100। 
3. पांडेय जी बोल रहे हैं, लालित्य ललित, पृ.- 116-117। 
4. मेरी इक्यावन कवितायें - 1, लालित्य ललित पृष्ठ-94। 
 

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 डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की गिनती उन उत्कृष्ट राष्ट्रीय नेताओं में की जाती है, जिन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर भारत को आजादी दिलाई। उनकी गिनती कुछ ऐसे गिने चुने लोगों में भी की जाती है, जो अन्त तक राष्ट्रपति द्वारा निरूपित आदर्शों और मूल्यों के प्रति सदैव दृढ़निश्चयी रहे। कांग्रेस के पदों या नेतृत्व को लेकर जब भी कोई भ्रम उत्पन्न हुआ और जब कभी अधीर किस्म के लोग अहिंसा के संकरे पथ से विचलित होते दिखाई दिए, जिन घटनाओं से गाँधी जी अनेक बार अत्यधिक व्यथित हुए, तब ऐसे अवसरों पर राजेन्द्र प्रसाद अपने इस विश्वास पर अडिग रहे कि गाँधी जी का बताया रास्ता ही उद्देश्य प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है और वह इस हेतु सतत् प्रयत्नशील भी रहे।

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 न्यायालय, वकालत, कांग्रेस समिति, संविधान सभा, चम्पारण, राष्ट्रपति.

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  1. नायर, सुशीला, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री, प्रख्यात गाँधीवादी विचारक, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्त्ता, पृ. 72।

2. पूर्वाक्त, पृ. 72।
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5. चौधरी, बाल्मीकि (संपादित) ‘‘डॉ. राजेन्द्र प्रसाद’’ कास्पोन्डेन्स एण्ड सलैक्ट डाक्यूमेंट्स, वाल्यूम 12, नई दिल्ली, सलाइड पब्लिशर्स लिमिटेड, 1989।
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14. प्रसाद, यदुनन्दन, पूर्वोक्त, पृ. 114।
15. मुंशी, के. एम. ‘‘इडियन कन्श्टियुशलन डाक्यूमेंट’’, वाल्यूम I - II

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 The efficiency of a country’s taxation system determines the health of its economy. If the right steps are followed, it maintains revenue consistency and controls economic growth. The federal three-tier structure of our tax system is made up of the Union Government, the State Governments, and the Local Bodies. Any tax imposed that is not authorised by law or that exceeds the legislative body’s authority is unconstitutional. The constitutional delegation of tax authorities established the fundamental structure for India’s tax system after independence. The foundation of policy is the idea that the federal and State Governments should have separate taxing authorities. Three lists are used in Schedule VII to list the taxation-related topics. The ability to tax services was not officially recognised or delegated to any level of Government in India’s constitution prior to 2003. All remaining taxing authority was granted to the Central Government, and this power served as the basis for the levying of a tax on a select few services beginning in 1994.The changes to the Indian Constitution gave the Central Government the jurisdiction to tax services. To alleviate severe fiscal strains, tax policy was used as the primary tool, and significant adjustments were implemented by a large number of nations worldwide. The internationalisation of economic activities brought about by growing globalisation served as another source of inspiration for reform. In light of the recent decision to implement GST, this essay analyses the structure of the Indian tax system, its constitutional framework, and the system’s present modifications.

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 Tax system, Legal framework, GST.

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  1. Article 265 of Constitution of India. 

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 आज दुनिया में तकनीकी का विकास इतनी तेजी से हो रहा है कि आज लोग अपने हर काम में इस नई तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। पुराने समय में व्यापारी अपने उत्पादों के मार्केटिंग के लिए कई तरह की रणनीतिया अपनाते थे लेकिन आज के समय में लोग व्यवसाय व व्यक्तिगत कार्यों में तकनीकी सहायता बहुत ज्यादा ले रहे हैं। सीधे शब्दों में कहें तो आजकल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या इंटरनेट के द्वारा डिजिटल मार्केटिंग में उत्पादों या ब्रांडो का उपयोग करके प्रचार किया जा रहा है। आजकल डिजिटल मार्केटिंग तेज गति से बढ़ रहा है। आजकल ऑनलाइन सर्फिंग, ऑनलाइन खरीदारी, ऑनलाइन संचार, ऑनलाइन भुगतान आदि का प्रयोग युवा-वृद्ध आदि सभी अपने बिल भुगतान, खरीदारी आदि करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को अपनाने लगे हैं। खरीदारी की जानकारी के लिए सर्फिंग के लिए भी डिजिटल साधनों का ही उपयोग हो रहा है। आज लोग खरीदारी के लिए खुदरा दुकानों में जाने के बजाए ऑनलाइन खरीदी करना पसंद कर रहे हैं क्योंकि इसमें ऊर्जा व समय दोनों की बचत होती है। अतः हम यह कह सकते हैं कि उपभोक्ताओं के खरीद व्यवहार पर डिजिटल मार्केटिंग अपना सकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। इस अध्ययन में हम उपभोक्ता के खरीद व्यवहार पर डिजिटल मार्केटिंग के प्रभाव को उजागर करेंगे।

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 प्रौद्योगिकी, विपणन रणनीति, डिजिटल विपणन, उपभोक्ता व्यवहार.

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  1. शेन, एक्स, इंटरनेट उपभोक्ताओं के व्यवहार संबंधी विशेषताओं और विपणन रणनीतियों का विश्लेषण, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सोशल साइंस एंड एजुकेशन रिसर्च, 2020ः 3(9), 208-214।

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  9. समाचार पत्र - पत्रिका/दैनिक भास्कर

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 आधुनिक समाज समस्याओं का समाज है। जैसे-जैसे हम विकास करते जा रहे हैं वैसे-वैसे नई-नई समस्याओं का जन्म होता जा रहा है। इन्हीं समस्याओं में से एक प्रमुख समस्या वन क्षेत्रों में सरकारी हस्तक्षेप से जनजाति परिवार के सामने आ खड़ी है। प्रस्तुत शोध पत्र जनजातीय परिवार के विस्थापन पर आधारित है जिसमें शोधार्थी ने तथ्य संकलन में प्राथमिक व द्वितीयक दोनों ही स्रोतों का उपयोग किया है। दूसरे लोगों को सुविधाएं या आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई वन क्षेत्रों को भारत शासन द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया ताकि वहां कई परियोजनाओं का निर्माण किया जा सके और किया भी गया, जिनमें प्रमुख नर्मदा घाटी परियोजना के अंतर्गत सरदार सरोवर परियोजना गुजरात, नर्मदा सागर परियोजना मध्य प्रदेश शामिल है। इसके साथ ही सुवर्णरेखा तथा कोयला कारो परियोजना, टिहरी बांध परियोजना, पन्ना रिजर्व टाइगर अभ्यारण्य इत्यादि शामिल है। वन क्षेत्रों में वर्षों से निवास करने वाले जनजाति परिवार को वहां से अलग कर दूसरी जगह विस्थापित करने की योजना बनाई गई और उन्हें विस्थापित भी किया गया जिस कारण उनके परिवार के सामने सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, व्यवहारिक समस्याओं ने जन्म ले लिया है, प्रस्तुत अध्ययन इसी संदर्भ में किया गया है।

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 जनजाति, वनवासी ग्रामीण, विस्थापन, जनजाति परिवार, प्रभाव.

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1. Goode J. Wellman, (1993) “Modem Organisation” New Delhi,  Prentice, Hall of India Pvt. Ltd.

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8. तिवारी शिव कुमार, शर्मा श्री कमल, (2000),”मध्यप्रदेश की जनजातियां” भोपाल, मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी।

9. वन संरक्षण अधिनियम, कार्यालय क्षेत्रीय संचालक पन्ना राष्ट्रीय उद्यान, पन्ना मध्य प्रदेश।


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 Biodiversity is the necessary aspect of any ecosystem, because presence of abundant biodiversity in any ecosystem makes that ecosystem healthier and balanced. Generally the meaning of biodiversity in any ecosystem is from presence of diverse, flora and fauna. Due to presence of these the flow of energy in the food chain happens smoothly, and whenever due to any reason if the bio-diversity decreases in any ecosystem then the food chain gets disturbed and impacted in adverse manner. Resultant of this situation, many species and plants come to an end. As the food chain gets disturbed, the flora and fauna including humans living in that area has to face consequences of in it. In this scenario, where population is rising at an alarming rate to meet the demand of these population, Capitalist seeing opportunity are inclined to Promote Industrialization and Urbanization, inculcating the idea of materialism in people across globe and India is too on this path. Because of this more people are turning to enjoy their senses and maintain luxury life to flex around them looking for more comfort in life. Because of which the natural resources are exploited indiscriminately. Therefore the bio-diversity is in danger, so it is necessary to take steps conserving it and promoting the idea of sustainable development so that meeting our need we can offer these resources to future generations, what is the reason for loss of bio- diversity in India? To conserve the bio-diversity Government of India has taken various measures steps. The scheme and policies launched by Government of India is covered in this paper. For writing this paper, researcher studied numerous books, authentic Government documents, magazines and research paper to understand the bio-diversity. The main objective of the paper is to know why it is necessary for India to protect biodiversity to reate awareness among people and making this concept easier.

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 Biodiversity, Ecosystem, Resources, Conservation, Urbanization, Industrialization.

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 वैश्वीकरण की प्रक्रिया के प्रारम्भ के बारे में यदि विचार किया जाये तो कुछ निश्चित रूप में नहीं कहा जा सकता। यदि प्राचीन भारतीय परम्पराओं में जाये तो सम्पूर्ण वसुधा को एक कुटुम्ब माना गया है। 19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यूरोप के देशों में राष्ट्रवाद ही प्रथम विश्व युद्ध का प्रमुख कारण बना। इसी समय रूस में समाजवादी क्रांति हुई जिसे साम्यवाद की पूर्व अवस्था माना गया। सम्पूर्ण विश्व को समाजवादी व्यवस्था के अन्तर्गत लाकर साम्यवादी विश्व समाज की स्थापना का स्वप्न साम्यवादी विचारधारा के समर्थक देखने लगे। इन्होंने सम्पूर्ण विश्व को एक वर्गहीन व राज्य विहीन व्यवस्था के अन्तर्गत एकताबद्ध करने की परिकल्पना की। इस प्रकार समाजवादी क्रांति ने भिन्न तरीके से वैश्वीकरण का विचार उत्पन्न किया। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् साम्यवादी विचारधारा का तीव्र प्रसार हुआ तथा साम्यवादी क्रांति रूप में ज्ञान की परिणति हुई। 20 वीं सदी के पूवार्द्ध तक लगभग 1/3 विश्व लाल झण्डे के नीचे आ गया। 1945 के बाद विश्व उपनिवेशवादी व साम्राज्यवादी व्यवस्था में परिवर्तित होने लगा। नव साम्राज्यवादियों के नेता के रूप में अमेरिका का उदय हुआ। दो विरोधी विचारधाराओं, समाजवाद व नव साम्राज्यवाद के मध्य अन्तर्विरोध था तथा दोनों ही एक दूसरे के अस्तित्व को चुनौती दे रहे थे। रूस एक विचाराधारा का मुखिया था, तो अमेरिका दूसरी विचारधारा का। 1962 के बाद चीन व रूस में मतभेद हुए व समाजवादी आन्दोलन दो धड़ों में बँट गया, फिर भी रूस को ही साम्यवादी आन्दोलन का मुखिया माना गया। 1980 के बाद से ही सोवियत संघ विरोधी शक्तियाँ सक्रिय गई व सोवियत रूस का विघटन प्रारम्भ हो गया। समाजवाद बिखरने लगा, पूँजीवादी प्रवृत्तियाँ पकड़ने लगीं तथा सोवियत रूस, जो विश्व समुदाय में एक मजबूत ध्रुव के रूप में खड़ा था ढह गया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो दो ध्रुवीय संसार अस्तित्व में आया था वह अब एक ध्रुवीय हो गया।

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 वैश्वीकरण, उद्योग, आर्थिक, पूंजी.

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8. लक्ष्मीनारायण नाथूराम का भारतीय 
9. जैन विमल कुमार, नैगी के.एस., जैन आर. के., अर्थव्यवस्था आर्थिक नियोजन के सिद्धान्त व भारत में आर्थिक नियोजन।
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14. अमर उजाला।
15. टाइम्स ऑफ इण्डिया।

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 This paper discuss the concept of arbitration given under the arbitration and conciliation act,1996. In this paper types of Arbitration their essential elements and jurisdictional approach are mentioned and discussed. The author in this paper stated the feature and importance in the present scenario.

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 Arbitration, Conciliation, Ad-hoc, Dispute Resolution.

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  1. Myneni, Dr. S.R. : Alternate Dispute Resolution (The Arbitration and Conciliation Act,1996), 5th ed. Asia Law House

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Footnotes
1. (2003) 1 SCC 49
2. (2000) 4 SCC 539
 

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 Forests cover about 30% of the earth’s land area, yet humans are deforestation and exploitation of these critical habitats on a large scale. Deforestation refers to the reduction of forest area around the world and its loss to other uses such as agricultural land, urbanization and mining activities. Deforestation, greatly accelerated by human activities since the 1960s, has adversely affected natural ecosystems, biodiversity and climate. Deforestation has so many negative effects on the planet that it can lead to the end of life on earth. There are several causes of deforestation. This study is about the impacts, facts, causes and indicators of deforestation.

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 Deforestation, Impact, causes, facts.

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 Information and Communication Technology brings dynamic changes to society. They affect all areas of life. Its influence is increasingly felt in schools. As ICT offers both students and teachers the opportunity to adapt learning and teaching to their individual needs, society is forcing schools to respond appropriately to this technological innovation. Teacher education institutions face the challenge of preparing a new generation of teachers to effectively use new learning tools in their teaching practice. Teacher educational institutions should therefore consider the use and application of ICT in their programs. Curricula need to be restructured to include key components of ICT. ICT is therefore not a substitute but a powerful tool for teachers and learners. ICT can be a vehicle to pave the way to excellence. This paper aims to highlight the role and importance of information and communication technology in teacher education systems.

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 Information and communications technology, Teacher Education, E –Learning.

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  1. Kaur, M., & Singh, B. (2018). Teachers’ attitude and beliefs towards use of ICT in teaching and learning: Perspectives from India. Proceedings of the 6th International Conference on Technological Ecosystems for Enhancing Multiculturality (TEEM 2018), 592–596. 

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 Security in a distributed system poses unique challenges that need to be considered when designing and implementing systems. A compromised computer or network may not be the only location where data is at risk; other systems or segments may also become infected with malicious code. Because these types of threats can occur anywhere, even across distances in networks with few connections between them, new research has been produced to help determine how well distributed security architectures are actually performing. In the past, security was typically handled on an end-to-end basis. All the work involved in ensuring safety occurred “within” a single system and was controlled by one or two administrators. The rise of distributed systems has created a new ecosystem that brings with it unique challenges to security. Distributed systems are made up of multiple nodes working together to achieve a common goal, these nodes are usually called peers.

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 Security benefits, Security framework, Architectural levels of security services, Security objectives.

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  1. Estivill Castro V. and Murray A.T. (1998), ‘Spatial clustering for data mining with genetic algorithms,’ in Proceedings of the International ICSC Symposium on Engineering of Intelligent Systems, pp. 317-323. 

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 The most valuable asset in an organization are the employees of that organization. Any organization can derive maximum benefit by efficient handling of human resources. Motivated employee reaches new goals, meet customers’ demands and needs, develop new and innovative products and make massive efforts to achieve organization’s objectives. This paper shows the importance of monetary and non-monetary incentives in State Government offices in Chhattisgrh. Paper shows that how monetary and non-monetary incentives enhance employee’s performance and also presents a comparative study between both incentives in Government offices. For the study primary and secondary data has been used. For primary data 120 employees were selected from three Government offices of Chhattisgarh and secondary data is collected from books, news papers, websites etc. And the result was found that in Government offices monetary incentives affect the employees more then non-monetary incentives.

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 Incentives, Monetary Incentives, Non-monetary Incentives, Employee Satisfaction, Employee Performance.

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 Education is an important tool for the fast and well balanced development of any nation. Every nation is trying collectively to achieve the full literacy for economic, social and cultural development. Education in the present day context, is without doubt the single most important means that has the potential to construct the destiny of both an individual and of the whole nation. To uproot this context the Indian Parliament executed 86th constitutional amendment and introduced one of the tremendous Article 21A in the year 2002 which made right to education a fundamental right to the children in the age group of 06-14 years. This paper describes the implementation of the Right to Education at primary education in India from the constitutional point of view.

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 Right to Education,  Constitutional Amendment, Fundamental Right, Tremendous, Parliament.

Read Reference

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 अध्यापक शिक्षा छात्र शिक्षकों को आवश्यक ज्ञान, कौशल हासिल करने तथा सकारात्मक दृष्टिकोण, मूल्यों और विश्वासों को विकसित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह मंच पाठ्यक्रम की मदद से किया जा सकता है। किसी भी संस्था में निर्मित शिक्षक की गुणवत्ता हमेशा उनके प्रशिक्षण अवधि के दौरान उनके द्वारा दी गई पाठ्यक्रम पर निर्भर करती है। पाठ्यक्रम तैयार करने में पाठ्यक्रमों के विभिन्न शोधों और शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका की समीक्षा करने के बाद, पाठ्यक्रम विकास प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत किया गया। पाठ्यक्रम तैयार करने और पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने की प्रक्रिया विकेन्द्रीकृत की जाती है ताकि इन कार्यों में शिक्षकों की भागीदारी में वृद्धि हो सके। विकेंद्रीकरण का मतलब राज्य/जिले के भीतर अधिक स्वायत्तता होना चाहिए। 

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 शिक्षक, शिक्षा, पाठ्यक्रम.

Read Reference

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 It is crucial to have a hindsight evaluation of the magnitude and pace of urban expansion for effective growth management in metropolitan areas. The objective of this paper is to quantify the spatial– temporal patterns of urban expansion in the Lucknow City, Uttar Pradesh, India. The analysis was carried out using the Remote Sensing & Geographical Information System Technique in which Landsat satellite images of the years 1980, 2000, and 2020 were used and classified into 5 Land-use & Land-cover classes (Agricultural land, Built-up, Waterbody, Wasteland and Tree cover) using supervised maximum likelihood algorithm to obtain the built up expansion for each respective years. Further, the city’s municipal area was divided into 8 concentric multiple ring buffers, each with a width of 2 km. To estimate the amount and intensity of expansion over the 40-year study period from 1980 to 2020, 3 indices such as Annual urban expansion rate (AUER), Urban expansion intensity index (UEII) and Urban expansion differential index (UEDI) are computed for each buffer. Results show that middle buffers 4, 5, and 6 have the highest annual urban expansion rate (AUER) during the study period as compared to other buffers. Buffers 3, 4 and 5 show the highest value of the Urban Expansion Intensity Index (UEII) during 1980-2020 in contrast to other buffers. Buffer 5, having the highest value of the Urban expansion differential index (UEDI) (10.31) among all other buffers, has been the fastest growing region of the Lucknow municipal area during the study period. The study also revealed that from 1980 to 2020, according to the values of UEDI, buffers 4, 5, 6 and 7 are the fast-growing areas, while buffers 1, 2, 3 and 8 are the slow-growing areas of Lucknow. Moreover, the metropolitan-core buffers (buffers 1 & 2), which serves as the focal point of urban development and the historical origins of expansion, show the least built-up expansion over the 40 years due to limited available land. During the study period, urban expansion has spread into the middle and peripheral buffer areas, with the highest intensity and fastest rate of expansion occurring in the buffers located around the core regions. A comprehensive regional growth management strategy grounded in effective strategic partnerships among the respective administrative districts to curb unsustainable urban expansion is recommended.

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 Multiring buffer analysis, Landsat, Maximum Likelihood Supervised Classification, Built-up, Urban Metrics.

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 The inflation is the unbeatable dimension of the Indian economy. It is seen in the post Covid-19 period that it is rising at very fast pace. The Chhattisgarh state do not remains untouched with the influence of inflation. The inflation in the entire economy depleted the living standard of the individual family. The present study based on inflation and its impact of the cost of living. The study is based on descriptive and inferential research design. The data collection is done using both sources i.e., primary as well as secondary. The primary data collected using the structured close ended questionnaire. The google form is used to collect the primary data. The sample size is 47. It is found that there was many negative effect of post Covid-19 inflation in our country as well as our state Chhattisgarh i.e., decreases saving, increases family expenses, poverty, unemployment, mostly impacted middle class family. The various suggestive measure to combat the inflation are increasing the other source of income, earning member in the family, decreasing depend member in family, promotes saving for future reference. By adopting the above measure will help the individual and family to overcome the inflation. It was found that the inflation and the cost of living are the related variable, influences each other. 

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 Economy, Currency, Inflation, Covid-19, Price-rise, Income.

Read Reference

  1. https://mint.intuit.com/blog/investments/the-history-of money/#:~:text=It%20wasn’t%20until%20about, first%20known%20form%20of%20currency.

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धर्मशाला एक बहुत सुंदर रमणीय स्थल है जिसको भारत का स्कॉटलैंड के रुप में जाना जाता है। धर्मशाला काँगड़ा जिले का मुख्यालय है, यह अंग्रेजों द्वारा स्थापित 80 पर्वतीय स्थानों में से एक है। धर्मशाला एक व्यस्त व्यापारिक केंद्र है। यह रमणीय स्थल धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में है और इसकी हिमरेखा अन्य पर्वतीय सैरगाहो की तुलना में आसानी से पहुंचने वाली है। आज धर्मशाला पुरे विश्व में परम पावन दलाईलामा का मुख्यालय होने के कारण विख्यात है। धर्मशाला को ‘भारत का लघु ल्हासा’ भी कहा जाता है। धर्मशाला में कई पर्यटन स्थल है जहाँ घुमने के लिए स्थान है। इस अध्ययन में 50 लोगो को प्रतिदर्शन बनाया है जिसमे यादृच्छिक प्रतिदर्श को प्रयोग में लाया गया जिसमे अनुसंधानकर्ता सुविधा से प्रत्याशियो को चुनते है। इस अध्ययन में यह निकल कर आया है कि धर्मशाला में पर्यटन के कारण धर्मशाला का आर्थिक विकास हुआ है साथ ही नए बुनियादी ढांचे का भी विकास हो रहा है और लोगो के खान-पान में वैश्वीकरण के कारण काफी परिवर्तन आया है।
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 आर्थिक, पर्यटन, विकास, वैश्वीकरणण्

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